शासन व्यवस्था
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा-51
प्रिलिम्स के लिये:आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 मेन्स के लिये:नौकरशाही तथा राजनीतिक विवादों से उत्पन्न समस्याएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव को गृह मंत्रालय द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 (DM Act, 2005) की धारा 51 के तहत कारण बताओ नोटिस दिया गया।
प्रमुख बिंदु:
कारण बताओ नोटिस के संबंध में:
- बंगाल के कलाईकुंडा में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में चक्रवात यास पर समीक्षा बैठक में भाग लेने के लिये केंद्र के निर्देशों का पालन करने में विफल रहने पर यह नोटिस जारी किया गया था।
- यह अधिनियम DM Act, 2005 की धारा 51 (बी) का उल्लंघन है।
- हालाँकि डीओपीटी (कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग) भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारियों का कैडर-नियंत्रण प्राधिकरण है, लेकिन DM Act, 2005 के प्रावधानों के तहत कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, जो गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में है।
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 51
- अधिनियम के तहत केंद्र सरकार, राज्य सरकार या राष्ट्रीय कार्यकारी समिति या राज्य कार्यकारी समिति या ज़िला प्राधिकरण द्वारा या उसकी ओर से दिये गए किसी भी निर्देश का पालन करने से इनकार करने हेतु यह धारा “बाधा के लिये दंड” (Punishment for Obstruction) निर्धारित करती है।
- आदेशों का पालन करने से इनकार करने वाले को एक वर्ष तक की कैद या जुर्माना या दोनों की सज़ा हो सकती है। यदि इस इनकार की वजह से लोगों की मृत्यु हो जाती है तो उत्तरदायी व्यक्ति को दो वर्ष तक के कारावास की सजा दी जाएगी।
- अधिनियम की धारा-51 में दो महत्त्वपूर्ण प्रावधान हैं।
- इस अधिनियम के तहत व्यक्ति की ओर से कार्रवाई 'बिना उचित कारण के' और 'किसी अधिकारी द्वारा बिना उचित अनुमति या वैध बहाने के कर्तव्य का पालन करने में विफलता' होनी चाहिये।
DM अधिनियम के प्रावधानों के पूर्ववर्ती उपयोग:
- अप्रैल 2020 में गृह मंत्रालय ने सार्वजनिक रूप से थूकना दंडनीय अपराध बना दिया। DM अधिनियम के तहत मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देश जो राज्यों के लिये बाध्यकारी हैं, ने भी “सार्वजनिक स्थानों पर फेस मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया है।”
- मार्च 2020 में जब देशव्यापी तालाबंदी की अचानक घोषणा के कारण दिल्ली के आनंद विहार रेलवे स्टेशन पर हज़ारों प्रवासी एकत्र हुए तो दिल्ली सरकार के दो अधिकारियों को केंद्र द्वारा DM अधिनियम के तहत ड्यूटी में लापरवाही के लिये कारण बताओ नोटिस दिया गया।
DM अधिनियम:
- आपदाओं के कुशल प्रबंधन और इससे जुड़े अन्य मामलों के लिये 2005 में भारत सरकार द्वारा DM अधिनियम पारित किया गया था। हालाँकि यह जनवरी 2006 में लागू हुआ।
- वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र देश में पहली बार इसे लागू किया गया था।
- केंद्र ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के माध्यम से महामारी के प्रबंधन को सुव्यवस्थित करने के लिये अधिनियम के प्रावधानों को लागू किया, जिला मजिस्ट्रेटों को निर्णय लेने और ऑक्सीजन की आपूर्ति तथा वाहनों की आवाजाही पर अन्य निर्णयों को केंद्रीकृत करने का अधिकार दिया गया।
DM अधिनियम 2005 की मुख्य विशेषताएँ:
- नोडल एजेंसी:
- यह अधिनियम समग्र राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के संचालन के लिये गृह मंत्रालय को नोडल मंत्रालय के रूप में नामित करता है।
- संस्थागत संरचना: यह राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर संस्थानों की एक व्यवस्थित संरचना स्थापित करती है।
- वित्त:
- इसमें वित्तीय तंत्र के प्रावधान शामिल हैं, जैसे कि आपातकालीन प्रतिक्रिया के लिये धन की व्यवस्था, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष तथा राज्य और ज़िला स्तर पर इस तरह के फंड।
- नागरिक और आपराधिक दायित्त्व:
- अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के परिणामस्वरूप विभिन्न नागरिक और आपराधिक देयताओं के लिये अधिनियम कई धाराओं का प्रावधान करता है।
स्रोत- द हिंदू
सामाजिक न्याय
चीन ने दो बच्चों की नीति में ढील दी : भारत के लिये सीख
प्रिलिम्स के लियेराष्ट्रीय परिवार नियोजन क्षतिपूर्ति योजना, मिशन परिवार विकास, प्रजनन दर, भारत की जनसंख्या वृद्धि मेन्स के लियेचीन की जनसंख्या नीतियाँ, जनसंख्या गिरावट की चिंताएँ, भारत के लिये सीख, महिला सशक्तीकरण, जनसंख्या नियंत्रण संबंधी भारतीय उपाय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन ने जनसंख्या नियंत्रण हेतु स्थापित दो-बच्चों की नीति में ढील देते हुए यह घोषणा की है कि अब से प्रत्येक विवाहित जोड़े को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति प्राप्त होगी।
- इसके अतिरिक्त इस घोषणा में कहा गया कि वह प्रत्येक वर्ष सेवानिवृत्ति की आयु में कुछ महीने की वृद्धि करेगा। विगत चार दशकों से चीन में सेवानिवृत्ति की आयु पुरुषों के लिये 60 वर्ष और महिलाओं के लिये 55 वर्ष रही है।
प्रमुख बिंदु
चीन की जनसंख्या नीतियाँ:
- वन चाइल्ड पॉलिसी:
