प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 29 जुलाई से शुरू
  संपर्क करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 06 Oct, 2020
  • 60 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन-ताइवान विवाद: दशा और दिशा

प्रिलिम्स के लिये

ताइवान की भौगोलिक स्थिति, इंडिया-ताइपे एसोसिएशन

मेन्स के लिये

चीन-ताइवान विवाद और इसकी पृष्ठभूमि, भारत-ताइवान संबंध

चर्चा में क्यों?

बीते दिनों भारत और चीन के संबंधों में तनाव के चलते चीन ने अपने दो दिवसीय सैन्य अभ्यास के दौरान ताइवान की सीमा के करीब अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया, जिससे चीन और ताइवान के बीच तनाव और अधिक गहरा गया है। 

  • ध्यातव्य है कि चीन का यह युद्धाभ्यास ऐसे समय में किया गया, जब अमेरिका के आर्थिक मामलों के उपमंत्री ताइवान के दौरे पर गए हुए थे। 

प्रमुख बिंदु

  • चीन के युद्धाभ्यास के संबंध में जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार, इस अभ्यास में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के कुल 18 हवाई जहाज़ शामिल थे और इसका उद्देश्य चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की संयुक्त संचालन क्षमता का परीक्षण करना था।
  • वहीं दूसरी ओर इस संबंध में ताइवान द्वारा जारी बयान के अनुसार, चीन युद्धाभ्यास के माध्यम से इस क्षेत्र की शांति और स्थिरता को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाने का प्रयास कर रहा है।
  • जानकारों के अनुसार, यद्यपि चीन की इस कार्यवाही के कई कारण हो सकते हैं, किंतु इनमें मुख्य कारण हाल के कुछ दिनों में ताइवान और अमेरिका के बीच नज़दीकी संबंधों को माना जा रहा है।

चीन-ताइवान विवाद की पृष्ठभूमि 

  • उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार, तांग राजवंश (618-907ई.) के समय से ही चीनी लोग मुख्य भूमि से बाहर निकलकर ताइवान में बसने लगे थे। वर्ष 1624 से 1661 तक चीन एक डच (वर्तमान में नीदरलैंड) उपनिवेश था। 
  • हालाँकि चीन और ताइवान के बीच लंबे समय से चल रहे संघर्ष की पृष्ठभूमि को समझने के लिये हमें वर्ष 1894 की घटना पर नज़र डालने की आवश्यकता है, जब चीन के चिंग राजवंश (Qing Dynasty) और जापान के साम्राज्य के बीच पहला चीन-जापान युद्ध लड़ा गया था।
  • तकरीबन एक वर्ष तक चलने वाले इस युद्ध में अंततः जापानी साम्राज्य की जीत हुई तथा जापान ने कोरिया और दक्षिण चीन सागर में अधिकांश भूमि पर कब्जा कर लिया, जिसमें ताइवान भी शामिल था।
  • जापानी सेना के विरुद्ध मिली हार के कारण चीन की जनता में राजतंत्र के विरुद्ध संदेह पैदा हो गया और चीन में राजनीतिक विद्रोह की शुरुआत हो गई।
  • चीन में विद्रोह की शुरुआत वर्ष 1911 में हो गई थी और 12 फरवरी, 1912 को चीन में साम्राज्यवाद समाप्त कर दिया गया। इस तरह चीन में राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी की सरकार बनी और जितने क्षेत्र चिंग राजवंश के अधीन थे वे सभी चीन की नई सरकार के क्षेत्राधिकार में आ गए। 
    • इस दौरान चीन का आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना कर दिया गया।
  • द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की पराजय के बाद ताइवान पर भी फिर से राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी का अधिकार मान लिया गया।
  • वर्ष 1949 में चीन पूर्णतः गृह युद्ध की चपेट में था, इसी दौरान माओत्से तुंग के नेतृत्त्व में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने चिआंग काई शेक के नेतृत्त्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी को सैन्य संघर्ष में हरा दिया और चीन पर कम्युनिस्ट पार्टी का शासन स्थापित हो गया। इस दौरान चिआंग काई शेक, राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी के सदस्यों के साथ ताइवान चले गए और वहाँ उन्होंने अपनी सरकार बनाई।
    • ध्यातव्य है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी उस समय ताइवान पर कब्ज़ा नहीं कर पाई थी, क्योंकि कम्युनिस्ट पार्टी की नौसैनिक क्षमता काफी कम थी।
  • सत्ता में आने के बाद कम्युनिस्ट पार्टी ने चीन का आधिकारिक नाम बदलकर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना कर दिया, वहीं ताइवान अपने को आधिकारिक तौर पर रिपब्लिक ऑफ चाइना के रूप में संबोधित करने लगा।

चीन-ताइवान - विवाद संबंधी मुख्य बिंदु

  • अब चीन और ताइवान के बीच सबसे बड़ा विवाद आधिकारिक पहचान को लेकर है, जहाँ एक ओर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के लिये आधिकारिक मान्यता चाहती है, वहीं ताइवान के लोग ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के लिये आधिकारिक मान्यता चाहते हैं।
    • उल्लेखनीय है कि विश्व के अधिकांश देश ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ को तो मान्यता देते हैं लेकिन ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ को मान्यता देने वाले देशों की संख्या काफी कम है।
  • इसके अलावा चीन का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो ताइवान को चीन के अभिन्न अंग के रूप में देखता है, इस वर्ग को ‘एक चीन नीति’ (One-China Policy) का समर्थक माना जाता है।
    • इस समूह के अनुसार, ताइवान चीन का अभिन्न अंग है और जो लोग ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करना चाहते हैं उन्हें ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के साथ अपने कूटनीतिक संबंध समाप्त करने होंगे।
    • इस नीति के समर्थक मानते हैं कि ताइवान चीन का ही हिस्सा है और कुछ समय के लिये चीन से अलग हो गया है तथा जल्द ही इसे कूटनीतिक अथवा सैन्य माध्यम से चीन में शामिल कर लिया जाएगा। कई विद्वान चीन की हालिया कार्यवाही को इस नीति के दृष्टिकोण से भी देख रहे हैं।

ताइवान की भौगोलिक स्थिति

Taiwan

  • ताइवान पूर्वी एशिया का एक द्वीप है, जिसे चीन और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी एक विद्रोही क्षेत्र के रूप में देखती है।
  • तकरीबन 36197 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस द्वीप की आबादी 23.59 बिलियन के आस-पास है। ताइवान की राजधानी ताइपे है जो कि ताइवान के उत्तरी भाग में स्थित है।
  • जहाँ एक ओर चीन में एक-दलीय शासन व्यवस्था है, वहीं ताइवान में बहु-दलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था है।
  • ताइवान के लोग अमाय (Amoy), स्वातोव (Swatow) और हक्का (Hakka) भाषाएँ बोलते हैं। मंदारिन (Mandarin) राजकार्यों की भाषा है।

