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डेली न्यूज़

  • 04 Jan, 2023
  • 28 min read
शासन व्यवस्था

भारत में सड़क दुर्घटनाएँ

प्रिलिम्स के लिये:

सड़क सुरक्षा, एंटी-लॉक ब्रेकिंग सिस्टम, सड़क सुरक्षा पर ब्रासीलिया घोषणा, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, मोटर वाहन संशोधन अधिनियम, 2019

मेन्स के लिये:

सड़क सुरक्षा: कारण, प्रभाव, उठाए जा सकने वाले कदम

चर्चा में क्यों? 

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री के अनुसार, प्रत्येक दिन 415 मौतों और कई घायलों के साथ भारतीय सड़क दुर्घटना परिदृश्य, कोविड-19 की तुलना में अधिक गंभीर है।

Accident-death-2021

भारत में सड़क दुर्घटना परिदृश्य:

  • वर्तमान स्थिति:  
    • वर्ष 2021 में सड़क दुर्घटनाओं की वजह से 1.5 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हुई, और यह प्रवृत्ति कई वर्षों से रही है।
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के वर्ष 2021 के आँकड़ों के अनुसार, सड़क  दुर्घटनाओं में होने वाली कुल मौतों में नशीली दवाओं/शराब के नशे में ड्राइविंग से होने वाली मौतों का हिस्सा 1.9% है। 
    • इसके अलावा सड़क पर लगभग 90% मौतें तेज़ गति, ओवरटेकिंग और खतरनाक ड्राइविंग के कारण हुईं।
    • विश्व बैंक के वर्ष 2019 के आँकड़ों के अनुसार, भारत सड़क दुर्घटनाओं के लिये शीर्ष 20 देशों में पहले स्थान पर है।
  • कारण: 
    • बुनियादी ढांँचे की कमी: सड़कों और वाहनों की दयनीय स्थिति, खराब दृश्यता, खराब सड़क डिज़ाइन और इंजीनियरिंग सामग्री तथा निर्माण की गुणवत्ता में कमी, विशेष रूप से तीव्र मोड़ के साथ सिंगल-लेन।
    • लापरवाही और जोखिम: ओवर स्पीडिंग, शराब या ड्रग्स के प्रभाव में ड्राइविंग, थकान या बिना हेलमेट के सवारी, सीटबेल्ट के बिना ड्राइविंग आदि।
    • ध्यान भंग: ड्राइविंग के दौरान मोबाइल फोन पर बात करना सड़क दुर्घटनाओं का एक प्रमुख कारण बन गया है।
    • ओवरलोडिंग: परिवहन लागत की बचत करने के लिये।
    • भारत में कमज़ोर वाहन सुरक्षा मानक: वर्ष 2014 में ग्लोबल न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (NCAP) द्वारा किये गए क्रैश टेस्ट से पता चला है कि भारत के कुछ सबसे अधिक बिकने वाले कार मॉडल संयुक्त राष्ट्र (UN) के फ्रंटल इम्पैक्ट क्रैश टेस्ट में विफल रहे हैं।
    • जागरूकता की कमी: एयरबैग, एंटी लॉक ब्रेकिंग सिस्टम आदि जैसी सुरक्षा सुविधाओं के महत्त्व के बारे में जागरूकता की कमी है।
  • प्रभाव: 
    • आर्थिक: 
      • विश्व बैंक के अनुसार, सड़क दुर्घटनाओं से भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रत्येक वर्ष सकल घरेलू उत्पाद का 3 से 5 प्रतिशत नुकसान होता है। 
    • सामाजिक:
      • परिवारों पर बोझ:
        • सड़क दुर्घटना के कारण होने वाली मृत्यु की वजह से गरीब परिवारों की लगभग सात माह की घरेलू आय कम हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप पीड़ित परिवार गरीबी और कर्ज़ के चक्र में फँस जाता है। 
      • संवेदनशील सड़क उपयोगकर्त्ता (Vulnerable Road Users- VRUs):
        • संवेदनशील सड़क उपयोगकर्त्ता (Vulnerable Road Users- VRUs) वर्ग द्वारा दुर्घटनाओं के बड़े बोझ को सहन किया जाता है। देश में सड़क दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों और गंभीर चोटों के कुल मामलों में से आधे से अधिक हिस्सेदारी VRUs वर्ग की है।
          • इसमें गरीब विशेष रूप से कामकाज़ी उम्र के पुरुष जिनके द्वारा सड़क का उपयोग किया जाता है, शामिल हैं।
      • लिंग विशिष्ट प्रभाव: 
        • पीड़ित गरीब और अमीर दोनों घरों में परिवार की महिलाएँ समस्याओं का सामना करती हैं, अक्सर वे अतिरिक्त काम करती हैं, अधिक ज़िम्मेदारियाँ लेती हैं और देखभाल करने वाली गतिविधियों में संलग्न रहती हैं।
        • विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार "ट्रैफिक क्रैश इंजरी एंड डिसएबिलिटीज़: द बर्डन ऑन इंडियन सोसाइटी, 2021।  
          • लगभग 50% महिलाएँ दुर्घटना के बाद अपनी घरेलू आय में गिरावट के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हुईं।
          • लगभग 40% महिलाओं ने दुर्घटना के बाद अपने काम करने के तरीके में बदलाव की सूचना दी, जबकि लगभग 11% ने वित्तीय संकट से निपटने के लिये अतिरिक्त काम करने की सूचना दी।
          • कम आय वाले ग्रामीण परिवारों (56%) की आय में गिरावट निम्न-आय वाले शहरी (29.5%) और उच्च आय वाले ग्रामीण परिवारों (39.5%) की तुलना में सबसे गंभीर थी।

