वैश्विक नवाचार सूचकांक 2023
प्रिलिम्स के लिये:वैश्विक नवाचार सूचकांक 2023, विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO), संयुक्त राष्ट्र, दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्वी एशिया और ओशिनिया (SEAO) क्षेत्र, विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्लस्टर मेन्स के लिये:ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स 2023, नवाचार के क्षेत्र में भारत की वृद्धि और विकास |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organization- WIPO) द्वारा प्रकाशित वैश्विक नवाचार सूचकांक 2023 रैंकिंग में भारत ने 40 वाँ स्थान प्राप्त किया है।
- वर्ष 2023 का सूचकांक इस वर्ष विश्वभर की की 132 अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे नवीन अर्थव्यवस्थाओं को रैंकिंग प्रदान करता है तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शीर्ष 100 नवाचार समूहों की पहचान करता है।
नोट: प्रतिवर्ष जारी किया जाने वाला वैश्विक नवाचार सूचकांक(Global Innovation Index- GII) किसी अर्थव्यवस्था के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र के प्रदर्शन का आकलन करने के लिये एक प्रमुख उपकरण है। यह एक प्रमुख बेंचमार्किंग उपकरण भी है जिसका उपयोग नीति निर्माताओं, व्यापारियों तथा अन्य हितधारकों द्वारा बढ़ते समय के साथ नवाचार के क्षेत्र में हो रही प्रगति का आकलन करने के लिये किया जाता है।
WIPO:
- WIPO बौद्धिक संपदा (Intellectual Property- IP) सेवाओं, नीति, सूचना और सहयोग के लिये वैश्विक मंच है।
- यह संयुक्त राष्ट्र की एक स्व-वित्तपोषित एजेंसी है, जिसके 193 सदस्य देश हैं।
- इसका उद्देश्य एक संतुलित और प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय IP प्रणाली के विकास का नेतृत्व करना है जो सभी के लाभ के लिये नवाचार एवं रचनात्मकता को सक्षम बनाता है।
- इसका अधिदेश, शासी निकाय और प्रक्रियाएँ WIPO अभिसमय में निर्धारित की गई हैं, जिसने वर्ष 1967 में WIPO की स्थापना की थी।
सूचकांक की मुख्य विशेषताएँ:
- वर्ष 2023 में सर्वाधिक नवोन्मेषी अर्थव्यवस्थाएँ:
- वर्ष 2023 में स्विट्ज़रलैंड सबसे नवोन्मेषी अर्थव्यवस्था है, इसके बाद स्वीडन, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और सिंगापुर हैं।
- सिंगापुर ने शीर्ष पाँच में प्रवेश किया है और दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्वी एशिया एवं ओशिनिया (SEAO) क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाओं में अग्रणी स्थान हासिल किया है।
- वर्ष 2023 में स्विट्ज़रलैंड सबसे नवोन्मेषी अर्थव्यवस्था है, इसके बाद स्वीडन, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और सिंगापुर हैं।
- विश्व में शीर्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी (S&T) क्लस्टर:
- वर्ष 2023 में विश्व के शीर्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी नवाचार क्लस्टर टोक्यो-योकोहामा हैं, इसके बाद शेन्ज़ेन-हांगकांग-गुआंगज़ौ, सियोल, बीजिंग व शंघाई-सूज़ौ हैं।
- S&T क्लस्टर विश्व के वे क्षेत्र हैं जहाँ आविष्कारकों और वैज्ञानिक लेखकों का घनत्व सबसे अधिक है।
- चीन के पास अब संयुक्त राज्य अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए विश्व में सबसे अधिक संख्या में क्लस्टर हैं।
- वर्ष 2023 में विश्व के शीर्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी नवाचार क्लस्टर टोक्यो-योकोहामा हैं, इसके बाद शेन्ज़ेन-हांगकांग-गुआंगज़ौ, सियोल, बीजिंग व शंघाई-सूज़ौ हैं।
भारत से संबंधित प्रमुख विशेषताएँ:
- समग्र रैंकिंग और विकास:
- भारत ने नवीनतम GII वर्ष 2023 में 40वाँ स्थान हासिल किया, जो वर्ष 2015 में 81वें स्थान के बाद से उल्लेखनीय बढ़त को दर्शाता है।
- यह बढ़त पिछले आठ वर्षों में नवाचार में भारत की निरंतर और पर्याप्त वृद्धि को उजागर करती है।
- भारत ने 37 निम्न-मध्यम आय वाले देशों में शीर्ष स्थान हासिल किया और मध्य एवं दक्षिण अमेरिका की 10 अर्थव्यवस्थाओं में अग्रणी स्थान हासिल किया।
- प्रमुख संकेतकों ने भारत के मज़बूत नवाचार परिदृश्य की पुष्टि की, जिसमें ICT सेवाओं के निर्यात में महत्त्वपूर्ण रैंकिंग प्राप्त उद्यम पूंजी, विज्ञान और इंजीनियरिंग में स्नातक एवं वैश्विक कॉर्पोरेट R&D निवेशक शामिल हैं।
- भारत ने नवीनतम GII वर्ष 2023 में 40वाँ स्थान हासिल किया, जो वर्ष 2015 में 81वें स्थान के बाद से उल्लेखनीय बढ़त को दर्शाता है।
