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डेली न्यूज़

  • 03 Jul, 2021
  • 60 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

‘वस्तु एवं सेवा कर’ प्रणाली के चार वर्ष

प्रिलिम्स के लिये:

‘वस्तु एवं सेवा कर’ प्रणाली, जीएसटी परिषद, केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड

मेन्स के लिये:

जीएसटी प्रणाली की उपलब्धियाँ और संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) ने ‘वस्तु एवं सेवा’ (GST) प्रणाली के चार वर्ष पूरे होने के अवसर को चिह्नित करने हेतु लगभग 54,000 करदाताओं को सम्मानित करने का निर्णय लिया है।

प्रमुख बिंदु

GST की उपलब्धियाँ

  • स्वचालित अप्रत्यक्ष कर पारिस्थितिकी तंत्र:
    • ई-वे बिल की शुरुआत के साथ-साथ नकली चालान पर कार्रवाई करने से जीएसटी राजस्व में बढ़ोतरी करने में मदद मिली है, जिसकी या तो अब तक चोरी की जा रही थी या कम राजस्व दर्ज किया जा रहा था।
    • ई-चालान प्रणाली करदाताओं को पूरी तरह से स्वचालित अनुपालन व्यवस्था प्रदान करती है, जिसमें कर देनदारियों की गणना और इनपुट टैक्स क्रेडिट का मिलान आसनी से किया जा सकता है। 
  • अनुपालन का सरलीकरण:
    • आयात पर क्रेडिट उपलब्धता हेतु सीमा शुल्क पोर्टल को जीएसटी पोर्टल से जोड़ने, इनपुट टैक्स क्रेडिट के मिलान हेतु उचित साधन उपलब्ध कराने, चालान रजिस्ट्री पोर्टल के निर्बाध संचालन हेतु रिफंड प्रक्रिया के स्वचालन में वृद्धि जैसी विभिन्न पहलों ने कर अनुपालन को आसान बनाने में मदद की है।
  • जीएसटी परिषद की कार्यप्रणाली:
    • जीएसटी परिषद ने कानून में सुधार किया, जटिल मुद्दों पर स्पष्टीकरण जारी किया, जीएसटी दरों को युक्तिसंगत बनाया और कोविड-19 महामारी से निपटने के लिये छूट की शुरुआत की, जो कि जीएसटी परिषद की बेहतरीन कार्यात्मक संरचना का परिणाम है।
  • विश्व के लिये एक उदाहरण
    • भारत ने ‘वस्तु एवं सेवा कर’ जैसी सर्वाधिक जटिल कर परिवर्तन परियोजनाओं में से एक को सफलतापूर्वक लागू कर दुनिया के लिये एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत किया है।

चुनौतियाँ

  • राजकोषीय संघवाद:
    • यह मुद्दा तब विवादास्पद हो गया जब महामारी के कारण जीएसटी संग्रह में गिरावट दर्ज की गई।
    • चूँकि जीएसटी ने राज्यों की कराधान शक्तियों के एक बड़े हिस्से का अधिग्रहण कर लिया, उदाहरण के लिये राज्य प्रत्यक्ष कर या सीमा शुल्क नहीं अधिरोपित कर सकते हैं, ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा उन्हें पाँच वर्ष की अवधि के लिये 14% की गारंटीकृत राजस्व वृद्धि की पेशकश की गई थी।
  • 15वें वित्त आयोग द्वारा रेखांकित मुद्दे:
    • 15वें वित्त आयोग ने जीएसटी शासन में कर दरों की बहुलता, पूर्वानुमान के मुकाबले जीएसटी संग्रह में कमी, जीएसटी संग्रह में उच्च अस्थिरता, रिटर्न दाखिल करने में असंगति, मुआवज़े को लेकर केंद्र पर राज्यों की निर्भरता आदि विभिन्न क्षेत्रों पर प्रकाश डाला था।
  • बड़े व्यवसाय बनाम छोटे व्यवसाय
    • जीएसटी कानून को लाए जाने के मूलभूत सिद्धांतों जैसे- इनपुट क्रेडिट का निर्बाध प्रवाह और अनुपालन में आसानी आदि पर सूचना प्रोद्योगिकी (IT) संबंधित गड़बड़ियों एवं चुनौतियों का काफी प्रभाव पड़ा है।
    • अप्रत्यक्ष कर, आयकर जैसे प्रत्यक्ष करों के विपरीत अमीर और गरीब के बीच के अंतर को नहीं देखता हैं और इसलिये इस प्रकार के कर का गरीबों पर भारी बोझ पड़ता है। 
    • इसके अलावा छोटे एवं मध्यम व्यवसाय अभी भी तकनीक-सक्षम शासन के अनुकूल होने की चुनौती से जूझ रहे हैं।