हालिया संघर्ष के निहितार्थ

  • चूँकि चीन और ताइवान के बीच किसी भी प्रकार का आधिकारिक संवाद तंत्र नहीं है, जिसका अर्थ है कि यदि चीन और ताइवान के बीच किसी भी प्रकार का आकस्मिक संघर्ष होता है तो उसे समाप्त करन अपेक्षाकृत काफी चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
  • जानकार मानते हैं कि चीन अपनी मिसाइलों और साइबर हमलों के माध्यम से ताइवान को किसी भी समय युद्ध में पछाड़ सकता है। 
    • यद्यपि ताइवान की सेना पूर्णतः प्रशिक्षित और सशस्त्र है, किंतु चीन की सेना के सामने ताइवान की सेना काफी छोटी है, इसलिये सैन्य मोर्चे पर ताइवान के लिये चीन का सामना करना मुश्किल होगा।
  • हालाँकि युद्ध चीन के लिये भी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और आर्थिक दृष्टिकोण से काफी नुकसानदायक होगा, और संभव है कि इस प्रकार के युद्ध के पश्चात् चीन को पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का सामना करना पड़े।

चीन-ताइवान विवाद में अमेरिका

  • चीन-ताइवान विवाद में अमेरिका की भूमिका को शीत युद्ध की पृष्ठभूमि में खोजा जा सकता है। विदित हो कि शीत युद्ध के दौरान अमेरिका की शीत युद्ध नीति में ताइवान की महत्त्वपूर्ण रणनीतिक भूमिका को स्वीकार किया गया था और शीत युद्ध के शुरुआती दौर में ताइवान को अमेरिका का पूरा समर्थन प्राप्त था।
  • हालाँकि 1972 में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की चीन यात्रा के बाद अमेरिका-चीन संबंधों के साथ-साथ अमेरिका-ताइवान संबंधों में भी परिवर्तन आने लगा। 
  • 1 जनवरी, 1979 को संयुक्त राज्य अमेरिका ने ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ को मान्यता दी और चीन के साथ अपने राजनयिक संबंध स्थापित कर लिये। साथ ही अमेरिका ने ताइवान के साथ अपने राजनयिक संबंध समाप्त कर दिये। 
  • आज अमेरिका-चीन-ताइवान संबंध एक बार पुनः बदल गए हैं, चीन अब विश्व की कुछ सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गया है और वह धीरे-धीरे पूर्वी एशिया में अपना आधिपत्य स्थापित करने की ओर अग्रसर है, ऐसी स्थिति में चीन अमेरिका के वर्चस्व के लिये एक बड़े खतरे के रूप में उभर रहा है। 
    • यही कारण है कि अब अमेरिका, चीन का मुकाबला करने के लिये ताइवान का समर्थन कर रहा है।

भारत-ताइवान संबंध

  • भारत और ताइवान के बीच संबंधों की शुरुआत वर्ष 1995 में तब हुई जब भारत और ताइवान द्वारा मिलकर संयुक्त तौर पर गैर-सरकारी सहभागिता को बढ़ाने हेतु इंडिया-ताइपे एसोसिएशन (ITA) की स्थापना की गई। इसलिये भारत-ताइवान के संबंधों की औपचारिक शुरुआत 1990 के दशक में मानी जाती है।
  • ध्यातव्य है कि भारत संयुक्त राष्ट्र के उन 179 सदस्य देशों में से एक है जिसने ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित नहीं किया है। हालाँकि जानकार मानते हैं कि भारत समेत विश्व के तकरीबन 80 देश ऐसे हैं, जिन्होंने ताइवान के साथ अनौपचारिक और आर्थिक संबंध स्थापित किये हुए हैं।
  • उल्लेखनीय है कि हाल ही में ताइवान ने कोरोना वायरस (COVID-19) रोगियों के इलाज में लगे चिकित्साकर्मियों की सुरक्षा के लिये भारत को 1 मिलियन फेस मास्क प्रदान किये थे। 

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-म्याँमार द्विपक्षीय सहयोग

प्रिलिम्स के लिये:

कलादान मल्टी मॉडल पारगमन परिवहन परियोजना, रखाइन राज्य विकास कार्यक्रम

मेन्स के लिये: 

भारत-म्याँमार संबंध, रोहिंग्या समस्या का भारत पर प्रभाव  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला और सेना प्रमुख जनरल एम.एम. नरवणे (Gen M M Naravane) की दो दिवसीय म्याँमार यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच कई महत्त्वपूर्ण द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की गई।

प्रमुख बिंदु:

  • इस यात्रा के दौरान केंद्रीय विदेश सचिव और भारतीय सेना प्रमुख ने म्याँमार की स्टेट काउंसलर ‘आंग सान सू की’ (Aung San Suu Kyi) और कमांडर इन चीफ ऑफ डिफेंस सर्विसेज़, सीनियर जनरल मिन आंग हलिंग से मुलाकात की।
  • इसके अतिरिक्त भारतीय सेना प्रमुख ने म्याँमार सशस्त्र सेवा के उप-कमांडर-इन-चीफ वाइस जनरल ‘जनरल विन विन’ से और केंद्रीय विदेश सचिव ने म्याँमार के विदेश मंत्रालय के स्थायी सचिव ‘यू सो हान’ से मुलाकात की।
  • केंद्रीय विदेश सचिव द्वारा म्याँमार की राजधानी नैपीदॉ (Naypyidaw) में एक संपर्क कार्यालय का उद्घाटन किया गया है, गौरतलब है कि दिसंबर 2018 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की म्याँमार यात्रा के दौरान नैपीदॉ में संपर्क कार्यालय की स्थापना का विचार प्रस्तुत किया गया था।
  • इस संपर्क कार्यालय के औपचारिक उद्घाटन के साथ ही भारत द्वारा नैपीदॉ में भारतीय दूतावास की स्थापना की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम बढ़ाया है।
    • ध्यातव्य है कि वर्तमान में अन्य देशों की तरह ही म्याँमार में भारत का दूतावास इसकी पूर्व राजधानी यंगून में ही स्थित है।  
  • भारत द्वारा म्याँमार से 1.5 लाख टन उड़द दाल (Vigna mungo) के आयात को भी मंज़ूरी दी गई है।  

COVID-19 से निपटने में सहयोग: 