- S&T क्लस्टर:
- चीन के 24 और अमेरिका के 21 क्लस्टर की तुलना में भारत में विश्व के शीर्ष 100 में केवल 4 S&T क्लस्टर हैं। ये चेन्नई, बंगलूरू, मुंबई और दिल्ली हैं।
- भारत की प्रगति:
- भारत की प्रगति का श्रेय भारत में बुद्धिजीवियों की प्रचुरता और एक संपन्न स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के साथ-साथ सार्वजनिक एवं निजी अनुसंधान संगठनों के सराहनीय प्रयासों को दिया जाता है।
- कोविड-19 महामारी ने देश के आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप चुनौतियों से निपटने में नवाचार की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया।
- सुधार की आवश्यकता:
- कुछ क्षेत्रों में विशेषकर बुनियादी ढाँचे, व्यावसायिक परिष्कार और संस्थानों में सुधार की आवश्यकता है।
- इन अंतरालों को कम करने के लिये नीति आयोग (NITI Aayog) इलेक्ट्रिक वाहनों, जैव प्रौद्योगिकी, नैनो प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में नीति-आधारित नवाचार को बढ़ावा देने के लिये सक्रिय रूप से कार्यरत है।
- कुछ क्षेत्रों में विशेषकर बुनियादी ढाँचे, व्यावसायिक परिष्कार और संस्थानों में सुधार की आवश्यकता है।
न्यायिक नियुक्तियों में देरी चिंता का विषय: सर्वोच्च न्यायालय
प्रिलिम्स के लिये:भारत का सर्वोच्च न्यायालय, कॉलेजियम प्रणाली, न्यायिक नियुक्तियाँ मेन्स के लिये:कॉलेजियम प्रणाली और इसकी आलोचना |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायपालिका में नई प्रतिभाओं की नियुक्तियों में हो रही देरी को लेकर चिंता जताई है। इसका प्रमुख कारण उच्च न्यायालयों में न्यायतंत्र का हिस्सा बनने के लिये चयनित उम्मीदवारों ने उच्च न्यायालय कॉलेजियम की सिफारिशों पर कार्रवाई करने में सरकार द्वारा किये जा रहे विलंब के परिणामस्वरूप अपने आवेदन वापस ले लिये हैं।
- भारत के महान्यायवादी को 9 अक्टूबर, 2023 तक लंबित न्यायिक नियुक्तियों और स्थानांतरणों पर अपडेट प्रदान करने का निर्देश दिया गया था।
न्यायिक नियुक्तियों में देरी को लेकर सर्वोच्च न्यायालय की चिंताएँ:
- नियुक्ति में विलंबता तथा प्रतिभाओं को अवसर प्रदान करने में चूक:
- सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के पास 10 महीने से अधिक समय से लंबित 70 उच्च न्यायालय कॉलेजियम सिफारिशों के बैकलॉग को लेकर चिंता जताई है।
- सिफारिशों को संसाधित करने में इतनी देरी के कारण न्यायपालिका के भीतर प्रतिभाओं की कमी हो गई है, क्योंकि संभावित उम्मीदवार सरकारी निष्क्रियता के कारण अपनी उम्मीदवारी वापस ले रहे हैं।
- विधि के क्षेत्र में प्रतिभाशाली कई लोग इन विलंबों के कारण उत्पन्न अनिश्चितता के कारण भी अपने आवेदन वापस ले रहे हैं।
- नामों का विवादास्पद पृथक्करण:
- कॉलेजियम-अनुशंसित सूचियों से नामों को अलग करने की सरकार की कार्य-प्रणाली गंभीर चिंता का विषय है।
- कॉलेजियम द्वारा स्पष्ट मनाही के बावजूद सरकार ने नामों को अलग करना जारी रखा, जिससे कॉलेजियम के निर्देशों का विरोध हुआ।
- इस विवादास्पद कार्य-प्रणाली के परिणामस्वरूप उम्मीदवारों को अपनी उम्मीदवारी वापस लेनी पड़ी है।
- नियुक्तियों और रिक्त पदों का बैकलॉग:
- उच्च न्यायालय कॉलेजियम की सिफारिशों के व्यापक बैकलॉग ने देश भर में कई न्यायिक पदों को रिक्त छोड़ दिया है।
- प्रक्रिया ज्ञापन कॉलेजियम द्वारा दोहराए गए नामों की शीघ्र नियुक्ति का आदेश देता है, लेकिन इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा है, जिससे और विलंब हो रहा है।
- विशिष्ट लंबित मामले:
- मणिपुर उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति लंबित है, जिससे अनिश्चितता बनी हुई है।
- इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित 26 तबादलों पर सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
भारत में न्यायाधीशों की नियुक्तियाँ:
- भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI):
- भारत के राष्ट्रपति CJI और अन्य SC न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं।
- जहाँ तक CJI का सवाल है, निवर्तमान CJI अपने उत्तराधिकारी की सिफारिश करते हैं।
- वर्ष 1970 के दशक के अधिक्रमण विवाद के बाद से यह सख्ती से वरिष्ठता के आधार पर किया गया है।
- भारत के राष्ट्रपति CJI और अन्य SC न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश:
