शासन व्यवस्था
C-295 विमान
प्रिलिम्स के लिये:भारत के नागरिक उड्डयन क्षेत्र की क्षमता, MSME, ऑफसेट बाध्यताएँ। मेन्स के लिये:C-295 विमान और इसकी निर्माण परियोजना का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने वडोदरा में एयरबस डिफेंस एंड स्पेस एसए, स्पेन और टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (TASL) द्वारा स्थापित की जाने वाली C-295 परिवहन विमान निर्माण सुविधा की आधारशिला रखी।
- यह पहली बार है जब कोई निजी क्षेत्र की कंपनी देश में एक पूर्ण विमान का निर्माण करेगी।
C-295 मेगावाट ट्रांसपोर्टर:
- परिचय:
- C-295 समसामयिक तकनीक के साथ 5-10 टन क्षमता का परिवहन विमान है।
- यह मज़बूत और भरोसेमंद होने के साथ-साथ एक बहुमुखी एवं कुशल सामरिक परिवहन विमान है, जो कई अलग-अलग मिशनों को पूरा कर सकता है।
- विशेषताएँ:
- इस विमान को 11 घंटे तक की उड़ान क्षमता के साथ सभी मौसमों में बहु-भूमिकाओं में संचालित किया सकता है।
- यह रेगिस्तान से लेकर समुद्री वातावरण तक नियमित रूप से दिन के साथ-साथ रात के दौरान युद्ध अभियानों को संचालित कर सकता है।
- इसमें सैनिकों और कार्गो की त्वरित प्रतिक्रिया तथा पैरा ड्रॉपिंग के लिये रियर रैंप दरवाज़ा है। अर्द्ध-निर्मित सतहों से शॉर्ट टेक-ऑफ/लैंड इसकी एक और विशेषता है।
- प्रतिस्थापन:
- यह भारतीय वायु सेना के एवरो-748 विमानों के पुराने बेड़े की जगह लेगा।
- एवरो-748 विमान एक ब्रिटिश मूल के ट्विन-इंजन टर्बोप्रॉप (British-origin twin-engine turboprop), सैन्य परिवहन और 6 टन माल ढुलाई क्षमता वाला मालवाहक विमान है।
- यह भारतीय वायु सेना के एवरो-748 विमानों के पुराने बेड़े की जगह लेगा।
- परियोजना निष्पादन:
- TASL एयरोस्पेस क्षेत्र में मेक-इन-इंडिया पहल के तहत वायु सेना को नए परिवहन विमान से लैस करने की परियोजना को संयुक्त रूप से निष्पादित करेगा।
- एयरबस द्वारा सितंबर 2023 से अगस्त 2025 के बीच उड़ान भरने में सक्षम पहले 16 विमानों की आपूर्ति की जाएगी, जबकि शेष 40 को TASL द्वारा सितंबर 2026 से वर्ष 2031 के बीच प्रतिवर्ष आठ विमानों की दर से भारत में असेंबल किया जाएगा।
- TASL एयरोस्पेस क्षेत्र में मेक-इन-इंडिया पहल के तहत वायु सेना को नए परिवहन विमान से लैस करने की परियोजना को संयुक्त रूप से निष्पादित करेगा।
इस विनिर्माण सुविधा का महत्त्व:
- रोज़गार सृजन:
- टाटा कंसोर्टियम ने सात राज्यों में फैले 125 से अधिक इन-कंट्री एमएसएमई आपूर्तिकर्ताओं की पहचान की है। यह देश के एयरोस्पेस पारितंत्र में रोज़गार सृजन में एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेगा।
- यह उम्मीद जताई गई है कि सीधे 600 उच्च कुशल रोज़गार, 3,000 से अधिक अप्रत्यक्ष रोज़गार और 3,000 अतिरिक्त मध्यम कौशल रोज़गार के अवसर के साथ भारत के एयरोस्पेस एवं रक्षा क्षेत्र में 42.5 लाख से अधिक 'काम के घंटे' सृजित होंगे।
- MSMEs को प्रोत्साहन:
- यह परियोजना भारत में एयरोस्पेस पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देगी जिसमें देश भर में फैले कई सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs) विमान के कुछ पुर्जों के निर्माण में शामिल होंगे।
- आयात पर निर्भरता कम होना:
- इससे घरेलू विमानन निर्माण में वृद्धि होगी जिसके परिणामस्वरूप आयात पर निर्भरता कम होगी और निर्यात में अपेक्षित वृद्धि होगी।
- बड़ी संख्या में डिटेल पार्ट्स, सब-असेंबलिंग और मेेजर कंपोनेंट का निर्माण भारत में किया जाएगा।
- अवसंरचनात्मक विकास:
- इसमें हैंगर, भवन, एप्रन और टैक्सीवे के रूप में विशेष बुनियादी ढाँचे का विकास शामिल होगा
- डिलीवरी के पूरा होने से पहले, भारत में C-295 MW विमानों के लिये 'D' लेवल सर्विसिंग सुविधा (MRO) स्थापित करने की योजना है।
- यह उम्मीद की जाती है कि यह सुविधा C-295 विमान के विभिन्न रूपों के लिये एक क्षेत्रीय MRO (रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल) हब के रूप में कार्य करेगी।
- ऑफसेट दायित्व:
- इसके अलावा एयरबस भारतीय ऑफसेट पार्टनर्स से योग्य उत्पादों और सेवाओं की सीधी खरीद के माध्यम से अपने ऑफसेट दायित्वों का निर्वहन भी करेगा, जिससे अर्थव्यवस्था को और अधिक बढ़ावा मिलेगा।