  • इस यात्रा के दौरान COVID-19 से लड़ने में म्याँमार का सहयोग के रूप में म्याँमार की स्टेट काउंसलर को भारत द्वारा रेमेडिसविर (Remdesivir) की 3000 शीशियाँ प्रदान की गईं।
  • इसके साथ ही केंद्रीय विदेश सचिव ने COVID-19 वैक्सीन की उपलब्धता के बाद इसे अन्य देशों के साथ साझा करने में म्याँमार को प्राथमिकता देने का भी संकेत दिया।

अवसंरचना के क्षेत्र में सहयोग: 

  • दोनों पक्षों द्वारा वर्ष 2021 की पहली तिमाही तक सित्वे बंदरगाह (Sittwe Port) का परिचालन हेतु कार्य करने पर सहमति व्यक्त की गई। 
  • दोनों पक्षों ने त्रिपक्षीय राजमार्ग (भारत-म्याँमार-थाईलैंड) और ‘कलादान मल्टी मॉडल पारगमन परिवहन परियोजना’ (Kaladan Multi-Modal Transit Transport Project) जैसी भारतीय सहायता प्राप्त अवसंरचना परियोजनाओं की प्रगति पर भी चर्चा की। 
    • गौरतलब है कि यह कोलकाता को म्याँमार के सित्वे बंदरगाह से जोड़ती है, इस परियोजना के पूरे होने पर कोलकाता और मिज़ोरम के बीच की दूरी लगभग 1800 किमी. से घटकर लगभग 930 किमी. (म्याँमार के रास्ते) हो जाएगी। 

Bay-of-Bengal

  • भारत द्वारा म्याँमार के चिन राज्य (Chin State) में बायन्यू/सरिसचौक (Byanyu/Sarsichauk) में सीमा बाज़ार (हाट) के निर्माण के लिये 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुदान की घोषणा की गई। यह पहल  मिज़ोरम और म्याँमार के बीच संपर्क को बेहतर बनाने में सहायक होगी।   

रक्षा के क्षेत्र में:  

  • इस यात्रा के दौरान दोनों पक्षों द्वारा अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा और स्थिरता को बनाए रखने पर चर्चा की गई तथा दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के क्षेत्र में अनैतिक/द्वेषपूर्ण गतिविधियों के लिये अपने क्षेत्रों का प्रयोग न होने देने की प्रतिबद्धता को दोहराया।
  • भारतीय पक्ष ने मई 2020 में म्याँमार द्वारा भारतीय विद्रोही समूहों के 22 कैडरों को भारत को सौंपने के लिए म्याँमार की सराहना की।

रोहिंग्या मुद्दा:    

  • रोहिंग्या शरणार्थियों के पलायन के मुद्दे पर दोनों पक्षों ने ‘रखाइन राज्य विकास कार्यक्रम’ (Rakhine State Development Programme- RSDP) के तहत विकास कार्यों की प्रगति को रेखांकित किया, इसके साथ ही दोनों पक्षों ने  कार्यक्रम के तीसरे चरण के तहत एक कौशल प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने के साथ अन्य परियोजनाओं के निर्धारण का प्रस्ताव रखा। 
  • इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच RSDP के तहत कृषि यंत्रीकरण सबस्टेशन के उन्नयन हेतु एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये गए।
    • भारत और म्याँमार के बीच दिसंबर 2017 में ‘रखाइन राज्य विकास कार्यक्रम’ के संदर्भ में एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे। 
  • केंद्रीय विदेश सचिव ने बांग्लादेश से रखाइन प्रांत के विस्थापितों की सुरक्षित, स्थायी और शीघ्र वापसी सुनिश्चित करने के लिये भारत के समर्थन को दोहराया।

अन्य सहयोग और समझौते:  

  • म्याँमार ने बागान शहर में स्थित पैगोडा की मरम्मत और संरक्षण के साथ देश में अन्य सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण में भारतीय सहायता पर आभार व्यक्त किया।
  • दोनों पक्षों द्वारा लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु की 100वीं वर्षगाँठ के अवसर पर मांडले जेल में तिलक की एक अर्द्ध-प्रतिमा (Bust) स्थापित करने की योजना पर चर्चा की।
    • ध्यातव्य है कि वर्ष 1908 में बाल गंगाधर तिलक को देशद्रोह के आरोप में 6 वर्ष के कारावास की सज़ा के रूप में  मांडले जेल में बंद कर दिया गया था।     

यात्रा का महत्त्व:

  • भारतीय सेना प्रमुख और केंद्रीय विदेश सचिव की इस यात्रा के माध्यम से भारत ने म्याँमार के शीर्ष नेतृत्व को दोनों देशों के बीच नागरिक और सैन्य संबंधों को मज़बूत करने की अपनी इच्छा का संकेत देने का प्रयास किया है।
  • गौरतलब है कि भारत-म्याँमार सीमा पर उत्पन्न हो रही सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए दोनों देशों के बीच संबंधों का मज़बूत होना बहुत ही आवश्यक है।
  • भारत के लिये म्याँमार और बांग्लादेश पड़ोसी देश होने के साथ ही रणनीतिक रूप से भी बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं, ऐसे में भारत के लिये रोहिंग्या मुद्दे के कारण दोनों देशों के बीच उत्पन्न हुए तनाव को कम करना बहुत ही आवश्यक है।
    • गौरतलब है कि बांग्लादेश ने पहले भी रोहिंग्या शरणार्थियों को म्याँमार द्वारा वापस लिये जाने के मुद्दे पर भारत से हस्तक्षेप करने की मांग की है। 

भारत-म्याँमार द्विपक्षी संबंध:  

  • भारत और म्याँमार के बीच राजनीतिक और आर्थिक संबंधों के साथ सामाजिक तथा सांस्कृतिक संबंधों का लंबा इतिहास रहा है। 
  • दोनों देश एक-दूसरे के साथ 1600 किमी से अधिक लंबी थल सीमा के साथ बंगाल की खाड़ी में समुद्री सीमा भी साझा करते हैं। ध्यातव्य है कि म्याँमार की सीमा पूर्वोत्तर भारत के चार राज्यों (अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड,मणिपुर और मिज़ोरम) से सटी हुई है।
  • दोनों ही देश आसियान (ASEAN) और बिम्सटेक (BIMSTEC) जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ  मेकांग- गंगा सहयोग (Mekong-Ganga Cooperation- MGC) पहल में भी शामिल हैं।
  • भारत द्वारा सार्क (SAARC) समूह में म्याँमार के पर्यवेक्षक की भूमिका का भी समर्थन किया गया, जिसके बाद वर्ष 2008 में म्याँमार को इस समूह में पर्यवेक्षक सदस्य के रूप में शामिल किया गया। 
  • वर्ष 2018 के एक आँकड़े के अनुसार, म्याँमार में भारतीय मूल के लगभग 15-20 लाख लोग रहते और कार्य करते हैं।    
  • भारत और म्याँमार के बीच वर्ष 1970 में एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे, जून 2019 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 1.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया था। 
  • हाल के वर्षों में भारत-म्याँमार संबंधों में महत्त्वपूर्ण सुधार देखने को मिला है, हालाँकि भारत और चीन के बीच बढ़ते सीमा विवाद के कारण ‘चीन-म्याँमार आर्थिक गलियारा’ (China-Myanmar Economic Corridor- CMEC) जैसी पहल भारत के लिये एक बड़ी चिंता का विषय है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