- SC के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा CJI और सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के ऐसे अन्य न्यायाधीशों से परामर्श के बाद की जाती है, जिन्हें वह आवश्यक समझते हैं।
- CJI और सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों का एक पैनल, जिसे कॉलेजियम के नाम से जाना जाता है, राष्ट्रपति को SC जज के रूप में नियुक्त होने वाले उम्मीदवारों के नामों की सिफारिश करते हैं।
- SC के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा CJI और सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के ऐसे अन्य न्यायाधीशों से परामर्श के बाद की जाती है, जिन्हें वह आवश्यक समझते हैं।
- उच्च न्यायालयों (HC) के मुख्य न्यायाधीश और HC के न्यायाधीश:
- HC के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा CJI और संबंधित राज्य के राज्यपाल के परामर्श के बाद की जाती है।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सिफारिश CJI और दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों वाले कॉलेजियम द्वारा की जाती है। न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से भी परामर्श किया जाता है।
- उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को उच्च न्यायालय में नियुक्ति के लिये किसी नाम की सिफारिश करने से पहले अपने दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों से परामर्श करना भी आवश्यक है।
आगे की राह
- सरकार को नियुक्तियों के बैकलॉग को खत्म करने और रिक्त न्यायिक पदों को तुरंत भरने के लिये लंबित उच्च न्यायालय कॉलेजियम सिफारिशों के प्रसंस्करण में तेज़ी लानी चाहिये।
- सरकार को कॉलेजियम की सिफारिशों से नामों को अलग करने की प्रथा बंद करनी चाहिये और न्यायाधीशों की नियुक्ति में कॉलेजियम के निर्देशों का पालन करना चाहिये।
- न्यायिक नियुक्तियों और तबादलों की प्रगति पर नज़र रखने एवं रिपोर्ट करने हेतु एक पारदर्शी प्रणाली स्थापित करना। अनुचित विलंब या गैर-अनुपालन के लिये ज़िम्मेदार व्यक्तियों को दोषी ठहराना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, वित्त वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. भारत में उच्चतर न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017) |
डिजिटल वर्ल्ड ऑफ कुकीज़
प्रीलिम्स के लिये:गोपनीयता का अधिकार, सेशन कुकीज़, थर्ड-पार्टी कुकीज़, क्रॉस-साइट अनुरोध जालसाजी। मेन्स के लिये:उभरती प्रौद्योगिकियों से संबंधित चुनौतियाँ, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023। |
स्रोत : द हिंदू
चर्चा में क्यों?
जैसे-जैसे लगातार विकसित हो रहा डिजिटल परिदृश्य ऑनलाइन अनुभवों को नया आकार दे रहा है, कुकीज़ दोहरे एजेंटों के रूप में उभर रही हैं, जो वैयक्तिकरण और सुविधा के अपरिहार्य प्रदाता के रूप में कार्य कर रही हैं, साथ ही यह उपयोगकर्ता की गोपनीयता एवं डेटा सुरक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ उत्पन्न कर रही हैं।
कुकीज़:
- परिचय:
- कंप्यूटिंग और वेब ब्राउज़िंग के दायरे में आमतौर पर टेक्स्ट फाइलों के रूप में कुकीज़ उपयोगकर्ता के डिवाइस (ब्राउज़र) पर संगृहीत डेटा के छोटे टुकड़े होते हैं।
- ये फाइलें उपयोगकर्ता द्वारा देखी जाने वाली वेबसाइटों द्वारा तैयार की जाती हैं और उनके ऑनलाइन नेविगेशन के दौरान उपयोगकर्ता की बातचीत एवं प्राथमिकताओं के बारे में जानकारी बनाए रखने के उद्देश्य से कार्य करती हैं।
- कुकीज़ की श्रेणियाँ:
- सेशन कुकीज़: प्रकृति में अस्थायी रहने वाली ये कुकीज़ वेबसाइटों के लिये डिजिटल पोस्ट-इट नोट्स के रूप में कार्य करती हैं, जो केवल सक्रिय ब्राउज़िंग सेशन के दौरान उपयोगकर्ता की कंप्यूटर मेमोरी में रहती हैं।
- परसिस्टेंट कुकीज़: डिजिटल बुकमार्क के अनुरूप परसिस्टेंट कुकीज़ ब्राउज़िंग सेशन के समापन से परे उपयोगकर्ता के डिवाइस पर बनी रहती हैं।
- ये लॉगिन क्रेडेंशियल, भाषा प्राथमिकताएँ और विज्ञापनों के साथ पिछले इंटरैक्शन जैसी सूचना को बनाए रखते हैं तथा याद करते हैं।
- सिक्योर कुकीज़: एन्क्रिप्टेड कनेक्शन पर उनके प्रसारण द्वारा प्रतिष्ठित, इन कुकीज़ को मुख्य रूप से संवेदनशील डेटा, जैसे लॉगिन क्रेडेंशियल की सुरक्षा के लिये नियोजित किया जाता है।
- थर्ड-पार्टी कुकीज़: वर्तमान में दिखाई देने वाले डोमेन से भिन्न डोमेन से उत्पन्न, इन कुकीज़ को अक्सर ट्रैकिंग और विज्ञापन उद्देश्यों के लिये नियोजित किया जाता है, जो उपयोगिता तथा घुसपैठ की क्षमता दोनों प्रदान करते हैं।