- सरल शब्दों में ऑफसेट एक ऐसा दायित्व है कि अगर किसी विदेशी भागीदार से भारत रक्षा उपकरण खरीद रहा है तो वह भारत के घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने हेतु प्रतिवद्ध होता है।
भारत के नागरिक उड्डयन क्षेत्र की क्षमता:
- अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण बाज़ार होने के अतिरिक्त भारत की रक्षा क्षेत्र की तुलना में नागरिक उड्डयन निर्माण क्षेत्र में काफी बड़ी उपस्थिति है। संयुक्त राज्य अमेरिका में एयरबस और बोइंग दोनों अपने नागरिक कार्यक्रमों का एक बड़ा हिस्सा भारत से प्राप्त करते हैं।
- भारत से बोइंग की सोर्सिंग सालाना 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की है, जिसमें से 60% से अधिक विनिर्माण में लगता है।
- भारत प्रतिवर्ष 45 से अधिक भारतीय आपूर्तिकर्त्ताओं से 650 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के विनिर्मित पुर्जे और इंजीनियरिंग सेवाएँ खरीदता है।
- 'मेक इन इंडिया' और 'मेक फॉर द ग्लोब' के मंत्र के साथ आगे बढ़ रहा भारत परिवहन विमानों का एक प्रमुख निर्माता बनकर अपनी क्षमता को लगातार बढ़ा रहा है।
- वर्ष 2007 के बाद से एयरबस का भारत में एक पूर्ण घरेलू स्वामित्त्व वाला डिज़ाइन केंद्र है, जिसमें 650 से अधिक इंजीनियर हैं, जो अत्याधुनिक वैमानिकी इंजीनियरिंग के विशेषज्ञ हैं और फिक्स्ड एवं रोटरी-विंग एयरबस विमान कार्यक्रमों दोनों में काम करते हैं।
- ऐसा अनुमान है कि आने वाले 10-15 वर्षों में भारत को लगभग 2000 से अधिक यात्री और मालवाहक विमानों की आवश्यकता होगी।
- एक अन्य प्रमुख उत्पादक क्षेत्र MRO (रखरखाव, मरम्मत और संचालन) है जिसके लिये भारत क्षेत्रीय केंद्र के रूप में उभर सकता है।
- MRO के अंतर्गत किसी वस्तु को उसकी कार्यशील स्थिति में रखने या पुनर्स्थापित करने का कार्य किया जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन कानून सभी देशों को उनके क्षेत्र के ऊपर हवाई क्षेत्र पर पूर्ण और अनन्य संप्रभुता प्रदान करते हैं। 'हवाई क्षेत्र' से आप क्या समझते है ? इस हवाई क्षेत्र के ऊपर अंतरिक्ष पर इन कानूनों के क्या प्रभाव हैं? इससे उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा कीजिये तथा खतरे को नियंत्रित करने के उपाय सुझाइये। ( 2014) प्रश्न. सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत संयुक्त उद्यमों के माध्यम से भारत में हवाई अड्डों के विकास का परीक्षण कीजिये। इस संबंध में अधिकारियों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं? (2017) |
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
भांडागारण विकास
प्रिलिम्स के लिये:भांडागारण विकास एवं विनियामक प्राधिकरण, इलेक्ट्रॉनिक नेगोशिएबल वेयरहाउस रिसीप्ट मेन्स के लिये:WDRA & E-NWR का महत्त्व और उद्देश्य |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में WDRA के स्थापना दिवस पर खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग (DFPD) के तहत भांडागारण विकास एवं विनियामक प्राधिकरण, (WDRA) द्वारा “e-NWR - प्लेज वित्तपोषण को बढ़ावा देने के लिये एक प्रभावी उपकरण" पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
भांडागारण विकास एवं विनियामक प्राधिकरण:
- परिचय:
- इसका गठन वर्ष 2010 में भांडागारण (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 2007 द्वारा किया गया था ।
- यह सार्वजनिक नीति की एक पहल थी जिसके तहत e-NWR को व्यापार का एक प्रमुख उपकरण बनाने, ग्रामीण क्षेत्रों में तरलता बढ़ाने, किसानों की आय बढ़ाने, फसल के बाद के नुकसान को कम करने आदि के उद्देश्य से प्रौद्योगिकी का उपयोग किसानों के लाभ के लिये करना था।
- उद्देश्य:
- WDRA का प्रमुख उद्देश्य देश में नेगोशिएबल वेयरहाउस रसीद (NWR) प्रणाली को कार्यान्वित करना है।
- इस प्राधिकरण का प्रमुख कार्य भांडागारणं के विकास और विनियमन के लिये प्रावधान करना है जिनमें अन्य बातों के साथ-साथ भांडागारण रसीद की निगोशिएबिलिटी, भांडागारण का पंजीकरण, माल की वैज्ञानिक भांडागारण को प्रोत्साहन देना, जमाकर्ताओं और बैंकों के आपसी विश्वास को बढ़ाना, ग्रामीण क्षेत्रों में नकदी की स्थिति में सुधार करना और प्रभावकारी आपूर्ति शृंखला को प्रोत्साहन देना शामिल है।
- उपलब्धि:
- WDRA के साथ पंजीकृत गोदामों की संख्या में वृद्धि हुई थी और बैंकों एवं किसानों तक इसकी पहुँच में तेज़ी से सुधार हुआ था।
- वर्ष 2021-22 तक 123 गोदाम WDRA के तहत पंजीकृत हैं, जो कुल 17,975 e-NWR जारी करते हैं।
नेगोशिएबल वेयरहाउस रसीद:
- परिचय:
- इसे उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2011 में लॉन्च किया गया था।
- लाभ:
- किसान भंडारण के एवज में जारी की गई गोदाम रसीदों से बैंकों से ऋण प्राप्त कर सकते हैं।
- WDRA के साथ पंजीकृत गोदामों द्वारा जारी ये रसीदें केंद्रीय कानून द्वारा समर्थित पूरी तरह से परक्राम्य लिखत बन जाएंगी।
- इलेक्ट्रॉनिक रूप में NWR जारी करना:
- इलेक्ट्रॉनिक नेगोशिएबल वेयरहाउस रिसीप्ट:
- इसकी परक्राम्यता (Negotiability) है और इसका उपयोग वस्तुओं के जमा एवं निकासी के साथ-साथ हस्तांतरण व प्रतिज्ञा जैसे व्यापारिक लेन-देन के लिये किया जा सकता है।
- इसे वर्ष 2017 में लॉन्च किया गया था।
- इसे e-NAM और रिपॉजिटरी के बीच इंटरफेस प्रदान करके इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट (e-NAM) प्लेटफॉर्म के साथ एकीकृत किया गया है।
- इलेक्ट्रॉनिक नॉन-नेगोशिएबल वेयरहाउस रिसीप्ट (e-NNWR) जिसका उपयोग केवल व्यापार/हस्तांतरण की सुविधा के बिना वस्तुओं के जमा और निकासी के लिये किया जा सकता है।
- इलेक्ट्रॉनिक नेगोशिएबल वेयरहाउस रिसीप्ट:
e-NWR प्लेज फाइनेंस
- प्लेज़िंग वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक eNWR धारक सुरक्षा के रूप में eNWR की अंतर्निहित वस्तु (सेवा) का उपयोग करके किसी वित्तीय संस्थान से ऋण प्राप्त करता है।
- जब एक प्लेज़ अंकित की जाती है तो e-NWR शेष राशि (बैलेंस) केवल ग्राहक के खाते (उधारकर्त्ता) में ही रहेगी लेकिन शेष राशि(बैलेंस) पर नियंत्रण वित्तीय संस्थान पास होगा।
- जब तक वित्तीय संस्थान के पक्ष में प्लेज़ सक्रिय नहीं हो जाती, तब तक ग्राहक eNWR शेष राशि का उपयोग नहीं कर पाएगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विकास में विपणन और आपूर्ति शृंखला प्रबंधन संबंधी क्या बाधाएँ हैं? क्या ई-कॉमर्स इस अड़चन को दूर करने में मदद कर सकता है? (2016) |
स्रोत: पी.आई.बी.
एथिक्स
स्वचालित कारों को अपनाना
मेन्स के लिये:स्वचालित कारों द्वारा सामना की जाने वाली नैतिक दुविधाएँ |
चर्चा में क्यों?
जानलेवा टेस्ला कारों द्वारा दुर्घटनाओं से उत्पन्न मुकदमों की एक शृंखला और एक आपराधिक मामले में, टेस्ला (Tesla) को वर्ष 2015 में ऑटोपायलट लॉन्च करने के बाद से सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा।
स्वचालित कारों द्वारा सामना की जाने वाली नैतिक दुविधाएँ:
- पूर्वनिर्धारित निर्णय शक्ति:
- स्वचालित कारें मूल रूप से रोबोट हैं जिन्हें एल्गोरिदम का उपयोग करके प्रोग्राम किया गया है, इसलिये इसकी अधिक संभावना होती है कि वे सभी मामलों में निर्धारित नियमों या पैटर्न का पालन करें।
- ड्राइवर को नियंत्रण सौंपना:
- स्वचालित कारों की सबसे बड़ी दुविधाओं में से एक यह है कि क्या अंतिम क्षण में ड्राइवर को नियंत्रण सौंपना सही होगा।
- यह न केवल स्वचालित कारों की नैतिकता के बारे में बल्कि ड्राइवर की नैतिकता के बारे में भी सवाल उठाएगा।
- सेल्फ-ड्राइविंग कारों की नैतिकता के सही निर्णयकर्त्ता:
- कुछ के अनुसार, इस बात पर बहस चल रही है कि सेल्फ-ड्राइविंग कारों की नैतिकता किसे तय करनी चाहिये।
- यह तर्क दिया जा सकता है कि सेल्फ-ड्राइविंग मामलों की नैतिकता तय करने के लिये कोई भी सही मालिक नहीं है। निर्णय कार के चालक के हाथ में होना चाहिये।
- निष्पक्ष निर्णय लेने के लिये कार को प्रोग्राम करना:
- कुछ का यह भी तर्क है कि सेल्फ-ड्राइविंग कार का सबसे अच्छा तरीका दुर्घटनाओं के मामले में निष्पक्ष निर्णय लेना है।
- उन्हें उम्र, लिंग या अन्य मापदंडों के आधार पर मनुष्यों के बीच भेदभाव नहीं करना चाहिये। उन्हें हमेशा ऐसा निर्णय लेना चाहिये जिससे कम-से-कम प्रभाव पड़े।
- हैकिंग की दुविधा:
- संवेदनशील डेटा तक पहुँच हासिल करने या किसी दुष्कर्म को अंजाम देने के लिये कार के सिस्टम में साइबर-क्रिमिनल हैकिंग का खतरा हमेशा बना रहता है।
- उदाहरण के लिये क्या होगा यदि स्वायत्त कार को साइबर अपराधी द्वारा हैक किया जाता है और चालक को दोषी ठहराने के लिये दुर्घटना को अंजाम दिया जाता है?
