सूडान और सच्चे लोकतंत्र का संघर्ष
- 17 Aug, 2019 | कवीन्द्र कबीर

जून 2019 के पहले सप्ताह में सूडानी डॉक्टरों ने यह कहकर पूरी दुनिया में खलबली मचा दी कि सूडान के अर्द्धसैनिक बलों ने राजधानी खार्तूम (Khartoum) में विरोध प्रदर्शन के दौरान जमकर खूनी तांडव किया है। सैनिकों ने 70 से अधिक महिलाओं के साथ बलात्कार किया। सरकारी दमन के चलते लगभग 100 लोग मारे गए और 700 से अधिक लोग घायल हो गए। सूडान की सरकार ने मीडिया पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया, जिससे लोगों तक सही जानकारी नहीं पहुँच पा रही है। मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं ने बलात्कार और हत्या की खबरों को सही बताया लेकिन कितने व्यापक पैमाने पर हिंसा की गई, इसका कोई सटीक अनुमान नहीं है।
दशकों तक सेना ने सूडान की जनता पर क्रूरतापूर्वक अत्याचार किये और मई 2019 में दर्जनों प्रदर्शनकारियों की हत्या कर दी। इसके बाद अब सेना ने ‘लोकतंत्र’ और ’मानवाधिकार’ का वादा करते हुए जनता को घर लौटने और उनके शासन को स्वीकार करने की सलाह दी है। किंतु सूडान की जनता इस पैंतरेबाज़ी को अच्छी तरह समझती है और विरोध प्रदर्शन अब भी जारी है। पूरे सूडान में प्रदर्शनकारी ज़ोर दे रहे हैं कि आमूलचूल परिवर्तन का प्रयास तब तक जारी रहे जब तक कि पूरे शासन को उखाड़ न फेंका जाए। इन प्रदर्शनों को दबाने के लिये वहाँ की सैन्य सरकार क्रूरतापूर्वक हिंसक कार्रवाई कर रही है। अब तक सैकड़ों प्रदर्शनकारियों की हत्या की जा चुकी है और कई महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया है।
1950 के दशक में अफ्रीका के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित देश, सूडान को ब्रितानी साम्राज्यवाद से आज़ादी मिली। आज़ादी हासिल करने के बाद यह देश विकट परिस्थितियों का शिकार होकर धीरे-धीरे दमघोंटू गृहयुद्ध में फँसता चला गया। देश में लगातार सत्ता परिवर्तन होते रहे लेकिन उत्तरी और दक्षिणी सूडान के बीच गृहयुद्ध जारी रहा। इन्हीं गृहयुद्धों के बीच कर्नल उमर अल बशीर ने वर्ष 1989 में तख्तापलट कर सूडान में सत्ता की बागडोर संभाल ली। लेकिन 1989 के बाद भी सूडान कभी शांत नहीं हो पाया। एक तरफ जहाँ सत्ता वर्ग सूडान का बंदरबाँट करता रहा तो वहीं दूसरी तरफ बाहरी साम्राज्यवादी शक्तियाँ भी झूठे आरोप लगाकर तरह-तरह के हमले करती रहीं।
उमर अल बशीर ने सूडान पर तकरीबन 30 वर्षों तक शासन किया। इन 30 वर्षों के दौरान गृहयुद्ध जारी रहे और सबसे ज्यादा परेशानियाँ सूडान की जनता को उठानी पड़ी। आखिरकार वर्ष 2011 में सूडान के दो हिस्से- सूडान (Sudan) और दक्षिणी सूडान (South Sudan) कर दिये गए। प्राकृतिक संसाधनों का ज्यादातर हिस्सा दक्षिणी सूडान के पाले में आया और धीरे-धीरे उत्तरी सूडान की माली हालत खराब होने लगी। अर्थव्यवस्था की बिगड़ती हालत ने आसमान छूती मुद्रास्फीति के साथ-साथ मंदी को भी जन्म दिया। रोज़मर्रा की चीजों की बढ़ती कीमतों ने लोगों में आक्रोश पैदा कर दिया। सूडान के लोग विकास की अनदेखी, खराब आर्थिक नीतियों, स्वास्थ्य और शिक्षा की बदहाली, भ्रष्टाचार, राजनीतिक समस्याओं और बाधाओं को लेकर भी काफी नाराज़ थे।
दिसंबर 2018 में देश के एक हिस्से अत्बारा में बढ़ी कीमतों को लेकर प्रदर्शन शुरू हो गया जो धीरे-धीरे खार्तूम तक फैल गया। अल-बशीर ने जनता को शांत कराने हेतु आपातकाल की घोषणा करने के साथ-साथ पूरे मंत्रिमंडल को भंग करने जैसे सभी कदम उठाए लेकिन जनता को सिर्फ एक ही बात मंज़ूर थी- सत्ता परिवर्तन। वह लगातार सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करती रही। इसका फायदा उठाते हुए सेना ने उमर अल-बशीर की सरकार को बर्खास्त कर दिया और 11 अप्रैल, 2019 को सत्ता अपने हाथ में लेते हुए आपातकाल लगा दिया। सूडानी जनता के दबाव ने 30 वर्ष से गद्दी संभाल रहे निरंकुश जनरल उमर अल-बशीर (Omar al-Bashir) के शासन को उखाड़ फेंकने में मदद की, लेकिन सेना के निरंकुश अधिकारियों ने सत्ता को हथिया लिया। इस तरह आमूलचूल परिवर्तन करने का सूडानी जनता का सपना अधूरा रह गया।
इतनी हत्याओं के बाद भी सैन्य शासक वर्ग प्रदर्शनों को लेकर भयभीत है और राज्य शक्तिहीन। सैन्य परिषद का भी सेना पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं है। असली शक्ति अब सड़कों और कारखानों में है। यह उन श्रमिकों, मध्यम वर्ग और गरीब किसानों के हाथों में है जो फिलहाल शक्तिशाली साबित हुए हैं। सूडान की जनता के पास सत्ता वर्ग को पराजित करने की शक्ति तो है किंतु समस्या यह है कि वहाँ सत्ता के एक-एक मठ को चकनाचूर करने के लिये जनता का कोई लोकप्रिय संगठन मौजूद नहीं है, जो उन्हें मार्गदर्शन और नेतृत्व प्रदान कर सके और सैन्य शासन को पराजित कर एक सच्ची लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना कर सके।
सूडान की जनता ने यह संघर्ष विशिष्ट, तात्कालिक मांगों के लिये किया था लेकिन अब इसमें न्याय, अधिकार और लोकतंत्र जैसी ज़रूरी राजनीतिक मांगे भी शामिल हो गई हैं। अगर सैन्य सरकार इन मांगों को पूरा नहीं करती है (जैसा कि स्पष्ट रूप से दिख रहा है) तो जनता का विरोध जारी रहेगा। सूडान की जनता अपनी आज़ादी हासिल करके रहेगी। लाखों लोगों ने अपने जीवन को खतरे में डालकर महीनों तक इसलिये विरोध नहीं किया कि उन्हें केवल लुभावने वादों से संतोष करना पड़े। इस संघर्ष का उनके लिये कोई अर्थ नहीं होगा यदि वे अपने अधिकार पाने में सफल नहीं होते।
कवीन्द्र कबीर एक स्वतंत्र लेखक, ब्लॉगर और अनुवादक होने के साथ-साथ यायावर प्रकृति के है, इन्हें पढ़ने के साथ-साथ दुनिया घूमने का भी शौक है।