- कुकीज़ की भूमिका:
- उपयोगकर्ता प्रमाणीकरण: डिजिटल पहचान पत्र के रूप में कार्य करते हुए कुकीज़ वेबसाइटों को उनकी यात्राओं के दौरान उपयोगकर्ता लॉगिन स्थितियों को पहचानने और संरक्षित करने में सहायता करती हैं।
- वैयक्तिकरण: कुकीज़ भाषा चयन और वेबसाइट विषयों को शामिल करते हुए उपयोगकर्ता की प्राथमिकताओं को बनाए रखने में सक्षम बनाती हैं।
- लगातार शॉपिंग कार्ट: ये सुनिश्चित करते हैं कि ऑनलाइन शॉपिंग कार्ट में जोड़ी गई सामग्रियाँ बाद में रिटर्न कर दिये जाने के बावजूद पर भी पहुँच योग्य रहें।
- एनालिटिक्स: कुकीज़ वेबसाइट मालिकों को उपयोगकर्त्ता इंटरैक्शन से संबंधित मूल्यवान डेटा के संग्रह में सहायता करती है, जिससे संवर्द्धन और अनुरूप सामग्री वितरण की सुविधा मिलती है।
- लक्षित विज्ञापन: विज्ञापनदाता ऐसे विज्ञापनों को प्रदर्शित करने के लिये कुकीज़ का उपयोग करते हैं जो उपयोगकर्त्ता की रुचियों और विगत ब्राउज़िंग इतिहास से मेल खाते हैं, जिससे ऑनलाइन शॉपिंग का आकर्षण बढ़ता है।
- संबद्ध चुनौतियाँ:
- गोपनीयता संबंधी चिंताएँ: कुकीज़ में उपयोगकर्ता के ऑनलाइन व्यवहार को ट्रैक करने की क्षमता होती है, जिससे डिजिटल गोपनीयता में संभावित घुसपैठ के बारे में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
- जो कुकीज़ पर्याप्त रूप से संरक्षित नहीं हैं, उनका उपयोग साइबर अपराधियों द्वारा व्यक्तिगत डेटा तक पहुँच प्राप्त करने और उसे चुराने के लिये प्रवेश बिंदु के रूप में किया जा सकता है।
- क्रॉस-साइट अनुरोध जालसाजी (Cross-Site Request Forgery- CSRF) के माध्यम से, साइबर अपराधी किसी उपयोगकर्ता की सहमति के बिना उसकी ओर से अनधिकृत कार्य करने के लिये कुकीज़ का उपयोग कर सकते हैं।
- कुकीज़ की अत्याधिकता: समय के साथ, जैसे जैसे एक उपयोगकर्त्ता बहुत सारे वेबसाइट पर विजिट करता है, उसके डिवाइस पर पर कुकीज़ इकट्ठे होते जाते हैं, इससे वे स्टोरेज क्षमता को कम करते हैं और अंततः ब्राउज़िंग की गति को धीमा कर देते हैं।
- यूज़र एक्सपीरियंस पर प्रभाव: कुकीज़ की वजह से विभिन्न वेबसाइटों द्वारा अनेकों प्रकार की सहमति का अनुरोध किया जाना उपयोगकर्त्ता के ब्राउज़िंग अनुभव को प्रभावित कर सकता है।
- गोपनीयता संबंधी चिंताएँ: कुकीज़ में उपयोगकर्ता के ऑनलाइन व्यवहार को ट्रैक करने की क्षमता होती है, जिससे डिजिटल गोपनीयता में संभावित घुसपैठ के बारे में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
आगे की राह
- वैयक्तिकरण और गोपनीयता के बीच संतुलन बनाना: उपयोगकर्त्ताओं को अपनी कुकीज़ प्राथमिकताओं को अनुकूलित करने की क्षमता प्रदान की जानी चाहिये।
- उपयोगकर्त्ताओं को, उनके डेटा का उपयोग किस प्रकार किया जा रहा है (भारत के डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023 के अनुसार), कौन-सी कुकीज़ सक्रिय हैं, और संबंधित लाभों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदर्शित करने के लिये, वैयक्तिकृत/पर्सनलाईड्ज़ गोपनीयता डैशबोर्ड की सुविधा प्रदान की जानी चाहिये।
- कुकीज़ की समाप्ति तिथि निर्धारित करने में यूज़र की सहमति तथा उनका डेटा कितने समय तक सहेजा और उपयोग किया जा रहा है, इस पर उनका अधिक नियंत्रण होना चाहिये।
- उपयोगकर्त्ता जागरूकता: उपयोगकर्ताओं को जागरूक करने के लिये वेबसाइट को कुकीज़ और वेबसाइट की कार्यक्षमता तथा प्रदर्शन में उनके महत्त्व के विषय में स्पष्ट व सरलता से समझने योग्य जानकारी प्रदान करनी चाहिये।
पूर्वोत्तर भारत की विविधता को पहचान
प्रिलिम्स के लिये:उत्तर पूर्व भारत, इंडो-चीनी मंगोलॉयड नस्लीय समूह, स्वदेशी समुदाय, सामाजिक सामंजस्य। मेन्स के लिये:पूर्वोत्तर भारत की विविधता को पहचान। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
पूर्वोत्तर क्षेत्र, जिसमें अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा राज्य शामिल हैं, कई जातीय समुदायों का घर है, जो "विविध क्षेत्रों" से पलायन कर चुके हैं, जिनमें से अधिकांश इंडो चाइनीज़ मंगोलॉइड नस्लीय समुदाय से संबंधित हैं।
उत्तर-पूर्व की जातीय संरचना:
- जातीय संरचना:
- यह क्षेत्र कई जातीय समुदायों का निवास स्थान है, जो मुख्य रूप से इंडो-चीनी मंगोलॉयड नस्लीय समूह से संबंधित हैं।
- पूर्वोत्तर भारत अपनी विविध आबादी के लिये जाना जाता है, जो 200 से अधिक विभिन्न जातीय समूहों से बना है, जिनमें से प्रत्येक की अपनी अलग संस्कृति और परंपराएँ हैं।