स्वायत्त/स्वचालित कार:
- विषय:
- एक स्वायत्त कार एक ऐसा वाहन है जो मानव भागीदारी के बिना अपने आसपास को समझने और संचालन करने में सक्षम है।
- इसमें मानव यात्री को किसी भी समय वाहन को नियंत्रित करने की आवश्यकता नहीं होती है, न ही मानव यात्री को वाहन में उपस्थित होने की आवश्यकता होती है।
- एक स्वायत्त कार कहीं भी जा सकती है जैसे कि एक पारंपरिक कार जाती है और वह कोई भी कार्य कर सकती है जो एक कुशल मानव चालक कर सकता है।
- लाभ:
- ट्रैफिक जाम में कमी
- परिवहन लागत में 40% की कटौती
- पैदल चलने में सुधार
- अन्य उपयोगों के लिये पार्किंग स्थल की उपलब्धता
- दुनिया भर में शहरी CO2 उत्सर्जन को 80% तक कमी
आगे की राह
- जैसे-जैसे सेल्फ-ड्राइविंग कारों को अपनाने के कारण इस विषय पर बहस तेज़ हो रही है, यह आशा की जा रही है कि सख्त कानून और विनियम बनाए जाएंगे जो अंततः सही, न्यायसंगत तरीके से सवालों का जवाब दे सकेंगे।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
गैंडों के सींगों में संकुचन
प्रिलिम्स के लिये:जैवविविधता और पर्यावरण, संरक्षण, IUCN रेड लिस्ट, इंडियन राइनो विज़न 2020।। मेन्स के लिये:गैंडा, इसकी प्रजातियाँ, खतरे और संरक्षण। |
चर्चा में क्यों?
हाल के एक अध्ययन के अनुसार, समय के साथ गैंडे के सींग का आकार संकुचित होता जा रहा है जिसके लिये शिकार को उत्तरदायी माना गया है।
- इस अध्ययन में पाँच शताब्दियों से अधिक समय तक की जानवर की कलाकृति और तस्वीरों का विश्लेषण कर एक दिलचस्प शोध दृष्टिकोण का इस्तेमाल किया गया है।
- यह अध्ययन नीदरलैंड स्थित राइनो रिसर्च सेंटर (RRC) द्वारा निर्मित चित्रों के भंडार पर आधारित था।
निष्कर्ष:
- गैंडे की पाँच प्रजातियाँ (अफ्रीका में सफेद और काले गैंडे, एशिया में एक सींग वाला गैंडा, जावन और सुमात्रन राइनो प्रजातियाँ) अभी भी आवास के नुकसान तथा शिकार के कारण संकटग्रस्त हैं।
- गंभीर रूप से संकटग्रस्त सुमात्रन राइनो में सींग की लंबाई में गिरावट की दर सबसे अधिक थी और अफ्रीका के सफेद गैंडे में सबसे कम थी, जो जंगली एवं पालतू दोनों मामले में सबसे अधिक पाई जाने वाली प्रजाति है।
- यह अवलोकन अन्य जानवरों में देखे गए पैटर्न का अनुसरण करता है, जैसे हाथियों में टस्क का आकार और जंगली भेड़ में सींग की लंबाई में शिकार के कारण कमी आई हैै।
- यूरोपीय साम्राज्यवाद (16वीं और 20वीं सदी के बीच) के दौरान गैंडों को आमतौर पर शिकार ट्रॉफियों के रूप में परिलक्षित किया जाता था, लेकिन उन्हें 20वीं सदी के मध्य से एक संरक्षण संदर्भ में तीव्रता से चिह्नित किया गया क्योंकि मनुष्य और गैंडों के बीच उपभोगवादी धारणा में सुधार होने से अब यह बेहतर हो गया है।
राइनो के बारे में महत्त्वपूर्ण तथ्य:
- विषय:
- गैंडों की पाँच प्रजातियाँ हैं - अफ्रीका में सफेद और काले गैंडे, एशिया में एक-सींग वाले, जावन और सुमात्रन गैंडों की प्रजातियाँ।।
- IUCN की रेड लिस्ट:
- ब्लैक राइनो: गंभीर रूप से लुप्तप्राय। अफ्रीकी राइनो की दो प्रजातियों में से एक जिसका आकार छोटा होता है।
- व्हाइट राइनो: हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (In vitro Fertilization) प्रक्रिया का उपयोग करके इस राइनो का एक भ्रूण बनाया है।
- जावा राइनो: यह IUCN की रेड लिस्ट में गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically endangered) की श्रेणी में शामिल है।
- सुमात्रन राइनो: मलेशिया में अब यह विलुप्त हो गई हैं।
- एक सींग वाले गैंडे: सुभेद्य
- भारतीय गैंडा:
- विषय:
- भारत में केवल एक सींग वाला गैंडा पाया जाता है।
- इसे भारतीय गैंडा (राइनो) के रूप में भी जाना जाता है, यह राइनो प्रजातियों में सबसे बड़ा है।
- यह एकल काले सींग और त्वचा की विभिन्न परतों तथा भूरे रंग की खाल से पहचाना जाता है।
- वे मुख्य रूप से घास के साथ-साथ पत्तियों, झाड़ियों और पेड़ों की शाखाओं, फलों एवं जलीय पौधों से युक्त आहार चरते है।
- वे ज़्यादातर चरते रहते हैं और घास के साथ-साथ पत्तियाँ, झाड़ियाँ और पेड़ की शाखाएँ, फल और जलीय वनस्पतियाँ खाते हैं।
- विषय:
- आवास:
- यह प्रजाति इंडो-नेपाल के तराई क्षेत्र, उत्तरी पश्चिम बंगाल और असम तक सीमित है।
- भारत में गैंडे मुख्य रूप से असम, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं।
- असम में चार संरक्षित क्षेत्रों (पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य, राजीव गांधी ओरंग नेशनल पार्क, काज़ीरंगा नेशनल पार्क एवं मानस राष्ट्रीय उद्यान) में 2,640 गैंडे हैं।
- इनमें से लगभग 2,400 गैंडे काज़ीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व (Kaziranga National Park and Tiger Reserve) में हैं।
- संरक्षण की स्थिति:
- IUCN की रेड लिस्ट: सुभेद्य (Vulnerable)।
