भूगोल
बांध सुरक्षा विधेयक, 2019
- 24 Aug 2019
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संदर्भ
बांध एक ऐसा आधारभूत ढाँचा होता हैं जिसकी किसी राष्ट्र की आर्थिक, भौगोलिक, राजनीतिक और समाजिक क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसका निर्माण बहुद्देश्यीय उपयोग, जैसे- सिंचाई, बिजली उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण, जल आपूर्ति और औद्योगीकरण के लिये किया जाता है। बांधों के असुरक्षित होने से जान-माल, फसलों, आवासों, भवनों, नहरों और सड़कों इत्यादि को खतरा बना रहता है। इसलिये बांधों की सुरक्षा बड़ी चिंता का विषय है और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये कदम उठाना राष्ट्र की ज़िम्मेदारी है।
इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने 29 जुलाई, 2019 को लोकसभा में बांध सुरक्षा विधेयक, 2019 पेश किया। विधेयक देश भर में निर्दिष्ट बांधों की चौकसी, निरीक्षण, परिचालन और रखरखाव संबंधी प्रावधान करता है। विधेयक इन बांधों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये संस्थागत प्रणाली का भी प्रावधान करता है।
विधेयक के बारे में
- विधेयक किन बांधों पर लागू होता है:
- विधेयक देश के सभी निर्दिष्ट बांधों पर लागू होता है। इन बांधों में निम्नलिखित शामिल हैं:
(i) 15 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले।
(ii) 10 से 15 मीटर के बीच की ऊँचाई वाले केवल वही बांध जिनके डिज़ाइन और स्ट्रक्चर विधेयक में निर्दिष्ट विशेषताओं वाले हों।
- राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति:
- विधेयक राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति की स्थापना का प्रावधान करता है। समिति की अध्यक्षता केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष द्वारा की जाएगी। दूसरे सदस्यों को केंद्र सरकार द्वारा नामित किया जाएगा और उनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
(i) केंद्र सरकार के अधिकतम 10 प्रतिनिधि।
(ii) राज्य सरकार के अधिकतम सात प्रतिनिधि (रोटेशन द्वारा)। और
(iii) अधिकतम तीन बांध सुरक्षा विशेषज्ञ।
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- समिति के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
(i) बांध सुरक्षा मानदंडों से संबंधित नीतियाँ एवं रेगुलेशंस बनाना तथा बांधों को क्षतिग्रस्त होने से रोकना।
(ii) बड़े बांधों के टूटने के कारणों का विश्लेषण करना एवं बांध सुरक्षा प्रणालियों में बदलाव का सुझाव देना।
- राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण:
विधेयक राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (National Dam Safety Authority) का प्रावधान करता है। इस प्राधिकरण का प्रमुख एडिशनल सेक्रेटरी से नीचे के स्तर का अधिकारी नहीं होगा एवं इसे केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा। प्राधिकरण के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
(i) राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति द्वारा निर्मित नीतियों को लागू करना।
(ii) राज्य बांध सुरक्षा संगठनों (SDSOs) के बीच और SDSOsएवं उस राज्य के किसी बांध मालिक के बीच विवादों को सुलझाना, (iii) बांधों के निरीक्षण और जाँच के लिये रेगुलेशंस को निर्दिष्ट करना और (iv) बांधों के निर्माण, डिज़ाइन तथा उनमें परिवर्तन पर काम करने वाली एजेंसियों को एक्रेडेशन देना।