- इस क्षेत्र के कुछ प्रमुख जातीय समूहों में असमिया, बोडो, नागा, मिज़ो, खासी, गारो और अरुणाचली शामिल हैं।
राज्य |
जातीय समूह |
अरुणाचल प्रदेश |
आदिस, न्यीशी, अपातानी, टैगिन, मिस्मी, खाम्प्ती, वांचो, तांग्शा, मोनपा, आदि। |
असम |
बर्मन, बोडोस (बोडोकाचारिस), देवरी, होजाई, सोनोवाल कछारी, मिरी (मिसिंग), दिमासा, हाजोंग, आदि। |
मेघालय |
खासी, गारो, जयंतिया |
मणिपुर |
मैती, नागा, कुकी और चिन, मैती पंगल (मैती-मुसलमान) आदि। |
मिज़ोरम |
लुशी, राल्ते, हमार, पाइते, पाविस (पहले लाइस के नाम से जाना जाता था), आदि। |
नागालैंड |
अंगामी, एओ, चांग, चिरू, फोम, रेंगमा, संगतम, सेमा, ज़ेलियांग, आदि। |
त्रिपुरा |
त्रिपुरी, रियांग, चकमा, हलम, गारो, लुसी, डारलॉन्ग, आदि। |
सिक्किम |
नेपाली, भूटिया, लेप्चा आदि। |
- यह क्षेत्र कई स्वदेशी/मूल निवासी समुदायों का भी गढ़ है जो भारत के अन्य हिस्सों में तेज़ी से हो रहे आधुनिकीकरण के बावजूद, अपने जीवनशैली को संरक्षित करने में कामयाब रहे हैं।
- इन समुदायों में अरुणाचल प्रदेश के अपातानी लोग, जो कृषि का एक अनूठा रूप अपनाते हैं जिसमें सीढ़ीदार खेतों में चावल की खेती करना शामिल है तथा मेघालय के मातृसत्तात्मक समाज के खासी लोग शामिल हैं, जहाँ महिलाओं को संपत्ति विरासत में मिलती है और निर्णय लेने में उनकी मुख्य भूमिका होती है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र की एकरूपता को अस्वीकार करने की आवश्यकता:
- पूर्वोत्तर को एक ही श्रेणी में रखने की प्रवृत्ति एक भ्रांति है जो इसके समाज के जटिल ताने-बाने को नज़रअंदाज करती है।
- इस प्रकार दृष्टिकोण न केवल इस क्षेत्र की वास्तविकता को सामान्यीकृत करता है बल्कि गलतफहमियों को भी बढ़ावा देता है।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र के प्रत्येक राज्य की एक विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत, भाषा और ऐतिहासिक कथा है।
- इस क्षेत्र की एकरूपता को अस्वीकार करने के पश्चात ही कोई व्यक्ति प्रत्येक राज्य और समुदाय की अनूठी विशेषताओं को समझ सकता है तथा इस विविधता से उत्पन्न समृद्धि की सराहना कर सकता है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र की विविधता के संरक्षण का महत्त्व:
- सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण:
- पूर्वोत्तर क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता इसके विभिन्न समुदायों की ऐतिहासिकताओं और प्रथाओं का जीवंत प्रमाण है।
- असम के त्योहारों से लेकर सिक्किम की प्राचीन परंपराओं तक, प्रत्येक संस्कृति जीवन, मूल्यों और मान्यताओं का एक अनूठा दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। इस विविधता को संरक्षित करना भविष्य की पीढ़ियों के लिये इन सांस्कृतिक विरासतों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- भाषाई अस्मिता:
- पूर्वोत्तर क्षेत्र में अनेकों भाषाएँ बोली जाती हैं, जिनमें से प्रत्येक भाषा वहाँ के लोगों के सूक्ष्म संस्कृति को दर्शाती है।
- इस भाषाई विविधता की पहचान करते हुए इन भाषाओं और इन्हें बोलने वाले समुदायों की विशिष्टता को सम्मानित किया जा सकता है।
- सामाजिक एकता:
- पूर्वोत्तर क्षेत्र के भीतर विविधता को स्वीकार करने से सामाजिक एकता और समावेशिता को बढ़ावा मिलता है।
- यह विभिन्नताओं के बीच एकता की भावना को प्रोत्साहित करता है, जिससे अधिक सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व संभव हो पाता है। विभिन्न समुदायों की विशिष्ट पृष्ठभूमियों और अनुभवों को समझने एवं उनकी सराहना करने से सामाजिक एकीकरण को बढ़ाया जाता है, जो एक मज़बूत, एकजुट राष्ट्र में योगदान देता है।
- विकास के लिये अनुकूलित नीतियाँ:
- एक आकार-सभी के लिये फिट दृष्टिकोण अप्रभावी और अनुचित है, जो क्षेत्र की प्रगति में बाधा डालता है।
- अद्वितीय सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भों पर विचार करने वाली नीतियाँ सतत् विकास एवं प्रगति को बढ़ावा दे सकती हैं।
नोट: पूर्वोत्तर राज्यों के लिये वर्णनात्मक उपनाम:
- अरुणाचल प्रदेश: डाॅन लिट् माउंटेन्स
- असम: गेटवे टू नार्थ ईस्ट
- मणिपुर: जेव्ल ऑफ इंडिया
- मेघालय: अबोड ऑफ क्लाउड्स
- मिज़ोरम: लैंड ऑफ ब्लू माउंटेन्स
- नगालैंड: लैंड ऑफ फेस्टिवल
- सिक्किम: हिमालयन पैराडाइस
- त्रिपुरा: लैंड ऑफ डाइवर्सिटी
निष्कर्ष:
- इस उल्लेखनीय विविधता को सही मायने में समझने तथा सराहने के लिये एक एकल पूर्वोत्तर पहचान को अस्वीकार करना और उस विविधता को अपनाना ज़रूरी है जो इस क्षेत्र को परिभाषित करती है।
