सामाजिक न्याय
भाँग: मादक पदार्थों की सूची से बाहर
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) के मादक पदार्थ आयोग (Commission on Narcotic Drugs) ने प्रतिबंधित मादक पदार्थों पर अपने 63वें सत्र में विभिन्न महत्त्वपूर्ण फैसले लेते हुए भाँग (Cannabis/Marijuana or Hemp) को मादक पदार्थों की सबसे खतरनाक श्रेणी से बाहर कर दिया है।
प्रमुख बिंदु:
- पृष्ठभूमि:
- जनवरी 2019 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) ने संयुक्त राष्ट्र की संधियों में भाँग को सूचीबद्ध किये जाने के संबंध में छह सिफारिशें की थीं, जिसमें भाँग तथा गाँजे को 1961 के सिंगल कन्वेंशन ऑन नारकोटिक्स ड्रग्स के सेक्शन 4 से हटाना भी शामिल था।
- अनुसूची IV उन दवाओं की श्रेणी है जिन्हें अन्य दवाओं की तुलना में विशेष रूप से खतरनाक माना जाता है।
- ये प्रस्ताव मार्च 2019 में CND के सत्र में विचार हेतु रखे जाने थे, लेकिन सदस्यों ने और अधिक समय का अनुरोध करते हुए इस विषय पर होने वाले मतदान को स्थगित कर दिया था।
- जनवरी 2019 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) ने संयुक्त राष्ट्र की संधियों में भाँग को सूचीबद्ध किये जाने के संबंध में छह सिफारिशें की थीं, जिसमें भाँग तथा गाँजे को 1961 के सिंगल कन्वेंशन ऑन नारकोटिक्स ड्रग्स के सेक्शन 4 से हटाना भी शामिल था।
- वैश्विक निर्णय:
- पुरानी स्थिति: CND द्वारा लिया गया यह निर्णय भाँग को अनुसूची-IV से बाहर करता है, जहाँ इसे हेरोइन सहित अन्य घातक ओपियोड्स व्यसनों के साथ सूचीबद्ध किया गया था।
- वर्तमान स्थिति: अब भाँग और भाँग की राल (चरस) दोनों को अनुसूची I में रखा जाएगा जिसके अंतर्गत पदार्थों की सबसे कम खतरनाक श्रेणी को शामिल किया जाता है।
- देश जो इस निर्णय के पक्ष में थे: CND के 53 सदस्य देशों में से 27 देशों, जिनमें भारत, अमेरिका और अधिकांश यूरोपीय राष्ट्र शामिल हैं, ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया।
- देश जो इस निर्णय के पक्ष में नहीं थे: चीन, पाकिस्तान और रूस सहित 25 देश इसके पक्ष में नहीं थे,जबकि यूक्रेन ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया।
- महत्त्व:
- चूँकि यह अभिसमय/कन्वेंशन वर्ष 1961 में लागू किया गया था, इसलिये भाँग सख्त नियंत्रण के अधीन था, जिसके चलते चिकित्सा उद्देश्यों के लिये भी इसके उपयोग को बहुत सीमित कर दिया गया था।
- यद्यपि भाँग का पुनर्वर्गीकरण करने का निर्णय अत्यंत महत्त्वपूर्ण है फिर भी विश्व भर में इसकी स्थिति में तब तक परिवर्तन नहीं हो सकेगा जब तक कि विभिन्न देशों द्वारा अपने मौजूदा नियमों को जारी रखा जाएगा।
- हालाँकि यह इस प्रक्रिया को प्रभावित करेगा, क्योंकि विभिन्न राष्ट्र अपने कानूनों को तैयार करते समय अंतर्राष्ट्रीय प्रोटोकॉल का अनुसरण करते हैं।
- इस ऐतिहासिक निर्णय के साथ CND ने भाँग की औषधीय और चिकित्सीय क्षमता को मान्यता देने हेतु विभिन्न द्वार खोल दिये हैं।
- भारत का रुख और विनियम:
- भारत ने कन्वेंशन/अभिसमय में सबसे खतरनाक पदार्थों की सूची से भाँग और भाँग की राल यानी चरस को हटाने के पक्ष मतदान किया है।
- भारत के नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस एक्ट 1985 (Narcotics Drugs and Psychotropic Substance Act 1985) के तहत भाँग का उत्पादन, निर्माण, स्वामित्व, बिक्री, खरीद, परिवहन और उपयोग दंडनीय अपराध माना गया है।
- इस अधिनियम को वर्ष1985 में अधिनियमित किया गया था तथा इसने खतरनाक ड्रग्स अधिनियम 1930 का स्थान लिया।
- नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) को इनके अवैध उपयोग और मादक पदार्थों की आपूर्ति से संबंधित मामलों में व्यक्तियों पर लगे आरोपों की जाँच करने की शक्ति प्राप्त है।
कैनबिस
- WHO के अनुसार, कैनबिस एक जेनेरिक शब्द है जिसका इस्तेमाल कैनाबिस सैटाइवा (Cannabis sativa) पौधे से निर्मित साइकोएक्टिव (मस्तिष्क को प्रभावित करने वाली) औषधि के मिश्रण को दर्शाने के लिये किया जाता है।