ज्ञातव्य है कि देश में कुल 5,344 बांधों में से 92 फीसदी बांधों का निर्माण एक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवाहित होने वाली नदियों पर किया गया है जिनमें से 293 बांध 100 साल से अधिक भी पुराने हैं।
- राज्य बांध सुरक्षा संगठन:
- विधेयक के अंतर्गत राज्य सरकारों द्वारा राज्य बांध सुरक्षा संगठनों (State Dam Safety Organisation- SDSOs) की स्थापना की जाएगी। राज्य में स्थित सभी विनिर्दिष्ट बांध उस राज्य के SDSO के क्षेत्राधिकार में आएंगे। हालाँकि कुछ मामलों में राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण SDSO के रूप में कार्य करेगा। इन मामलों में निम्नलिखित शामिल हैं:
(i) अगर बांध पर किसी एक राज्य का स्वामित्व है लेकिन वह दूसरे राज्य में स्थित है।
(ii) अनेक राज्यों में फैला हुआ है या
(iii) उस पर केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रम का स्वामित्व है।
- SDSOs के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
(i) बांधों की निरंतर चौकसी एवं निरीक्षण करना और उनके परिचालन एवं रखरखाव पर निगरानी रखना।
(ii) सभी बांधों का डेटाबेस रखना। और
(iii) बांध मालिकों को सुरक्षा संबंधी सुझाव देना।
- राज्य बांध सुरक्षा समिति:
विधेयक राज्य सरकारों द्वारा राज्य बांध सुरक्षा समिति के गठन का प्रावधान करता है। समिति के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं-
(i) एसडीएसओ के कार्यों की समीक्षा करना।
(ii) बांध की सुरक्षा जाँच के आदेश देना।
(iii) बांध सुरक्षा के उपायों पर सुझाव देना एवं उन उपायों के कार्यान्वयन की समीक्षा करना। और
(iv) अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम, दोनों तरह के बांधों के संभावित प्रभावों का आकलन करना। राज्य समिति में राज्य सरकार के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।
- निकायों के कार्यों में परिवर्तन:
विधेयक की अनुसूचियों में निम्नलिखित के कार्यों को स्पष्ट किया गया है-
(i) राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति।
(ii) राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण। और
(iii) राज्य बांध सुरक्षा समिति।
विधेयक विनिर्दिष्ट करता है कि केंद्र सरकार एक अधिसूचना के जरिए इन अनुसूचियों में संशोधन कर सकती है, अगर ऐसा जरूरी हो।
- बांध मालिकों की बाध्यताएँ:
विधेयक में बांध मालिकों से यह अपेक्षा की गई है कि वे प्रत्येक बांध के लिये एक सुरक्षा इकाई बनाएंगे। यह इकाई निम्नलिखित स्थितियों में बांधों का निरीक्षण करेगी-
(i) बारिश के मौसम से पहले और बाद में।
(ii) हर भूकंप, बाढ़ या दूसरी प्राकृतिक आपदा या संकट की आशंका के दौरान और उसके बाद। बांध मालिकों से एक आपातकालीन कार्ययोजना तैयार करने और प्रत्येक बांध के लिये निर्दिष्ट अंतराल पर नियमित जोखिम आकलन करने की अपेक्षा की जाएगी। उनसे यह अपेक्षा भी की जाएगी कि नियमित अंतराल पर वे एक विशेषज्ञ पैनल के जरिये प्रत्येक बांध का व्यापक सुरक्षा मूल्यांकन करेंगे। कुछ मामलों में यह मूल्यांकन अनिवार्य होगा, जैसे मूल संरचना में बड़ा बदलाव या कोई बड़ी हाइड्रोलॉजिकल या भूकंपीय घटना।
- अपराध और सज़ा:
विधेयक में दो प्रकार के अपराधों का उल्लेख है-
(i) किसी व्यक्ति को अपना कार्य करने से रोकना। और
(ii) विधेयक के अंतर्गत जारी निर्देशों के अनुपालन से इनकार करना।