- चीन द्वारा ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ की शुरुआत वर्ष 1980 में की गई थी, उस समय चीन की जनसँख्या लगभग एक अरब के करीब थी और चीनी-सरकार को इस बात की चिंता थी कि देश की बढ़ती आबादी, आर्थिक प्रगति को बाधित करेगी।
- चीनी प्राधिकारियों द्वारा लंबे समय तक इस नीति को एक सफलता के रूप में बताया जाता रहा और दावा किया गया कि इस नीति ने लगभग 40 करोड़ लोगों को पैदा होने से रोककर देश के समक्ष आने वाली भोजन और पानी की कमी संबंधी गंभीर समस्याओं को टालने में मदद की है।
- हालाँकि यह नीति देश में असंतोष का एक कारण भी थी क्योंकि राज्य द्वारा जबरन गर्भपात और नसबंदी जैसी क्रूर रणनीति का इस्तेमाल किया गया।
- इसकी आलोचना भी की गई और यह मानवाधिकारों के उल्लंघन एवं गरीबों के साथ अन्याय करने के लिये विवादास्पद रही।
- चीन द्वारा ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ की शुरुआत वर्ष 1980 में की गई थी, उस समय चीन की जनसँख्या लगभग एक अरब के करीब थी और चीनी-सरकार को इस बात की चिंता थी कि देश की बढ़ती आबादी, आर्थिक प्रगति को बाधित करेगी।
- टू चाइल्ड पॉलिसी:
- वर्ष 2016 में अपनी जनसंख्या वृद्धि दर में तीव्र गिरावट को देखते हुए वन चाइल्ड पॉलिसी को परिवर्तित करते हुए चीनी सरकार ने अंततः प्रत्येक विवाहित जोड़े को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दी।
- थ्री चाइल्ड पॉलिसी:
- चीनी जनगणना, 2020 के आँकड़ों के बाद यह घोषणा की गई थी कि वर्ष 2016 में प्रदान की गई छूट के बावजूद देश की जनसंख्या वृद्धि दर तेज़ी से गिर रही है।
- देश की प्रजनन दर गिरकर 1.3 हो गई है, जो कि 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से काफी नीचे है। प्रतिस्थापित स्तर इसलिये महत्त्वपूर्ण है कि एक पीढ़ी के परिवर्तन के लिये पर्याप्त बच्चों का होना आवश्यक है।
- संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि वर्ष 2030 के बाद चीन की जनसंख्या में गिरावट आने की उम्मीद है, लेकिन कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह गिरावट अगले एक या दो वर्षों में ही परिलक्षित हो सकता है।
जनसंख्या गिरावट की चिंताएँ:
- श्रम-बल में कमी:
- जब किसी देश की युवा आबादी में गिरावट दिखाई देती है, तो यह श्रम-बल की कमी को उत्पन्न करता है, जिसका अर्थव्यवस्था पर एक बड़ा हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
- सामाजिक खर्च में वृद्धि :
- अधिक वृद्ध लोगों से आशय यह भी है कि स्वास्थ्य देखभाल और पेंशन की मांग में वृद्धि हो सकती है जिससे देश की सामाजिक खर्च प्रणाली पर और अत्यधिक बोझ पड़ सकता है क्योंकि इसमें कम-से-कम लोग काम कर रहे होते हैं और उनका’ कम योगदान होता है।
- विकासशील राष्ट्रों के लिये चिंतनीय :
- हालाँकि चीन के लिये सबसे अहम समस्या यह है कि इस प्रवृत्ति के अन्य विकसित देशों के विपरीत यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद अभी भी एक मध्यम-आय वाला समाज है।
- जापान और जर्मनी जैसे विकसित देश, जो समान रूप से जनसांख्यिकीय चुनौतियों का सामना करते हैं तथा कारखानों, प्रौद्योगिकी और विदेशी संपत्तियों के निवेश पर निर्भर हो सकते हैं।
- हालाँकि चीन अभी भी श्रम-प्रधान विनिर्माण और खेती पर निर्भर है।
- इस प्रकार से जनसांख्यिकीय लाभांश में गिरावट होने से यह चीन और भारत जैसे अन्य विकासशील देशों को समृद्ध दुनिया की तुलना में अधिक नुकसान पहुँचा सकती है।
भारत के लिये सीख:
- जटिल उपायों से बचें :
- जटिल या कठोर जनसंख्या नियंत्रण उपायों ने चीन को एक ऐसे मानवीय संकट में डाल दिया जो अपरिहार्य था। यदि दो-बच्चे की सीमा जैसे कठोर या जबरदस्ती के उपाय लागू किये जाते हैं, तो भारत की स्थिति और भी खराब हो सकती है।
- महिला सशक्तीकरण :
- प्रजनन दर को कम करने के प्रमाणित तरीकों द्वारा महिलाओं को उनकी प्रजनन क्षमता पर नियंत्रण प्रदान करना और शिक्षा, आर्थिक अवसरों एवं स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच में वृद्धि के माध्यम से उनका अधिक सशक्तीकरण सुनिश्चित करना है।
- वास्तविकता यह है कि चीन की प्रजनन क्षमता में कमी केवल आंशिक रूप से जबरदस्ती या जटिल नीतियों से तथा बड़े पैमाने पर किये गए प्रयास से है। बड़े पैमाने पर निवेश से आशय महिलाओं के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य और नौकरी के अवसरों में देश द्वारा किये गए निरंतर निवेश से है।
- प्रजनन दर को कम करने के प्रमाणित तरीकों द्वारा महिलाओं को उनकी प्रजनन क्षमता पर नियंत्रण प्रदान करना और शिक्षा, आर्थिक अवसरों एवं स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच में वृद्धि के माध्यम से उनका अधिक सशक्तीकरण सुनिश्चित करना है।
- जनसंख्या स्थिरता की आवश्यकता:
- भारत ने परिवार नियोजन उपायों को व्यवस्थित ढंग से पूर्ण किया है और अब यह 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता पर है, जो वांछनीय है।
- इसे जनसंख्या स्थिरीकरण को बनाए रखने की आवश्यकता है क्योंकि सिक्किम, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, केरल और कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों में कुल प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर से काफी नीचे है, जिसका अर्थ है कि भारत 30-40 वर्षों में यह अनुभव कर सकता है जो चीन अभी अनुभव कर रहा है।
भारत के मामले में :
भारत की जनसंख्या वृद्धि :
- मार्च 2021 तक भारत की जनसंख्या 1.36 बिलियन से अधिक होने का अनुमान है, जो पिछले दशक में अनुमानित 12.4 % से अधिक की वृद्धि को दर्शाता है।