- WHO के अनुसार, भाँग ऐसा मादक पदार्थ है जिसकी कृषि, तस्करी और अवैध उपयोग विश्व भर में व्यापक स्तर पर किया जाता है।
- डेल्टा9 टेट्राहाइड्रोकैन्नाबिनॉल (Delta9 tetrahydrocannabinol-THC) भाँग में प्रमुख साइकोएक्टिव घटक होता है।
- बिना परागण वाले मादा पौधों को हशीश कहा जाता है। भाँग का तेल (हशीश ऑयल) कैनाबिनोइड्स (वे यौगिक जो कि THC के समान संरचनात्मक हैं) का एक गाढ़ा घोल है जिसे भाँग के पौधे से प्राप्त कच्ची सामग्री या राल के विलायक निष्कर्षण द्वारा प्राप्त किया जाता है।
- NDPS अधिनियम के अनुसार "भाँग के पौधे" का तात्पर्य कैनाबिस वर्ग के किसी भी पौधे से है।
- ‘चरस’ भाँग के पौधे से निकाला गया एक अलग राल है। NDPS अधिनियम में भाँग के पौधे से प्राप्त अलग-अलग राल को शामिल किया गया है, चाहे वह कच्चा हो या संशोधित।
- यह अधिनियम गाँजा को भाँग के पौधे के फूल के रूप में परिभाषित करता है लेकिन यह बीज और पत्तियों को स्पष्ट रूप से बाहर करता है।
- यह अधिनियम भाँग, चरस और गाँजा के दो रूपों में से किसी के साथ या बिना किसी के तटस्थ पदार्थ के मिश्रण या उससे तैयार किसी भी पेय को अवैध घोषित करता है।
- कानून ने भाँग के पौधे के बीज और पत्तियों को अधिनियम के दायरे से बाहर कर दिया है, क्योंकि किनारों पर काँटेदार संरचना वाली पत्तियों में THC सामग्री नगण्य होती है।
- ‘भाँग’, जिसे आमतौर पर होली जैसे त्योहारों के दौरान खाया जाता है, भाँग के पौधे की पत्तियों से बना एक पेस्ट है, इसलिये इसे गैर-कानूनी नहीं कहा जाता है।
- इसी तरह CBD तेल (भाँग के पौधे की पत्तियों से प्राप्त कैनबिडिओल का संक्षिप्त रूप), NDPS अधिनियम के तहत नहीं आता।
- NDPS अधिनियम भारत में भाँग के मनोरंजकपूर्ण उपयोग की अनुमति नहीं देता है।
- यद्यपि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के तहत लाइसेंस के साथ निर्मित CBD तेल का कानूनी रूप से उपयोग किया जा सकता है लेकिन यह आमतौर पर प्रचलित नहीं है।
मादक पदार्थ आयोग (CND)
- यह संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है, जो वैश्विक स्तर पर नशीली दवाओं से संबंधित अभिसमयों में मादक अथवा खतरनाक पदार्थों को सूचीबद्ध कर उनके नियंत्रण का दायरा तय करती है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1946 में की गई थी और इसका मुख्यालय वियना में स्थित है।
- वर्ष 1961 के सिंगल कन्वेंशन ऑन नारकोटिक्स ड्रग्स की शुरुआत के बाद से भाँग के प्रति वैश्विक दृष्टिकोण में अत्यधिक बदलाव आया है, कई क्षेत्रों में भाँग का उपयोग मनोरंजन और दवा अथवा दोनों के लिये किया जाता है।
- वर्तमान में 50 से अधिक देशों में औषधीय उद्देश्यों के लिये भाँग के उपयोग की अनुमति दी गई है और कनाडा, उरुग्वे तथा अमेरिका के 15 राज्यों में मनोरंजन हेतु इसके उपयोग की अनुमति दी गई है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
मलय विशालकाय गिलहरी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (Zoological Survey of India- ZSI) ने अपनी तरह के एक पहले अध्ययन में यह अनुमान लगाया है कि वर्ष 2050 तक भारत में मलय विशालकाय गिलहरियों (Malayan Giant Squirrel) की संख्या में 90% तक की कमी हो सकती है और यदि इनके संरक्षण हेतु तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो उस समय तक ये विलुप्त भी हो सकती हैं।
- वर्ष 1916 में स्थापित भारतीय प्राणी सर्वेक्षण पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) का एक अधीनस्थ संगठन है। इसका मुख्यालय कोलकाता में है।
- यह देश की समृद्ध प्राणी विविधता के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने तथा अग्रणी सर्वेक्षण, अन्वेषण और अनुसंधान को बढ़ावा देने हेतु एक राष्ट्रीय केंद्र है।
प्रमुख बिंदु
- वैज्ञानिक नाम: रतुफा बाइकलर (Ratufa bicolor)।
- विशेषताएँ:
- यह विश्व की सबसे बड़ी गिलहरी प्रजातियों में से एक है, जिसके शरीर का ऊपरी भाग गहरे रंग का, नीचे का भाग हल्के रंग का और पूँछ लंबी एवं घनी होती है।