शासकीय गोपनीयता अधिनियम के तहत गिरफ्तारी

प्रिलिम्स के लिये:

शासकीय गोपनीयता अधिनियम (Official Secrets Act), 1923, RTI अधिनियम

मेन्स के लिये:

शासकीय गोपनीयता अधिनियम, 1923 और RTI अधिनियम के बीच विरोधाभास 

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में दिल्ली पुलिस ने रणनीतिक मामलों के एक विश्लेषक को  चीनी सीमा पर भारतीय सैनिकों की तैनाती जैसी सूचना उजागर करने के लिये शासकीय गोपनीयता अधिनियम (Official Secrets Act), 1923 के तहत गिरफ्तार किया है।

प्रमुख बिंदु

शासकीय गोपनीयता अधिनियम (OSA):

  • OSA मोटे तौर पर दो पहलुओं से संबंधित है - जासूसी और सरकार की गुप्त जानकारी का खुलासा।
  • हालाँकि OSA गुप्त जानकारी को परिभाषित नहीं करता है किंतु सरकार दस्तावेज़ को गुप्त दस्तावेज़ की श्रेणी में वर्गीकृत करने के लिये विभागीय सुरक्षा निर्देशों, 1994 के मैनुअल का पालन करती है।
  • आमतौर पर गुप्त सूचना में कोई आधिकारिक कोड, पासवर्ड, स्केच, योजना, मॉडल, लेख, नोट, दस्तावेज़ या जानकारी शामिल होती है।
  • यदि कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता  है तो उसे 14 वर्ष तक का कारावास, जुर्माना या दोनों ही सज़ा सकती  है। सूचना को संप्रेषित करने वाले व्यक्ति और सूचना प्राप्त करने वाले व्यक्ति को OSA के तहत दंडित किया जा सकता है।

पृष्ठभूमि:

  • OSA की जड़ें ब्रिटिश औपनिवेशिक युग की हैं। शासकीय गोपनीयता अधिनियम (अधिनियम XIV), वर्ष 1889 में लाया गया था, जिसका उद्देश्य कई भाषाओं में बड़ी संख्या में प्रकाशित अखबारों की आवाज़ को दबाना था जो ब्रिटिश नीतियों का विरोध कर रहे थे।
  • भारत के वायसराय के रूप में लॉर्ड कर्जन के कार्यकाल के दौरान अधिनियम XIV में संशोधन किया गया और द इंडियन ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट, 1904 के रूप में इसे और अधिक कठोर बनाया गया था।
  • वर्ष 1923 में इसका एक नया संस्करण शासकीय गोपनीयता अधिनियम (1923 का अधिनियम XIX) अधिसूचित किया गया।
  • इसका प्रभाव देश में शासकीय गोपनीयता के सभी मामलों तक बढ़ाया गया था।

संबंधित मुद्दे:

सूचना के अधिकार अधिनियम के साथ संघर्ष: अक्सर यह तर्क दिया जाता  है कि OSA सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 के साथ सीधे विरोध की स्थिति में है।

  • आरटीआई अधिनियम की धारा 22, OSA सहित अन्य कानूनों को समान प्रावधानों के अंतर्गत प्रधानता प्रदान करती है। इसलिये यदि सूचना प्रस्तुत करने के संबंध में OSA में कोई असंगतता है, तो यह आरटीआई अधिनियम द्वारा दी जाएगी।
  • हालाँकि आरटीआई अधिनियम की धारा 8 और 9 के तहत  सरकार जानकारी देने से मना कर सकती है। प्रभावी रूप से  यदि सरकार OSA के तहत किसी दस्तावेज़ को गुप्त रूप में वर्गीकृत करती है, तो उस दस्तावेज़ को RTI अधिनियम के दायरे से बाहर रखा जा सकता है और सरकार धारा 8 या 9 को लागू कर सकती है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के उल्लंघन की गलत व्याख्या: 

OSA की धारा-5 जो कि राष्ट्रीय सुरक्षा के संभावित उल्लंघनों से संबंधित है,  की प्रायः गलत व्याख्या की जाती है।

  • यह अनुभाग शत्रु राज्य की मदद हेतु जानकारी साझा करने को एक दंडनीय अपराध बनाता है।
  • जब पत्रकारों द्वारा ऐसी सूचनाओं को प्रचारित किया जाता है जो सरकार या सशस्त्र बलों के लिये शर्मिंदगी का कारण बन सकती हैं, तो ऐसी स्थिति में इस अधिनियम द्वारा उनके विरुद्ध कार्यवाही की जा सकती है।

सुझाव:

  • विधि आयोग वर्ष 1971 में इस कानून का अवलोकन करने वाला पहला आधिकारिक संस्थान था। आयोग ने कहा, “केवल इसलिये कि कोई परिपत्र गुप्त या गोपनीय है, उसे इस कानून के प्रावधानों के तहत नहीं लाना चाहिये।" हालाँकि विधि आयोग ने इस कानून में किसी भी बदलाव की सिफारिश नहीं की।
  • वर्ष 2006 में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (Administrative Reforms Commission-ARC) ने सिफारिश की कि सरकारी गोपनीयता कानून को निरस्त किया जाए और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के उस अध्याय में बदलाव किया जाए जिसमें सरकारी गोपनीयता से संबंधित प्रावधान हैं। आयोग ने इस कानून को लोकतांत्रिक समाज में पारदर्शी शासन की राह में बाधा बताया।
  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के परिप्रेक्ष्य में सरकारी गोपनीयता कानून, 1923 की समीक्षा करने के लिये केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया था। इस समिति में गृह मंत्रालय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग तथा कानून मंत्रालय के सचिव शामिल थे। इसने 16 जून, 2017 को कैबिनेट सचिवालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें सिफारिश की गई कि सरकारी गोपनीयता कानून को अधिक पारदर्शी और RTI अधिनियम के अनुरूप बनाया जाए।
  •  सरकार ने वर्ष 2015 में आरटीआई अधिनियम के प्रकाश में OSA के प्रावधानों को देखने के लिये एक समिति का गठन किया था जिसने जून 2017 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, इसमें सिफारिश की गई थी कि OSA को अधिक पारदर्शी और आरटीआई अधिनियम के अनुरूप बनाया जाए।