इस संबंध में उठाए गए कदम: 

  • मोटर वाहन/MV (संशोधन) अधिनियम, 2019 संबंधी मुद्दे: मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 ने यातायात नियमों के उल्लंघन के लिये मौजूदा ज़ुर्माने को बढ़ा दिया, जिसकी आलोचना की गई कि एक औसत भारतीय की (ज़ुर्माना) भुगतान क्षमता अभी भी सीमित है।
    • साथ ही यातायात नियमों के उल्लंघन के कुछ ही मामले अभियुक्तों द्वारा न्यायालय तक लाए जाते हैं। 
    • इसलिये संशोधित कानून के निवारक प्रावधानों के अपेक्षित प्रभाव को ज़मीनी स्तर पर नहीं देखा जा सका। 
  • सड़क सुरक्षा क्षेत्र: छोटे क्षेत्रों, प्रमुख सड़कों और राजमार्गों के हिस्सों को "आदर्श" सड़क सुरक्षा क्षेत्र के रूप में स्थापित करने का प्रस्ताव रखा गया है। ये क्षेत्र स्थानीय रूप से उपयुक्त, अधिक सुरक्षित सड़क व्यवस्था विकसित करने में मदद करेंगे। 
  • नवीन प्रशासनिक ढाँचा: सड़क सुरक्षा के कार्यान्वयन के लिये प्रशासनिक ढाँचे को तीन स्तरों में बाँटा जा सकता है:
    • टीयर 1: प्रबंध समूह (MG) होगा, जो दिन-प्रतिदिन के कार्यों को देखेगा और स्वायत्त एवं वित्तीय रूप से सशक्त होगा।
    • टियर 2: इसकी ज़िला स्तरीय निगरानी होगी। यहीं पर तत्काल समाधान की मांग की जाएगी, बजटीय आवंटन किया जाएगा और समीक्षा के तरीके तय किये जाएंगे। यह लक्ष्यों का पालन सुनिश्चित करेगा।
    • टियर 3: इसका शीर्ष प्रबंधन और नियंत्रण होगा, जिसका प्रतिनिधित्त्व केंद्र या राज्य सरकार के स्तर पर होगा।
  • स्पीड-डिटेक्शन डिवाइस: स्पीड डिटेक्शन डिवाइसेज़ जैसे- रडार और स्पीड डिटेक्शन कैमरा सिस्टम की स्थापना शुरू की जा सकती है।
    • चंडीगढ़ और नई दिल्ली ने ट्रैफिक कंट्रोल में स्पीड डिटेक्शन डिवाइस जैसे डिजिटल स्टिल कैमरा (चंडीगढ़), स्पीड कैमरा (नई दिल्ली) तथा रडार गन (नई दिल्ली) की सेवा पहले ही लागू कर दी है।
      • इसका उपयोग किसी गुज़रते हुए वाहन की गति का अनुमान लगाने के लिये किया जाता है।
  • बेहतर सुरक्षा उपाय: स्पीड हंप, उठे हुए प्लेटफॉर्म, गोल चक्कर और ऑप्टिकल मार्किंग से सड़क दुर्घटनाओं को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
  • बेहतर केंद्र-राज्य समन्वय: यही सही समय है कि हम महसूस करें कि यातायात कानूनों के खराब प्रवर्तन की कीमत पर जीवन नहीं खोया जा सकता है। 
    • राज्यों के बुनियादी ढाँचे में सुधार और मबूती लाने के लिये राज्यों एवं केंद्र का अधिक निधियों से सशक्त होकर एक मंच पर आना अतिमहत्त्वपूर्ण  है।
    • सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों को कम करने के लिये केवल लक्ष्य तय करना एक व्यावहारिक दृष्टिकोण नहीं है। उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये समर्पित प्रयास करना भी आवश्यक है।

