शासन व्यवस्था
अपतटीय क्षेत्र खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, 2023
प्रिलिम्स के लिये:अपतटीय खनन क्षेत्र, MMDR [खान और खनिज (विकास और विनियमन)] अधिनियम, विशेष आर्थिक क्षेत्र मेन्स के लिये:अपतटीय क्षेत्र खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, 2023 |
चर्चा में क्यों?
राज्यसभा ने हाल ही में अपतटीय क्षेत्र खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, 2023 पारित किया, जिसका उद्देश्य भारत के अपतटीय खनन क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सुधार करना है।
- यह संशोधन मौजूदा अपतटीय क्षेत्र खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 2002 को संशोधित करने का प्रयास करता है, ताकि अपतटीय क्षेत्रों में परिचालन अधिकार आवंटित करने की विधि के रूप में नीलामी को सक्षम किया जा सके।
संशोधन विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:
- नीलामी व्यवस्था का परिचय:
- दो प्रकार के परिचालन अधिकार, उत्पादन पट्टा और समग्र लाइसेंस, विशेष रूप से निजी क्षेत्र को प्रतिस्पर्द्धी बोली द्वारा नीलामी के माध्यम से दिये जाएंगे।
- केंद्र सरकार द्वारा आरक्षित खनिज क्षेत्रों में सार्वजनिक उपक्रमों को संचलित करने के अधिकार दिये जाएंगे। सार्वजनिक उपक्रमों को मूलतः परमाणु खनिजों के परिचालन अधिकार भी प्रदान किये जाएंगे।
- परमाणु खनिजों में मुख्य रूप से यूरेनियम, थोरियम, दुर्लभ धातुएँ जैसे खनिज शामिल हैं। निओबियम, टैंटलम, लिथियम, बेरिलियम, टाइटेनियम, ज़िरकोनियम और दुर्लभ मृदा तत्त्व (REE) के साथ-साथ समुद्र तट के रेत खनिज।
- उत्पादन पट्टे (Production Lease) की निर्धारित अवधि:
- उत्पादन पट्टों के नवीनीकरण के प्रावधान को हटा दिया गया है।
- उत्पादन पट्टे की अवधि, खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) के तहत 50 वर्ष निर्धारित की गई है।
- क्षेत्र अधिग्रहण सीमा:
- संपूर्ण अपतटीय क्षेत्र जिसे एक संस्था (One Entity) अधिग्रहीत कर सकती है, को पृथक रखा गया है।
- एक या अधिक परिचालन अधिकारों के तहत किसी भी खनिज या संबंधित खनिजों के निर्धारित समूह के लिये अधिकतम अधिग्रहण क्षेत्र 45 मिनट अक्षांश और 45 मिनट देशांतर तक सीमित है।
- गैर-व्यपगत अपतटीय क्षेत्र खनिज ट्रस्ट:
- अन्वेषण, आपदा राहत, अनुसंधान और प्रभावित पक्षों हेतु लाभ सुनिश्चित करने के लिये एक गैर-व्यपगत अपतटीय क्षेत्र खनिज ट्रस्ट की स्थापना की जाएगी।
- ट्रस्ट को खनिज उत्पादन पर अतिरिक्त लेवी द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा, जो केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित दर के साथ रॉयल्टी के एक-तिहाई से अधिक नहीं होगी।
- व्यवसाय में आसानी तथा समय-सीमा:
- कम्पोज़िट लाइसेंस या उत्पादन पट्टे के आसान हस्तांतरण के प्रावधान।
- उत्पादन की समय पर शुरुआत सुनिश्चित करने के लिये उत्पादन पट्टे के निष्पादन के बाद उत्पादन शुरू करने के साथ प्रेषण के लिये समय-सीमा।
- राजस्व:
- अपतटीय क्षेत्रों में खनिज उत्पादन से रॉयल्टी, नीलामी प्रीमियम तथा अन्य राजस्व भारत सरकार को प्राप्त होंगे।
ऐसे संशोधन विधेयक की आवश्यकता क्यों?