आगे की राह

"गुप्त" की परिभाषा को OSA में स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की आवश्यकता है, ताकि गलत व्याख्या की गुंजाइश न हो। इसके अलावा OSA को आरटीआई अधिनियम के अनुरूप लाने की आवश्यकता है।

स्रोत-द हिंदू


कृषि

खरीफ विपणन सत्र पर ‘कृषि लागत एवं मूल्य आयोग’ की रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

कृषि लागत और मूल्य आयोग,  ओपन मार्केट सेल स्कीम, न्यूनतम समर्थन मूल्य

मेन्स के लिये: 

कृषि आय पर सरकार की नीतियों का प्रभाव, कृषि विपणन में सुधार हेतु सरकार के प्रयास  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कृषि लागत और मूल्य आयोग (Commission for Agricultural Costs and Prices- CACP) द्वारा वित्तीय वर्ष 2020-21 के खरीफ विपणन सत्र के लिये एक रिपोर्ट जारी की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • CACP की रिपोर्ट के अनुसार, 2 अप्रैल, 2020 तक केंद्र सरकार के भंडारों में कुल 73.85 मिलियन टन अनाज भंडारित था।
  • इस रिपोर्ट में खाद्यान्न गोदामों में अनाज की अधिकता के कारण होने वाली चुनौतियों को रेखांकित किया गया है।
  • इस रिपोर्ट में सरकार के पास भंडारित चावल के अधिशेष स्टॉक को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के तहत अधिक आवंटन के माध्यम से खाली किये जाने का सुझाव दिया गया है। 

खाद्यान्न उपलब्धता से जुड़े आँकड़े: 

  • CACP की रिपोर्ट के अनुसार, कुल 73.85 मिलियन टन भंडारित अनाज में से 24.7 मिलियन टन गेहूँ और 49.15 मिलियन टन चावल है।
  • यह न केवल अब तक का उपलब्ध सबसे अधिक स्टॉक है बल्कि यह रणनीतिक और संचालन आरक्षित मानदंड (21.04 मिलियन टन) से भी 300% अधिक है।
  • इसी प्रकार केंद्रीय पूल में उपलब्ध गेहूँ का स्टॉक आवश्यक रणनीतिक बफर से तीन गुना और चावल का स्टॉक चार गुना अधिक है।
  • इसके साथ ही केंद्र सरकार के अनुसार, आगामी खरीफ की फसल में ऐतिहासिक वृद्धि के साथ 140.57 मिलियन टन अनाज उत्पादन का अनुमान है। 

कारण:

  • केंद्र सरकार द्वारा अप्रैल 2019 में ‘खुला बाज़ार बिक्री योजना’ या ‘ओपन मार्केट सेल स्कीम’ (Open Market Sale Scheme- OMSS) नामक एक योजना के तहत गेहूँ और चावल के अतिरिक्त स्टॉक को ‘ई-नीलामी’ के माध्यम से खुले बाज़ार में बेचने का निर्णय लिया गया था।
  • केंद्र सरकार द्वारा OMSS योजना के तहत वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान 5 मिलियन टन अनाज खुले बाज़ार में बेचने का लक्ष्य रखा गया था, परंतु इसके तहत मात्र 10 लाख टन अनाज की बिक्री ही की जा सकी।
  • CACP की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार द्वारा बिना किसी सीमा के अनाज की अत्यधिक खरीद के कारण स्टॉक की अधिकता से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

चुनौतियाँ:

  • भंडारण हेतु स्थान की कमी:  अधिक अनाज की खरीद के कारण भंडारण के लिये सुरक्षित स्थान की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है जिससे अत्यधिक अनाज नष्ट हो जाता है।    
  • मूल्य में गिरावट: सरकारी भंडार में रखे अनाज को यदि एक साथ बाज़ार में बेचा जाता है तो इससे अनाज की कीमतों में भारी गिरावट आ सकती है और इसके कारण किसानों को अपनी उपज पर उचित मूल्य नहीं प्राप्त हो सकेगा।
  • हाल ही में संसद द्वारा पारित ‘आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020’ के तहत अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू आदि को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर कर दिया गया है, ऐसे में आगामी सत्र में बाज़ार में इनकी अधिकता हो सकती है।
  • हाल ही में संसद द्वारा पारित किये गए कृषि संबंधी विधेयकों के कारण सरकार को देश के कई राज्यों में किसानों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा है, ऐसे में सरकार के लिये किसानों से अनाज की अधिक खरीद करना एक बड़ी चुनौती होगी।

अन्य चुनौतियाँ:

  • असमानता: इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में पंजाब में 95% से अधिक और हरियाणा में 70% धान किसान सरकारी खरीद प्रणाली से लाभान्वित होते हैं जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे अन्य प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में इसकी पहुँच क्रमशः मात्र 3.6% और 1.7% ही है।

कृषि संशोधन विधेयक का प्रभाव:  

  • केंद्र सरकार द्वारा जून 2020 में लागू किये गए कृषि सुधार से जुड़े तीन अध्यादेशों के बाद से पिछले तीन माह (जून-अगस्त) में नए खाद्य व्यवसायों के लिये मिलने वाले आवेदनों में 65% की वृद्धि (पिछले वर्ष की तुलना में) देखी गई है।
  • जून से अगस्त माह के बीच खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2007 के तहत लाइसेंस/पंजीकरण के लिये 6.86 लाख नए आवेदन प्राप्त हुए, जो यह दर्शाता है कि इन सुधारों के पश्चात कृषि व्यवसायों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निजी कंपनियों की रूचि बढ़ी है।
  • इस अध्यादेश के तहत मंडी परिसर के बाहर कृषि व्यापार पर शुल्क को हटा दिया गया है जिससे अधिकांश व्यापारी मंडियों के बाहर ही कृषि खरीद को प्राथमिकता देंगे।  

सुझाव:  