सुझाव:

  • देश भर में तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं, ऐसे में नीति निर्माताओं को पेट्रोलियम और संबंधित उत्पादों को जीएसटी के दायरे में शामिल करने पर विचार करने की आवश्यकता है।
  • साथ ही जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण का गठन करना भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि सभी करदाताओं के पास प्रत्येक व्यावहारिक चुनौती से निपटने के लिये उच्च न्यायालय के पास जाने हेतु वित्तीय साधन और समय नहीं है।
  • मुनाफाखोरी को रोकने संबंधी उपायों को सुव्यवस्थित करने और अनुपालन प्रक्रियाओं के सरलीकरण पर भी फिर से विचार करने की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि जीएसटी कानून के तहत परिकल्पित लागत दक्षता तथा कीमतों में कमी का लाभ अंततः आम आदमी तक पहुँच सके।

वस्तु एवं सेवा कर (GST) :

परिचय :

  • वस्तु एवं सेवा कर (GST) घरेलू उपभोग के लिये बेचे जाने वाले अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं पर लगाया जाने वाला मूल्यवर्द्धित कर है।
  • GST का भुगतान उपभोक्ताओं द्वारा किया जाता है, लेकिन यह वस्तुओं और सेवाओं को बेचने वाले व्यवसायों द्वारा सरकार को प्रेषित किया जाता है। 
  • GST, जिसने लगभग सभी घरेलू अप्रत्यक्ष करों (पेट्रोलियम, मादक पेय और स्टांप शुल्क प्रमुख अपवाद हैं) को एक मंच के अंर्तगत समाहित कर दिया, शायद यह स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे बड़ा कर सुधार है। इसे 1 जुलाई, 2017 की मध्यरात्रि को परिचालन में लाया गया था।

जीएसटी की विशेषताएँ:

  • आपूर्ति पक्ष पर लागू: वस्तु के निर्माण या वस्तुओं की बिक्री या सेवाओं के प्रावधान पर पुरानी अवधारणा के विपरीत वस्तुओं या सेवाओं की 'आपूर्ति' पर जीएसटी लागू है।
  • गंतव्य आधारित कराधान: GST मूल-आधारित कराधान के सिद्धांत के विपरीत गंतव्य-आधारित उपभोग कराधान के सिद्धांत पर आधारित है।
  • दोहरा GST: यह केंद्र और राज्यों पर एक साथ, एक समान आधार पर लगाया जाने वाला कर है। केंद्र द्वारा लगाए जाने वाले जीएसटी को केंद्रीय जीएसटी (CGST) कहा जाता है और राज्यों द्वारा लगाए जाने वाले को राज्य जीएसटी  (SGST) कहते  हैं।
    • वस्तुओं या सेवाओं के आयात को अंतर-राज्य आपूर्ति के रूप में माना जाएगा तथा यह लागू सीमा शुल्क के अतिरिक्त एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (IGST) के अधीन होगा।
  • पारस्परिक रूप से तय की जाने वाली जीएसटी दरें: CGST, SGST व  IGST केंद्र और राज्यों द्वारा पारस्परिक रूप से सहमत दरों पर लगाए जाते हैं। जीएसटी परिषद की सिफारिश पर दरें अधिसूचित की जाती हैं। 
  • बहुगामी दरें: जीएसटी चार दरों ( 5%, 12%, 18% और 28%) पर लगाया जाता है। जीएसटी परिषद द्वारा इन बहुतायत चरणों (Slabs ) के अंतर्गत आने वाली वस्तुओं की अनुसूची या सूची तैयार की जाती है।
    • इसमें अलग से जीएसटी के तहत मोटे कीमती और अर्द्ध-कीमती पत्थरों पर 0.25% की एक विशेष दर तथा सोने पर 3% की दर निश्चित की गई है।

GST परिषद:

  • यह वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) से संबंधित मुद्दों पर केंद्र और राज्य सरकार को सिफारिश करने के लिये एक संवैधानिक निकाय (अनुच्छेद 279A) है।
  • इसकी अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री करता है और अन्य सदस्य केंद्रीय राजस्व या वित्त मंत्री तथा सभी राज्यों के वित्त या कराधान के प्रभारी मंत्री होते हैं।
  • इसे एक संघीय निकाय के रूप में माना जाता है जहाँ केंद्र और राज्य दोनों को उचित प्रतिनिधित्व मिलता है।

GST द्वारा लाए गए सुधार:

  • एक साझा राष्ट्रीय बाज़ार का निर्माण: बड़ी संख्या में केंद्र और राज्यों द्वारा लगाए जा रहे करों को मिलाकर एक ही कर बनाना। 
  • व्यापक प्रभाव का शमन: 
    • वस्तु या सेवाओं (यानी इनपुट पर) की खरीद के लिये एक व्यापारी जो जीएसटी का भुगतान करता है, उसे बाद में अंतिम वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर लागू करने के लिये तैयार या सेट किया जा सकता है। सेट ऑफ टैक्स को इनपुट टैक्स क्रेडिट कहा जाता है। इस प्रकार जीएसटी कर पर पड़ने वाले व्यापक प्रभाव को कम कर सकता है क्योंकि इससे अंतिम उपभोक्ता पर कर का बोझ बढ़ जाता है।
  • कर के बोझ में कमी: उपभोक्ताओं की दृष्टि से सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि वस्तुओं पर लगने वाले कर के बोझ में कमी आ सकेगी।
  • भारतीय उत्पादों को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाना: उत्पादन की मूल्य शृंखला में इनपुट करों के पूर्ण निष्प्रभावीकरण के कारण जीएसटी की शुरुआत घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में भारतीय उत्पादों को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बना रही है।

आगे की राह 

  • अभी भी ऐसे कई कानून हैं जिनका 'कार्य-प्रगति' पर है तथा  इतनी जटिल यात्रा में विकास की प्रक्रिया को समाप्त नहीं किया जा सकता है। सरकार को आने वाले समय में 'अच्छे और सरल कर' के अपने वादे को पूरा करने के लिये उपाय करना जारी रखना चाहिये।

स्रोत : पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट: RBI

प्रिलिम्स के लिये:

प्रोविज़निंग कवरेज अनुपात, पूंजी पर्याप्तता अनुपात, गैर-निष्पादित परिसंपत्ति, वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट

मेन्स के लिये:

वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अपनी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (FSR) का 23वाँ अंक जारी किया।

  • FSR जो कि द्विवार्षिक रूप से प्रकाशित होती है, वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (FSDC- आरबीआई के गवर्नर की अध्यक्षता में) की उप-समिति द्वारा वित्तीय स्थिरता और वित्तीय प्रणाली के लचीलेपन तथा जोखिम के सामूहिक मूल्यांकन को दर्शाती है।
  • रिपोर्ट में वित्तीय क्षेत्र के विकास और विनियमन से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा की गई है।

प्रमुख बिंदु:

कोविड-19 की दूसरी लहर का प्रभाव:

  • भारतीय बैंकों की बैलेंस शीट पर कोविड-19 की दूसरी लहर का प्रभाव पहले की तुलना में कम रहा है और पूंजी बफर भविष्य के झटकों का सामना करने के लिये यथोचित है।
    • एक पूंजी बफर आवश्यक भंडार होता है जो नियामकों द्वारा घोषित वित्तीय संस्थानों द्वारा रखा जाता है। ये प्रतिकूल परिस्थितियों में बैंकिंग संगठनों को अर्थव्यवस्था का समर्थन करने के साधन के रूप में डिज़ाइन किये गए हैं।
  • कोविड-19 की दूसरी लहर ने आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया है, लेकिन मौद्रिक, नियामक और राजकोषीय नीति उपायों ने वित्तीय संस्थाओं के सॉल्वेंसी जोखिम को कम करने, बाज़ारों को स्थिर करने और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने में मदद की है।
    • ऋणशोधन जोखिम, उपलब्ध पूंजी के साथ सभी प्रकार के जोखिमों से उत्पन्न नुकसान को अवशोषित करने में असमर्थ होने का जोखिम है।

वैश्विक रिकवरी:

  • निरंतर नीति समर्थन, अनुकूल वित्तीय स्थिति और टीकाकरण की गति एक असमान वैश्विक सुधार का समर्थन कर रही हैं।
  • नीतिगत समर्थन ने बैंकों की वित्तीय स्थिति को मज़बूत करने में मदद की है, जिसमें गैर-निष्पादित ऋण शामिल हैं जो कि वैश्विक स्तर पर शोधन क्षमता और तरलता बनाए रखते हैं।

नए जोखिम:

  • जब रिकवरी चल रही होती है, नए जोखिम सामने आते हैं जो इस प्रकार हैं:
    • उदीयमान और सुधार की स्थिति (अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार)।
    • अर्थव्यवस्था की सुभेद्यता और भविष्य में महामारी की लहरों के प्रति संवेदनशीलता।
    • अंतर्राष्ट्रीय कमोडिटी की कीमतें और मुद्रास्फीति दबाव।
    • उच्च अनिश्चितता के बीच वैश्विक स्पिलओवर।
    • डेटा उल्लंघनों और साइबर हमलों की बढ़ती घटनाएँ।

 सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति अनुपात:

  • भारत के अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCBs) का सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (GNPA) अनुपात 2021-22 के अंत तक बढ़कर 11.2 फीसदी तक पहुँच सकता है, जो मार्च 2021 में 7.48% था।
    • बेसलाइन परिदृश्य के तहत SCBs का GNPA अनुपात मार्च 2022 तक बढ़कर 9.8% हो सकता है।
  • जहाँ बेहतर रेटिंग वाले बड़े उधारकर्त्ताओं के प्रति बैंकों का एक्सपोज़र घट रहा है, वहीं सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) तथा खुदरा क्षेत्रों में तनाव के शुरुआती संकेत हैं।
  • बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) में उपभोक्ता ऋण की मांग में कमी आई है, खुदरा उधारकर्त्ताओं के जोखिम प्रोफाइल में कुछ गिरावट स्पष्ट हो रही है।
    • संपत्ति, वाहन या अन्य संपत्ति जैसे- आवश्यक इलेक्ट्रॉनिक्स खरीदने के लिये खुदरा ऋण प्रदान किया जाता है।

CRAR & PCR:

  • बैंकों ने वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान खुद को अच्छी तरह से भुनाने में कामयाबी हासिल की है, जिससे उन्हें दबाव की स्थितियों में भी पर्याप्त पूंजी पर्याप्तता बनाए रखने में मदद मिली है।
  • मार्च 2021 में SCBs का जोखिम-भारित संपत्ति अनुपात (CRAR) बढ़कर 16.03% हो गया और ‘प्रोविज़निंग कवरेज अनुपात’ (PCR) 68.86% हो गया।

ऋणों का पुनर्गठन:

  • वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान RBI ने कोविड-19 महामारी से प्रभावित कर्जदारों की सहायता के लिये एकमुश्त पुनर्गठन योजना शुरू की थी।
  • इस योजना को दिसंबर 2020 तक लागू किया जाना था और खुदरा उधारकर्त्ताओं के लिये 90 दिनों के भीतर तथा कॉर्पोरेट उधारकर्त्ताओं के लिये 180 दिनों के भीतर लागू किया जाना था।
  • मार्च 2021 तक कुल बैंक अग्रिम (ऋण) का 0.9% पुनर्गठन के अधीन था।
    • MSMEs का पुनर्गठन अनुपात 1.7% पर उच्चतम था।
    • कॉर्पोरेट उधारकर्त्ताओं का कुल अग्रिमों का 0.9% का पुनर्संरचित अनुपात था।
    • कुल खुदरा अग्रिमों का 0.7% पुनर्संरचित किया गया।

सुझाव:

  • बैलेंस शीट तनाव:
    • बैंकों को अपनी पूंजी और तरलता की स्थिति को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है ताकि संभावित बैलेंस शीट तनाव के खिलाफ खुद को मज़बूत किया जा सके।
  • नीति समर्थन:
    • वित्तीय संस्थाओं द्वारा निरंतर नीतिगत समर्थन और साथ ही पूंजी एवं चलनिधि बफर का बढ़ा हुआ सुदृढ़ीकरण महत्त्वपूर्ण है।
  • वित्तीय ज़रूरतें:
    • मज़बूत पूंजी स्थिति, सुशासन और वित्तीय मध्यस्थता में दक्षता इस प्रयास के मापदंड हो सकते हैं ताकि अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों की वित्तीय ज़रूरतों को पूरा किया जा सके, जबकि बैंकों और वित्तीय संस्थानों की अखंडता और सुदृढ़ता स्थायी आधार पर सुरक्षित हो।

