डेली न्यूज़ (05 Jan, 2022)



जैव ऊर्जा फसलों का कृषि क्षेत्रों पर शीतलन प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

जैव ऊर्जा फसलें, जैव ईंधन।

मेन्स के लिये:

जैव ऊर्जा फसलें और जलवायु परिवर्तन पर उनका प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

एक नए अध्ययन में पाया गया है कि वार्षिक फसलों को बारहमासी जैव ऊर्जा फसलों में परिवर्तित करने से उन क्षेत्रों पर शीतलन प्रभाव उत्पन्न हो सकता है, जहाँ उनकी खेती की जाती है।

  • शोधकर्ताओं ने भविष्य की जैव ऊर्जा फसल की खेती के परिदृश्यों की एक शृंखला के जैव-भौतिक जलवायु प्रभाव का अनुकरण किया। नीलगिरि, चिनार, विलो, मिसकैंथस और स्विचग्रास अध्ययन में इस्तेमाल की जाने वाली जैव ऊर्जा फसलें थीं।
  • अध्ययन ने फसलों के प्रकार के उस महत्त्व को भी प्रदर्शित किया, जिस पर मूल भूमि उपयोग आधारित जैव ऊर्जा फसलों का विस्तार किया जाता है।

जैव ऊर्जा फसलें

  • वे फसलें जिनसे जैव ईंधन का उत्पादन या निर्माण किया जाता है, जैव ईंधन फसलें या जैव ऊर्जा फसलें कहलाती हैं। "ऊर्जा फसल" एक शब्द है जिसका उपयोग जैव ईंधन फसलों का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
    • इनमें गेहूँ, मक्का, प्रमुख खाद्य तिलहन/खाद्य तेल, गन्ना और अन्य फसलें शामिल हैं।
  • जीवाश्म ईंधन की तुलना में जैव ईंधन के कई फायदे हैं, जिसमें कम प्रदूषक होते हैं और इनमें कम मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों को वातावरण में छोड़ने की क्षमता शामिल है। वे पर्यावरण के अनुकूल भी हैं और ऊर्जा निगम अक्सर जैव ईंधन को गैसोलीन के साथ मिलाते हैं।

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प्रमुख बिंदु 

  • −0.08 ~ +0.05 ग्लोबल नेट एनर्जी चेंज:
    • बायोएनर्जी फसलों के तहत खेती का क्षेत्र वैश्विक कुल भूमि क्षेत्र का 3.8% ±  0.5% है, लेकिन वे मज़बूत क्षेत्रीय जैव-भौतिक प्रभाव डालते हैं, जिससे -0.08 ~ +0.05 डिग्री सेल्सियस के वायु तापमान में वैश्विक शुद्ध परिवर्तन होता है।
    • बड़े पैमाने पर बायोएनर्जी फसल की खेती के 50 वर्षों के बाद मज़बूत क्षेत्रीय विरोधाभासों और अंतर-वार्षिक परिवर्तनशीलता के साथ वैश्विक वायु तापमान में 0.03 ~ 0.08 डिग्री सेल्सियस की कमी आएगी।
  • कार्बन कैप्चर और स्टोरेज पर प्रभाव:
    • कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (BECCS) के साथ बड़े पैमाने पर बायोएनर्जी फसल की खेती को वातावरण से कार्बनडाईऑक्साइड को हटाने हेतु एक प्रमुख नेगेटिव  एमिशन टेक्नोलॉजी (Negative Emission Technology-NET) के रूप में पहचाना गया है।
  • बड़े स्थानिक बदलाव:
    • बड़े पैमाने पर जैव-ऊर्जा फसल की खेती वैश्विक स्तर पर एक जैव भौतिक शीतलन प्रभाव को प्रेरित करती है, लेकिन हवा के तापमान में परिवर्तन में मजबूत स्थानिक भिन्नताएंँ और अंतर-वार्षिक परिवर्तनशीलता होती है।
    • बायोएनर्जी फसल परिदृश्यों में तापमान परिवर्तन में विश्व के अन्य क्षेत्रों में बहुत बड़ी स्थानिक भिन्नताएंँ और महत्त्वपूर्ण जलवायु टेलीकनेक्शन हो सकते हैं। 
  • पर्माफ्रॉस्ट को विगलन से बचाएँ:
    • यूरेशिया में 60°N और 80°N के बीच मज़बूत शीतलन प्रभाव, पर्माफ्रॉस्ट को पिघलने से बचा सकता है या आर्द्रभूमि से मीथेन उत्सर्जन को कम कर सकता है।
    • पर्माफ्रॉस्ट अथवा स्थायी तुषार भूमि वह क्षेत्र है जो कम-से-कम लगातार दो वर्षों से शून्य डिग्री सेल्सियस (32 डिग्री F) से कम तापमान पर जमी हुई अवस्था में है।
  • नीलगिरि स्विचग्रास से बेहतर है:
    • नीलगिरि की खेती आमतौर पर शीतलन प्रभाव दिखाती है, यदि स्विचग्रास को मुख्य बायोएनर्जी फसल के रूप में उपयोग किया जाता है तो यह अधिक बेहतर होती है जिसका अर्थ है कि नीलगिरी, भूमि को जैव-भौतिक रूप से ठंडा करने में स्विचग्रास से बेहतर है।
    • नीलगिरि के लिये शीतलन प्रभाव और स्विचग्रास हेतु वार्मिंग प्रभाव अधिक होता है।
    • जंगलों को स्विचग्रास में परिवर्तित करने से न केवल बायोफिजिकल वार्मिंग प्रभाव पड़ता है, बल्कि अन्य छोटी वनस्पतियों को बायोएनर्जी फसलों में परिवर्तित करने की तुलना में वनों की कटाई के माध्यम से अधिक कार्बन जारी किया जा सकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