- यह 2001 और 2011 के बीच 17.7% की वृद्धि दर से कम है।
- हालाँकि वर्ष 2019 की संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुमान के मुताबिक, भारत वर्ष 2027 तक चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा।
- भारत में 2019 और 2050 के बीच लगभग 273 मिलियन लोगों के और जुड़ने की अनुमान है ।
जनसंख्या नियंत्रण संबंधी भारतीय उपाय :
- प्रधानमंत्री की अपील: वर्ष 2019 में स्वतंत्रता दिवस भाषण के दौरान प्रधानमंत्री ने देश से अपील की कि जनसंख्या नियंत्रण देशभक्ति का एक रूप है।
- मिशन परिवार विकास: वर्ष 2017 में सरकार ने मिशन परिवार विकास शुरू किया। इसका उद्देश्य 146 उच्च प्रजनन क्षमता वाले ज़िलों में गर्भ निरोधकों और परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुँच बढ़ाना ।
- नसबंदी करवाने वालों के लिये मुआवज़ा योजना: इस योजना के अंतर्गत स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014 से नसबंदी करवाने के लिये लाभार्थी और सेवा प्रदाता (और टीम) को श्रम के नुकसान के लिये मुआवज़ा प्रदान करना है।
- राष्ट्रीय परिवार नियोजन क्षतिपूर्ति योजना (NFPIS) : यह योजना वर्ष 2005 में शुरू की गई थी। इस योजना के अंतर्गत ग्राहकों का बंध्याकरण या नसबंदी करवाने के बाद मृत्यु, जटिलताओं तथा विफलता की संभावित घटनाओं हेतु बीमा किया जाता है।
स्रोत : द हिंदू
शासन व्यवस्था
मॉडल टेनेंसी एक्ट
प्रिलिम्स के लियेमॉडल टेनेंसी एक्ट मेन्स के लियेसभी के लिये आवास की उपलब्धता सुनिश्चित करने में मॉडल टेनेंसी एक्ट का योगदान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने किराये की संपत्तियों पर कानून बनाने या कानूनों में संशोधन करने के लिये राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को भेजे जाने वाले मॉडल टेनेंसी एक्ट (Model Tenancy Act) को मंज़ूरी दे दी।
- यह मसौदा अधिनियम वर्ष 2019 में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs) द्वारा प्रकाशित किया गया था।
प्रमुख बिंदु
प्रमुख प्रावधान:
- लिखित समझौता अनिवार्य है:
- इसके लिये संपत्ति के मालिक और किरायेदार के बीच लिखित समझौता होना अनिवार्य है।
- स्वतंत्र प्राधिकरण और रेंट कोर्ट की स्थापना:
- यह अधिनियम किरायेदारी समझौतों के पंजीकरण के लिये हर राज्य और केंद्रशासित प्रदेश में एक स्वतंत्र प्राधिकरण स्थापित करता है और यहाँ तक कि किरायेदारी संबंधी विवादों को सुलझाने हेतु एक अलग अदालत भी स्थापित करता है।
- सिक्यूरिटी डिपॉज़िट के लिये अधिकतम सीमा:
- इस अधिनियम में किरायेदार की एडवांस सिक्यूरिटी डिपॉजिट (Advance Security Deposit) को आवासीय उद्देश्यों के लिये अधिकतम दो महीने के किराये और गैर-आवासीय उद्देश्यों हेतु अधिकतम छह महीने तक सीमित किया गया है।
- मकान मालिक और किरायेदार दोनों के अधिकारों तथा दायित्वों का वर्णन करता है:
- मकान मालिक संरचनात्मक मरम्मत (किरायेदार की वजह से हुई क्षति को नहीं) जैसे- दीवारों की सफेदी, दरवाज़ों और खिड़कियों की पेंटिंग आदि जैसी गतिविधियों के लिये ज़िम्मेदार होगा।
- किरायेदार नाली की सफाई, स्विच और सॉकेट की मरम्मत, खिड़कियों में काँच के पैनल को बदलने, दरवाज़ों और बगीचों तथा खुले स्थानों के रखरखाव आदि के लिये ज़िम्मेदार होगा।
- मकान मालिक द्वारा 24 घंटे पूर्व सूचना:
- एक मकान मालिक को मरम्मत या प्रतिस्थापन करने के लिये किराये के परिसर में प्रवेश करने से पहले 24 घंटे पूर्व सूचना देनी होगी।
- परिसर खाली करने के लिये तंत्र:
- यदि किसी मकान मालिक ने रेंट एग्रीमेंट में बताई गई सभी शर्तों को पूरा किया है जैसे- नोटिस देना आदि और किरायेदार किराये की अवधि या समाप्ति पर परिसर को खाली करने में विफल रहता है, तो मकान मालिक मासिक किराये को दोगुना करने का हकदार है।
कवरेज:
- यह अधिनियम आवासीय, व्यावसायिक या शैक्षिक उपयोग के लिये किराये पर दिये गए परिसर पर लागू होगा, लेकिन औद्योगिक उपयोग हेतु किराये पर दिये गए परिसर पर लागू नहीं होगा।
- इसमें होटल, लॉजिंग हाउस, सराय आदि शामिल नहीं होंगे।
- इसे भविष्यलक्षी प्रभाव से लागू किया जाएगा जिससे मौजूदा किराये की दर प्रभावित नहीं होगी।
आवश्यकता:
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में लगभग 1.1 करोड़ घर खाली पड़े थे और इन घरों को किराये पर उपलब्ध कराकर वर्ष 2022 तक 'सभी के लिये आवास' के विज़न को पूरा किया जाएगा।
महत्त्व:
- इस अधिनियम के अंतर्गत स्थापित प्राधिकरण विवादों और अन्य संबंधित मामलों को सुलझाने हेतु एक त्वरित तंत्र प्रदान करेगा।
- यह अधिनियम पूरे देश में किराये के आवास के संबंध में कानूनी ढाँचे को कायापलट करने में मदद करेगा।
- यह सभी आय समूहों के लिये पर्याप्त किराये के आवास उपलब्ध कराने में सहायता करेगा जिससे बेघरों की समस्या का समाधान होगा।
- यह किराये के आवास से संबंधित औपचारिक बाज़ार को संस्थागत करने में मदद करेगा।
- इससे आवास की भारी कमी को दूर करने के लिये एक व्यवसाय मॉडल के रूप में किराये के आवास में निजी भागीदारी को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
चुनौतियाँ:
- यह अधिनियम राज्यों के लिये बाध्यकारी नहीं है क्योंकि भूमि और शहरी विकास राज्य के विषय हैं।
- राज्य सरकारें रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम की तरह ही इस अधिनियम को भी कमज़ोर करके इसके दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करने का विकल्प चुन सकती हैं।
स्रोत: पी.आई.बी.