- रात्रिचर उड़ने वाली गिलहरी के विपरीत मलय गिलहरी दिन में सक्रिय (Diurnal) रहती है, लेकिन यह वृक्षवासी (Arboreal) और उड़ने वाली गिलहरी की तरह ही शाकाहारी होती है।
- भारत में तीन विशालकाय गिलहरी प्रजातियाँ पाई जाती हैं। मलय विशालकाय गिलहरी के अलावा प्रायद्वीपीय भारत में पाई जाने वाली अन्य दो गिलहरियाँ है- (1) भारतीय विशालकाय गिलहरी (Indian Giant Squirrel) और (2) विशालकाय सफेद-भूरे बालों वाली गिलहरी (Grizzled Giant Squirrel)।
- आवास:
- यह अधिकांशतः सदाबहार और अर्द्ध-सदाबहार वनों, मैदानी इलाकों एवं समुद्र तल से 50 मीटर से 1,500 मीटर की ऊँचाई पर पाई जाती है।
- वैश्विक स्तर पर यह दक्षिणी चीन, थाईलैंड, लाओस, वियतनाम, बर्मा, मलय प्रायद्वीप, सुमात्रा और जावा में पाई जाती है।
- भारत में ये गिलहरियाँ पूर्वोत्तर के जंगलों में पाई जाती हैं और वर्तमान में पश्चिम बंगाल, सिक्किम, असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय तथा नगालैंड के कुछ हिस्सों में भी पाई जाती हैं।
- एशिया के लगभग 1.84 लाख वर्ग किमी. गिलहरी रेंज का लगभग 8.5% क्षेत्र भारत में है।
- महत्त्व:
- इसे वन स्वास्थ्य संकेतक प्रजाति माना जाता है।
- एक संकेतक प्रजाति पारिस्थितिकी तंत्र की समग्र स्थिति और उस पारिस्थितिकी तंत्र में निवास करने वाली अन्य प्रजातियों के बारे में जानकारी प्रदान करती है। संकेतक प्रजाति पर्यावरणीय परिस्थितियों के साथ-साथ सामुदायिक संरचना जैसे पहलुओं की गुणवत्ता और परिवर्तनों को भी प्रदर्शित करती है।
- इसे वन स्वास्थ्य संकेतक प्रजाति माना जाता है।
- खतरा:
- अध्ययन के अनुसार, निर्वनीकरण/वनोन्मूलन, वनों का विखंडन, फसलों का अत्यधिक संवर्द्धन (उर्वरक तथा कीटनाशक आदि का प्रयोग), वनों से प्राप्त खाद्यों का आवश्यकता से अधिक दोहन, अवैध व्यापार और उपभोग के लिये शिकार के चलते यह गिलहरी तथा इसके निवास स्थान खतरे में हैं।
- पूर्वोत्तर के कई इलाकों में होने वाली स्लेश-एंड-बर्न/झूम कृषि भी इसके आवास विखंडन के लिये उत्तरदायी है।
- आवासों की क्षति के कारण वर्ष 2050 तक भारत में मलय विशालकाय गिलहरी की आबादी केवल दक्षिणी सिक्किम तथा उत्तरी बंगाल तक सीमित हो सकती है।
- भारत में इस गिलहरी के मूल क्षेत्र का केवल 43.38% हिस्सा ही अब इसके अनुकूल है और आशंका है कि वर्ष 2050 तक केवल 2.94% अनुकूल क्षेत्र ही इसके आवास के लिये शेष रह जाए।
- पिछले दो दशकों के दौरान भारत में गिलहरी की आबादी में 30% की गिरावट आई है।
- अध्ययन के अनुसार, निर्वनीकरण/वनोन्मूलन, वनों का विखंडन, फसलों का अत्यधिक संवर्द्धन (उर्वरक तथा कीटनाशक आदि का प्रयोग), वनों से प्राप्त खाद्यों का आवश्यकता से अधिक दोहन, अवैध व्यापार और उपभोग के लिये शिकार के चलते यह गिलहरी तथा इसके निवास स्थान खतरे में हैं।
- संरक्षण स्तर:
- IUCN रेड लिस्ट: संकटापन्न (Near Threatened)
- CITES: परिशिष्ट II
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची I
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
लॉटरी, जुआ और सट्टेबाज़ी पर कर संबंधी नियम
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में स्वीकार किया है कि लॉटरी, जुआ और सट्टेबाज़ी केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (GST) अधिनियम, 2017 के तहत कर योग्य हैं।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि
- सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न लॉटरी डीलरों द्वारा दायर की गई याचिकाओं के संबंध में आदेश पारित किया है, जिसमें तर्क दिया गया है कि केंद्र सरकार ने अनुचित तरीके से लॉटरी को ‘वस्तु’ (Goods) के रूप में वर्गीकृत किया है।
- केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 2 (52) और लॉटरी पर कर अधिरोपित करने संबंधी अधिसूचना को चुनौती देते हुए याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि यह कानून संविधान के तहत दिये गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और सूर्योदय एसोसिएट्स बनाम दिल्ली सरकार वाद में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय के भी विपरीत है, जिसमें यह माना गया था कि लॉटरी केवल एक प्रकार का ‘एक्शनेबल क्लेम’ है और इसे ‘वस्तु’ के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि लॉटरी, जुआ और सट्टेबाज़ी ‘एक्शनेबल क्लेम’ हैं और केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 2 (52) के तहत ‘वस्तु’ की परिभाषा के दायरे में आते हैं।