- अपतटीय क्षेत्रों में गतिविधि का अभाव:
- अपतटीय क्षेत्र खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 2002 के अधिनियमन के बावजूद अपतटीय क्षेत्रों में कोई खनन गतिविधि नहीं हुई है।
- यह भारत के लिये उपलब्ध विशाल समुद्री संसाधनों के प्रति रुचि अथवा इसके प्रभावी उपयोग की कमी को दर्शाता है।
- संशोधन विधेयक अंतर्निहित मुद्दों को संबोधित करने के साथ इन अपतटीय क्षेत्रों में अन्वेषण तथा खनन को प्रोत्साहित करने का प्रयास करता है।
- विवेक एवं पारदर्शिता का अभाव:
- वर्तमान अधिनियम स्वविवेक की समस्या से ग्रस्त है, साथ ही अपतटीय क्षेत्रों में खनन के परिचालन अधिकारों के आवंटन में पारदर्शिता का अभाव है।
- संशोधन विधेयक का उद्देश्य तटवर्ती क्षेत्रों के लिये MMDR अधिनियम में सफल संशोधनों से प्रेरित होकर परिचालन अधिकार आवंटित करने हेतु एक पारदर्शी नीलामी तंत्र शुरू करना है।
- समुद्री संसाधनों का दोहन:
- भारत एक अद्वितीय समुद्री स्थिति रखता है। इसमें 20 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक का विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) है जो पुनर्प्राप्त करने योग्य संसाधनों से समृद्ध है। भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) का अनुमान है कि विभिन्न अपतटीय क्षेत्रों में चूना मिट्टी, निर्माण हेतु रेत, भारी खनिज, फॉस्फोराइट एवं पॉलीमेटेलिक फेरोमैंगनीज़ नोड्यूल और क्रस्ट के महत्त्वपूर्ण भंडार हैं।
- हालाँकि इन संसाधनों की क्षमता काफी हद तक अप्रयुक्त है। संशोधन विधेयक सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्रों की भागीदारी के माध्यम से अन्वेषण और खनन को बढ़ावा देकर भारत की उच्च विकास अर्थव्यवस्था का समर्थन करने के लिये इन समुद्री संसाधनों की पूरी क्षमता का उपयोग करना चाहता है।
निष्कर्ष:
- इस विधेयक का उद्देश्य परिचालन अधिकारों के आवंटन करने की विधि के रूप में नीलामी को सक्षम कर पारदर्शिता को बढ़ावा देना, निजी क्षेत्र की भागीदारी को आकर्षित करना तथा आर्थिक विकास महत्त्वाकांक्षाओं का समर्थन करने के लिये भारत के समुद्री संसाधनों को अनुकूलित करना है।
- यह सुधार सतत् और सुरक्षित खनन प्रथाओं को सुनिश्चित करते हुए अपने विशाल समुद्री संसाधनों का दोहन करने के भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय राजव्यवस्था
ओबीसी का उप-वर्गीकरण
प्रिलिम्स के लिये:अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के उप-वर्गीकरण के लिये आयोग, मंडल आयोग, 102वाँ संविधान संशोधन अधिनियम मेन्स के लिये:भारत में OBC आरक्षण की स्थिति का ऐतिहासिक विकास, OBC के उप-वर्गीकरण की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति जी. रोहिणी की अध्यक्षता वाले आयोग ने लगभग छह वर्ष बाद अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की जातियों के उप-वर्गीकरण के लिये लंबे समय से प्रतीक्षित रिपोर्ट सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को सौंप दी है।
- हालाँकि सिफारिशों का विवरण अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है और उम्मीद है कि सरकार किसी भी कार्यान्वयन से पूर्व रिपोर्ट पर विचार-विमर्श करेगी।
रोहिणी आयोग के बारे में:
- परिचय:
- इस आयोग का गठन 2 अक्तूबर , 2017 को संविधान के अनुच्छेद 340 (पिछड़े वर्गों की स्थितियों की जाँच के लिये आयोग नियुक्त करने की राष्ट्रपति की शक्ति) के तहत किया गया था।