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
H10N3 बर्ड फ्लू का पहला मानव मामला
प्रीलिम्स के लियेH10N3, बर्ड फ्लू, इंफ्लूएंज़ा, इंफ्लूएंज़ा वायरस के प्रकार आदि मेन्स के लियेबर्ड फ्लू संक्रमण, इसकी रोकथाम एवं नियंत्रण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन ने जिआंगसु प्रांत में बर्ड फ्लू के H10N3 स्ट्रेन के साथ मानव संक्रमण का पहला मामला दर्ज किया है।
प्रमुख बिंदु
- H10N3 इंफ्लूएंज़ा ए वायरस का एक उप-प्रकार है जिसे आमतौर पर बर्ड फ्लू वायरस के रूप में जाना जाता है।
- H10N3 मुर्गियों में वायरस का एक कम रोगजनक या अपेक्षाकृत कम गंभीर कारक है और इसके बड़े पैमाने पर फैलने का जोखिम बहुत कम है।
- जानवरों में इस फ्लू का संक्रमण कोविड-19 के समान श्वसन कणों से हो सकता है।
- यह स्ट्रेन सामान्य वायरस नहीं है, पिछले 40 वर्षों (2018 तक) में वायरस के लगभग 160 आइसोलेट्स की सूचना मिली है, वह भी ज़्यादातर एशिया और उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में जंगली पक्षियों या जलपक्षी में।
- अभी तक मुर्गियों में किसी भी स्ट्रेन का पता नहीं चला है।
- चीन में एवियन इंफ्लूएंज़ा के कई अलग-अलग उपभेद हैं और कुछ छिटपुट रूप से उन लोगों को संक्रमित करते हैं जो आमतौर पर मुर्गी पालन करते हैं।
- हालाँकि वर्ष 2016-2017 के दौरान H7N9 स्ट्रेन से लगभग 300 लोगों की मौत होने के बाद से बर्ड फ्लू के कारण मानव संक्रमण के मामलों की संख्या ज़्यादा नहीं है।
बर्ड फ्लू
बर्ड फ्लू के बारे में:
- बर्ड फ्लू जिसे एवियन इन्फ्लूएंजा (Avian Influenza- AI) के रूप में भी जाना जाता है, एक अत्यधिक संक्रामक विषाणु/वायरस जनित बीमारी है जो भोजन के रूप में उपयोग होने वाले कई प्रकार की पक्षी प्रजातियों (मुर्गियों, टर्की, बटेर, गिनी मुर्गी आदि) के साथ-साथ पालतू और जंगली पक्षियों को भी प्रभावित करती है।
- मनुष्यों के साथ-साथ कभी-कभी स्तनधारी भी एवियन इंफ्लूएंज़ा के संपर्क में आ जाते हैं।
इंफ्लूएंज़ा वायरस के प्रकार:
- इंफ्लूएंज़ा वायरस को तीन प्रकार A, B और C में बाँटा गया है।
- केवल A प्रकार का इंफ्लूएंज़ा वायरस ही जानवरों को संक्रमित करता है जो कि एक जूनोटिक वायरस है अर्थात् इसमें जानवरों और मनुष्यों दोनों को संक्रमित करने की क्षमता होती है।
- एवियन इंफ्लूएंज़ा वायरस के उप-प्रकारों में A(H5N1), A(H7N9), A(H9N2) और A(H10N3) शामिल हैं।
- टाइप B और C ज़्यादातर मनुष्यों को संक्रमित करते हैं तथा ये केवल हल्के संक्रामक रोगों के कारक हैं।
वर्गीकरण:
- इंफ्लूएंज़ा वायरस को दो सतह प्रोटीन, हेमाग्लगुटिनिन (HA) और न्यूरामिनिडेस (NA) के आधार पर उप-प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है।
- उदाहरण के लिये एक वायरस जिसमें HA7 प्रोटीन और NA9 प्रोटीन होता है, उसे सबटाइप H7N9 के रूप में नामित किया जाता है।
- अत्यधिक रोगजनक एवियन इंफ्लूएंज़ा (Highly Pathogenic Avian Influenza- HPAI) ए (H5N1) वायरस मुख्य रूप से पक्षियों में पाया जाता है जो उनके लिये अत्यधिक संक्रामक होता है।
- HPAI एशियन H5N1 विशेष रूप से मुर्गी पालन उद्योग हेतु एक घातक वायरस है।
प्रभाव:
- एवियन इंफ्लूएंज़ा के प्रकोप से देश में विशेष रूप से मुर्गी पालन उद्योग में विनाशकारी परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।
- इसकी वजह से किसानों को मुर्गी पालन उद्योग में मुर्गियों की उच्च मृत्यु दर (लगभग 50%) का सामना करना पड़ सकता है।
निवारण:
- बीमारी या संक्रमण के प्रकोप से बचने हेतु उच्च स्तर के जैव सुरक्षा उपाय एवं साफ-सफाई का ध्यान रखना आवश्यक है।
रोग का उन्मूलन:
- जानवरों में संक्रमण का पता चलने पर रोग के नियंत्रण तथा उन्मूलन हेतु संक्रमित जानवर एवं उसके संपर्क में आए जानवरों को पकड़कर अलग रखने से स्थिति को शीघ्रता से नियंत्रित किया जा सकता है।
भारत की स्थिति:
- दिसंबर 2020 से जनवरी 2021 के बीच भारत के विभिन्न राज्यों में बर्ड फ्लू के ताज़ा मामले सामने आए जिससे पूरे देश में अफरातफरी मच गई।
- वर्ष 2019 में भारत को एवियन इंफ्लूएंज़ा (H5N1) वायरस के संक्रमण से मुक्त घोषित किया गया था, इस संबंध में विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (World Organization for Animal Health) को भी अधिसूचित किया गया था।
- OIE एक अंतर-सरकारी संगठन है जो विश्व में पशु स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार लाने हेतु उत्तरदायी है। इस संगठन का मुख्यालय पेरिस (फ्राँस) में स्थित है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
मास मीडिया सहयोग पर SCO समझौते
प्रिलिम्स के लिये:शंघाई सहयोग संगठन की भूमिका, गठन एवं सदस्य देश, अधिकारिक भाषा, पर्यवेक्षक देश मेन्स के लिये:SCO परिषद के सदस्य देशों के प्रमुखों का 20वाँ सम्मेलन, SCO का मास मीडिया के क्षेत्र में सहयोग, SCO ऑनलाइन अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी, भारत के लिये SCO का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय सरकार ने शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सभी सदस्य देशों के बीच ''मास मीडिया के क्षेत्र में सहयोग'' के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर और अनुमोदन को मंज़ूरी दे दी है।