- न्यायालय ने कहा कि लॉटरी, जुआ और सट्टेबाज़ी पर लगने वाला GST किसी भी प्रकार से भेदभावपूर्ण नहीं है तथा यह संविधान के तहत प्रदान किये गए समानता के अधिकार का उल्लंघन भी नहीं करता है।
- केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 की अनुसूची III के मुताबिक लॉटरी, जुआ और सट्टेबाज़ी के अलावा अन्य किसी भी ‘एक्शनेबल क्लेम’ को न तो वस्तु और न ही सेवाओं की आपूर्ति के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- इस तरह अधिनियम में कुछ चुनिंदा ‘एक्शनेबल क्लेम’ (लॉटरी, जुआ और सट्टेबाज़ी) ही GST के दायरे में लाए गए हैं।
- लॉटरी, जुआ और सट्टेबाज़ी जैसे ‘एक्शनेबल क्लेम’ को GST के तहत शामिल करने के लिये संसद के पास अधिनियम के तहत ‘वस्तु’ की समावेशी परिभाषा निर्धारित करने का पूर्ण अधिकार है।
- संविधान का अनुच्छेद 246A संसद को वस्तु एवं सेवा कर (GST) के संबंध में कानून बनाने का अधिकार देता है, इसलिये अधिनियम की धारा 2 (52) के तहत निर्धारित ‘वस्तु’ (Goods) की परिभाषा को संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत नहीं माना जा सकता है।
क्या होते हैं ‘एक्शनेबल क्लेम’?
- संपत्ति स्थानांतरण अधिनियम, 1882 के मुताबिक, ‘एक्शनेबल क्लेम’ का अभिप्राय अचल संपत्ति को बंधक रखकर अथवा चल संपत्ति को गिरवी रखकर सुरक्षित किये गए ऋण के अलावा अन्य किसी भी ऋण के दावे से होता है।
- ध्यातव्य है कि लॉटरी, जुआ और सट्टेबाज़ी से संबंधित गतिविधियों को ही GST के आधीन रखा गया है और इन तीनों के अतिरिक्त अन्य कोई भी ‘एक्शनेबल क्लेम’ वस्तु एवं सेवा कर (GST) के दायरे में नहीं आता है।
- ‘एक्शनेबल क्लेम’ के कुछ उदाहरण
- वह बीमा पॉलिसी जिसके लिये बंधक अथवा अन्य किसी माध्यम से सुरक्षा प्रदान नहीं की गई है।
- किराए के बकाए का दावा भी ‘एक्शनेबल क्लेम’ है, क्योंकि इसे किसी भी चल अथवा अचल संपत्ति के माध्यम से सुरक्षा प्रदान नहीं की गई है।
- भविष्य निधि का दावा।
- असुरक्षित ऋण का दावा।
लॉटरी, जुआ और सट्टेबाज़ी से संबंधित केंद्रीय कानून
- लॉटरी (विनियमन) अधिनियम, 1998
- इस अधिनियम के तहत भारत में लॉटरी को कानूनी रूप से मान्यता प्रदान की गई है। लॉटरी का आयोजन राज्य सरकार द्वारा किया जाना चाहिये और लॉटरी के ड्रॉ का स्थान भी उस राज्य विशेष में ही होना चाहिये।
- पुरस्कार प्रतियोगिता अधिनियम, 1955
- यह अधिनियम किसी भी प्रतियोगिता में पुरस्कार को परिभाषित करता है।
- विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999
- इस अधिनियम के तहत लॉटरी के माध्यम से अर्जित आय के प्रेषण को प्रतिबंधित किया जाता है।
- सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2011
- इन नियमों के तहत कोई भी इंटरनेट सेवा प्रदाता, नेटवर्क सेवा प्रदाता या कोई भी सर्च इंजन ऐसा कोई भी कंटेंट प्रदान नहीं करेगा, जो प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से जुए (Gambling) का समर्थन करता है।
- आयकर अधिनियम, 1961
- इस अधिनियम के तहत भारत में वर्तमान कराधान नीति प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सभी प्रकार के जुआ उद्योग को कवर करती है।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
ग्रेट बैरियर रीफ और जलवायु परिवर्तन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने इस तथ्य को रेखांकित किया है कि ऑस्ट्रेलिया का ग्रेट बैरियर रीफ (Great Barrier Reef) काफी गंभीर स्थिति में है और जलवायु परिवर्तन के कारण इसकी स्थिति और भी बिगड़ सकती है।
प्रमुख बिंदु
- ग्रेट बैरियर रीफ
- यह विश्व का सबसे व्यापक और समृद्ध प्रवाल भित्ति पारिस्थितिकी तंत्र है, जो कि 2,900 से अधिक भित्तियों और 900 से अधिक द्वीपों से मिलकर बना है।