- CITES: परिशिष्ट I (इसमें ‘लुप्तप्राय’ प्रजातियों को शामिल किया जाता है, जिनका व्यापार किये जाने के कारण उन्हें और अधिक खतरा हो सकता है।)
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची-I
- खतरा:
- सींगों के लिये अवैध शिकार
- पर्यावास की हानि
- जनसंख्या घनत्व
- घटती जेनेटिक विविधता
भारत द्वारा संरक्षण के प्रयास:
- राइनो रेंज के पाँच देशों (भारत, भूटान, नेपाल, इंडोनेशिया और मलेशिया) ने इन प्रजातियों के संरक्षण एवं सुरक्षा के लिये न्यू डेल्ही डिक्लेरेशन ऑन एशियन राइनोज़ (The New Delhi Declaration on Asian Rhinos), 2019 पर हस्ताक्षर किये हैं।
- हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने देश में सभी गैंडों के लिये डीएनए प्रोफाइल बनाने हेतु एक परियोजना शुरू की है।
- राष्ट्रीय राइनो संरक्षण रणनीति: इसे वर्ष 2019 में एक-सींग वाले गैंडों के संरक्षण के लिये लॉन्च किया गया था।
- इंडियन राइनो विज़न 2020: इसे वर्ष 2005 में शुरू किया गया। भारतीय राइनो विज़न 2020 के तहत वर्ष 2020 तक भारतीय राज्य असम में स्थित सात संरक्षित क्षेत्रों में फैले एक सींग वाले गैंडों की आबादी को बढ़ाकर कम-से-कम 3,000 से अधिक करने का एक महत्त्वाकांक्षी प्रयास था।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) |
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत का पहला जल में तैरता वित्तीय साक्षरता शिविर
प्रिलिम्स के लिये:निवेशक दीदी पहल, इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक, पानी में तैरता वित्तीय साक्षरता शिविर मेन्स के लिये:वित्तीय समावेशन, वित्तीय समावेशन के संबंधित पहलें, भारतीय डाक पेमेंट बैंक, |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक (IPPB) ने श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर) में 'निवेशक दीदी' पहल के तहत 'महिलाओं के लिये, महिलाओं के द्वारा' की अवधारणा के साथ वित्तीय साक्षरता को बढ़ाने के लिये भारत का पहला पानी पर तैरता वित्तीय साक्षरता शिविर आयोजित किया।
निवेशक दीदी पहल:
- विषय:
- यह महिलाओं के लिये महिलाओं की विचारधारा पर आधारित है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएँ अपने प्रश्नों को एक महिला के साथ साझा करने में अधिक सहज महसूस करती हैं।
- कार्यान्वयन एजेंसी:
- इसे कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) के तत्त्वाधान में निवेशक शिक्षा और संरक्षण कोष प्राधिकरण (IEPFA) के सहयोग से IPPB द्वारा लॉन्च किया गया है।
- पानी में तैरता वित्तीय साक्षरता शिविर:
- इस सत्र में बैंकिंग और वित्तीय उत्पादों, विनियमित संस्थाओं द्वारा दी जाने वाली मुख्यधारा की वित्तीय सेवाओं में शामिल होने के महत्त्व एवं निवेश से जुड़े विभिन्न प्रकार के जोखिमों तथा धोखाधड़ी की रोकथाम के उपायों से सुरक्षा जैसे विषय शामिल थे।
वित्तीय साक्षरता के लिये भारत की अन्य पहलें:
- प्रधानमंत्री जन-धन योजना:
- प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) वित्तीय समावेशन हेतु राष्ट्रीय मिशन है।
- यह किफायती तरीके से वित्तीय सेवाओं, अर्थात् बैंकिंग/बचत और जमा खाते, प्रेषण, क्रेडिट, बीमा, पेंशन तक पहुँच सुनिश्चित करता है।
- प्रधानमंत्री जन-धन योजना (PMJDY) जन-केंद्रित आर्थिक पहलों की आधारशिला रही है। चाहे प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT), कोविड-19 वित्तीय सहायता, पीएम-किसान, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत बढ़ी हुई मज़दूरी, जीवन और स्वास्थ्य बीमा कवर हो, इन सभी पहलों का पहला कदम प्रत्येक वयस्क को बैंक खाता प्रदान करना है, जिसे PMJDY लगभग पूरा कर चुका है।
- प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना:
- प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना प्रवासियों एवं श्रमिकों को क्रमशः जीवन बीमा और दुर्घटना बीमा प्रदान करती है।
- प्रधानमंत्री किसान मान धन योजना:
- PMKMDY की शुरुआत सभी छोटे और सीमांत किसानों (जिन किसानों की भूमि दो हेक्टेयर से कम है) को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये की गई थी।
- यह एक स्वैच्छिक और योगदान आधारित पेंशन योजना है।
- किसानों को पेंशन का भुगतान भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा प्रबंधित पेंशन फंड से किया जाएगा।
- किसानों को पेंशन फंड में 55 रुपए से 200 रुपए प्रतिमाह के बीच की राशि का योगदान करना होगा, जब तक कि वे सेवानिवृत्ति की तारीख यानी 60 वर्ष की आयु तक नहीं पहुँच जाते।
- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना:
- PMMY गैर-कॉर्पोरेट, गैर-कृषि लघु/सूक्ष्म उद्यमों को 10 लाख तक का ऋण प्रदान करने के लिये वर्ष 2015 में शुरू की गई एक योजना है।