सड़क सुरक्षा से संबंधित पहल:

  • वैश्विक:
    • सड़क सुरक्षा पर ब्रासीलिया (Brasilia) घोषणा (2015): 
      • ब्राज़ील में आयोजित दूसरे वैश्विक उच्च स्तरीय सम्मेलन में सड़क सुरक्षा घोषणा पर हस्ताक्षर किये गए थे। भारत इस घोषणापत्र का हस्ताक्षरकर्त्ता है।
      • देशों की सतत् विकास लक्ष्य 3.6 हासिल करने की योजना है, यानी 2030 तक सड़क यातायात दुर्घटनाओं से होने वाली वैश्विक मौतों और क्षति की संख्या को आधा करना।
    • सड़क सुरक्षा के लिये कार्य दशक 2021-2030:
      • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सड़क यातायात से होने वाली मौतों और क्षति को 2030 तक कम-से-कम 50% रोकने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ "वैश्विक सड़क सुरक्षा में सुधार" का संकल्प अपनाया। 
      • यह वैश्विक योजना सड़क सुरक्षा के लिये समग्र दृष्टिकोण के महत्त्व पर बल देते हुए स्टॉकहोम घोषणा के अनुरूप है। 
    • अंतर्राष्ट्रीय सड़क मूल्यांकन कार्यक्रम (iRAP): 
      • यह एक पंजीकृत चैरिटी है जो सुरक्षित सड़कों के माध्यम से लोगों की जान बचाने के लिये समर्पित है।
  • भारत: 
    • मोटर वाहन संशोधन अधिनियम, 2019: 
      • यह अधिनियम यातायात उल्लंघन, दोषपूर्ण वाहन, नाबलिकों द्वारा वाहन चलाने आदि के लिये दंड की मात्रा में वृद्धि करता है।
      • यह अधिनियम मोटर वाहन दुर्घटना हेतु निधि प्रदान करता है जो भारत में कुछ विशेष प्रकार की दुर्घटनाओं पर सभी सड़क उपयोगकर्त्ताओं को अनिवार्य बीमा कवरेज प्रदान करता है।
      • अधिनियम एक राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड को मंज़ूरी प्रदान करता है, जिसे केंद्र सरकार द्वारा एक अधिसूचना के माध्यम से स्थापित किया जाना है।
    • सड़क मार्ग द्वारा वहन अधिनियम, 2007
      • यह अधिनियम सामान्य माल वाहकों के विनियमन से संबंधित प्रावधान करता है, उनकी देयता को सीमित करता है और उन्हें वितरित किये गए माल के मूल्य की घोषणा करता है ताकि ऐसे सामानों के नुकसान या क्षति के लिये उनकी देयता का निर्धारण किया जा सके, जो लापरवाही या आपराधिक कृत्यों के कारण स्वयं, उनके नौकरों या एजेंटों के कारण हुआ हो। 
    • राष्ट्रीय राजमार्ग नियंत्रण (भूमि और यातायात) अधिनियम, 2000:
      • यह अधिनियम राष्ट्रीय राजमार्गों के भीतर भूमि का नियंत्रण, रास्ते का अधिकार और राष्ट्रीय राजमार्गों पर यातायात का नियंत्रण करने संबंधी प्रावधान प्रदान करता है, साथ ही उन पर अनधिकृत कब्ज़े को हटाने का भी प्रावधान करता है।
    • भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1998: 
      • यह अधिनियम राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास, रखरखाव और प्रबंधन के लिये एक प्राधिकरण के गठन तथा उससे जुड़े या उसके आनुषंगिक मामलों से संबंधित प्रावधान प्रस्तुत करता है।