- ऐसा करके ही हम समावेशी नीतियाँ बना सकते हैं, अद्वितीय सांस्कृतिक विरासतों का उत्सव मना सकते हैं और सामाजिक एकता को बढ़ावा देकर एक अधिक सामंजस्यपूर्ण एवं समृद्ध समाज का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न.निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2013) जनजाति राज्य
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (A) |
चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार 2023
प्रिलिम्स के लिये:नोबेल पुरस्कार, mRNA वैक्सीन, आधार/क्षार संशोधित mRNA, कोविड-19 मेन्स के लिये:वायरल संक्रमण के उपचार में वैक्सीन की कार्य-प्रणाली, वैज्ञानिक नवाचार और खोज |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
मेडिसिन या फिजियोलॉजी/ शारीर क्रिया विज्ञान में वर्ष 2023 का नोबेल पुरस्कार कैटालिन कारिको और ड्रियू वीसमैन को मैसेंजर राइबोन्यूक्लिक एसिड (mRNA) के न्यूक्लियोसाइड बेस संशोधन पर उनके अभूतपूर्व कार्य के लिये दिया गया है।
- वर्ष 2020 की शुरुआत में शुरू हुई कोरोना महामारी के दौरान कोविड-19 के विरुद्ध प्रभावी mRNA वैक्सीन विकसित करने के लिये इन दोनों नोबेल पुरस्कार विजेताओं की खोज़ महत्त्वपूर्ण रही।
कैटालिन कारिको और ड्रू वीसमैन की खोज:
- चुनौती/कठिनाई को समझना:
- इस अनुक्रिया से संभावित रूप से हानिकारक दुष्प्रभाव हो सकते हैं और टीके की प्रभावकारिता कम हो सकती है।
- कोशिकाओं में बाह्य पदार्थों का पता लगाने की अंतर्निहित क्षमता होती है। डेंड्राइटिक कोशिकाएँ जो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, उनमें इन विट्रो ट्रांसक्राइब्ड mRNA को बाह्य पदार्थ के रूप में पहचानने की क्षमता है, जिससे एक अनुक्रिया शुरू होती है।
- इसके अलावा एक और चुनौती इस तथ्य से उत्पन्न हुई कि इनविट्रो ट्रांसक्राइब्ड mRNA अत्यधिक अस्थिर था और शरीर के भीतर एंज़ाइमों में ह्रास के प्रति संवेदनशील था।
- इस अनुक्रिया से संभावित रूप से हानिकारक दुष्प्रभाव हो सकते हैं और टीके की प्रभावकारिता कम हो सकती है।
नोट:
- इन विट्रो ट्रांसक्राइब्ड mRNA एक प्रकार का सिंथेटिक RNA है जिसे प्रयोगशाला में DNA टेम्पलेट और RNA पोलीमरेज़ का प्रयोग करके उत्पादित किया जाता है।
- इसका उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है, जैसे RNA अनुसंधान, टीके या प्रोटीन निर्माण।
- कैटालिन कारिको और ड्रू वीसमैन द्वारा की गई खोज:
- कारिको और वीसमैन ने अपनी खोज में पाया कि डेंड्राइटिक कोशिकाएँ इनविट्रो ट्रांसक्राइब्ड mRNA को बाह्य/विदेशी के रूप में पहचानती हैं, उन्हें सक्रिय करती हैं तथा सूजन संबंधी संकेत जारी करती हैं।
- कारिको और वीसमैन ने यह जानने का प्रयत्न किया कि स्तनधारी कोशिकाओं के mRNA के विपरीत डेंड्राइटिक कोशिकाओं ने mRNA को विदेशी/बाह्य रूप में क्यों चिह्नित किया।
- स्तनधारी कोशिकाएँ यूकेरियोटिक कोशिकाएँ हैं जो पशु जाति से संबंधित हैं तथा इनमें एक केंद्रक और अन्य मेम्ब्रेन-बाउंड ओर्गेनेल्स होते हैं।
- इसने उन्हें यह समझने में मदद की कि mRNA के इन दो प्रकारों के गुण निश्चित ही विभिन्न हैं।
- प्रमुख खोज:
- डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड की तरह RNA में भी चार बेस होते हैं: ए, यू, जी और सी। कारिको और वीसमैन ने पाया कि स्तनधारी कोशिकाओं के प्राकृतिक आर.एन.ए. के बेस में अक्सर रासायनिक बदलाव होते रहते हैं।
- उन्होंने अनुमान लगाया कि लैब-निर्मित mRNA में इन बदलावों के न होने की स्थिति में सूजन संबंधी अभिक्रियाएँ हो सकती हैं।
- इसका परीक्षण करने के लिये, उन्होंने अद्वितीय रासायनिक परिवर्तनों वाले विभिन्न mRNA वेरिएंट का निर्माण किया और उन्हें डेंड्राइटिक कोशिकाओं में वितरित किया। उनके निष्कर्षों के अनुसार, mRNA में बेस परिवर्तन करने से सूजन संबंधी अभिक्रियाएँ काफी कम हो गईं।
- इस खोज ने mRNA की चिकित्सीय क्षमता पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाला तथा कोशिकाओं द्वारा विभिन्न प्रकार के mRNA की पहचान करने और उसके साथ अभिक्रिया को समझने में मदद की।
- वर्ष 2008 और 2010 के अध्ययनों से पता चला कि बेस संशोधनों के साथ mRNA ने प्रोटीन उत्पादन में वृद्धि की।
- यह प्रभाव प्रोटीन उत्पादक एंजाइम की सक्रियता में कमी से संबंधित था।
- कारिको और वीसमैन के शोध ने mRNA को नैदानिक अनुप्रयोगों के लिये अधिक उपयुक्त बनाते हुए स्वास्थ्य क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