- जून 2019 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे। यह समझौता सदस्य देशों को मास मीडिया के क्षेत्र में सर्वोत्तम कार्य प्रणालियों और नवीन नवाचारों को साझा करने का अवसर प्रदान करेगा।
प्रमुख बिंदु
सहयोग के मुख्य क्षेत्र :
- अपने राज्यों के लोगों के जीवन के बारे में अधिक ज्ञान प्राप्त करने के लिये मास मीडिया के माध्यम से सूचनाओं के व्यापक वितरण हेतु एक अनुकूल प्रणाली का निर्माण।
- अपने राज्यों के मास मीडिया के संपादकीय कार्यालयों के साथ-साथ मास मीडिया के क्षेत्र में काम करने वाले संबंधित मंत्रालयों, एजेंसियों और संगठनों के बीच सहयोग बढ़ाना ।
- राज्यों के पत्रकारों के पेशेवर संघों के बीच समान और पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग को बढ़ावा देना ।
- टेलीविज़न और रेडियो कार्यक्रमों के प्रसारण में सहायता करना और राज्य के सीमा क्षेत्र में यह कानूनी रूप से वितरित किये गए।
- मास मीडिया के क्षेत्र में अनुभव और विशेषज्ञता के आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करना, मीडिया पेशेवरों को प्रशिक्षण देने में पारस्परिक सहायता प्रदान करना और इस क्षेत्र में कार्यरत शैक्षिक एवं वैज्ञानिक-अनुसंधान संस्थानों और संगठनों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO):
- परिचय :
- SCO एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है।
- यह एक यूरेशियन राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है, जिसका उद्देश्य संबंधित क्षेत्र में शांति, सुरक्षा व स्थिरता बनाए रखना है।
- गठन:
- इसका गठन वर्ष 2001 में किया गया था ।
- SCO चार्टर पर वर्ष 2002 में हस्ताक्षर किये गए थे और यह वर्ष 2003 में लागू हआ।
- अधिकारिक भाषा या राजभाषा:
- रूसी और चीनी SCO की आधिकारिक भाषाएँ हैं।
- सदस्य:
- वर्तमान में विश्व के 8 देश (कज़ाखस्तान, चीन, किर्गिज़स्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान) SCO के सदस्य हैं।
- SCO के दो स्थायी निकाय हैं:
- SCO सचिवालय, यह चीन की राजधानी बीजिंग में स्थित है।
- क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना (Regional Anti-Terrorist Structure- RATS), इसकी कार्यकारी समिति का कार्यालय ताशकंद (उज़्बेकिस्तान) में स्थित है।
- SCO की अध्यक्षता, सदस्य राज्यों द्वारा एक वर्ष के लिये चक्रीय (Rotation ) प्रक्रिया द्वारा की जाती है।
- ताजिकिस्तान गणराज्य ने 2021-22 के लिये SCO की अध्यक्षता ग्रहण की है।
- SCO का 20वाँ शिखर सम्मेलन वर्ष 2020 में हुआ था।
- हाल ही में भारत के उपराष्ट्रपति ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से साझी बौद्ध विरासत पर पहली SCO ऑनलाइन अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी की शुरुआत की है।
स्रोत : द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
शुक्र ग्रह हेतु नए मिशन: NASA
प्रिलिम्स के लिये:शुक्र ग्रह, नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन मेन्स के लिये:शुक्र ग्रह का अध्ययन एवं उसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’ (NASA) ने शुक्र ग्रह के लिये दो नए रोबोटिक मिशनों की घोषणा की।
- इससे पहले वैज्ञानिकों ने ग्रह से रेडियो तरंगों के माध्यम से शुक्र के बारे में नया डेटा प्राप्त किया।
प्रमुख बिंदु
लक्ष्य:
- इन दो संयुक्त मिशनों का उद्देश्य यह समझना है कि कैसे शुक्र सतह पर सीसो को पिघलाने में सक्षम ‘इन्फर्नो’ जैसी दुनिया का निर्माण हुआ।
दाविंसी प्लस (DaVinci Plus):
- यह दो मिशनों में से पहला होगा, यह इस ग्रह के घने बादल वाले शुक्र ग्रह के वातावरण का विश्लेषण करेगा कि क्या ‘इन्फर्नो’ में कभी महासागर था और क्या यह संभवतः रहने योग्य था। यह गैसों को मापने के लिये एक छोटा सा यान वायुमंडल में उतारेगा।
वेरिटस(Veritas):
- यह चट्टानी ग्रह की सतह का मानचित्रण करके भूगर्भिक इतिहास की खोज करने वाला दूसरा मिशन होगा।
महत्त्व:
- ये नए मिशन ग्रह के वायुमंडल, जो कि कोर तक अधिकतम कार्बन डाइऑक्साइड से बना है, के बारे में नए विचार देगा।
पूर्ववर्ती मिशन:
- अमेरिका:
- मेरिनर शृंखला 1962-1974, वर्ष 1978 में पायनियर वीनस 1 और पायनियर वीनस 2, 1989 में मैगलन।
- रूस:
- अंतरिक्षयान की वेनेरा शृंखला 1967-1983, वर्ष 1985 में वेगास 1 और 2
- जापान:
- वर्ष 2015 में अकात्सुकी।
- यूरोप:
- वर्ष 2005 में वीनस एक्सप्रेस।
भारतीय पहल:
- भारत ने वर्ष 2024 में शुक्रयान नामक एक नया ऑर्बिटर लॉन्च करने की योजना बनाई है।
शुक्र ग्रह:
- इसका नाम प्रेम और सुंदरता की रोमन देवी के नाम पर रखा गया है। यह आकार और द्रव्यमान में सौरमंडल में छठा ग्रह और सूर्य से दूसरे स्थान पर है।
- यह चंद्रमा के बाद रात को आकाश में दूसरी सबसे चमकीली प्राकृतिक वस्तु है, शायद यही कारण है कि यह पहला ग्रह था जो दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में आकाश में अपनी गति के कारण जाना गया।
- हमारे सौरमंडल के अन्य ग्रहों के विपरीत, शुक्र और यूरेनस अपनी धुरी पर दक्षिणावर्त घूमते हैं।
- कार्बन डाइऑक्साइड की उच्च सांद्रता के कारण यह सौरमंडल का सबसे गर्म ग्रह है जो एक तीव्र ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा करने का काम करता है।
- शुक्र ग्रह पर एक दिन पृथ्वी के एक वर्ष से ज़्यादा लंबा होता है। सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने की तुलना में शुक्र को अपनी धुरी पर घूर्णन में अधिक समय लगता है।
- अर्थात 243 पृथ्वी के दिन एक घूर्णन के लिये - सौरमंडल में किसी भी ग्रह का सबसे लंबा घूर्णन।
- सूर्य की एक कक्षा को पूरा करने के लिये केवल 224.7 पृथ्वी दिन।
शुक्र और पृथ्वी:
- शुक्र को उसके द्रव्यमान, आकार और घनत्व तथा सौरमंडल में उसके समान सापेक्ष स्थानों में समानता के कारण पृथ्वी की जुडवाँ बहन कहा गया है।
- शुक्र से ज़्यादा कोई ग्रह पृथ्वी के करीब नहीं पहूँचता है; अपने निकटतम स्तर पर यह चंद्रमा के अलावा पृथ्वी का सबसे निकटतम बड़ा पिंड है।
- शुक्र का वायुमंडलीय दाब पृथ्वी से 90 गुना अधिक है।
शुक्र का अध्ययन करने का कारण:
- यह जानने में मदद करेगा कि पृथ्वी जैसे ग्रह कैसे विकसित होते हैं और पृथ्वी के आकार के एक्सोप्लैनेट (हमारे सूर्य के अलावा किसी अन्य तारे की परिक्रमा करने वाले ग्रह) पर क्या स्थितियाँ मौजूद हैं।
- यह पृथ्वी की जलवायु के प्रतिरूपण में मदद करेगा और एक चेतावनी के रूप में कार्य करता है कि किसी ग्रह की जलवायु कितने नाटकीय रूप से बदल सकती है।
स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
इज़रायल के विरुद्ध प्रस्ताव पर भारत की स्थिति
प्रिलिम्स के लियेसंयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद मेन्स के लियेइज़रायल फिलिस्तीन विवाद, फिलिस्तीन के संबंध में भारत की रणनीति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में फिलिस्तीन ने भारत को फिलिस्तीनी नागरिकों के मानवाधिकारों को दबाने हेतु दोषी ठहराया है, क्योंकि भारत ने फिलिस्तीनी मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम प्रस्ताव से स्वयं को अलग कर लिया है।
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में उस प्रस्ताव पर मतदान से स्वयं को अलग किया, जो कि फिलिस्तीनी क्षेत्रों के तटीय भाग, इज़रायल और गाजा पट्टी के बीच संघर्ष के नवीनतम घटनाक्रम से संबंधित था।
- UNHRC संयुक्त राष्ट्र (UN) प्रणाली के भीतर एक अंतर-सरकारी निकाय है, जो दुनिया भर में मानवाधिकारों के प्रचार और संरक्षण को मज़बूत करने के लिये उत्तरदायी है।
प्रमुख बिंदु
प्रस्ताव
- इस प्रस्ताव के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से गाजा, वेस्ट बैंक और फिलिस्तीन में मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच के लिये एक स्थायी आयोग गठित करने का आह्वान किया गया था।
- इस प्रस्ताव को 24 सदस्यों के वोट के साथ अपनाया गया। 9 सदस्यों ने इसके विरुद्ध मतदान किया, जबकि भारत सहित 14 सदस्यों ने इसमें हिस्सा नहीं लिया।
- मतदान में हिस्सा न लेने वाले देशों में भारत के साथ-साथ फ्रांँस, इटली, जापान, नेपाल, नीदरलैंड, पोलैंड और दक्षिण कोरिया शामिल थे।
- इसके पक्ष में मतदान करने वाले देशों में चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश और रूस शामिल थे, वहीं जर्मनी, ब्रिटेन और ऑस्ट्रिया ने प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान किया।
- प्रस्ताव के पारित होने के साथ ही इज़रायल द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कानून के उल्लंघन की जाँच के लिये एक स्वतंत्र जाँच आयोग का गठन किया गया है।
फिलिस्तीन का पक्ष
- यह संकल्प मानवाधिकार परिषद के लिये एक ‘विपथन’ (Aberration) नहीं है। यह व्यापक बहुपक्षीय परामर्श का उपोत्पाद है।
- यह राज्यों, संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों, मानवाधिकार संधि निकायों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा इज़रायल के गंभीर उल्लंघनों की वर्षों की गहन जाँच और रिपोर्टिंग है।
- फिलिस्तीनी लोग अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून की प्रयोज्यता से वंचित थे।
- फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ अन्याय का मूल कारण इज़रायल द्वारा बेदखली, विस्थापन, उपनिवेशीकरण था।
- इसलिये भारत का स्वयं को इस प्रस्ताव से अलग करने का निर्णय फिलिस्तीनी लोगों सहित संपूर्ण विश्व के नागरिकों के मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने में मानवाधिकार परिषद के महत्त्वपूर्ण कार्य में बाधा डालता है।