सेराडो में वनों की कटाई: ब्राज़ील

प्रिलिम्स के लिये:

वनों की कटाई, इसके कारण और प्रभाव, सवाना, विभिन्न घास के मैदान।

मैन्स के लिये:

वनों की कटाई, इसके कारण और प्रभाव, सवाना, इसका वितरण और पर्यावरण।

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2021 में वनों की कटाई ब्राज़ील के सेराडो में वर्ष 2015 के बाद से उच्चतम स्तर तक पहुँच गई है, जिससे वैज्ञानिकों ने दुनिया की सबसे अधिक प्रजाति-समृद्ध सवाना की स्थिति पर आवाज़ उठाई है।

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प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • सेराडो ब्राज़ील के कई राज्यों में फैला हुआ है और दुनिया के सबसे बड़े सवाना में से एक है, जिसे अक्सर "डाउन साइड फ़ॉरेस्ट" कहा जाता है क्योंकि इसके पौधे की गहरी जड़ें सूखे और आग से बचने के लिये जमीन में डूबी रहती हैं।
    • सेराडो एक प्रमुख कार्बन सिंक है जो जलवायु परिवर्तन को रोकने में मदद करता है।
  • सेराडो का विनाश:
    • सेराडो में इन पेड़ों, घासों और अन्य पौधों का विनाश ब्राज़ील के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का एक प्रमुख स्रोत है, हालाँकि यह अधिक प्रसिद्ध अमेज़न वर्षावन की तुलना में बहुत कम घना जंगल है जो इसकी सीमा से लगा हुआ है।
      • जुलाई 2021 से अब तक 12 महीनों में सेराडो में वनों की कटाई और देशी वनस्पतियों की निकासी 8% से बढ़कर 8,531 वर्ग किलोमीटर की हो गई है।
    • वैज्ञानिकों ने अपनी विकास समर्थक बयानबाज़ी के साथ वनों की कटाई को प्रोत्साहित करने और पर्यावरण प्रवर्तन की स्थिति के लिये सरकार को दोषी ठहराया है।

वनों की कटाई

  • परिचय:
    • वनों की कटाई जंगल के अलावा किसी क्षेत्र में निर्माण कार्य  हेतु पेड़ों को स्थायी रूप से हटाना है। इसमें कृषि या चराई, ईंधन, निर्माण आदि के लिये भूमि को साफ करना शामिल हो सकता है।
    • आज सबसे अधिक वनों की कटाई उष्णकटिबंध क्षेत्र में हो रही है, जो क्षेत्र पहले दुर्गम थे वे अब पहुँच के भीतर हैं क्योंकि घने जंगलों में नई सड़कों का निर्माण किया जा रहा है।
      • मैरीलैंड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की वर्ष 2017 की एक रिपोर्ट से पता चला है कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्र ने वर्ष 2017 में लगभग 1,58,000 वर्ग किलोमीटर जंगल खो दिये है जो लगभग बांग्लादेश के आकार के थे।
  • प्रभाव:
    • उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वनों की कटाई भी कैनोपी के ऊपर जल वाष्प के उत्पादन के तरीके को प्रभावित कर सकती है, जिससे कम वर्षा होती है।
    • वनों की कटाई न केवल उन वनस्पतियों को समाप्त करती है जो हवा से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने हेतु महत्त्वपूर्ण हैं, बल्कि निर्वनीकरण ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का उत्पादन भी करता है।
    • यह जैव विविधता और पशु जीवन को भी नुकसान पहुँचा रहा है।

सवाना 

  • परिचय
    • सवाना एक वनस्पति प्रकार है, जो गर्म और शुष्क जलवायु परिस्थितियों में पाई जाती है तथा इसमें कैनोपी (यानी बिखरे हुए वृक्ष) एवं ज़मीन पर लंबी घास की विशेषता मौजूद होती है।
    • सवाना के सबसे बड़े क्षेत्र अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत, म्याँँमार (बर्मा), थाईलैंड के एशियाई क्षेत्र और मेडागास्कर में पाए जाते हैं।