- संदर्भ शर्तें:
- केंद्रीय सूची में सूचीबद्ध OBC के बीच लाभ के असमान वितरण की जाँच करना।
- OBC के भीतर उप-वर्गीकरण के लिये एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ मापदंडों का प्रस्ताव करना।
- संबंधित जातियों अथवा समुदायों को उनकी संबंधित उप-श्रेणियों में पहचानना एवं वर्गीकृत करना।
- OBC की केंद्रीय सूची में प्रविष्टियों का अध्ययन करना, साथ ही पुनरावृत्ति, अस्पष्टता, विसंगतियों एवं वर्तनी अथवा प्रतिलेखन में त्रुटियों के लिये सुधार की सिफारिश करना।
OBC के उप-वर्गीकरण की आवश्यकता:
- OBC को केंद्र सरकार की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 27% आरक्षण मिलता है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि केवल कुछ प्रमुख जाति समूहों को ही इस कोटा से लाभ मिलता है।
- वर्ष 2018 में आयोग ने पिछले वर्षों में 1.3 लाख केंद्रीय सरकारी नौकरियों और केंद्रीय उच्च शिक्षा संस्थानों में OBC प्रवेश के डेटा का विश्लेषण किया था जिससे पता चला कि 97% लाभ केवल 25% OBC जातियों को मिला है।
- लगभग 983 OBC समुदायों (कुल का 37%) का नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में शून्य प्रतिनिधित्व था, जो उप-वर्गीकरण की आवश्यकता को उजागर करता है।
- उप-वर्गीकरण का उद्देश्य ऐतिहासिक रूप से कम प्रतिनिधित्व वाले और वंचित OBC समुदायों के लिये अधिक अवसर प्रदान करने हेतु 27% आरक्षण के भीतर कोटा प्रदान करना है।
भारत में OBC आरक्षण की स्थिति का ऐतिहासिक विकास:
- यह यात्रा वर्ष 1953 में कालेलकर आयोग की स्थापना के साथ शुरू हुई, जिसने राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जाति (Scheduled Castes- SC) और अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes- ST) से परे पिछड़े वर्गों को मान्यता देने का पहला उदाहरण पेश किया।
- वर्ष 1980 में मंडल आयोग की रिपोर्ट में OBC आबादी 52% होने का अनुमान लगाया गया था और 1,257 समुदायों को पिछड़े वर्ग के रूप में पहचाना गया था।
- असमानता को दूर करने के लिये इसने मौजूदा कोटा (जो पहले केवल SC/ST के लिये लागू था) को 22.5% से बढ़ाकर 49.5% करने का सुझाव दिया, जिसमें OBC को शामिल करने के लिये आरक्षण का विस्तार किया गया।
- इन सिफारिशों के बाद केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 16(4) के तहत OBC के लिये केंद्रीय सिविल सेवा में 27% सीटें आरक्षित करते हुए आरक्षण नीति लागू की।
- यह नीति अनुच्छेद 15(4) के तहत केंद्र सरकार के शैक्षणिक संस्थानों में भी लागू की गई थी।
- वर्ष 2008 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह सुनिश्चित करते हुए कि ये लाभ सबसे वंचित लोगों तक पहुँचे, हस्तक्षेप किया और केंद्र सरकार को OBC के बीच "क्रीमी लेयर (Creamy Layer)" (उन्नत वर्गों) को आरक्षण नीति के लाभ से बाहर करने का निर्देश दिया।
- वर्ष 2018 में 102वें संविधान संशोधन अधिनियम ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (National Commission for Backward Classes- NCBC) को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया।
- इसने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय के रूप में NCBC को उसकी पिछली स्थिति से ऊपर स्थान दिया, जिससे इसे OBC सहित पिछड़े वर्गों के हितों की रक्षा करने में अधिक अधिकार और मान्यता प्राप्त हुई।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्नप्रश्न. भारत के निम्नलिखित संगठनों/निकायों पर विचार कीजिये: (2023)