  • कृषि लागत और मूल्य आयोग ने सरकार को अधिशेष अनाज को शीघ्र ही खाली करने का सुझाव दिया है।
  • इसके साथ ही समिति ने पात्र लोगों को सरकारी योजनाओं के तहत तीन महीने तक खाद्यान्न वितरित करने का सुझाव दिया है। 
  • इस पहल से आगामी सत्र में अनाज की खरीद हेतु आवश्यक भंडारण स्थान की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी और भंडारण पर खर्च होने वाले धन की बचत हो सकेगी। 
  • इस रिपोर्ट में सरकार को अनाज के पुराने स्टॉक की खपत के लिये इसका प्रयोग एथनाॅल उत्पादन और पशु चारे के रूप में करने का सुझाव दिया गया है
  • आयोग ने ‘ओपन-एंडेड खरीद नीति’ के कारण आने वाली चुनौतियों को देखते हुए सरकार को इसकी समीक्षा करने का सुझाव दिया है। 
  • CACP के अनुसार, सरकार को पंजाब और हरियाणा तथा केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (Minimum Support Price- MSP) के बाद भी अतिरिक्त लाभ या बोनस प्रदान करने वाले राज्यों  से अनाज की खरीद को सीमित करना चाहिये।
    • गौरतलब है कि हरित क्रांति के बाद पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में कृषि उत्पादन में वृद्धि के साथ भू-जल स्तर में काफी गिरावट हुई है।
    • केरल, छत्तीसगढ़ और ओडिशा सहित कई राज्यों द्वारा किसानों को फसल का बेहतर मूल्य दिलाने के लिये MSP से ऊपर बोनस प्रदान किया जाता है। 
  • CACP के अनुसार, ऐसे सभी राज्यों में जो कृषि विपणन पर उच्च शुल्क और आकस्मिक शुल्क लगाते हैं तथा बोनस का भुगतान करते हैं, वहाँ से चावल और गेहूं की खरीद प्रतिबंधित की जानी चाहिये।       

सरकार के प्रयास: 

  • हाल ही में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा वित्तीय वर्ष 2020-21 में बेची जाने वाली छह रबी फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Prices-MSP) में बढ़ोतरी की घोषणा की गई है।  
  • केंद्र सरकार द्वारा निजी क्षेत्र के साथ मिलकर मूल्य आसूचना प्रणाली में सुधार लाने के लिये कार्य किया जा रहा है, जिससे अधिसूचित मंडियों से बाहर भी कृषि उपज की कीमतों की निगरानी को आसान बनाया जा सके।  

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग

(Commission for Agricultural Costs and Prices- CACP):

  • कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का एक संलग्न कार्यालय है।
  • CACP की स्थापना जनवरी 1965 में की गई थी।
  • इस आयोग में  एक अध्यक्ष, सदस्य सचिव, एक सदस्य (सरकारी) और दो सदस्य (गैर-सरकारी) शामिल होते हैं।
    • गैर-सरकारी सदस्य कृषक समुदाय के प्रतिनिधि हैं और आमतौर पर कृषक समुदाय के साथ एक सक्रिय संबंध रखते हैं।
  • CACP प्रति वर्ष मूल्य नीति रिपोर्ट के रूप में सरकार को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करता है, इसके तहत CACP  द्वारा पांच समूहों (खरीफ की फसलें, रबी फसल, गन्ना, कच्चा जूट और कोपरा) के लिये अलग-अलग रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

चिड़ियाघरों के उन्नयन और विस्तार की योजना

प्रिलिम्स के लिये

वन्यजीव सप्ताह, केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972

मेन्स के लिये

वन्यजीव संरक्षण संबंधी प्रयास, चिड़ियाघरों का महत्त्व और भारत में इनका प्रबंधन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने वन्यजीव सप्ताह, 2020 (Wildlife Week 2020) के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से देश भर में 160 चिड़ियाघरों को बेहतर बनाने की दिशा में काम कर रही है।

प्रमुख बिंदु

  • केंद्रीय मंत्री ने कहा कि देश के सभी चिड़ियाघरों को बेहतर बनाने और उनका विकास सुनिश्चित करने के लिये एक नई नीति बनाई जा रही है और आगामी बजट के दौरान इसके लिये धनराशि आवंटित की जाएगी।
  • राज्य सरकारों, निगमों, व्यवसायों और आम लोगों को इस इस योजना के प्रमुख तत्त्व के रूप में शामिल किया जाएगा। यह योजना आगंतुकों विशेष रूप से छात्रों, बच्चों और आगामी पीढ़ी को वन्यजीव, प्रकृति और मनुष्यों के बीच तालमेल स्थापित करने में सहायता करेगी।
  • इसके अलावा केंद्रीय मंत्री ने चिड़ियाघरों के अधिकारियों और कर्मचारियों को पशुओं के प्रबंधन और कल्याण की दिशा में कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करते हुए ‘प्राणी मित्र पुरस्कार’ (Prani Mitra Awards) भी प्रदान किया। 
    • यह पुरस्कार कुल चार श्रेणियों में प्रदान किया गया जो एस प्रकार हैं- उत्कृष्ट निदेशक/क्यूरेटर, उत्कृष्ट पशुचिकित्सा, उत्कृष्ट जीवविज्ञानी/शिक्षाविद और उत्कृष्ट पशु रक्षक।
    • 'प्राणी मित्र पुरस्कार' केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण द्वारा स्थापित किया गया है, ताकि चिड़ियाघर के अधिकारियों और कर्मचारियों को पशु प्रबंधन की दिशा में कार्य करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।

वन्यजीव सप्ताह (Wildlife Week)

  • भारत में प्रत्येक वर्ष अक्तूबर माह के पहले सप्ताह में वन्यजीव सप्ताह (Wildlife Week) मनाया जाता है। इस तरह के आयोजन का उद्देश्य पशु-पक्षियों के संरक्षण को बढ़ावा देना है।
  • वन्यजीव सप्ताह की शुरुआत सर्वप्रथम वर्ष 1952 में वन्यजीव संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से की गई थी।

चिड़ियाघर या ज़ूलॉजिकल पार्क

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 2 (39) के अनुसार, चिड़ियाघर या ज़ूलॉजिकल पार्क का अर्थ ऐसे किसी प्रतिष्ठान से होता है, जहाँ जानवरों को आम जनता के लिये प्रदर्शनी हेतु रखा जाता है। साथ ही इन प्रतिष्ठानों का उपयोग लुप्तप्राय जानवरों के संरक्षण हेतु भी होता है।
  • यद्यपि विश्व भर में चिड़ियाघरों की शुरुआत एक मनोरंजन केंद्र के रूप में की गई थी, किंतु बीते कुछ दशकों में ये प्रतिष्ठान वन्यजीव संरक्षण और पर्यावरण संबंधी शिक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण केंद्रों के रूप में तब्दील हो गए हैं।
  • महत्त्व
    • जानवरों के संरक्षण के अलावा, चिड़ियाघर जानवरों की  दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। देश के कई चिड़ियाघरों में बीमार, घायल और जंगली जानवरों की देखभाल की जाती है। 
    • चिड़ियाघर में जानवरों विशेष तौर पर घायल जानवरों के लिये विशेष सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं और इन जानवरों की देखभाल की जाती है।
    • लुप्तप्राय प्रजातियों को संरक्षित कर देश और विदेश के चिड़ियाघर या ज़ूलॉजिकल पार्क भविष्य की पीड़ी के लिये काफी महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
    • जानवरों के व्यवहार, पोषण आवश्यकताओं और प्रजनन चक्र आदि को समझने के लिये चिड़ियाघर एक अनुसंधान प्रयोगशाला के रूप में कार्य करते हैं।