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  • सवाना का पर्यावरण:
    • सामान्य तौर पर, सवाना भूमध्य रेखा से 8° से 20° अक्षांशों के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगती हैं।
    • सभी मौसमों में स्थितियाँ गर्म होती हैं, लेकिन हर वर्ष केवल कुछ महीनों के लिये वर्षा होती है - दक्षिणी गोलार्द्ध में अक्तूबर से मार्च तक और उत्तरी गोलार्द्ध में अप्रैल से सितंबर तक।
    • औसत वार्षिक वर्षा आमतौर पर 80 से 150 सेंटीमीटर होती है, हालाँकि कुछ केंद्रीय महाद्वीपीय स्थानों में यह 50 सेंटीमीटर जितनी कम हो सकती है।
    • शुष्क मौसम आमतौर पर बारिश के मौसम की तुलना में लंबा होता है, यह अलग-अलग क्षेत्रों में 2 से 11 महीनों तक हो होता है। शुष्क मौसम में औसत मासिक तापमान लगभग 10 से 20 डिग्री सेल्सियस और बारिश के मौसम में 20 से 30 डिग्री सेल्सियस होता है।
  • सवाना के उप-विभाजन:
    • शुष्क मौसम की लंबी अवधि के आधार पर सवाना को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है- आर्द्र, सूखा और कांँटेदार झाड़ी। आर्द्र सवाना में शुष्क मौसम आमतौर पर 3 से 5 महीने तक रहता है, शुष्क सवाना में 5 से 7 महीने और कांँटेदार सवाना में यह और भी लंबा होता है।
    • एक वैकल्पिक उपविभाजन को सवाना वुडलैंड के रूप में जाना जाता है, जिसमें पेड़ और झाड़ियाँ एक हल्की छतरी बनाती हैं। 
    • कई उप-विभाजनों के बावजूद सभी सवाना कई विशिष्ट संरचनात्मक और कार्यात्मक विशेषताओं को साझा करते हैं।
      • आमतौर पर उन्हें उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय वनस्पति प्रकारों के रूप में परिभाषित किया जाता है जिनमें निरंतर घास का आवरण होता है तथा जो कभी-कभी पेड़ों और झाड़ियों से युक्त होता है ये उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहांँ झाड़ियों में आग लगने की बारंबारता होती है और जहांँ मुख्य विकास पैटर्न बारी-बारी से मौसम से आपस में जुड़े होते हैं।
      • सवाना को भूमध्यरेखीय क्षेत्रों के वर्षावनों और उच्च उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के रेगिस्तानों के बीच भौगोलिक तथा पर्यावरणीय संक्रमण क्षेत्र माना जा सकता है।
  • वनस्पति:
    • सवाना में उगने वाली घास और पेड़ कम जल और गर्म तापमान के साथ जीवन के अनुकूल हो गए हैं।
    • उदाहरण के लिये, जब पानी प्रचुर मात्रा में होता है तो घास इस आर्द्र मौसम में तेज़ी से बढ़ती है।
    • कुछ पेड़ अपनी जड़ों में पानी जमा करते हैं और केवल आर्द्र मौसम में ही पत्तियों का सृजन करते हैं।
  • जीव-जंतु:
    • यह हाथी, जिराफ, जेब्रा, गैंडा आदि सहित कई बड़े भूमि स्तनधारियों का घर है। अन्य जानवरों में बबून, मगरमच्छ, मृग आदि शामिल हैं।
    • सवाना बायोम के कई जानवर शाकाहारी होते हैं जो कई क्षेत्रों से इस क्षेत्र में पलायन करते हैं।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


भारत में बाँधों की स्थिति

प्रिलिम्स के लिये:

गांधी सागर बाँध, चंबल नदी, बाँध सुरक्षा विधेयक (2019) के मुख्य प्रावधान

मेन्स के लिये:

भारत के पुराने बाँधों से संबंधित मुद्दे और इस संबंध में उठाए गए कदम

चर्चा में क्यों?

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, चंबल नदी (मध्य प्रदेश) पर निर्मित गांधी सागर बाँध की तत्काल मरम्मत कराए जाने की आवश्यकता है।

  • नियमित जाँच का अभाव, गैर-कार्यात्मक उपकरण और चोक नालियाँ वर्षों से बाँध को नुकसान पहुँचाने वाले प्रमुख कारक हैं।