- इन ऋणों को PMMY के तहत MUDRA ऋणों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- ये ऋण वाणिज्यिक बैंक, RRB, लघु वित्त बैंक, सहकारी बैंक, MFI और NBFC द्वारा दिये जाते हैं।
इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक (IPPB):
- परिचय:
- यह भारत सरकार के स्वामित्व वाली 100% इक्विटी के साथ संचार मंत्रालय के डाक विभाग के तहत स्थापित किया गया है।
- उद्देश्य:
- बैंक की स्थापना भारत में आम आदमी के लिये सबसे सुलभ, किफायती और भरोसेमंद बैंक बनाने की दृष्टि से की गई है।
- IPPB का मूल उद्देश्य बैंक सुविधाओं रहित लोगों के लिये बाधाओं को दूर करना है और 160,000 डाकघरों (ग्रामीण क्षेत्रों में 145,000) एवं 400,000 डाक कर्मचारियों वाले नेटवर्क का लाभ अंतिम मील तक पहुँचाना है।
- IPPB की पहुँच और इसका ऑपरेटिंग मॉडल इंडिया स्टैक के प्रमुख स्तंभों पर बनाया गया है - CBS-एकीकृत स्मार्टफोन और बायोमेट्रिक डिवाइस के माध्यम से ग्राहकों के दरवाज़े पर पेपरलेस, कैशलेस एवं उपस्थिति-रहित बैंकिंग को सरल व सुरक्षित तरीके से सक्षम करना।
- आईपीपीबी कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन प्रदान करने और डिजिटल इंडिया के दृष्टिकोण में योगदान देने के लिये प्रतिबद्ध है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. प्रधानमंत्री मुद्रा योजना का उद्देश्य: (2016) (a) छोटे उद्यमियों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाना उत्तर: (a) व्याख्या:
अतः विकल्प (a) सही उत्तर है। मेन्सQ. प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) बैंक-रहित को संस्थागत वित्त के दायरे में लाने हेतु आवश्यक है। क्या आप सहमत है कि इससे भारतीय समाज के गरीब तबके के लोंगों का वित्तीय समावेश होगा? अपने मत की पुष्टि के लिये तर्क प्रस्तुत कीजिये। (2016) Q. क्या बाज़ार अर्थव्यवस्था के अंतर्गत समावेशी विकास संभव है? भारत में आर्थिक विकास की प्राप्ति के लिये वित्तीय समावेश के महत्त्व का उल्लेख कीजिये। (2022) |
स्रोत: पी.आई.बी.
कृषि
पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी दरों को मंज़ूरी
प्रिलिम्स के लिये:पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी, पी एंड के उर्वरक, यूरिया मेन्स के लिये:NBS व्यवस्था और संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रबी सीज़न 2022-23 के लिये 1 अक्तूबर, 2022 से 31 मार्च, 2023 तक फॉस्फेटिक और पोटासिक (P&K) उर्वरकों के लिये पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी (NBS) दरों को मंज़ूरी दी।
- सभी गैर-यूरिया आधारित उर्वरकों को NBS योजना के तहत विनियमित किया जाता है।
पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी (NBS) व्यवस्था:
- NBS व्यवस्था के तहत इन उर्वरकों में निहित पोषक तत्त्वों (N, P, K और S) के आधार पर किसानों को रियायती दरों पर उर्वरक प्रदान किये जाते हैं।
- साथ ही जिन उर्वरकों को द्वितीयक और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों जैसे मोलिब्डेनम (Mo) एवं जस्ता के साथ मज़बूत किया जाता है, उन्हें अतिरिक्त सब्सिडी दी जाती है।
- P&K उर्वरकों पर सब्सिडी की घोषणा सरकार द्वारा प्रति किलो के आधार पर प्रत्येक पोषक तत्त्व के लिये वार्षिक आधार पर की जाती है, जो P&K उर्वरकों की अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू कीमतों, विनिमय दर, देश में सूची स्तर आदि को ध्यान में रखते हुए निर्धारित की जाती है।
- NBS नीति का उद्देश्य P&K उर्वरकों की खपत में वृद्धि करना है ताकि NPK उर्वरकों का इष्टतम संतुलन (N:P:K= 4:2:1) हासिल किया जा सके।
- इससे मृदा के स्वास्थ्य में सुधार होगा और परिणामस्वरूप फसलों की उपज में वृद्धि होगी, जिसके परिणामस्वरूप किसानों की आय में वृद्धि होगी।
- साथ ही जैसा कि सरकार को उर्वरकों के तर्कसंगत उपयोग की उम्मीद है, इससे उर्वरक सब्सिडी का बोझ भी कम होगा।
- इसे उर्वरक विभाग, रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय द्वारा अप्रैल 2010 से क्रियान्वित किया जा रहा है।
NBS से संबंधित मुद्दे:
- उर्वरकों की कीमत में असंतुलन:
- चूँकि यूरिया योजना में शामिल नहीं है, इसकी कीमत अभी भी नियंत्रण में है क्योंकि NBS केवल उर्वरकों पर लागू किया गया है। वर्तमान में यूरिया का अधिकतम खुदरा मूल्य औपचारिक रूप से 5,628 रुपए प्रति टन तय की गई है। तकनीकी रूप से,अन्य उर्वरकों के लिये कोई मूल्य विनियमन नहीं है। अन्य गैर-विनियमित उर्वरकों की बढ़ती लागत के कारण किसान अब पहले की तुलना में अधिक यूरिया का उपयोग कर रहे हैं। परिणामस्वरूप उर्वरक में असंतुलन की स्थिति और भी बदतर हो गई है।
- अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर प्रभाव:
- खाद्य सब्सिडी के बाद उर्वरक सब्सिडी दूसरी सबसे बड़ी सब्सिडी है, एनबीएस नीति न केवल अर्थव्यवस्था के वित्तीय स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा रही है बल्कि देश की मिट्टी के स्वास्थ्य के लिये भी हानिकारक साबित हो रही है।
- कालाबाज़ारी:
- सब्सिडी वाली यूरिया को थोक खरीदारों/व्यापारियों या यहाँ तक कि गैर-कृषि उपयोगकर्त्ताओं जैसे कि प्लाईवुड और पशु-चारा निर्माताओं को दिया जा रहा है।
- इसकी तस्करी बांग्लादेश और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों में की जा रही है।
- सब्सिडी वाली यूरिया को थोक खरीदारों/व्यापारियों या यहाँ तक कि गैर-कृषि उपयोगकर्त्ताओं जैसे कि प्लाईवुड और पशु-चारा निर्माताओं को दिया जा रहा है।
आगे की राह
- उर्वरक उपयोग में असंतुलन को दूर करने के लिये यूरिया को एनबीएस के तहत लाना चाहिये।
- ऐसा करने का एक व्यावहारिक तरीका यूरिया की कीमतों में वृद्धि करना और साथ ही अन्य उर्वरकों को सस्ता करने के लिये फास्फोरस, पोटाश और सल्फर की एनबीएस दरों को कम करना है।
- यह देखते हुए कि सभी तीन पोषक तत्त्व अर्थात् एन (नाइट्रोजन), पी (फास्फोरस) और के (पोटेशियम) फसल की उत्पादकता एवं उपज की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, सरकार को आवश्यक रूप से सभी उर्वरकों हेतु एक समान नीति बनानी चाहिये।
- दीर्घावधि में एनबीएस की जगह प्रति एकड़ नकद सब्सिडी (एकमुश्त) दी जानी चाहिये जिसका उपयोग किसी भी उर्वरक को खरीदने में किया जा सकता है।
- इस सब्सिडी में मूल्यवर्द्धित और अनुकूलित उत्पाद शामिल होने चाहिये जिनमें न केवल अन्य पोषक तत्त्व हों, बल्कि यूरिया की तुलना में नाइट्रोजन को भी अधिक कुशलता से वितरित किया जाए।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. भारत में रासायनिक उर्वरकों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प B सही उत्तर है। |
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय राजव्यवस्था
विचाराधीन कैदियों के लिये मतदान का अधिकार
प्रिलिम्स के लिये:कैदियों के वोट का अधिकार, एनसीआरबी, अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) से संबंधित प्रावधान। मेन्स के लिये:विचाराधीन कैदियों के लिये मतदान का अधिकार। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने जनप्रतिनिधित्व कानून के एक प्रावधान को चुनौती देने वाली एक याचिका पर विचार करने का फैसला किया है जो विचाराधीन कैदियों, सिविल जेलों में कैद व्यक्तियों और जेलों में सज़ा काट रहे कैदियों पर वोट डालने से पूर्ण प्रतिबंध लगाता है।
संबंधित निहितार्थ:
- जनसंख्या के एक बड़े हिस्से को वंचित करता है:
- राष्ट्रीय अपराध रिपोर्ट ब्यूरो (एनसीआरबी) की वर्ष 2021 की नवीनतम रिपोर्ट से पता चलता है कि 31 दिसंबर, 2021 तक देश भर की विभिन्न जेलों में कुल 5,54,034 कैदी थे।
- वर्ष 2021 के अंत तक दोषियों, विचाराधीन कैदियों और बंदियों की संख्या क्रमशः 1,22,852, 4,27,165 और 3,470 थी, जो कुल कैदियों के क्रमशः 22.2%, 77.1% और 0.6% थी।
- वर्ष 2020 से 2021 तक विचाराधीन कैदियों की संख्या में 14.9% की वृद्धि हुई थी।
- कानून और लोकतंत्र के सम्मान में कमी: जेल के कैदियों को मताधिकार से वंचित करने से ऐसा संदेश पहुँचने की अधिक संभावना है जो उन मूल्यों को बढ़ाने वाले संदेशों की तुलना में कानून और लोकतंत्र के प्रति सम्मान को कमज़ोर करते हैं।
- अधिकार से वंचित रखना:
- वोट देने के अधिकार से वंचित रखना दंड के वैद्य मापदंडों का अनुपालन नहीं करता है।
- यदि एक दोषी व्यक्ति जमानत पर बाहर होने पर मतदान कर सकता है, तो एक विचाराधीन व्यक्ति को उसी अधिकार से वंचित क्यों किया जाता है, जिसे अभी तक कानून की अदालत द्वारा अपराध का दोषी नहीं पाया गया है।
- यहाँ तक कि एक देनदार (एक व्यक्ति जिसने अदालत के फैसले के बावजूद अपने कर्ज का भुगतान नहीं किया है) जिसे एक नागरिक के रूप में गिरफ्तार किया गया है, उसे वोट देने के अधिकार से वंचित किया जाता है। सिविल जेलों में नज़रबंदी अपराधों के लिये कारावास के विपरीत है।
- उचित वर्गीकरण का अभाव:
- दक्षिण अफ्रीका, यूनाइटेड किंगडम, फ्राँस, जर्मनी, ग्रीस, कनाडा, आदि देशों के विपरीत इस प्रतिबंध में अपराध की प्रकृति या सज़ा की अवधि के आधार पर उचित वर्गीकरण का अभाव है।
- वर्गीकरण का यह अभाव अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के तहत समानता के मौलिक अधिकार के लिये अभिशाप है।
मतदान से संबंधित कैदियों के अधिकार:
- संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत मतदान का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है।
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62(5) के तहत पुलिस की कानूनी हिरासत में और दोषी ठहराए जाने के बाद कारावास की सज़ा काटने वाले व्यक्ति मतदान नहीं कर सकते। विचाराधीन कैदियों को भी चुनाव में भाग लेने से बाहर रखा जाता है, भले ही उनके नाम मतदाता सूची में हों।