उपर्युक्त में से कितने सांविधानिक निकाय हैं? (a) केवल एक उत्तर: (a) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
फिंगर मिन्यूशिया रिकॉर्ड - फिंगर इमेज रिकॉर्ड (FMR-FIR) मोडैलिटी
प्रिलिम्स के लिये:आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS), आधार लॉक, सिलिकॉन थम्स मेन्स के लिये:AePS से संबंधित कमजोरियाँ, वित्तीय लेनदेन में बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण का उपयोग करने की चुनौतियाँ, AePS धोखाधड़ी को रोकने में वित्तीय साक्षरता और डिजिटल कौशल की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) ने इन-हाउस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस/मशीन लर्निंग (AI/ML) प्रौद्योगिकी-आधारित फिंगर मिन्यूशिया रिकॉर्ड - फिंगर इमेज रिकॉर्ड (FMR-FIR) मोडैलिटी शुरू की है।
- यह तकनीक, विशेष रूप से आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS) द्वारा लेनदेन को बढ़ाने के लिये डिज़ाइन की गई है, जिसका उद्देश्य क्लोन फिंगरप्रिंट के दुरुपयोग सहित धोखाधड़ी गतिविधियों से निपटना है।
फिंगर मिंटिया रिकॉर्ड - फिंगर इमेज रिकॉर्ड (FMR-FIR) मोडैलिटी:
- परिचय:
- FMR-FIR मोडैलिटी आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS) के भीतर सुरक्षा उपायों को मज़बूत करने के लिये UIDAI द्वारा विकसित एक उन्नत AI/ML-आधारित तकनीक है।
- मुख्य विशेषताएँ और कार्यक्षमता:
- हाइब्रिड प्रमाणीकरण:
- आधार प्रमाणीकरण (Aadhaar Authentication) के दौरान फिंगरप्रिंट बायोमेट्रिक्स को स्थापित करने के लिये FMR-FIR दो अलग-अलग घटकों [फिंगर मिन्यूशिया (अंगुलियों की बारीक रेखाएँ- Finger Minutiae) और फिंगर इमेज (Finger Image)] के विश्लेषण को जोड़ता है।
- जीवंतता का पता लगाना:
- मोडेलिटी (Modality) का प्राथमिक कार्य कैप्चर किये गए फिंगरप्रिंट की सजीवता का आकलन करना है।
- यह वास्तविक, "जीवित" अंगुली और क्लोन (Cloned) या नकली फिंगरप्रिंट के बीच अंतर कर सकता है, जिससे धोखाधड़ी के प्रयासों को रोका जा सकता है।
- वास्तविक समय सत्यापन:
- FMR-FIR वास्तविक समय में काम करता है, प्रमाणीकरण प्रक्रिया के दौरान तत्काल सत्यापन परिणाम प्रदान करता है।
- धोखाधड़ी से बेहतर रोकथाम:
- क्लोन किये गए फिंगरप्रिंट के उपयोग का पता लगाकर और उसे रोककर, प्रौद्योगिकी AePS धोखाधड़ी के जोखिम को काफी कम कर देती है।
- हाइब्रिड प्रमाणीकरण:
- तर्क और कार्यान्वयन:
- उभरते खतरों को संबोधित करना: क्लोन किये गए फिंगरप्रिंट से जुड़ी धोखाधड़ी गतिविधियों के उद्भव के कारण AePS लेनदेन की सुरक्षा के लिये एक परिष्कृत समाधान के विकास की आवश्यकता है ।
- भारत में भुगतान-संबंधी धोखाधड़ी में वृद्धि हुई है, वित्त वर्ष 2011 में 700,000 से अधिक मामले सामने आए हैं।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) की पर्यवेक्षित संस्थाओं के आँकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2013 में यह आँकड़ा अकल्पनीय रूप से बढ़कर लगभग 20 मिलियन हो गया।
- जबकि साइबर धोखाधड़ी के बारे में सीमित जागरूकता के कारण कई मामले दर्ज नहीं किये जाते हैं, इसमें वित्तीय धोखाधड़ी सबसे महत्त्वपूर्ण है।
- सिलिकॉन आधारित धोखाधड़ी: सिलिकॉन का उपयोग करके बनाए गए नकली फिंगरप्रिंट के माध्यम से अनधिकृत धोखाधड़ी के मामलों ने अधिक सुरक्षित और तकनीकी रूप से उन्नत दृष्टिकोण की आवश्यकता को प्रेरित किया।