गांधी सागर बाँध 

  • यह राष्ट्रीय महत्त्व के पाँच जलाशयों में से एक है।
  • गांधी सागर बाँध का निर्माण वर्ष 1960 में राजस्थान के कई ज़िलों को पेयजल उपलब्ध कराने और 115 मेगावाट बिजली पैदा करने हेतु किया गया था।
  • हाल के वर्षों में यह कई बार टूट चुका है, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ आ गई।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय
    • बड़े बाँध बनाने के मामले में भारत दुनिया में तीसरे नंबर पर है।
    • अब तक बनाए गए 5,200 से अधिक बड़े बाँधों में से लगभग 1,100 बड़े बाँध पहले ही 50 वर्ष की आयु तक पहुँच चुके हैं और कुछ तो 120 वर्ष से अधिक पुराने हैं।
      • ऐसे बाँधों की संख्या वर्ष 2050 तक बढ़कर 4,400 हो जाएगी।
    • इसका अर्थ है कि देश के बड़े बाँधों में से 80% के अप्रचलित होने की संभावना है, क्योंकि वे 50 वर्ष से 150 वर्ष पुराने हो जाएंगे।
    • सैकड़ों-हज़ारों मध्यम एवं छोटे बाँधों की स्थिति और भी खतरनाक है क्योंकि उनका जीवन बड़े बाँधों की तुलना में कम होता है।
    • उदाहरण: कृष्णा राजा सागर बाँध वर्ष 1931 में बनाया गया था और अब 90 वर्ष पुराना है। इसी तरह, मेट्टूर बाँध वर्ष 1934 में बनाया गया था और अब 87 वर्ष पुराना है। ये दोनों जलाशय पानी की कमी वाले कावेरी नदी बेसिन में स्थित हैं।
  • भारत के पुराने बाँधों से संबंधित मुद्दे:
    • वर्षा पैटर्न के अनुसार निर्मित: 
      • भारतीय बाँध बहुत पुराने हैं और पिछले दशकों के वर्षा पैटर्न के अनुसार बनाए गए हैं। हाल के वर्षों में बेमौसम वर्षा ने उन्हें असुरक्षित बना दिया है।
      • लेकिन सरकार बाँधों को वर्षा, बाढ़ चेतावनी जैसी सूचना प्रणाली से लैस कर रही है और सभी प्रकार की दुर्घटनाओं से बचने के लिये आपातकालीन कार्य योजना तैयार कर रही है।
    • भंडारण क्षमता में कमी:
      • जैसे-जैसे बाँधों की आयु बढ़ती है, जलाशयों में मिट्टी पानी का स्थान ले लेती है। इसलिये भंडारण क्षमता के संबंध में किसी भी प्रकार का कोई दावा प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है, जैसा कि 1900 और 1950 के दशकों में देखा गया था।
      • भारतीय बांँधों में जल भंडारण स्थान में अप्रत्याशित रूप से अधिक तेज़ी के साथ कमी आ रही है।
    • त्रुटिपूर्ण डिज़ाइन:
      • अध्ययन बताते हैं कि भारत के कई बाँधों का डिज़ाइन त्रुटिपूर्ण है।
      • भारतीय बाँधों के डिज़ाइन में अवसादन विज्ञान (Sedimentation Science) को सही ढंग से व्यवस्थित नहीं किया गया है अर्थात् डिज़ाइन में इसका अभाव देखने को मिलता है। जिस कारण से बाँध की जल भंडारण क्षमता में कमी आती है।
    • अवसाद/गाद की उच्च दर:
      • यह निलंबित अवसादों की वृद्धि एवं तलछटों पर महीन अवसादों का जमाव (अस्थायी या स्थायी)  जहाँ कि वे अवांछनीय हैं, दोनों को संदर्भित करता है।
  • परिणाम:
    • खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव: जलाशयों में जब मिट्टी जमा होने लगती है, तो उस स्थिति में जल की आपूर्ति ठप हो जाती है। ऐसे में समय बीतने के साथ-साथ फसल क्षेत्र को प्राप्त होने वाले जल की मात्रा में कमी आनी शुरू हो सकती है।
      • इसके परिणामस्वरूप सकल सिंचित क्षेत्र का आकार सिकुड़ जाता है और यह क्षेत्र वर्षा अथवा भू-जल पर निर्भर हो जाता है जिसके कारण भू-जल के अनियंत्रित दोहन को बढ़ावा मिलता है।
    • किसानों की आय पर प्रभाव: बाँधों की जल संग्रहण क्षमता में कमी के कारण सिंचाई की प्रक्रिया और फसल की पैदावार गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है, ऐसे में पर्याप्त आवश्यक हस्तक्षेप के अभाव में किसानों की आय में भी भारी कमी आएगी। 
      • इसके अलावा पानी फसल की उपज और ऋण, फसल बीमा और निवेश के लिये  एक महत्त्वपूर्ण  कारक है।
    • बाढ़ के मामलों में वृद्धि: बाँधों के जलाशयों में गाद जमा होने की उच्च दर इस तर्क को पुष्ट करती है कि देश में कई नदी बेसिनों के जलाशयों के लिये डिज़ाइन की गई बाढ़ नियंत्रण प्रणालियाँ पहले ही काफी हद तक नष्ट हो चुकी हैं, जिसके कारण बाँधों के अनुप्रवाह में बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि हुई है।  
  • बाँध सुरक्षा की आवश्यकता:
    • लोगों की जान बचाने के लिये:
      • पुराने बाँध आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये चिंता का कारण बन सकते हैं।
    • निवेश की सुरक्षा:
      • इस महत्त्वपूर्ण भौतिक बुनियादी ढाँचे में भारी सार्वजनिक निवेश की सुरक्षा के साथ-साथ बाँध परियोजनाओं और राष्ट्रीय जल सुरक्षा से प्राप्त लाभों की निरंतरता सुनिश्चित करने हेतु बाँधों की सुरक्षा भी महत्त्वपूर्ण है।
    • भारत में जल संकट का समाधान:
      • भारत की बढ़ती आबादी के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से जुड़े भारत के जल संकट के उभरते परिदृश्य में भी बाँधों की सुरक्षा महत्त्वपूर्ण है।
  • संबंधित पहलें:
    • बाँध सुरक्षा विधेयक, 2019: राज्यसभा ने हाल ही में बाँध सुरक्षा विधेयक, 2019 पारित किया है।
      • यह विधेयक बाँध की विफलता से संबंधित आपदा की रोकथाम हेतु निर्दिष्ट बाँध की निगरानी, ​​निरीक्षण, संचालन और रखरखाव का प्रावधान करता है और उनके सुरक्षित कामकाज को सुनिश्चित करने के लिये संस्थागत तंत्र को स्थापित करने का  भी प्रावधान करता है।.
    • बाँध पुनर्वास और सुधार परियोजना (डीआरआईपी चरण II): यह एक स्थायी तरीके से चयनित मौजूदा बाँधों और संबद्ध उपकरणों की सुरक्षा एवं प्रदर्शन में सुधार करने से संबंधित है।

