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भारतीय राजनीति

केंद्र - राज्य वित्तीय संबंध

  • 13 Aug 2020
  • 9 min read

भारतीय संविधान के भाग 12 में अनुच्छेद 268 से 293 तक केंद्र- राज्य वित्तीय संबंधों की चर्चा की गई है। इसके अलावा इस विषय पर कई अन्य उपबंध भी हैं।

  • केंद्र और राज्यों के मुख्य वित्तीय संसाधनों के वितरण में  कार्य क्षमता  पर्याप्तता और उपयुक्तता को मुख्य सिद्धांत माना गया है। संविधान निर्माताओं ने इन तीनों सिद्धांतों में समन्वय करने की अद्भुत चेष्टा की है।
  • वित्त आधुनिक प्रशासन तंत्र का  रक्त है। योजनागत व्ययों एवं आपदाओं के समय राज्यों को वित्तीय संकट से मुक्ति पाने के लिये केंद्रीय अनुदान के ऊपर निर्भर रहना पड़ता है। भारत की तरह ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के राज्यों को भी राजस्व प्राप्त हेतु केंद्र पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • स्विटजरलैंड के संविधान में वित्तीय संसाधनों का विभाजन भारत के विपरीत वर्णित है। वहाँ केंद्र राज्य के ऊपर निर्भर है क्योंकि केंद्रीय राजस्व का अधिकतर भाग राज्यों से प्राप्त होता है।

केंद्र राज्य वित्तीय संबंधों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान-

  • संविधान का अनुच्छेद 275 संसद को इस बात का अधिकार प्रदान करता है कि वह ऐसे राज्यों को उपयुक्त सहायक अनुदान देने का उपबंध कर सकती है जिन्हें संसद की दृष्टि में सहायता की आवश्यकता है।
  • अनुच्छेद 286, 287, 288 तथा 289 में केंद्र तथा राज्य सरकारों को एक-दूसरे द्वारा कुछ वस्तुओं पर कर लगाने से मना किया गया है और उन्हें कुछ करों से भी मुक्ति प्रदान की गई है। वहीं संविधान के अनुच्छेद 292 तथा 293 क्रमशः संघ तथा राज्य सरकारों को शरण लेने का अधिकार भी प्रदान करते हैं।
  • संविधान का अनुच्छेद 265 यह प्रबंध करता है कि विधि के प्राधिकार के बिना कोई कर शपथ या संग्रहीत नहीं किया जा सकता।

संविधान द्वारा केंद्र राज्यों के बीच निम्न तरीकों से कर शक्तियों का आवंटन किया गया है-

  • संसद के पास संघ सूची के बारे में कर निर्धारण का विशेष अधिकार है।
  • राज्य विधानमंडल के पास राज्य सूची पर कर निर्धारण का विशेष अधिकार है।
  • समवर्ती सूची पर संसद व राज्य विधानमंडल दोनों को कर निर्धारण का  पूर्ण अधिकार है।
  • 80वें संशोधन अधिनियम 2000 तथा 88वें  संविधान संशोधन 2003 द्वारा केंद्र-राज्य के बीच कर राजस्व बँटवारे की योजना पर व्यापक परिवर्तन किया गया। 88वें संशोधन से संविधान में एक नया अनुच्छेद 268 D जोड़ा गया जो सेवा कर से संबंधित है। हालाँकि 101वें संविधान संशोधन द्वारा नए अनुच्छेद 246 A, 269 A एवं 279 A को शामिल किया गया और अनुच्छेद 268 को समाप्त कर दिया गया।
  • आयात और निर्यात पर लगने वाले अप्रत्यक्ष करों के संबंध में केंद्र को ही समस्त शक्ति प्राप्त है जबकि राज्य वस्तुओं की बिक्री पर अप्रत्यक्ष कर लगा सकता है।
  • अनुच्छेद 266 में संचित निधि एवं अनुच्छेद 267 में आकस्मिक निधि का प्रावधान है। अनुच्छेद 280 में वित्त आयोग का प्रबंध किया गया है।
  • अनुच्छेद 274 यह अपेक्षा करता है कि ऐसे कराधान पर प्रभाव डालने वाले विधेयकों, जिनसे राज्य का हित जुड़ा हो, के बारे में राष्ट्रपति की पूर्व सिफारिश आवश्यक होगी।