गैर-निष्पादित परिसंपत्ति

  • NPA उन ऋणों या अग्रिमों के वर्गीकरण को संदर्भित करता है जो डिफाॅल्ट हैं या मूलधन या ब्याज के भुगतान बकाया है।
  • ज़्यादातर मामलों में ऋण को गैर-निष्पादित के रूप में तब वर्गीकृत किया जाता है, जब ऋण का भुगतान न्यूनतम 90 दिनों की अवधि में नहीं किया गया हो।
  • सकल गैर-निष्पादित संपत्ति उन सभी ऋणों का योग है जो वित्तीय संस्थान से ऋण प्राप्त करने वाले व्यक्तियों द्वारा नहीं चुकाए गए हैं।
  • निवल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ वह राशि है जो सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों से कटौती के बाद प्राप्त होती है।

पूंजी पर्याप्तता अनुपात:

  • यह जोखिम भारित आस्तियों और चालू देनदारियों के संबंध में बैंक की पूंजी का अनुपात है। इसे कैपिटल-टू-रिस्क वेटेड एसेट रेशियो (CRAR) के रूप में भी जाना जाता है।
  • वाणिज्यिक बैंकों को अतिरिक्त लीवरेज लेने और प्रक्रिया में दिवालिया होने से रोकने के लिये केंद्रीय बैंकों द्वारा यह निर्णय लिया जाता है।

प्रोविज़निंग कवरेज अनुपात:

  • यह खराब ऋणों के कारण संभावित नुकसान को कवर करने के लिये बैंकों द्वारा अलग रखी जाने वाली निधियों के निर्धारित प्रतिशत को संदर्भित करता है।

स्रोत- द हिंदू


शासन व्यवस्था

खुले में शौच करने वालों की संख्या में गिरावट : वॉश रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये 

वाश (WASH) इंस्टीट्यूट, सतत् विकास लक्ष्य, विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (UHC)

मेन्स के लिये 

खुले में शौच पर वॉश रिपोर्ट के प्रमुख तथ्य, सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 6 की भूमिका और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

वाश (WASH) इंस्टीट्यूट (एक वैश्विक गैर-लाभकारी संगठन) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2015 के बाद से (पूर्ण संख्या के संदर्भ में) खुले में शौच करने वालों की संख्या में सर्वाधिक गिरावट दर्ज की गई। 

वाॅश (WASH):

  • WASH पानी, साफ-सफाई और स्वच्छता (Water, Sanitation and Hygiene- WASH) का संक्षिप्त रूप है। ये क्षेत्र परस्पर संबंधित हैं। 
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की वॉश रणनीति 2018-25 को सदस्य राज्य संकल्प (WHA 64.4) तथा सतत विकास के लिये 2030 एजेंडा (SDG 3: अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण, SDG 6: स्वच्छ जल व स्वच्छता) की अनुक्रिया के रूप में विकसित किया गया है।
  • यह WHO के 13वें जनरल प्रोग्राम ऑफ वर्क 2019-2023 का एक घटक है जिसका उद्देश्य बेहतर आपातकालीन तैयारियों और प्रतिक्रिया जैसे बहुक्षेत्रीय कार्रवाइयों के माध्यम से तीन बिलियन लोगों तथा यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज़ (UHC) के माध्यम से एक बिलियन लोगों की स्वास्थ्य सुविधा में योगदान करना है। 
  • यह जुलाई 2010 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाए गए सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता जैसे मानवाधिकारों की प्रगतिशीलता पर भी ज़ोर देता है।

प्रमुख बिंदु: 