आगे की राह 

  • बाँध सुरक्षा सुनिश्चित करने में सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू वास्तविक हितधारकों के विचारों को ध्यान में रखते हुए जवाबदेही और पारदर्शिता का अस्तित्त्व है।
  • परिचालन सुरक्षा के संदर्भ में यह तय किया जाता है कि एक बाँध को कैसे संचालित किया जाना चाहिये तथा जब एक बाँध प्रस्तावित किया जाता है तो उसे पर्यावरणीय परिवर्तनों जैसे कि गाद तथा वर्षा पैटर्न के आधार पर नियमित अंतराल पर अपग्रेड करने की आवश्यकता होती है क्योंकि बाँध में आने वाली बाढ़ की आवृत्ति और तीव्रता के साथ-साथ स्पिलवे क्षमता बदल सकती है।
    • नियम वक्र भी पब्लिक डोमेन में होना चाहिये ताकि लोग इसके सही कामकाज़ पर नजर रख सकें और इसकी अनुपस्थिति में सवाल उठा सकें।
  • इसके अलावा भारत में हर नदी के रास्ते में कई बाँध आते हैं, इसलिये संचालन के संदर्भ में बाँध की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु प्रत्येक अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम बाँध का संचयी मूल्यांकन होना चाहिये।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


एक्वामेशन

प्रिलिम्स के लिये:

एक्वामेशन, नोबेल शांति पुरस्कार, ग्रीनहाउस गैसें, डेसमंड टूटू जल दाह संस्कार, हरित दाह संस्कार, ज्वलनशील दाह संस्कार, रासायनिक दाह संस्कार।

मेन्स के लिये:

नोबल पुरस्कार, रंगभेद

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता एंग्लिकन आर्कबिशप और रंगभेद विरोधी प्रचारक डेसमंड टूटू का निधन हो गया। वह पर्यावरण की रक्षा तथा इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई करने के लिये बहुत भावुक थे।

  • पर्यावरण के अनुकूल उनकी इच्छा अनुसार उनके शरीर को एक्वामेशन से गुजरना पड़ा जो पारंपरिक श्मशान विधियों का एक हरित विकल्प था।
  • एक्वामेशन की प्रक्रिया में ऊर्जा का उपयोग होता है जो आग से पाँच गुना कम है। यह दाह संस्कार के दौरान उत्सर्जित होने वाली ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को भी लगभग 35% कम कर देता है

प्रमुख बिंदु

  • एक्वामेशन के बारे में:
    • यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मृतक के शरीर को कुछ घंटों के लिये पानी और एक मज़बूत क्षार के मिश्रण में एक दबाव वाले धातु के सिलेंडर में डुबोया जाता है और लगभग 150 डिग्री सेंटीग्रेड तक गर्म किया जाता है।
    • सरल जल प्रवाह, तापमान और क्षारीयता का संयोजन कार्बनिक पदार्थों के टूटने पर ज़ोर देता है।
    • यह प्रक्रिया हड्डी के टुकड़े और एक तटस्थ तरल छोड़ती है जिसे प्रवाह कहा जाता है।
    • बहिःस्राव निष्फल होता है और इसमें लवण, शर्करा, अमीनो अम्ल तथा पेप्टाइड होते हैं।
    • प्रक्रिया पूरी होने के बाद कोई ऊतक और डीएनए नहीं बचता है।
  • पृष्ठभूमि: इस प्रक्रिया को वर्ष 1888 में एक किसान अमोस हर्बर्ट हैनसन द्वारा विकसित और पेटेंट कराया गया था, जो जानवरों के शवों से उर्वरक बनाने का एक सरल तरीका विकसित करने की कोशिश कर रहा था।   
    • वर्ष 1993 में अल्बानी मेडिकल कॉलेज में पहली व्यावसायिक प्रणाली स्थापित की गई थी।
    • इसके बाद यह प्रक्रिया अस्पतालों और विश्वविद्यालयों द्वारा दान किये गए मृत शरीरों के साथ उपयोग में जारी रही।
    • इस प्रक्रिया को क्षारीय हाइड्रोलिसिस भी कहा जाता है और ‘क्रीमेशन एसोसिएशन ऑफ नार्थ अमेरिका’ (कैना) (एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन) द्वारा ‘फ्लेमलेस क्रीमेशन कहा जाता है।
    • इस प्रक्रिया को जल दाह संस्कार, हरित दाह संस्कार या रासायनिक दाह संस्कार के रूप में भी जाना जाता है।