- यह ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड के उत्तर-पूर्वी तट में 1400 मील तक फैला हुआ है।
- इसे बाह्य अंतरिक्ष से देखा जा सकता है और यह जीवों द्वारा बनाई गई विश्व की सबसे बड़ी एकल संरचना है।
- यह समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र अरबों छोटे जीवों से मिलकर बना है, जिन्हें प्रवाल पॉलिप्स के रूप में जाना जाता है।
- ये समुद्री पौधों की विशेषताओं को प्रदर्शित करने वाला सूक्ष्म जीव होते हैं, जो कि समूह में रहते हैं। चूना पत्थर (कैल्शियम कार्बोनेट) से निर्मित इसका निचला हिस्सा (जिसे कैलिकल्स भी कहते हैं) काफी कठोर होता है, जो कि प्रवाल भित्तियों की संरचना का निर्माण करता है।
- इन प्रवाल पॉलिप्स में सूक्ष्म शैवाल पाए जाते हैं जिन्हें जूजैंथिली (Zooxanthellae) कहा जाता है जो उनके ऊतकों के भीतर रहते हैं।
- इसे वर्ष 1981 में विश्व धरोहर स्थल के रूप में चुना गया था।
- चिंताएँ
- जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री तापमान में हो रही वृद्धि के प्रभावस्वरूप 1400 मील में फैले समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र में प्रवाल भित्तियों को गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है। विश्व भर में इस खतरे को ‘कोरल ब्लीचिंग’ (Coral Bleaching) अथवा प्रवाल विरंजन के रूप में देखा जा सकता है।
- जब तापमान, प्रकाश या पोषण में किसी भी परिवर्तन के कारण प्रवालों पर तनाव बढ़ता है तो वे अपने ऊतकों में निवास करने वाले सहजीवी शैवाल ‘जूजैंथिली’ को निष्कासित कर देते हैं जिस कारण प्रवाल सफेद रंग में परिवर्तित हो जाते हैं, क्योंकि प्रवाल भित्तियों को अपना विशिष्ट रंग इन्हीं शैवालों से मिलता है। इसी घटना को ‘कोरल ब्लीचिंग’ (Coral Bleaching) के रूप में जाना जाता है।
- यदि तनाव का कारण गंभीर नहीं है तो प्रवाल जल्द ही ठीक हो सकते हैं।
- कोरल ब्लीचिंग’ या प्रवाल विरंजन की घटनाओं को प्रायः कैरेबियन सागर, हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में देखा जा सकता है।
- अगस्त 2019 में ऑस्ट्रेलिया ने ग्रेट बैरियर रीफ के संबंध में दीर्घकालिक दृष्टिकोण (Great Barrier Reef's long-term outlook) को ‘पुअर’ (Poor) से ‘वेरी पुअर” (Very Poor) कर दिया था। इससे ग्रेट बैरियर रीफ को ‘संकटग्रस्त विश्व विरासत सूची’ (World Heritage in Danger) में शामिल करने की संभावना काफी बढ़ गई थी।
- यह सूची अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को उन स्थितियों के बारे में सूचना देने के लिये डिज़ाइन की गई है, जो किसी विश्व विरासत स्थल की उन विशेषताओं के लिये खतरा हैं, जिनकी वजह से उस स्थल को विश्व विरासत की सूची में शामिल किया गया था।
- यह सुधारात्मक कार्रवाई को भी प्रोत्साहित करती है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री तापमान में हो रही वृद्धि के प्रभावस्वरूप 1400 मील में फैले समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र में प्रवाल भित्तियों को गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है। विश्व भर में इस खतरे को ‘कोरल ब्लीचिंग’ (Coral Bleaching) अथवा प्रवाल विरंजन के रूप में देखा जा सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN)
- यह एक एक विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसमें सरकारों और नागरिक समाज दोनों को शामिल किया जाता है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1948 में की गई थी और यह प्रकृति के संरक्षण तथा प्राकृतिक संसाधनों के धारणीय उपयोग को सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य करता है।
- इसका मुख्यालय स्विटज़रलैंड में स्थित है।
- IUCN द्वारा जारी की जाने वाली रेड लिस्ट दुनिया की सबसे व्यापक सूची है, जिसमें पौधों और जानवरों की प्रजातियों की वैश्विक संरक्षण की स्थिति को दर्शाया जाता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय
ग्लोबल टीचर प्राइज़ 2020
चर्चा में क्यों?