स्रोत: इंडियन एक्स्प्रेस


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय निकास परीक्षा

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019, NExT,

मेन्स के लिये:

भारतीय चिकित्सा परिषद के स्थान पर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (National Medical Commission- NMC) ने राष्ट्रीय निकास परीक्षा (National Exit Test- NExT) से संबंधित प्रस्तावित मसौदा नियम जारी किये हैं।

विनियमन का उद्देश्य: 

  • चिकित्सा स्नातक के लिये शिक्षा और प्रशिक्षण के न्यूनतम सामान्य मानकों के संबंध में योगात्मक मूल्यांकन में देश भर में निरंतरता प्रदान करना।
  • NExT का उद्देश्य यह सुनिश्चित करके भारत में स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता में सुधार करना है कि सभी चिकित्सा पेशेवर अपना कॅरियर शुरू करने से पहले योग्यता और ज्ञान के न्यूनतम मानकों को पूरा करते हों।

राष्ट्रीय निकास परीक्षा:

  • NExT मेडिकल लाइसेंसिंग परीक्षा है जिसे मेडिकल स्नातकों की योग्यता का आकलन करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। 
  • जिन छात्रों ने NMC से मान्यता प्राप्त चिकित्सा संस्थानों और विदेशी छात्रों से अपनी मेडिकल डिग्री प्राप्त की है, उन्हें भी नेशनल एग्जिट टेस्ट क्वालिफाई करना होगा।
  • भारत में चिकित्सा पेशा के लिये पंजीकरण कराने हेतु उन्हें NExT परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी।
  • आयोग द्वारा गठित निकाय इसके लिये एक केंद्रीकृत सामान्य परीक्षा निम्न उद्देश्य हेतु आयोजित कराएगा- 
    • एक स्वायत्त बोर्ड, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (संशोधन) विधेयक, 2022, 'चिकित्सा विज्ञान में परीक्षा बोर्ड' का प्रस्ताव करता है, जो प्रभावी होने पर NExT परीक्षा आयोजित करने के लिये  जिम्मेदार होगा।
    • वर्तमान में नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन इन मेडिकल साइंसेज (NBEMS) NEET PG (नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट पोस्टग्रेजुएट), फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन (FMGE) जैसी परीक्षाओं के आयोजन के लिए जिम्मेदार है।
  • NExT, FMGE और NEET PG जैसी परीक्षाओं का स्थान लेगा।
  • NExT में दो अलग-अलग परीक्षाएँ होंगी जिन्हें 'स्टेप्स' कहा जाएगा।

NExT में उपस्थित होने हेतु पात्रता:

  • आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस का अंतिम पाठ्यक्रम पूरा करने वाले सभी छात्र परीक्षा में शामिल होने के पात्र होंगे।  
  • Just by clearing the NExT exam the foreign medical graduates will get licentiate to become practicing doctors.
  • NExT परीक्षा पास करने मात्र से ही विदेशी मेडिकल स्नातकों को प्रैक्टिसिंग डॉक्टर बनने का लाइसेंस प्राप्त हो जाएगा।
  • प्रयासों की संख्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है, बशर्ते उम्मीदवार MBBS में शामिल होने के 10 वर्ष के भीतर दोनों चरणों में उत्तीर्ण हो।

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC): 

  • परिचय: 
    • राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) एक वैधानिक निकाय है जिसे वर्ष 2019 में भारतीय चिकित्सा परिषद (Medical Council of India -MCI) के स्थान पर भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया था। 
    • NMC का गठन संसद के एक अधिनियम द्वारा किया गया है जिसे राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 के रूप में जाना जाता है
    • NMC भारत में चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र के लिये एक नियामक संस्था है।
  • लक्ष्य और दूरदर्शिता: 
    • गुणवत्तापूर्ण और सस्ती चिकित्सा शिक्षा तक पहुँच में सुधार करना।
    • देश के सभी भागों में पर्याप्त और उच्च गुणवत्ता वाले चिकित्सा विशेषज्ञों की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
    • समान और सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा को बढ़ावा देना जो सामुदायिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करने के साथ चिकित्सा पेशेवरों की सेवाओं को सभी नागरिकों के लिये सुलभ बनाता है।
    • चिकित्सा पेशेवरों को अपने काम में नवीनतम चिकित्सा अनुसंधान को अपनाने और अनुसंधान में योगदान करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
    • पारदर्शी तरीके से समय-समय पर चिकित्सा संस्थानों का निष्पक्ष मूल्यांकन करना।
    • भारत के लिये एक चिकित्सा रजिस्टर तैयार करना।
    • चिकित्सा सेवाओं के सभी पहलुओं में उच्च नैतिक मानकों को लागू करना।
    • एक प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र बनाना।
    • इसके पास चिकित्सा पाठ्यक्रमों के लिये शुल्क को विनियमित करने और यह सुनिश्चित करने हेतु कि वे आवश्यक मानकों को पूरा करें, मेडिकल कॉलेजों के निरीक्षण करने का भी अधिकार है ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