भारत में चिड़ियाघर या ज़ूलॉजिकल पार्क

  • केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, देश भर में कुल 145 मान्यता प्राप्त चिड़ियाघर मौजूद हैं। 
    • पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में वर्ष 1854 में स्थापित संगमरमर पैलेस चिड़ियाघर वर्तमान में देश का सबसे पुराना चिड़ियाघर है।
  • भारत में चिड़ियाघरों को वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के अनुरूप प्रबंधित और राष्ट्रीय चिड़ियाघर नीति, 1998 के तहत निर्देशित किया जाता है।
  • भारत सरकार ने देश में चिड़ियाघरों के कामकाज की देखरेख करने और बिना मान्यता वाले चिड़ियाघरों की स्थापना को रोकने के लिये वर्ष 1992 में केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (CZA) की स्थापना की थी।

केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (CZA)

  • केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण एक सांविधिक निकाय (Statutory Body) है जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में जानवरों के रख-रखाव और स्वास्थ्य देखभाल के लिये न्यूनतम मानकों तथा मानदंडों को लागू करना है।
  • केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण की अध्यक्षता केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री द्वारा की जाती है और इसमें कुल 10 सदस्य और एक सदस्य सचिव शामिल होता है।
  • इस प्राधिकरण का मुख्य उद्देश्य समृद्ध जैव विविधता के संरक्षण में राष्ट्रीय प्रयास को और अधिक मज़बूती प्रदान करना है।

स्रोत: पी.आई.बी


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

THSTI: वैक्सीन आकलन परियोजना का हिस्सा

प्रिलिम्स के लिये:

महामारी की तैयारी में नवाचारों हेतु गठबंधन (CEPI), ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (THSTI)

मेन्स के लिये:

महामारी से निपटने में वैश्विक सहयोग के रूप में CEPI की भूमिका 

चर्चा में क्यों? 

महामारी की तैयारी में नवाचारों हेतु गठबंधन (CEPI) एक वैश्विक पहल है, जिसने ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (Translational Health Science and Technology Institute-THSTI), फरीदाबाद को उन छह प्रयोगशालाओं में से एक के रूप चुना है जो COVID-19 वैक्सीन के परीक्षण हेतु उम्मीदवारों का आकलन कर रही हैं।

प्रमुख बिंदु

छह प्रयोगशालाएँ:

  • CEPI नेटवर्क प्रारंभ में कनाडा, ब्रिटेन, इटली, नीदरलैंड, बांग्लादेश और भारत में छह प्रयोगशालाओं को शामिल करेगा।
  • सभी प्रयोगशालाएँ एक ही अभिकर्मकों (एक रासायनिक प्रतिक्रिया का कारण) का उपयोग करेंगी और टीके के विकास तथा परीक्षण के लिये चयनित उम्मीदवारों की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को मापने के लिये प्रोटोकॉल के एक सामान्य सेट का पालन करेंगी।
  • यह टीके की परीक्षण प्रक्रिया में सामंजस्य स्थापित करेगा और विभिन्न टीका परीक्षण हेतु उम्मीदवारों की तुलना करने और सबसे प्रभावी उम्मीदवार के चयन में तेज़ी लाएगा।
  • THSTI के लिये अनिवार्य है कि यह वैश्विक मानकों के साथ समानता रखते हुए वैक्सीन विकास के लिये मान्य विश्लेषण प्रदान करेगा।
  • बायोसे, एक मानक तैयारी के साथ जीव पर परीक्षण के प्रभाव की तुलना करके किसी पदार्थ (दवा) की सापेक्ष शक्ति का निर्धारण करता है।

महामारी की तैयारी में नवाचारों हेतु गठबंधन (CEPI):

  • CEPI भविष्य में महामारी को रोकने के लिये टीके विकसित करने हेतु वर्ष 2017 में शुरू की गई वैश्विक साझेदारी है।
  • CEPI की स्थापना नॉर्वे और भारत की सरकारों, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, वेलकम ट्रस्ट और वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा दावोस (स्विट्जरलैंड) में की गई थी।
  • जैव प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय और भारत सरकार ‘IndCEPI मिशन’ द्वारा महामारी से निपटने हेतु टीके की उपयोगिता पर बल दे रहे हैं।
  • इस मिशन के उद्देश्यों को CEPI के साथ जोड़ दिया गया है और इसका उद्देश्य भारत में महामारी जैसे रोगों के लिये टीकों और संबद्ध दक्षताओं/प्रौद्योगिकियों के विकास को मज़बूत करना है।

ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (THSTI):

  • यह जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) का एक स्वायत्त संस्थान है।
  • यह फरीदाबाद (हरियाणा) में स्थित है।

स्रोत-PIB


भारतीय अर्थव्यवस्था

पीएम स्वनिधि योजना के तहत आवेदन

प्रिलिम्स के लिये:

पीएम स्वनिधि, नेशनल एसोसिएशन ऑफ स्ट्रीट वेंडर्स ऑफ इंडिया

मेन्स के लिये: 

COVID-19 से प्रभावित अर्थव्यवस्था को गति देने के प्रयास 

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर आत्मनिर्भर निधि (Prime Minister Street Vendor’s Atmanirbhar Nidhi) अर्थात् पीएम स्वनिधि (PM SVANidhi) के तहत 20 लाख से अधिक स्ट्रीट वेंडर्स ने कार्यशील पूंजी के रूप में 10,000 रुपए के ब्याज मुक्त ऋण के लिये आवेदन किया है। 

प्रमुख बिंदु:

  • इन आवेदनों में फल एवं सब्जियों के लगभग 10 लाख विक्रेता शामिल हैं और स्नैक्स एवं फास्ट फूड (जैसे- चाट, गोल गप्पे आदि) वाले 4 लाख से अधिक विक्रेता शामिल हैं। 
    • इसके अतिरिक्त फूल एवं पूजा का सामान, सौंदर्य उत्पाद, जूते, रसोई का सामान और इलेक्ट्रॉनिक्स सामान जैसे कि-मोबाइल फोन एवं चार्जर वाले विक्रेता भी इस सूची में हैं।

आवंटित बजट एवं प्रावधान:  

  • 700 करोड़ रुपए के स्वीकृत बजट के साथ जून, 2020 में शुरू की गई इस योजना के तहत लिये गए ऋण को एक वर्ष के भीतर चुकाना होगा।
  • पुनर्भुगतान होने पर एक स्ट्रीट वेंडर ऋण के रूप में 10,000 रुपए के लिये पात्र होता है।