महाराष्ट्र के सोलापुर के एक प्राथमिक शिक्षक रणजीत सिंह डिसाले ग्लोबल टीचर प्राइज़ 2020 (Global Teacher Prize 2020) के विजेता बने हैं।
प्रमुख बिंदु
- ग्लोबल टीचर प्राइज़:
- इसके तहत 1 मिलियन डॉलर की पुरस्कार राशि दी जाती है और यह पुरस्कार प्रतिवर्ष एक ऐसे असाधारण शिक्षक को प्रदान किया जाता है जिसने अपने पेशे हेतु उत्कृष्ट योगदान दिया है।
- वर्की फाउंडेशन इस पुरस्कार का संस्थापक है, जो कि एक वैश्विक धर्मार्थ संस्थान है तथा शिक्षा के मानकों में सुधार लाने पर केंद्रित है। यह पुरस्कार यूनेस्को (UNESCO) की साझेदारी में आयोजित किया जाता है।
- उद्देश्य:
- यह शिक्षकों के महत्त्व को बढ़ावा देता है और इस तथ्य को रेखांकित करने का कार्य करता है कि दुनिया भर में शिक्षकों द्वारा किये जाने वाले प्रयासों को सम्मान और प्रतिष्ठा देने की आवश्यकता है।
- यह न केवल छात्रों बल्कि आस-पास के समुदायों पर भी सर्वोत्तम शिक्षकों के प्रभाव को मान्यता प्रदान करता है।
- आज दुनिया के सामने आने वाले सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के पीछे अपर्याप्त शिक्षा एक प्रमुख कारक है। शिक्षा में गरीबी, पूर्वाग्रह और संघर्ष को कम करने की शक्ति होती है।
- रणजीत सिंह डिसाले का योगदान:
- उन्होंने एक जीर्ण-शीर्ण स्कूल को ऐसे स्कूल में परिवर्तित कर दिया जो क्विक रिस्पॉन्स (क्यूआर) कोड प्रस्तुत करने वाला महाराष्ट्र का पहला स्कूल बना।
- क्यूआर कोड एक प्रकार का बारकोड होता है जिसमें डॉट्स का एक मैट्रिक्स होता है। इसे एक क्यूआर स्कैनर या एक स्मार्टफोन के कैमरे का उपयोग करके स्कैन किया जा सकता है।
- उन्होंने न केवल कक्षा की पाठ्यपुस्तकों का अपने विद्यार्थियों की मातृभाषा में अनुवाद किया, बल्कि छात्रों को ऑडियो कविताओं, वीडियो लेक्चर, कहानियों और असाइनमेंट्स को एम्बेड करने वाले अद्वितीय क्यूआर कोड का निर्माण किया।
- वह संघर्षरत क्षेत्रों में रहने वाले युवाओं के मध्य शांति स्थापित करने हेतु भी प्रयासरत हैं। इनके द्वारा शुरू किया गया “लेट्स क्रॉस द बॉर्डर्स” प्रोजेक्ट भारत व पाकिस्तान, फिलिस्तीन, इज़रायल, इराक, ईरान तथा अमेरिका और उत्तर कोरिया के युवाओं को जोड़ने का कार्य करता है।
- उन्होंने एक जीर्ण-शीर्ण स्कूल को ऐसे स्कूल में परिवर्तित कर दिया जो क्विक रिस्पॉन्स (क्यूआर) कोड प्रस्तुत करने वाला महाराष्ट्र का पहला स्कूल बना।
- डिसाले के प्रयासों का प्रभाव:
- अब गाँव में किशोर विवाह नहीं होते हैं और स्कूल में लड़कियों की शत-प्रतिशत उपस्थिति होती है।
- राज्य सरकार ने वर्ष 2017 में घोषणा की थी कि वह सभी स्नातकों के लिये राज्य भर में क्यूआर कोड युक्त पाठ्यपुस्तकें प्रस्तुत करेगी।
- वर्ष 2018 में यह घोषणा की गई थी कि सभी एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों में क्यूआर कोड एम्बेडेड होंगे।
शिक्षा क्षेत्र में सुधार हेतु कुछ भारतीय पहलें
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (National Education Policy 2020)
- शिक्षक को शिक्षा प्रणाली से संबंधित मूलभूत सुधारों के केंद्र में होना चाहिये।
- इस नीति के तहत शिक्षण प्रणाली में सुधार हेतु ‘शिक्षकों के लिये राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक’ (National Professional Standards for Teachers- NPSTs) का विकास और चार वर्ष के एकीकृत बी.एड. कार्यक्रम की अवधारणा प्रस्तुत की गई है।
- वर्ष 2022 तक शिक्षा क्षेत्र में अवसंरचना और प्रणालियों को मज़बूती प्रदान करना
(Revitalising Infrastructure and Systems in Education– RISE) - यह गुणवत्तापूर्ण तरीके से वर्ष 2022 तक भारत में अनुसंधान और शैक्षणिक बुनियादी ढाँचे को वैश्विक सर्वोत्तम मानकों के अनुरूप उन्नत करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
- इसका उद्देश्य भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों में उच्च गुणवत्ता युक्त अनुसंधान बुनियादी ढाँचा उपलब्ध कर भारत को एक शिक्षा केंद्र बनाना है।