Aquamation

डेसमंड टूटू

  • डेसमंड टूटू दक्षिण अफ्रीका के सबसे प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं में से एक हैं, उन्होंने रंगभेद को समाप्त करने के प्रयासों के लिये वर्ष 1984 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था।
    • उन्हें ब्लैक साउथ अफ्रीकियों के लिये आवाज़हीनों की आवाज (Voice Of The Voiceless For Black South Africans) के रूप में जाना जाता है।
  • जब नेल्सन मंडेला को देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति के रूप में चुना गया था तो उन्होंने सत्य और सुलह आयोग (Truth & Reconciliation Commission) के अध्यक्ष के रूप में टूटू को नियुक्त किया था।
    • सत्य और सुलह आयोग रंगभेद की समाप्ति के बाद वर्ष 1996 में दक्षिण अफ्रीका में एक अदालत की तरह पुनर्स्थापनात्मक न्याय संस्था थी।
  • अध्यक्ष के रूप में डेसमंड टूटू ने "नस्लीय विभाजन के बिना एक लोकतांत्रिक और न्यायपूर्ण समाज" के रूप में अपना उद्देश्य निर्धारित किया तथा निम्नलिखित बिंदुओं को न्यूनतम मांगों के रूप में सामने रखा:
    • सभी के लिये समान नागरिक अधिकार।
    • दक्षिण अफ्रीका के पासपोर्ट कानूनों का उन्मूलन।
    • शिक्षा की एक सामान्य/सार्वजनिक प्रणाली
    • दक्षिण अफ्रीका से तथाकथित "होमलैंड्स" की ओर ज़बरन निर्वासन की समाप्ति।

Desmond-Tutu

स्रोत: द हिंदू 


निजता का अधिकार

प्रिलिम्स के लिये:

के.एस. पुट्टस्वामी मामला, अनुच्छेद 21, निजता के अधिकार के विभिन्न आयाम।

मेन्स के लिये:

के.एस. पुट्टस्वामी मामला, निजता का अधिकार, अनुच्छेद 21, व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक 2019।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने कहा है कि उसी अदालत के एक अन्य न्यायाधीश द्वारा हाल ही में पारित एक आदेश जिसमें स्पा [मालिश और चिकित्सा केंद्र] के अंदर सीसीटीवी कैमरे लगाने को अनिवार्य किया गया है, सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के.एस पुट्टस्वामी मामला (2017)  के विपरीत प्रतीत होता है।

  • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह घोषणा की थी कि अनुच्छेद 21 में गारंटीकृत प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार में निजता का अधिकार भी शामिल है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय: 
    • अंतर्निहित मूल्य: निजता के इस अधिकार को मूल अधिकार के रूप में देखा जाता है:
      • निहित मूल्य (Inherent value): यह प्रत्येक व्यक्ति की मूल गरिमा के लिये महत्त्वपूर्ण है।
      • वाद्य मूल्य (Instrumental value): यह किसी व्यक्ति के हस्तक्षेप से मुक्त जीवन जीने की क्षमता को आगे बढ़ाता है।
    • निजता के अधिकार के रूप: अनुच्छेद 21 में गारंटी के रूप में निजता कई अलग-अलग रूप में शामिल हैं:
      • दैहिक स्वतंत्रता/शारीरिक स्वायत्तता का अधिकार
      • सूचनात्मक गोपनीयता का अधिकार
      • पसंद का अधिकार।
    • आराम करने का अधिकार/राईट टू रिलैक्स: यह संदेह कि ‘स्पा’ में अनैतिक गतिविधियाँ हो रही हैं, किसी व्यक्ति के आराम करने के अधिकार में दखल देने का पर्याप्त कारण नहीं हो सकता, क्योंकि यह आंतरिक रूप से उसके मौलिक अधिकार (निजता के अधिकार) का हिस्सा है। 
      • इस प्रकार, स्पा जैसे किसी परिसर के भीतर सीसीटीवी उपकरण की स्थापना निस्संदेह किसी व्यक्ति की दैहिक स्वतंत्रता के खिलाफ होगी।
      • ये अनुल्लंघनीय स्थान हैं जहाँ राज्य सरकार को नज़र रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती 
    • शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत: किसी भी न्यायिक उपाय के ज़रिये मौलिक अधिकारों की पहुँच को कम नहीं किया जा सकता है।
      • इस सिद्धांत के तहत यह माना गया है कि, यद्यपि कोई अधिकार पूर्ण नहीं हो सकता है इसलिये केवल विधायिका या कार्यपालिका द्वारा ही प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
      • इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय अकेले ही अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करके ऐसा कर सकता है।