- बेस-मॉडिफाइड mRNA टीकों का अनुप्रयोग:
- mRNA प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वर्ष 2010 तक कई कंपनियां विभिन्न उद्देश्यों के लिये इस पद्धति को सक्रिय रूप से विकसित करने पर ज़ोर दिया।
- प्रारंभ में जीका वायरस जैसी बीमारियों के खिलाफ टीकों की खोज की गई, जो SARS-CoV-2 से निकटता से संबंधित है।
- कोविड-19 महामारी की शुरुआत के साथ SARS-CoV-2 प्रोटीन को एन्कोड करने वाले बेस-मॉडिफाइड mRNA वैक्सीन को तीव्रता से विकसित किया गया।
- इन वैक्सीनों ने लगभग 95% सुरक्षात्मक प्रभाव प्रदर्शित किये, साथ ही इन्हें दिसंबर 2020 की शुरुआत में मंज़ूरी मिल गई।
- mRNA वैक्सीनों का निर्माण उल्लेखनीय रूप से अनुकूलनीय और त्वरित था, जिसने उन्हें विभिन्न संक्रामक बीमारियों के खिलाफ संभावित रूप से उपयोगी बना दिया।
- सामूहिक रूप से विश्व भर में 13 बिलियन से अधिक कोविड-19 वैक्सीन खुराकें दी गई हैं, जिससे लाखों लोगों की जान बचाई गई है और गंभीर बीमारी को रोका गया है।
- गंभीर स्वास्थ्य आपातकाल के दौरान यह गेम-चेंजिंग खोज इस वर्ष के नोबेल पुरस्कार विजेताओं द्वारा mRNA में आधार परिवर्तनों के महत्त्व को समझने में निभाई गई भूमिका पर ज़ोर देती है।
mRNA टीके और उनके कार्य:
- mRNA का अर्थ मैसेंजर RNA है, एक अणु जो DNA से आनुवंशिक जानकारी को कोशिका की प्रोटीन निर्माण मशीनरी तक ले जाता है।
- mRNA टीके सिंथेटिक mRNA का उपयोग करते हैं जो रोगज़नक से एक विशिष्ट प्रोटीन को एनकोड करता है, जैसे कि कोरोनोवायरस का स्पाइक प्रोटीन।
- जब mRNA वैक्सीन को शरीर में इंजेक्ट किया जाता है, तो कुछ कोशिकाएँ mRNA ग्रहण कर लेती हैं और प्रोटीन का उत्पादन करने के लिये इसका उपयोग करती हैं। प्रोटीन तब एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करता है जो एंटीबॉडी और मेमोरी कोशिकाओं का उत्पादन करता है जो भविष्य में रोगज़नक को पहचान सकते हैं एवं उससे लड़ सकते हैं।
- mRNA टीके उत्पादन में तीव्र और कम खर्चीले हैं, क्योंकि उन्हें सेल कल्चर या जटिल शुद्धिकरण प्रक्रियाओं की आवश्यकता नहीं होती है।
- mRNA टीके भी अधिक लचीले और अनुकूलनीय हैं, क्योंकि उन्हें रोगजनकों के नए वेरिएंट या उपभेदों को लक्षित करने के लिये आसानी से संशोधित किया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. कोविड-19 वैश्विक महामारी को रोकने के लिये बनाई जा रही वैक्सीनों के प्रसंग में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)
उपर्युक्त कथनों में कौन से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b)मेन्स: प्रश्न. वैक्सीन के विकास के पीछे मूल सिद्धांत क्या है? वैक्सीन कैसे काम करती हैं? कोविड-19 वैक्सीन के उत्पादन के लिये भारतीय वैक्सीन निर्माताओं द्वारा क्या दृष्टिकोण अपनाए गए थे? (2022) |
एम.एस स्वामीनाथन
प्रीलिम्स के लिये:एम.एस स्वामीनाथन, हरित क्रांति, खाद्य सुरक्षा, वर्ष1942-43 का बंगाल अकाल, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)। मेन्स के लिये:एम.एस स्वामीनाथन और कृषि और भारतीय अर्थव्यवस्था को आकार देने में उनका योगदान। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
'हरित क्रांति के जनक' कहे जाने वाले मोनकोम्ब संबासिवन (एम.एस) स्वामीनाथन का 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
एम.एस स्वामीनाथन:
- परिचय:
- उनका जन्म 7 अगस्त, 1925 को कुंभकोणम, तमिलनाडु, भारत हुआ था, जो महात्मा गांधी की मान्यताओं और भारत के स्वतंत्रता संग्राम से काफी प्रभावित थे।
- शुरुआत में उनका इरादा चिकित्सा के क्षेत्र में अपना पेशा अपनाने का था लेकिन 1942-1943 के बंगाल अकाल के बारे में जानने के बाद उन्होंने अपना मन बदल लिया। इस भयानक घटना का उन पर गंभी प्रभाव पड़ा और भारत के कृषि उद्योग को बढ़ाने की उनकी इच्छा जागृत हुई।
- कॅरियर :
- उन्होंने कृषि अध्ययन व अनुसंधान को आगे बढ़ाया, आनुवंशिकी और प्रजनन में गहनता से कार्य किये, इस विश्वास के साथ कि उन्नत फसल किस्मों का किसानों के जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है एवं खाद्य की कमी को दूर करने में मदद मिल सकती है।
- उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) के महानिदेशक के रूप में कार्य किया, जहाँ उन्होंने भारत में कृषि अनुसंधान और शिक्षा को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उन्होंने खाद्य और कृषि संगठन परिषद के स्वतंत्र अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया तथा अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण एवं कृषि संगठनों में नेतृत्वकारी भूमिकाएँ निभाईं।