- भारत ने जवाबदेही, न्याय और शांति के लंबित मार्ग पर इस महत्त्वपूर्ण समय में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ शामिल होने का अवसर गँवा दिया है।
इज़रायल-फिलिस्तीन मुद्दे पर भारत की अब तक की स्थिति
- भारत ने वर्ष 1950 में इज़रायल को मान्यता दी थी, किंतु यह ‘फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइज़ेशन’ (PLO) को फिलिस्तीन के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश भी है।
- भारत वर्ष 1988 में फिलिस्तीन को राज्य का दर्जा देने वाले पहले देशों में से एक है।
- वर्ष 2014 में भारत ने गाजा में इज़रायल के मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच के लिये संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के प्रस्ताव का समर्थन किया था। जाँच का समर्थन करने के बावजूद भारत ने वर्ष 2015 में ‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद’ में इज़रायल के खिलाफ मतदान से परहेज किया था।
- ‘लिंक वेस्ट पॉलिसी’ के एक हिस्से के रूप में भारत ने वर्ष 2018 में दोनों देशों के साथ परस्पर स्वतंत्र और अनन्य व्यवहार करने के लिये इज़रायल और फिलिस्तीन के साथ अपने संबंधों को डीहाइफनेटेड यानी स्वयं को उससे अलग कर दिया है।
- जून 2019 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC) में इज़रायल द्वारा पेश किये गए एक निर्णय के पक्ष में मतदान किया था, जिसमें एक फिलिस्तीनी गैर-सरकारी संगठन को सलाहकार का दर्जा देने पर आपत्ति जताई गई थी।
- मार्च 2021 में अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने इज़रायल (वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी) के कब्ज़े वाले फिलिस्तीनी क्षेत्रों में युद्ध अपराधों की जाँच शुरू की थी।
- इज़रायल चाहता था कि भारत इसके खिलाफ स्टैंड ले, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
- अब तक भारत ने फिलिस्तीनी आत्मनिर्णय के लिये अपने ऐतिहासिक नैतिक समर्थक की छवि को बनाए रखने की कोशिश की है और इज़रायल के साथ सैन्य, आर्थिक और अन्य रणनीतिक संबंधों में संलग्न होने का प्रयास किया है।
आगे की राह
- दुनिया में सबसे लंबे समय तक चलने वाले संघर्ष पर भारत की नीति पहले चार दशकों के लिये स्पष्ट रूप से फिलिस्तीन समर्थक होने से लेकर अब इज़रायल के साथ अपने तीन दशक पुराने मैत्रीपूर्ण संबंधों के साथ तनावपूर्ण संतुलन स्थापित तक पहुँच गई है।
- मौजूदा बहुध्रुवीय विश्व में भारत को संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
- व्यापक पैमाने पर विश्व को शांतिपूर्ण समाधान के लिये एक साथ आने की आवश्यकता है, लेकिन इज़रायल सरकार और अन्य शामिल दलों की अनिच्छा ने इस मुद्दे को और अधिक बढ़ा दिया है। इस प्रकार एक संतुलित दृष्टिकोण ही अरब देशों के साथ-साथ इज़रायल के साथ अनुकूल संबंध बनाए रखने में मदद करेगा।
- इज़रायल और संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सूडान तथा मोरक्को के बीच हालिया सामान्यीकरण समझौते, जिन्हें अब्राहम समझौते के रूप में जाना जाता है, सही दिशा में उठाया गया एक महत्त्वपूर्ण कदम हैं। सभी क्षेत्रीय शक्तियों को अब्राहम समझौते की तर्ज पर दोनों देशों के बीच शांति की परिकल्पना करनी चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजनीति
सिविल सेवकों के लिये नए पेंशन नियम
प्रिलिम्स के लियेकेंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964; सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005; केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) संशोधन नियम, 2020; केंद्रीय सिविल सेवा पेंशन नियम, 1972 मेन्स के लियेसेवानिवृत्त अधिकारियों के लिये नए पेंशन नियम के निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने सेवानिवृत्ति के बाद खुफिया और सुरक्षा संगठनों के अधिकारियों पर नए प्रतिबंध लगाते हुए अपने पेंशन नियमों में संशोधन किया है।
- सरकार ने केंद्रीय सिविल सेवा पेंशन नियम, 1972 के नियम-8(3)(ए) में संशोधन किया है।
- केंद्र ने केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) संशोधन नियम, 2020 को अधिसूचित किया है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- उक्त नियमों को पहली बार वर्ष 1972 में तैयार किया गया था, जिसमें अब तक 47 बार संशोधन किया जा चुका है।
- वर्ष 2008 में "भविष्य के अच्छे आचरण के अधीन पेंशन" (Pension Subject to Future Good Conduct) से संबंधित नियम 8 में पहली बार इस शर्त को शामिल करते हुए संशोधन किया गया था कि सेवानिवृत्त खुफिया और सुरक्षा अधिकारी ऐसी कोई भी सामग्री प्रकाशित नहीं करेंगे जो भारत की संप्रभुता तथा अखंडता, सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या राज्य के आर्थिक हित, किसी विदेशी राज्य के साथ संबंध एवं जो किसी अपराध को भड़काने की ओर ले जाए।
संशोधित नियम-8(3)(ए):