राज्यवार प्राप्त आवेदन: 

राज्य 

आवेदन संख्या 

उत्तर प्रदेश

4.3 लाख 

तेलंगाना

3.4 लाख

महाराष्ट्र एवं आंध्र प्रदेश

1.5 लाख से अधिक

दिल्ली

लगभग 8,000

जम्मू एवं कश्मीर

1,600 

लद्दाख

32 

आवेदकों को ऋण का भुगतान: 

  • हालाँकि अभी तक केवल 2 लाख आवेदकों को ही ऋण का भुगतान किया गया है। 

आवेदन के दौरान आने वाली बाधाएँ: अधिकारियों एवं आवेदकों ने कई बाधाओं को इंगित किया है जो ऋण देने की प्रक्रिया को धीमा कर रहे हैं। जैसे:- 

  • कई बैंक 100 रुपए से 500 रुपए के स्टांप पेपर पर आवेदन की मांग कर रहे हैं।
  • बैंकों द्वारा पैन कार्ड की मांग करना और यहाँ तक ​​कि आवेदकों के CIBIL स्कोर की जाँच करना।
  • राज्य अधिकारियों द्वारा वोटर आईडी कार्ड माँगना जिसे कई प्रवासी विक्रेता अपने साथ नहीं रखते हैं।
  • पुलिस एवं नगर निगम के अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न किया जाना।

CIBIL स्कोर:

  • बैंक, ऋण मंज़ूर करेगा या नहीं इसे तय करने में CIBIL स्कोर की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
  • CIBIL स्कोर 3 अंकों का होता है, यह बैंक ग्राहक की क्रेडिट हिस्‍ट्री को दर्शाता है। 
  • किसी व्‍यक्ति ने अपने कर्ज की अदायगी कैसे की है या कई तरह के बिलों का पुनर्भुगतान करने में उसका व्यवहार कैसा रहा है, इन्‍हीं बिंदुओं से ग्राहक का क्रेडिट स्‍कोर तैयार होता है।
  • CIBIL स्कोर की रेंज 300 से 900 के बीच होती है। 
  • CIBIL स्कोर 900 के जितना पास होगा ग्राहक को कर्ज या क्रेडिट कार्ड मिलने की संभावना उतनी ज्‍यादा बढ़ जाती है।
  • लगभग 10 लाख विक्रेताओं का प्रतिनिधित्त्व करने वाली शीर्ष संस्था नेशनल एसोसिएशन ऑफ स्ट्रीट वेंडर्स ऑफ इंडिया (NASVI) के अनुसार इस योजना के क्रियान्वयन को लेकर बैंकों एवं नगर निकायों में बहुत अधिक प्रतिरोध है किंतु नीतिगत स्तर पर यह एक उपयोगी योजना है क्योंकि यह बहुत आवश्यक कार्यशील पूंजी प्रदान करती है।

नेशनल एसोसिएशन ऑफ स्ट्रीट वेंडर्स ऑफ इंडिया (NASVI):

  • NASVI एक ऐसा संगठन है जो देशभर के हज़ारों स्ट्रीट वेंडरों के आजीविका अधिकारों की सुरक्षा के लिये कार्य कर रहा है।
  • वर्ष 1998 में एक नेटवर्क के रूप में शुरुआत करते हुए NASVI को वर्ष 2003 में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम- 1860 (Societies registration Act- 1860) के तहत पंजीकृत किया गया था।
  • उद्देश्य: NASVI की स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारत में स्ट्रीट वेंडर संगठनों को एक साथ लाना था ताकि वृहद स्तर के बदलावों के लिये सामूहिक रूप से संघर्ष किया जा सके।

आवेदकों के लिये सुविधाएँ: 

  • केंद्र सरकार ने आवेदकों को ‘पसंदीदा ऋणदाता’ (Preferred Lender) या जहाँ विक्रेता का एक बचत खाता हो, के रूप में सूचीबद्ध बैंक शाखाओं में सीधे आवेदन भेजने का निर्णय लिया है।
    • प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिये एक सॉफ्टवेयर विकसित किया गया है जो बैंकों को लगभग 3 लाख आवेदनों को भेज सकता है।

ऑनलाइन फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म स्विगी (Swiggy) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर:

  • केंद्रीय आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय ने पीएम स्वनिधि योजना के अंतर्गत स्ट्रीट फूड वेंडर्स को हज़ारों की संख्या में ग्राहक उपलब्ध कराने के लिये ऑनलाइन फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म स्विगी (Swiggy) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • केंद्रीय आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय के प्रायोगिक कार्यक्रम के रूप में इस समझौते में 5 शहरों अहमदाबाद, चेन्नई, दिल्ली, इंदौर और वाराणसी के 250 विक्रेताओं को शामिल किया जाएगा।
  • आरंभिक कार्यक्रम की सफलता के उपरांत केंद्रीय आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय तथा स्विगी इस पहल को देशभर में चरणबद्ध ढंग से लागू करेंगे।

प्रशिक्षण कार्यक्रम:  

  • स्ट्रीट वेंडर्स को पैन कार्ड और एफएसएसएआई (FSSAI) पंजीकरण उपलब्ध कराने के साथ-साथ साझेदार एप इस्तेमाल करने संबंधी तकनीकी प्रशिक्षण से लेकर मेन्यू डिज़िटाइजेशन और कीमत निर्धारण, स्वच्छता तथा पैकिंग की बेहतर प्रक्रिया के बारे में प्रशिक्षण दिया जाएगा।

लाभ:

  • इस समझौते से स्ट्रीट वेंडर्स को ऑनलाइन माध्यम से बड़ी संख्या में ग्राहकों से जुड़ने का अवसर मिलेगा। 
  • इससे उनके व्यवसाय में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी होगी। 
  • केंद्रीय आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय की इस पहल से ऑनलाइन फूड डिलीवरी के क्षेत्र में लोकप्रिय मंच स्विगी से स्ट्रीट फूड वेंडर न सिर्फ तकनीकी रूप से सशक्त बनेंगे बल्कि उनकी आय के लिये बड़ा मार्ग प्रशस्त होगा।

पीएम स्वनिधि डैशबोर्ड का संशोधित संस्करण:

  • इस अवसर पर पीएम स्वनिधि डैशबोर्ड के संशोधित संस्करण को भी लॉन्च किया गया जो उपयोगकर्त्ताओं को न केवल पीएम स्वनिधि योजना की बेहतर जानकारी देगा बल्कि उत्पादों की तुलना हेतु अतिरिक्त उपकरणों की सुविधा भी प्रदान करेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2