नोटबंदी पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, संविधान पीठ, RBI, RBI अधिनियम की धारा 26(2)।

मेन्स के लिये:

नोटबंदी पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा 4-1 के बहुमत से 500 रुपए और 1,000 रुपए के करेंसी नोटों की नोटबंदी पर फैसला सुनाया।

Not-Relevant

आधिकारिक निर्णय: 

  • बहुमत: 
    • बहुमत के अनुसार, केंद्र की 8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना वैध है और आनुपातिकता की कसौटी पर खरी उतरती है।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 26 (2) के तहत जारी 8 नवंबर की अधिसूचना से छह महीने पहले RBI और केंद्र ने एक-दूसरे के साथ इस संबंध में परामर्श किया था।
    • RBI अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत वैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन केवल इसलिये नहीं किया गया क्योंकि केंद्र ने केंद्रीय बोर्ड को विमुद्रीकरण की सिफारिश करने पर विचार करने हेतु ‘सलाह’ देने की पहल की थी।
    • इस प्रावधान के तहत सरकार को बैंक नोटों की "सभी शृंखलाओं" को विमुद्रीकृत करने का अधिकार दिया गया था।
    • जल्दबाज़ी में लिये गए फैसले पर न्यायालय ने कहा कि इस तरह के कदम निर्विवाद रूप से अत्यंत गोपनीयता और तेज़ी से लिये जाते है। यदि इस तरह के कदम की खबर लीक हो जाती है, तो यह कल्पना करना मुश्किल है कि इसके परिणाम कितने विनाशकारी हो सकते हैं।
    • जाली मुद्रा, काले धन और आतंक के वित्तपोषण को खत्म करने के "उचित उद्देश्यों" के लिये विमुद्रीकरण किया गया था।
  • अल्पमत निर्णय:
    • सरकार आरबीआई अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत एक अधिसूचना तभी जारी कर सकती थी जब आरबीआई ने सिफारिश के माध्यम से नोटबंदी का प्रस्ताव दिया होता।
    • इसलिये आरबीआई अधिनियम की धारा 26(2) के तहत जारी सरकार की अधिसूचना गैरकानूनी थी।
    • जिन मामलों में सरकार नोटबंदी की पहल करती है, उनमें आरबीआई की राय लेनी चाहिये। बोर्ड की राय "स्वतंत्र और स्पष्ट" होनी चाहिये।
    • यदि बोर्ड की राय नकारात्मक थी, तो केंद्र केवल एक अध्यादेश की घोषणा करके या एक संसदीय कानून बनाकर भी विमुद्रीकरण की राह पर आगे बढ़ सकता था।
    • संसद को "लघु राष्ट्र" के रूप में वर्णित किया जाता तथा "संसद की अनुपस्थिति में, लोकतंत्र की स्थापना और सफलता अनिश्चित है"।

आनुपातिकता का परीक्षण: 

  • आमतौर पर संवैधानिक अदालतें, उन मामलों को तय करने के लिये है जहां दो या दो से अधिक वैध अधिकार टकराते हैं, आनुपातिकता का परीक्षण दुनिया भर की अदालतों द्वारा उपयोग की जाने वाली एक सामान्य रूप से नियोजित कानूनी पद्धति है।
  • जब इस तरह के मामलों का फैसला किया जाता है, तो आमतौर पर एक प्रकार के न्याय पर दूसरे न्याय को प्रभावी घोषित किया जाता है और न्यायालय इस प्रकार विभिन्न प्रकार के न्यायों के मध्य संतुलन स्थापित करता है।
  • आनुपातिकता का सिद्धांत यह आदेश देता है कि वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिये प्रशासनिक उपाय आवश्यकता से अधिक कठोर नहीं होने चाहिये।