निजता का अधिकार

  • परिचय:
    • आमतौर पर यह समझा जाता है कि गोपनीयता अकेला छोड़ दिये जाने के अधिकार  (Right to Be Left Alone)  का पर्याय है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 में के.एस. पुत्तास्वामी बनाम भारतीय संघ ऐतिहासिक निर्णय में गोपनीयता और उसके महत्त्व को वर्णित किया। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार,  निजता का अधिकार एक मौलिक और अविच्छेद्य अधिकार है और इसके तहत व्यक्ति से जुड़ी सभी सूचनाओं के साथ उसके द्वारा लिये गए निर्णय शामिल हैं।  
    • निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक भाग के रूप में तथा संविधान के भाग-III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के हिस्से के रूप में संरक्षित किया गया है।
  • प्रतिबंध (निर्णय में वर्णित):
    • इस अधिकार को केवल राज्य कार्रवाई के तहत तभी प्रतिबंधित किया जा सकता है, जब वे निम्नलिखित तीन  परीक्षणों को पास करते हों :
      • पहला, ऐसी राजकीय कार्रवाई के लिये एक विधायी जनादेश होना चाहिये;
      • दूसरा, इसे एक वैध राजकीय उद्देश्य का पालन करना चाहिये; 
      • तीसरा, यह यथोचित होनी चाहिये, अर्थात् ऐसी राजकीय कार्रवाई- प्रकृति और सीमा में समानुपाती होनी चाहिये,  एक लोकतांत्रिक समाज के लिये आवश्यक होनी चाहिये तथा किसी लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु उपलब्ध विकल्पों में से सबसे कम अंतर्वेधी होनी चाहिये।
  • निजता की सुरक्षा हेतु सरकार द्वारा उठाए गए कदम: निजता के महत्त्व को स्वीकार करते हुए सरकार ने व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक 2019 को संसद में पेश किया है।

स्रोत: द हिंदू


सूडान में संकट

प्रिलिम्स के लिये:

सूडान और उसके पड़ोसी देश।

मेन्स के लिये:

सूडान में संकट, इसके कारण और आगे का रास्ता, सूडान में उथल-पुथल का इतिहास।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सूडान के प्रधानमंत्री अब्दुल्ला हमदोक ने देश को राजनीतिक अनिश्चितता में डालते  हुए इस्तीफा दे दिया है।

  • श्री हमदोक जिन्हें अक्तूबर 2021 में सेना द्वारा बर्खास्त कर दिया गया था और कुछ सप्ताह बाद एक सौदे के हिस्से के रूप में बहाल किया गया था, ने देश में सेना विरोधी प्रदर्शन जारी रहने के कारण अपना पद छोड़ दिया है।
  • सूडानी लोकतंत्र समर्थक समूहों ने सेना के साथ श्री हमदोक के समझौते को खारिज़ कर दिया और जनरलों को एक स्वतंत्र नागरिक प्राधिकरण को सत्ता सौंपने की मांग की।