- कुछ खुफिया या सुरक्षा प्रतिष्ठानों (आरटीआई अधिनियम की दूसरी अनुसूची के तहत शामिल) के सेवानिवृत्त अधिकारियों को बिना अनुमति के अपने संगठन के बारे में कुछ भी लिखने की अनुमति नहीं होगी।
- सूचना का अधिकार (Right to Information) अधिनियम, 2005 की दूसरी अनुसूची में इंटेलिजेंस ब्यूरो, रॉ, राजस्व खुफिया निदेशालय, सीबीआई, एनसीबी, बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी और सीआईएसएफ सहित 26 संगठन शामिल हैं।
- सेवानिवृत्त अधिकारियों को एक वचनबद्ध फॉर्म 26 पर हस्ताक्षर करने और यह घोषित करने की आवश्यकता होती है कि सक्षम प्राधिकारी के पूर्व अनुमोदन के बिना वे "संगठन के अधिकार क्षेत्र और उक्त संगठन में काम करने से संबंधित कोई भी जानकारी प्रकाशित नहीं करेंगे।
- यह संशोधन "संगठन के अधिकार क्षेत्र, किसी भी कर्मचारी और उसके पदनाम के बारे में कोई संदर्भ या जानकारी तथा उस संगठन में काम करने के आधार पर प्राप्त विशेषज्ञता या ज्ञान" से संबंधित किसी भी जानकारी को शामिल करने के दायरे का विस्तार करता है।
संशोधन का उद्देश्य:
- यह संशोधन सचिवों की समिति (Committee of Secretaries) द्वारा इसकी सिफारिश किये जाने के बाद लगभग चार वर्षों से प्रक्रिया में था।
- यह कदम इस तथ्य से उत्पन्न चिंताओं से प्रेरित था कि कुछ हाई-प्रोफाइल सेवानिवृत्त अधिकारियों ने अपने कार्यकाल पर किताबें लिखी थीं और इनमें से कुछ ने गुप्त जानकारियों का खुलासा किया था।
निहितार्थ:
- नियम 8 में संशोधन का मतलब है कि अगर पेंशनभोगी नियमों की अवहेलना करता है तो पेंशन रोकी या काटी जा सकती है।
- नियमों में इस बदलाव से सुरक्षा और खुफिया संगठनों के उन सेवानिवृत्त अधिकारियों के प्रभावित होने की संभावना है जो अपने पूर्व संगठनों तथा अनुभवों पर समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं या पुस्तकों में लिखते रहे हैं।
सिविल सेवकों से संबंधित नियम
सीसीएस पेंशन नियम-1972 का नियम 9 (सेवानिवृत्ति के बाद विभागीय कार्यवाही):
- इसमें कहा गया है कि यदि किसी सरकारी अधिकारी ने कोई कदाचार किया है और सेवानिवृत्त होता है, तो उसे उस कदाचार की तारीख के चार वर्ष बाद तक ही विभागीय कार्यवाही का सामना करना पड़ सकता है।
केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964:
- यह सेवा में रहते हुए सरकारी कर्मचारियों पर कुछ प्रतिबंध लगाता है।
- नियम 7: यह सरकारी कर्मचारियों को किसी भी प्रकार की हड़ताल, दबाव आदि का सहारा लेने से प्रतिबंधित करता है।
- नियम 8: यह इन्हें सरकारी मंज़ूरी के अलावा किसी समाचार पत्र, अन्य आवधिक प्रकाशन, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संपादन, प्रबंधन में स्वामित्व आदि से प्रतिबंधित करता है।
- नियम 9: यह एक सरकारी कर्मचारी को ऐसी राय या तथ्य लिखित, टेलीकास्ट या प्रसारण रूप में देने से प्रतिबंधित करता है जिसका केंद्र सरकार या राज्य सरकार की किसी भी मौजूदा या हालिया नीति या कार्रवाई पर आलोचनात्मक प्रभाव पड़ता हो।
- सरकारी सेवा में रहते हुए राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध:
- आचरण नियम सरकारी कर्मचारियों को किसी भी राजनीतिक दल या संगठन से जुड़े होने और किसी भी राजनीतिक गतिविधि में भाग लेने या सहायता करने से रोकता है।
- वर्ष 2014 में एक संशोधन द्वारा प्रावधान किया गया है कि "प्रत्येक सरकारी कर्मचारी हर समय राजनीतिक तटस्थता बनाए रखेगा" और "संविधान तथा लोकतांत्रिक मूल्यों की सर्वोच्चता के लिये खुद को प्रतिबद्ध बनाए रखेगा"।
नियम 26, अखिल भारतीय सेवाएँ (मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ नियम), 1958 (सेवानिवृत्ति के बाद रोज़गार):
- यह केंद्र सरकार की पिछली मंज़ूरी को छोड़कर, सेवानिवृत्ति के बाद एक वर्ष के लिये किसी भी व्यावसायिक रोज़गार करने से पेंशनभोगी को प्रतिबंधित करता है।
- इस नियम के उल्लंघन की स्थिति में केंद्र सरकार यह घोषित कर सकती है कि कर्मचारी "पेंशन के पूरे या एक निर्दिष्ट हिस्से का हकदार नहीं है"।
सेवानिवृत्ति के बाद राजनीति में शामिल होना:
- सरकारी कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद राजनीति में आने से रोकने का कोई नियम नहीं है।
- चुनाव आयोग (Election Commission) ने वर्ष 2013 में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (Department of Personnel and Training- DoPT) तथा कानून मंत्रालय को पत्र लिखकर नौकरशाहों के लिये सेवानिवृत्ति के बाद राजनीति में शामिल होने हेतु कूलिंग-ऑफ पीरियड (Cooling-Off Period) का सुझाव दिया था, लेकिन इसे खारिज़ कर दिया गया था।
- कानून मंत्रालय के विधायी विभाग ने सलाह दी कि "इस तरह का कोई भी प्रतिबंध (राजनीति में शामिल होने या चुनाव लड़ने वाले अधिकारियों के खिलाफ) भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) के अंतर्गत वैध नहीं है"। इसके साथ ही डीओपीटी ने चुनाव आयोग से यह भी कहा कि उसके सुझाव "उचित और व्यवहार्य नहीं हो सकते हैं"।