अपराधियों को एक वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों की सज़ा भुगतनी पड़ सकती है। अगर अपराध के कारण किसी की मृत्यु हो जाती है तो कारावास की अवधि दो वर्ष हो सकती है। अपराध संज्ञेय तभी होंगे जब शिकायत सरकार द्वारा या विधेयक के अंतर्गत गठित किसी प्राधिकरण द्वारा की जाती है।
बांध सुरक्षा में आने वाली चुनौतियाँ
- भारत तीसरा ऐसा देश है जहाँ सबसे अधिक बांध हैं। देश में 25% बांध 50 से 100 वर्ष पहले बने हैं और 80% का निर्माण 25 वर्ष या उससे पहले हुआ है। स्वंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में कई बड़े बांध ध्वस्त हो चुके हैं। वर्ष 1979 में गुजरात में आई ऐसी ही आपदा में हजारों लोगों की जान चली गई।
- देश में बांध सुरक्षा संबंधी कई चुनौतियाँ हैं और कुछ मुख्य रूप से बांधों की आयु के कारण हैं। जैसे-जैसे बांध पुराने होते जाते हैं, उनके डिज़ाइन, जल विज्ञान और बाकी प्रणाली नवीनतम ज़रूरत के अनुरूप नहीं रहती है। इसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर गाद जमा होने के कारण बांधों की जल धारण क्षमता कम हो रही है।
- बांधों का विनियमन पूरी तरह से व्यक्तिगत बांध प्रबंधकों पर निर्भर है। बहाव या प्रवाह के संदर्भ में व्यवस्थित और वास्तविक समझ की कमी है।
- बांध की सुरक्षा कई कारकों पर निर्भर है जैसे- परिदृश्य, भूमि उपयोग के पैटर्न में परिवर्तन, वर्षा का पैटर्न, संरचनात्मक विशेषताएँ आदि। बांधों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सभी कारकों पर सरकार द्वारा ध्यान नहीं दिया जाता है।
विधेयक के पीछे सरकार की मंशा
- सरकार चाहती है कि ऐसी प्रक्रियाओं में एकरूपता होनी चाहिये जो किसी विशेष प्रकार के बड़े बांधों के लिये सभी बांध मालिकों द्वारा अपनाई जाती है।
- ‘जल’ राज्य का विषय है और विधेयक किसी भी तरह से राज्य के अधिकार को नहीं छीनता है। विधेयक दिशा-निर्देशों को सुनिश्चित करने के लिये एक तंत्र प्रदान करता है।
- अब तक विभिन्न ठेकेदारों, डिज़ाइनरों की पेशेवर दक्षता का कभी मूल्यांकन नहीं किया गया है, यही कारण है कि आज भारत में बांधों का डिज़ाइन एक समस्या है। विधेयक एक ऐसा तंत्र प्रदान करता है जहाँ बांधों के निर्माण और रखरखाव में वास्तव में भाग लेने वाले लोगों की सलाह का ध्यान रखा जाएगा। विधेयक में बांध सुरक्षा मानकों का भी प्रावधान है।
आगे की राह
- चूँकि बांध की सुरक्षा कई बाहरी कारकों पर निर्भर है, इसलिये पर्यावरणविदों और पर्यावरण के दृष्टिकोण को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
- राज्य के सिंचाई विभाग और केंद्रीय जल आयोग को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि बांधों का निरीक्षण संबंधित राज्य की सरकार करे।
- बांधों के मामले में विफलताओं से बचने के लिये एक निवारक तंत्र आवश्यक है क्योंकि यदि बांध निर्माण के उद्देश्यों में विफलता प्राप्त होती है तो कितनी बड़ी सज़ा क्यों न दी जाए वह जीवन के नुकसान की भरपाई नहीं कर सकती है।
- बदलती जलवायु के साथ पानी के मुद्दे पर सावधानीपूर्वक और सटीक रूप से विचार करना आवश्यक है। अत: बांधों की एकरूपता पर विचार करते समय, जलवायु और जलग्रहण क्षेत्रों जैसे स्थानीय कारकों को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: किसी राष्ट्र के लिये बांधों की उपस्थिति क्या महत्त्व रखती है? विवेचना कीजिये।