- यू.जी.सी. का लर्निंग आउटकम-बेस्ड कर्रिकुलम फ्रेमवर्क (LOCF)
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा वर्ष 2018 में जारी किये गए LOCF दिशा-निर्देशों का उद्देश्य यह निर्दिष्ट करना है कि स्नातक विद्यार्थी अपने अध्ययन कार्यक्रम के अंत में क्या जानने, समझने और करने में सक्षम हैं। यह छात्रों को एक सक्रिय शिक्षार्थी और शिक्षक को एक अच्छा सूत्रधार बनाता है।
- ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर एकेडमिक नेटवर्क (GIAN):
- इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्रतिष्ठित शिक्षाविदों, उद्यमियों, वैज्ञानिकों तथा विश्व भर में ख्याति प्राप्त संस्थानों के विशेषज्ञों को भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने के लिये आमंत्रित करना है।
- ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन (AISHE):
- सर्वेक्षण के प्रमुख उद्देश्यों में देश भर में उच्च शिक्षा के सभी संस्थानों की पहचान कर उनके बारे में जानकारी संग्रहीत करना तथा उच्च शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर सभी उच्च शिक्षण संस्थानों से डेटा एकत्र करना शामिल है।
- ई-पाठशाला:
- इसे वर्ष 2015 में स्कूली छात्रों के बीच सेल्फ लर्निंग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- यह पोर्टल विभिन्न शिक्षाविदों, शोधकर्त्ताओं, विशेषज्ञों, अभिभावकों और इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण छात्रों की मेज़बानी करता है जो अपने प्रश्नों को हल करने हेतु सुविधा तक पहुँच प्राप्त कर सकते हैं।
- इसे वर्ष 2015 में स्कूली छात्रों के बीच सेल्फ लर्निंग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- वैश्विक पहल
- वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट (Global Education Monitoring Report): इसे संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा जारी किया जाता है जिसका उद्देश्य सतत् विकास लक्ष्य में निहित शिक्षा संबंधी लक्ष्यों (SDG -4) की दिशा में प्रगति की निगरानी करना है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजनीति
पुलिस थानों में CCTV: SC
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों से यह सुनिश्चित करने के लिये कहा है कि प्रत्येक पुलिस स्टेशन में CCTV (Closed-Circuit Television) कैमरे लगाए जाएँ।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि:
- डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2015) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि मानवाधिकारों के हनन की जाँच के लिये हर थाने और जेल में CCTV लगाए जाएँ।
- 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने गृह मंत्रालय (The Ministry of Home Affairs) को जाँच के दौरान अपराध स्थल की वीडियोग्राफी का उपयोग करने हेतु एक केंद्रीय पर्यवेक्षण निकाय (Central Oversight Body) गठित करने को कहा।
- सर्वोच्च न्यायालय ने पाया है कि अधिकांश राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के पुलिस थानों में CCTV नहीं लग पाए हैं।
- नवीनतम दिशा-निर्देश:
- राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि प्रत्येक पुलिस स्टेशन के सभी प्रवेश और निकास बिंदुओं, मुख्य द्वार, लॉक-अप, गलियारों, लॉबी तथा रिसेप्शन पर CCTV कैमरे लगाए जाएँ। साथ ही लॉक-अप कमरों के बाहर के क्षेत्र में भी कोई स्थान खुला नहीं छोड़ा जाए।
- सीसीटीवी सिस्टम को नाइट विज़न से लैस किया जाना चाहिये और इसमें ऑडियो के साथ-साथ वीडियो फुटेज की व्यवस्था भी होनी चाहिये। साथ ही केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये ऐसे सिस्टम खरीदना अनिवार्य होगा जिससे कम-से-कम एक साल से अधिक समय के लिये डेटा का भंडारण किया जा सके।
- केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय जाँच ब्यूरो (Central Bureau of Investigations), प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) और राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (National Investigation Agency) सहित उन सभी जाँच एजेंसियों के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे तथा रिकॉर्डिंग उपकरण लगाए जाने चाहिये जिन्हें पूछताछ एवं गिरफ्तारी का अधिकार प्राप्त है।
- पर्यवेक्षण निकाय का कार्यान्वयन राज्य और ज़िला स्तर तक बढ़ाया जाना चाहिये।
- संवैधानिक आयाम: सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान दिशा-निर्देश भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन की सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) में निहित मौलिक अधिकार को प्रतिष्ठापित करते हैं।
- अनुच्छेद 21: इसमें कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 21 के विस्तृत दायरे को सर्वोच्च न्यायालय ने उन्नीकृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1993) मामले में विस्तार से बताया है तथा सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं दिये गए निर्णय के आधार पर अनुच्छेद 21 के तहत कुछ अधिकारों की सूची प्रदान की है, इनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- विदेश जाने का अधिकार, निजता का अधिकार, आश्रय का अधिकार, सामाजिक न्याय और आर्थिक सशक्तीकरण का अधिकार, एकांत कारावास के विरुद्ध अधिकार, हथकड़ी लगाने के विरुद्ध अधिकार, विलंबित फाँसी के खिलाफ अधिकार, हिरासत में मृत्यु के खिलाफ अधिकार, सार्वजनिक फाँसी के विरुद्ध अधिकार, डॉक्टरों की सहायता, सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण, प्रत्येक बच्चे को पूर्ण विकास का अधिकार, प्रदूषण मुक्त जल और वायु का अधिकार।
- हिरासत में हिंसा से संबंधित डेटा:
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (According to National Crime Records Bureau) के आँकड़ों के अनुसार, भारत में वर्ष 2001-2018 के बीच इस प्रकार की 1,727 मौतें दर्ज की गईं जिनके लिये केवल 26 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया गया था।
- 2018 में ऐसी 70 मौतों में से केवल 4.3% मौतों के लिये ही पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया गया था जहाँ हिरासत के दौरान पीटे जाने से मौतें हुई थीं।
- अभिरक्षा (Custodial) में मौतों के अलावा 2000-2018 के बीच पुलिस के खिलाफ 2,000 से अधिक मानवाधिकार उल्लंघन के मामले भी दर्ज किये गए थे जिनमें केवल 344 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया गया था।
- यातना के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (United Nations Convention Against Torture) का भारत हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, जिसके तहत राज्यों को अपने अधिकार क्षेत्र के किसी भी क्षेत्र में अत्याचार को रोकने के लिये प्रभावी उपाय करने की आवश्यकता होती है। यह देशों को अपने नागरिक उन देशों में भेजने से मना करता है, जहाँ यह आशंका होती है कि उन्हें यातना झेलनी पड़ सकती है।
- CCTV:
- यह एक टेलीविज़न प्रणाली है जिसमें संकेतों को सार्वजनिक रूप से प्रसारित नहीं किया जाता है बल्कि निगरानी और सुरक्षा उद्देश्यों हेतु इसका उपयोग किया जाता है।
- घटक: इसमें सिर्फ आधारभूत घटक शामिल होते हैं जो बहुत ज़्यादा उपकरणों से नहीं जुड़े होते हैं। इनमें एक कैमरा (लेंस के साथ), केबल, एक डिजिटल वीडियो रिकॉर्डर (Digital Video Recorder) या नेटवर्क वीडियो रिकॉर्डर (Network Video Recorder) और एक वीडियो मॉनिटर शामिल हैं।
- सुरक्षा उपयोग:
- यह आतंकवाद और अन्य सुरक्षा खतरों को रोकने के लिये एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा नियंत्रक है।
- न्याय के लिये सबूत उपलब्ध करने के साथ ही सभी प्रकार के शारीरिक और इलेक्ट्रॉनिक खतरों का पता लगाने में भी CCTV का उपयोग महत्त्वपूर्ण है।