नोटबंदी/विमुद्रीकरण: 

  • परिचय: 
    • 8 नवंबर, 2016 को सरकार ने घोषणा की कि उच्च मूल्य वर्ग के 500 रुपए एवं 1000 रुपए के नोट लीगल टेंडर (वैद्य मुद्रा) नहीं रहेंगे अर्थात् सीमित अवधि में सीमित सेवाओं के साथ इनकी वैधता समाप्त हो जाएगी। 
    • यह वैध मुद्रा या फिएट मनी के रूप में अपनी स्थिति की एक मुद्रा इकाई को चलन से बाहर करने का कार्य है।
    • यह कार्य तब किया जाता है जब राष्ट्रीय मुद्रा में परिवर्तन होता है और मुद्रा के वर्तमान रूप या रूपों को चलन से बाहर कर दिया जाता है, जिसे अक्सर नए नोटों या सिक्कों से प्रतिस्थापित किया जाता है।
  • विमुद्रीकरण का उद्देश्य:
    • अवैध लेन-देन के लिये उच्च मूल्यवर्ग के नोटों के उपयोग को हतोत्साहित करना और इस प्रकार काले धन के व्यापक उपयोग पर अंकुश लगाना।
    • वाणिज्यिक लेन-देन के लिये डिजिटलीकरण को प्रोत्साहित करना, अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाना और सरकारी कर राजस्व को बढ़ावा देना।
      • अर्थव्यवस्था के औपचारिकरण का अर्थ है, कंपनियों को सरकार की नियामक व्यवस्था के अंतर्गत लाना तथा विनिर्माण एवं आयकर से संबंधित कानूनों के अधीन करना
  • ऑपरेशन क्लीन मनी:
    • इसे आयकर विभाग (CBDT) द्वारा 9 नवंबर से 30 दिसंबर, 2016 की अवधि के दौरान किये गए बड़े नकद जमा के ई-सत्यापन के लिये लॉन्च किया गया था।
    • यह कार्यक्रम 31 जनवरी, 2017 को शुरू किया गया था और मई 2017 में इसने दूसरे चरण में प्रवेश किया।
    • इसका उद्देश्य नोटबंदी की अवधि के दौरान करदाताओं के नकद लेन-देन की स्थिति (प्रतिबंधित नोटों की विनिमय/बचत) को सत्यापित करना और यदि लेन-देन कर की स्थिति से मेल नहीं खाते हैं तो कर प्रवर्तन कार्रवाई करना है।
  • नोटबंदी का प्रभाव: 
    • 4 नवंबर, 2016 को जनता के पास प्रचलन मुद्रा 17.97 लाख करोड़ रुपए थी और नोटबंदी के बाद जनवरी 2017 में घटकर 7.8 लाख करोड़ रुपए रह गई।
    • इसके कारण मांग गिर गई, उद्यमों को संकट का सामना करना पड़ा और सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) की वृद्धि धीमी हो गई, जिसके परिणामस्वरूप कई छोटे व्यवसाय और दुकान बंद हो गए, साथ ही नकदी/तरलता की समस्या भी उत्पन्न हो गई।
    • तरलता की कमी या संकट तब उत्पन्न होता है जब वित्तीय संस्थान और औद्योगिक कंपनियाँ के लिये अपनी सबसे ज़रूरी आवश्यकताओं या अपनी सबसे मूल्यवान परियोजनाओं को पूरा करने के लिये आवश्यक नकदी की कमी हो जाती हैं।

आगे की राह 

  • नोटबंदी काले धन और समानांतर अर्थव्यवस्था (अवैध अर्थव्यवस्था, जैसे मनी लॉन्ड्रिंग, तस्करी आदि) के खतरे का साहसपूर्वक मुकाबला करने के लिये त्वरित कदम था, जिसका प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था के संदर्भ में सरकार की नीतियों के माध्यम से प्रदर्शित होता है।
  • सरकार के इस कदम ने विश्व स्तर पर भारत को अधिक महत्त्व प्रदान किया क्योंकि इसमें एक ऐसे मुद्दे से निपटने में साहस दिखाया गया जिसे इस पीढ़ी के विकास की सफलता की राह में सबसे बड़ी समस्या माना जा सकता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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