- AI/ML का एकीकरण: कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग प्रौद्योगिकियों का एकीकरण फिंगरप्रिंट प्रमाणीकरण की सटीकता और प्रभावशीलता को बढ़ाता है।
- उभरते खतरों को संबोधित करना: क्लोन किये गए फिंगरप्रिंट से जुड़ी धोखाधड़ी गतिविधियों के उद्भव के कारण AePS लेनदेन की सुरक्षा के लिये एक परिष्कृत समाधान के विकास की आवश्यकता है ।
- लाभ और निहितार्थ:
- UIDAI की FMR-FIR तकनीक सुरक्षा को मज़बूत करती है, कमजोरियों को कम करती है, लेन-देन के आत्मविश्वास को बढ़ाती है और सामाजिक कल्याण के लिये तकनीकी नवाचार के उदाहरण के रूप में कार्य करती है।
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI):
- सांविधिक प्राधिकारी: UIDAI 12 जुलाई, 2016 को आधार अधिनियम 2016 के प्रावधानों का पालन करते हुए ‘इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ के अधिकार क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा स्थापित एक वैधानिक प्राधिकरण है।
- UIDAI की स्थापना भारत सरकार द्वारा जनवरी 2009 में योजना आयोग के तत्त्वावधान में एक संलग्न कार्यालय के रूप में की गई थी।
- जनादेश: UIDAI को भारत के सभी निवासियों को एक 12-अंकीय विशिष्ट पहचान (UID) संख्या (आधार) प्रदान करने का कार्य सौंपा गया है।
- 31 अक्तूबर, 2021 तक UIDAI ने 131.68 करोड़ आधार नंबर जारी किये थे।
आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (Aadhaar Enabled Payment System- AePS):
- AEPS एक बैंक के नेतृत्व वाला मॉडल है जो आधार प्रमाणीकरण का उपयोग करके किसी भी बैंक के बिज़नेस कॉरेस्पोंडेंट (BC)/बैंक मित्र के माध्यम से POS (प्वाइंट ऑफ सेल/माइक्रो ATM) पर ऑनलाइन इंटरऑपरेबल वित्तीय लेन-देन की अनुमति देता है।
- यह प्रणाली वित्तीय लेन-देन में एक और सुरक्षा व्यवस्था है क्योंकि इन लेन-देन को करते समय बैंक विवरण प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होती है।
- इसका परिचालन भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और भारतीय बैंक संघ (IBA) की एक संयुक्त पहल भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा किया जाता है।
- यह OTP, बैंक खाता विवरण और अन्य वित्तीय जानकारी की आवश्यकता को समाप्त करता है।
- आधार नामांकन के दौरान केवल बैंक का नाम, आधार संख्या और कैप्चर किये गए फिंगरप्रिंट के साथ लेन-देन किया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न 1.भारत में व्यक्तियों के लिये साइबर बीमा के तहत धन की हानि और अन्य लाभों के भुगतान के अलावा, निम्नलिखित में से कौन-से लाभ आमतौर पर कवर किये जाते हैं? (वर्ष 2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (A) केवल 1, 2 और 4 उत्तर: (b) प्रश्न 2. भारत में निम्नलिखित में से किसके लिये साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना कानूनी रूप से अनिवार्य है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न 3. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न. साइबर सुरक्षा के विभिन्न घटक क्या हैं? साइबर सुरक्षा में चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए जाँच करें कि भारत ने व्यापक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति को किस हद तक सफलतापूर्वक विकसित किया है। (वर्ष 2022) |