- उन्होंने कृषि अध्ययन व अनुसंधान को आगे बढ़ाया, आनुवंशिकी और प्रजनन में गहनता से कार्य किये, इस विश्वास के साथ कि उन्नत फसल किस्मों का किसानों के जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है एवं खाद्य की कमी को दूर करने में मदद मिल सकती है।
- योगदान:
- हरित क्रांति में भूमिका: उन्हें हरित क्रांति में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका के लिये व्यापक रूप से पहचाना गया, जो भारतीय कृषि में एक परिवर्तनकारी चरण था जिसने फसल उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि की और राष्ट्र के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की।
- अधिक उपज वाले गेहूँ और चावल: अधिक उपज वाली गेहूँ और चावल की किस्मों, विशेष रूप से अर्ध-वामन(Semi-Dwarf) गेहूँ की किस्मों को विकसित करने में स्वामीनाथन के अभूतपूर्व कार्य ने 1960 एवं 70 के दशक के दौरान भारत में कृषि में क्रांति ला दी।
- इस परिवर्तन से फसल की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिससे भारत खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया और अकाल का खतरा टल गया।
- कृषक वर्गों का कल्याण: स्वामीनाथन ने किसानों के कल्याण हेतु कृषि उपज के लिये उचित मूल्य और धारणीय कृषि पद्धतियों पर ज़ोर दिया।
- 'स्वामीनाथन रिपोर्ट' कृषि क्षेत्र में संकट के कारणों का आकलन प्रस्तुत करती है।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) इस रिपोर्ट की सिफारिशों में से एक है, इसके अनुसार MSP औसत उत्पादन लागत से कम से कम 50% अधिक होना चाहिये, यह आज भी पूरे भारत में कृषि संघों की प्राथमिक मांग है। MSP वह कीमत है जिस पर सरकार सीधे किसानों से फसल खरीदती है।
- पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकार का संरक्षण अधिनियम 2001: उन्होंने पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकार के संरक्षण अधिनियम 2001 को विकसित करने में प्रमुख भूमिका निभाई।
- अन्य योगदान:
- उन्हें 'मन्नार की खाड़ी समुद्री जीवमंडल (Go MMB)' और 'समुद्र तल से नीचे धान की पारंपरिक खेती' वाले केरल के कुट्टनाड को विश्व स्तर पर महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत स्थल के रूप में मान्यता प्रदान कराने के लिये जाना जाता है।
- उन्होंने इन क्षेत्रों की जैवविविधता और पारिस्थितिकी के संरक्षण एवं संवर्द्धन में भी अहम योगदान दिया।
- उन्होंने सतत् कृषि और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 1988 में एम. एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (MSSRF) की भी स्थापना की।
- MSSRF गरीब समर्थक, महिला समर्थक और प्रकृति समर्थक दृष्टिकोण के साथ विशेष रूप से जनजातीय एवं ग्रामीण समुदायों पर ध्यान केंद्रित करता है।
- उन्हें 'मन्नार की खाड़ी समुद्री जीवमंडल (Go MMB)' और 'समुद्र तल से नीचे धान की पारंपरिक खेती' वाले केरल के कुट्टनाड को विश्व स्तर पर महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत स्थल के रूप में मान्यता प्रदान कराने के लिये जाना जाता है।
- पुरस्कार:
- कृषि में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिये उन्हें कई पुरस्कार और सराहनाएँ मिली हैं, जिसमें वर्ष 1987 में प्रथम विश्व खाद्य पुरस्कार विजेता के रूप में उन्हें सम्मानित किया गया।
- उन्हें पद्म श्री (1967), पद्म भूषण (1972) और पद्म विभूषण (1989) से भी सम्मानित किया गया है।
- रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (1971) और अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार (1986) सहित विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय सम्मान।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नमेन्सप्रश्न. जल इंजीनियरी और कृषि-विज्ञान के क्षेत्रों में क्रमशः सर एम. विश्वेश्वरैया और डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन के योगदानों से भारत को किस प्रकार लाभ पहुँचा था? (2019) प्रश्न. भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि में आई विभिन्न प्रकारों की क्रांतियों को स्पष्ट कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार सहायता प्रदान की है? (2017) |