जीएसटी से प्रभावित संवैधानिक अनुच्छेद-

  • 246A -  इसमें केंद्र सरकार को यह शक्ति दी गई है कि वह जीएसटी के संबंध में कानून बनाए। इसमें सीजीएसटीआई एवं जीएसटी के संबंध में केंद्र को एसजीएसटी के संबंध में राज्यों को पूर्ण शक्ति दी गई है।
  • 269A - इसके तहत आईजीएसटी की व्यवस्था के बारे में बताया गया है इसके तहत अंतर -राज्य व्यापार के मामले में कर की वसूली केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी जिसे बाद में राज्यों को बाँट दिया जाएगा
  • 279A - यह  जीएसटी परिषद की संरचना गठन का प्रावधान करता है।

वित्त आयोग-

  • वित्त आयोग का गठन हर पांचवें वर्ष की समाप्ति पर राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। आयोग राष्ट्रपति को इस बारे में सिफारिश करेगा कि संघ तथा राज्यों के बीच आगमों का वितरण किस प्रकार किया जाए।
  • 15वें वित्त आयोग का गठन 27 नवंबर 2017 को किया गया था ताकि उसके द्वारा 1 अप्रैल 2020 से 31 मार्च, 2025 तक की 5 वर्षीय अवधि हेतु सुझाव दिया जा सके। आयोग की अंतिम रिपोर्ट के कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदु निम्नलिखित हैं-

1. 15वें वित्त आयोग ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में पूर्ववर्ती आयोग की सिफारिशों को सुरक्षित रखा है। आयोग ने विभाजन योग्य राजस्व में वित्तीय वर्ष 2020 -21 हेतु राज्यों के लिये 41% हिस्सेदारी की सिफारिश की है जो कि अब तक 42% थी।
2. केंद्र की हिस्सेदारी में बढ़ोतरी का मुख्य कारण नवगठित केंद्रशासित प्रदेशों ( जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) की सुरक्षा तथा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना है।
3. वित्त आयोग के अनुसार राज्यों की हिस्सेदारी में हो रही कटौती साधारणतया पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के हिस्से के बराबर है।
4. वित्त आयोग ने वित्त वर्ष 2020-21 के लिये स्थानीय निकायों को अनुदान के रूप में 90000 करोड रुपए देने की सिफारिश की है जो कि अनुमानित विभाजन योग्य राजस्व का 4.31 प्रतिशत है।

ध्यातव्य है कि 2020 में राज्यों को निम्नलिखित अनुदान दिये जाएंगे-

  • राजस्व घाटा अनुदान
  • स्थानीय निकाय अनुदान
  • आपदा प्रबंधन अनुदान

5. आयोग ने सार्वजनिक वित्त के प्रबंधन के लिये कानूनी मसौदा बनाने हेतु एक विशेष समिति गठित करने का सुझाव दिया है ताकि एक वैधानिक फ्रेमवर्क तैयार किया जा सके।
6. आयोग ने क्षमता बढ़ाने पर भी सुझाव दिये हैं-
• कर आधार को बढ़ाया जाए।

  • कर दरों को सुव्यवस्थित किया जाए
  • सरकार के सभी स्तरों पर प्रशासन की क्षमता और विशेषज्ञता को बढ़ाया जाए।

7. केंद्रीय करों में प्रत्येक राज्य की हिस्सेदारी हेतु आयोग ने मानदंड तैयार किये हैं जिसमें आय-अंतर, जनसंख्या प्रदर्शन, वन और परिस्थितिकी , कर संबंधी प्रयास आदि शामिल हैं।

  • भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व का वितरण संघ सरकार अधिनियम, 1935 की पद्धति के आधार पर किया गया है। संविधान निर्माताओं का यह मत था कि केंद्र और राज्यों के वित्तीय संबंध लचीली व बदलती परिस्थितियों के अनुकूल हों। इस प्रयोजन हेतु एक वित्त आयोग की स्थापना का उपबंध भी किया गया ।
  • किसी भी परिसंघीय संविधान में इस तरह की कोई विस्तृत व्यवस्था नहीं है जिसके माध्यम से केंद्र और राज्यों में राजस्व का समयानुकूल समायोजन और वितरण होता रहे। यह व्यवस्था भारतीय संविधान का मौलिक योगदान है।

निष्कर्ष: विधायी और प्रशासनिक संबंधों की भाँति वित्तीय क्षेत्र में भी संघ सरकार राज्य सरकारों से अधिक शक्तिशाली है किंतु राज्यों को भी पर्याप्त सहायता व  स्वायत्तता प्रदान की गई है।

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