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प्रमुख बिंदु

  • अस्थिर सूडान:
    • तख्तापलट के बाद क्रूर सैन्य शासन के कारण सूडान में गतिरोधकी स्थिति है। इस संबंध में एक खराब रिकॉर्ड वाले महाद्वीप पर सूडान वर्ष 1956 में स्वतंत्रता के बाद से छह तख्तापलट और 10 असफल प्रयासों के साथ अपने स्वयं के वर्ग में है।
    • स्वतंत्रता के बाद से  केवल कभी-कभार विराम के साथ सूडान को एक अरब अभिजात वर्ग द्वारा शासित किया गया है, जो अपने लोगों की कीमत पर देश की संपत्ति को लूटने पर आमादा है। 
    •  सेना के माध्यम से संचालित यह शासन सही मायने में एक ‘क्लेप्टोक्रेसी’ यानी चोर-तंत्र है।
      • ‘क्लेप्टोक्रेसी’ का आशय एक ऐसी सरकार से है, जिसके भ्रष्ट नेता राजनीतिक शक्ति का उपयोग कर अपने राष्ट्र की संपत्ति का अधिग्रहण करते हैं, यह आमतौर पर व्यापक आबादी की कीमत पर सरकारी धन के गबन या दुरुपयोग के माध्यम से किया जाता है।
    • इसका परिणाम यह हुआ कि सूडान एक ऐसे देश के रूप में सामने आया, जो युद्धों और केंद्र एवं निरंकुश परिधियों के बीच संघर्ष से घिरा हुआ है। सेना तथा उसके सहयोगियों, विशेष रूप से रैपिड सपोर्ट फोर्स ने अपनी शक्ति का उपयोग रक्षा उद्योगों से परे अपने आर्थिक हितों के लिये किया है।
      • नागरिक शासन, पारदर्शिता और लोकतंत्र लाने के साथ-साथ, शासकों के वित्तीय हितों के लिये खतरा होगा।
    • सूडान के आम लोग दशकों से कुशासन के शिकार रहे हैं। 100% से अधिक की मुद्रास्फीति दर का सामना करती हुई लगभग एक-चौथाई आबादी मुश्किल से अपना पेट भर पाती है और लाखों लोग शरणार्थी शिविरों में रहते हैं।
    • इसके विपरीत अभिजात वर्ग की स्थिति काफी बेहतर है। इसलिये अभिजात वर्ग यथास्थिति बनाए रखने हेतु संघर्ष कर रहा है।
  • वर्तमान संकट:
    • अप्रैल 2019 में एक लोकप्रिय क्रांति द्वारा नरसंहार के लिये दोषी जनरल उमर अल-बशीर के पतन के बाद से मंथन तेज़ हो गया है।
    • इसके बाद,संप्रभुता परिषद, जो कि एक 11 सदस्यीय निकाय है, जिसमें सैन्य और नागरिक नेता शामिल थे, ने सैन्य नेतृत्व वाली ट्रांजीशन काउंसिल की जगह ली तथा हमदोक को प्रधानमंत्री नियुक्त किया। 
    • संप्रभुता परिषद के शासन के दौरान, सूडान ने विद्रोही समूहों के साथ एक शांति समझौता किया, महिला जननांग विकृति (Female Genital Mutilation) पर प्रतिबंध लगा दिया, इज़राइल के साथ शांति स्थापित की और आर्थिक सहायता हेतु अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों तक अपनी पहुंँच स्थापित की।
    • इस अवधि के दौरान अमेरिका ने आतंकवाद प्रायोजक राज्य की सूची से देश को हटा दिया। घरेलू सुधार और अंतर्राष्ट्रीय मान्यता ने सुझाव दिया कि सूडान पूर्ण लोकतंत्र में धीमी लेकिन स्थिर संक्रमण के दौर से गुज़र रहा था।
    • सेना द्वारा तुरंत पलटवार किया गया, जिसमें काफी लोग मारे गए। श्री हमदोक के नेतृत्व  में जनरल और टेक्नोक्रेट्स का एक गठबंधन, अगस्त 2019 से अक्तूबर 2021 तक शासित रहा है।
      • उस तथाकथित संक्रमणकालीन सरकार को चुनावों के लिये मार्ग प्रशस्त करना था। जो कि वर्तमान समय में पहले से कहीं अधिक मुश्किल लग रहा है। 
    • हालिया तख्तापलट (वर्ष 2021) के बाद से प्रदर्शनकारियों द्वारा एक लोकतांत्रिक सरकार के लिये विरोध किया जा रहा है।
  • रूस और चीन का दृष्टिकोण:
    • रूस की आपूर्ति:
      • एक अतिरिक्त जटिलता जनरलों के लिये रूस का समर्थन है। रूस के हितों में काम करने वाले भाड़े के संगठन वैगनर ने मिलिशिया और अन्य उपहारों के लिये प्रशिक्षण प्रदान किया है।
      • रूस ने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में सूडान को एक कवच के रूप में तैयार कर दिया है, जो पश्चिम के खिलाफ अपनी भूमिका निभाता है।
    • चीन का निवेश:
      • सूडान में चीन के व्यापक निवेश ने भी सेना को सुरक्षा प्रदान की है; चीन सुशासन पर स्थिरता का पक्षधर है।

आगे की राह

  • सेना अब मुश्किल स्थिति में है। यह देखते हुए कि नागरिक-सैन्य संबंध पहले से ही टूटने के बिंदु पर है।
    • संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि वर्ष 2022 में देश के 43 मिलियन लोगों में से कम से कम एक तिहाई को मानवीय सहायता की आवश्यकता होगी। सूडान चाहता है वह एक स्थिर, उत्तरदायी सरकार, जो देश की असंख्य समस्याओं का तत्काल समाधान कर सकती है।
    • अंततः, लोकतंत्र के सफल संक्रमण से जिसमें संरचनात्मक आर्थिक सुधार शामिल होंगे, बशीर-युग की संपत्ति की जवाबदेही और प्रतिधारण जैसे मुद्दों पर कुछ अरुचिकर समझौता करने की संभावना होगी।
  • सभी सूडानी पार्टियों के बीच "समावेशी, शांतिपूर्ण और स्थायी समाधान तक पहुँचने के लिये" एक सार्थक बातचीत होनी चाहिये।
  • लेकिन एक वास्तविक संक्रमण को सेना को देश के अंतिम अधिकार के रूप में कार्य करने से रोकना चाहिये, समय सारिणी को पुनर्व्यवस्थित करने और शासी अधिकारियों को हटाने में सक्षम होना चाहिये।

स्रोत- द हिंदू