- केवल निवारक निरोध के तहत शामिल व्यक्ति डाक मतपत्रों के माध्यम से अपना वोट डाल सकते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न- भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या :
अतः विकल्प (b) सही है। |
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
टू फिंगर टेस्ट
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, विश्व स्वास्थ्य संगठन मेन्स के लिये:बलात्कार पीड़ितों के लिये प्रतिगामी कानून |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि कथित बलात्कार पीड़ितों का 'टू-फिंगर टेस्ट' कराने वालों को कदाचार का दोषी ठहराया जाएगा।
टू फिंगर टेस्ट:
- परिचय:
- चिकित्सक द्वारा किये जाने वाले टू-फिंगर टेस्ट में पीड़िता के जननांगों की संसर्ग संबंधी अभ्यास की जाँच की जाती है।
- यह अभ्यास अवैज्ञानिक है और कोई विशिष्ट जानकारी प्रदान नहीं करता है। इसके अलावा ऐसी 'सूचना/जानकारी' का बलात्कार के आरोप से कोई लेना-देना नहीं है।
- महिला जिसका यौन उत्पीड़न हुआ है, उसके स्वास्थ्य और चिकित्सीय ज़रूरतों का पता लगाने, साक्ष्य एकत्र करने आदि के लिये उसे चिकित्सीय परीक्षण से गुज़रना पड़ता है।
- यौन उत्पीड़न पीड़ितों के मामलों से निपटने के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा जारी एक पुस्तिका कहती है, "कौमार्य (या 'टू-फिंगर') परीक्षण के लिये कोई जगह नहीं है, इसकी कोई वैज्ञानिक वैधता नहीं है।"
- चिकित्सक द्वारा किये जाने वाले टू-फिंगर टेस्ट में पीड़िता के जननांगों की संसर्ग संबंधी अभ्यास की जाँच की जाती है।
- सर्वोच्च न्यायालय का अवलोकन:
- वर्ष 2004 में सर्वोच्च न्यायालय की एकल बेंच ने महिलाओं के एक्टिव और पैसिव इंटरकोर्स को आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) के तत्त्वों को लागू करने के आलोक में अप्रासंगिक माना।
- न्यायालय ने कहा कि जब कोई महिला बलात्कार का आरोप लगाती है तो उसे, उसके यौन रूप से सक्रिय होने के कारण बलात्कार न मानना पितृसत्तात्मक और भेदभावपूर्ण का प्रतीक है।
- मई 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि टू फिंगर टेस्ट किसी महिला के निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है और सरकार से यौन शोषण की पुष्टि के लिये बेहतर चिकित्सा प्रक्रिया प्रदान करने हेतु आग्रह किया था।
- आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय, 1966 तथा अपराध के शिकार एवं शक्ति के दुरुपयोग के पीड़ितों के लिये न्याय के बुनियादी सिद्धांतों की संयुक्त राष्ट्र घोषणा 1985 का आह्वान करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि बलात्कार पीड़ित कानूनी सहायता की हकदार हैं क्योंकि इससे उन्हें नुकसान पहुँचने के साथ इनकी शारीरिक या मानसिक अखंडता और गरिमा पर आघात होता है।
- अप्रैल 2022 में मद्रास उच्च न्यायालय ने राज्य को टू-फिंगर टेस्ट पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया था।
सरकार के दिशा-निर्देश:
- त्वरित सुनवाई के लिये आपराधिक कानून में संशोधन और यौन उत्पीड़न के मामलों में बढ़ी सज़ा पर विचार हेतु गठित जस्टिस वर्मा समिति, 2013 की रिपोर्ट के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने वर्ष 2014 की शुरुआत में यौन उत्पीड़न के शिकार लोगों की चिकित्सा जाँच हेतु विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये।
- दिशानिर्देशों के अनुसार, बलात्कार/यौन हिंसा को स्थापित करने के लिये 'टू-फिंगर टेस्ट' नहीं किया जाना चाहिये।
- दिशानिर्देशों में कहा गया है कि किसी भी मेडिकल जाँच के लिये बलात्कार पीड़िता (या उसके अभिभावक, यदि वह नाबालिग/मानसिक रूप से विकलांग है) की सहमति आवश्यक है। सहमति न देने पर भी पीड़िता को आवश्यक इलाज की सुविधा मुहैया कराई जाती है।
- हालाँकि ये दिशानिर्देश मात्र हैं कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं।
आगे की राह
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों को निजी एवं सरकारी अस्पतालों में परिचालित किया जाना चाहिये।
- बलात्कार पीड़िताओं का परीक्षण किये जाने से रोकने हेतु स्वास्थ्य प्रदाताओं के लिये कार्यशालाएँ आयोजित की जानी चाहिये।
- इस मुद्दे को डॉक्टरों और पुलिसकर्मियों दोनों के व्यापक संवेदीकरण एवं प्रशिक्षण द्वारा संबोधित किया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: हमें देश में महिलाओं के प्रति यौन-उत्पीड़न के बढ़ते हुए दृष्टांत दिखाई दे रहे हैं। इस कुकृत्य के विरूद्ध विद्यमान विधिक उपबंधों के होते हुए भी ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस संकट से निपटने के लिये कुछ नवाचारी सुझाव दीजिये। (2014) |