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • खुले में शौच से संबंधित:
    • भारत के भीतर खुले में शौच कम-से-कम वर्ष 2006 के बाद से क्षेत्रीय रूप से अत्यधिक परिवर्तनशील रहा परंतु वर्ष 2016 तक सभी राज्यों में खुले में शौच में कमी आई थी, जिसमें सबसे बड़ी गिरावट हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में देखी गई थी।
    • उप-सहारा अफ्रीका में खुले में शौच पर अंकुश लगाने की प्रगति धीमी थी।
  • SDG 6 से संबंधित:
    • वर्ष 2016 और 2020 के बीच घर पर सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल की पहुँच वाली वैश्विक आबादी 70% से बढ़कर 74% हो गई।
    • ऑन-सोर्स जल संसाधनों और ऑनसाइट स्वच्छता प्रणालियों में सुधार हुआ है।
      • ऑन-सोर्स जल संसाधनों में पाइप्ड वाटर, बोरहोल या ट्यूबवेल, संरक्षित खोदे गए कुएँ, संरक्षित झरने, वर्षा जल और पैकेज्ड या डिलीवर किया गया जल शामिल है।
      • ऑनसाइट स्वच्छता प्रणाली एक ऐसी प्रणाली है जिसमें मल और अपशिष्ट जल को उस भूखंड पर एकत्र, संग्रहीत और/या संसाधित किया जाता है जहाँ वे उत्पन्न होते हैं।
    • सुरक्षित रूप से प्रबंधित स्वच्छता सेवाओं में वर्ष 2016 और 2020 के बीच 47% - 54% की वृद्धि हुई है।

चुनौतियाँ:

  • केंद्रीकृत और विकेंद्रीकृत स्वच्छता दोनों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये, उचित धन और निवेश की आवश्यकता थी।
  • रिपोर्ट में स्वच्छता [विशेष रूप से नोवल कोरोनावायरस रोग (कोविड -19) के संदर्भ में] के बारे में भी बात की गई है।
    • जून 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ ने संयुक्त रूप से 'हैंड हाइजीन फॉर ऑल' पहल शुरू की, जिसका उद्देश्य हाथ धोने के बुनियादी ढाँचे तक पहुँच में सुधार करना और जहाँ संसाधन उपलब्ध हो वहाँ हाथ धोने की प्रथाओं में बदलाव को प्रोत्साहित करना है।
    • साबुन और पानी से हाथ धोने की सुविधाएँ 67 प्रतिशत से बढ़कर 71 प्रतिशत  हो गई।
  • हालाँकि जल संसाधनों की कमी के कारण कोविड-19 महामारी के दौरान दुनिया भर में 10 में से 3 लोग घर पर साबुन और पानी से हाथ नहीं धो सके।

खुले में शौच

  • यह उस प्रथा को संदर्भित करता है जहाँ लोग शौच के लिये शौचालय का उपयोग करने के बजाय खेतों, झाड़ियों, जंगलों, खुले जलाशयों या अन्य खुले स्थानों का प्रयोग करते हैं।
  • यह भारत में बच्चों के स्वास्थ्य के लिये एक गंभीर खतरा उत्पन्न करता है।
  • यह प्रथा महिलाओं को शारीरिक हमलों आदि के प्रति संवेदनशील बनाती है।
  • खराब स्वच्छता स्थिति सरकार को शिक्षा जैसे उत्पादक निवेश के बजाय लोगों की मेहनत की कमाई को स्वास्थ्य पर (जो कि लोगों की गरीबी का प्रमुख कारण है) खर्च करने के लिये मजबूर करती है, जो कि राष्ट्रीय विकास को भी बाधित करता है।

इस संबंध में सरकार द्वारा किये गए प्रयास

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वच्छता रणनीति:

  • जल शक्ति मंत्रालय के तहत पेयजल एवं स्वच्छता विभाग (DDWS) ने वर्ष 2019 से वर्ष 2029 तक 10 वर्षीय ‘राष्ट्रीय ग्रामीण स्वच्छता रणनीति’ शुरू की है।
  • यह नीति स्थानीय सरकारों, नीति-निर्माताओं, कार्यान्वयनकर्त्ताओं और अन्य संबंधित हितधारकों को खुले में शौच मुक्त (ODF) प्लस स्थिति के लिये योजना में उनके मार्गदर्शन करने हेतु एक रूपरेखा तैयार करता है, जिसके तहत प्रत्येक नागरिक शौचालय का उपयोग करने में सक्षम हो और प्रत्येक गाँव में ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा उपलब्ध हो।

स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण चरण-II:

  • यह चरण-I के तहत उपलब्धियों की स्थिरता सुनिश्चित करने और ग्रामीण भारत में ठोस/तरल एवं प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (SLWM) हेतु पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान करने पर ज़ोर देता है।
  • स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) चरण-I के तहत मिशन के शुभारंभ के बाद से 10 करोड़ से अधिक व्यक्तिगत शौचालयों का निर्माण किया गया है; परिणामस्वरूप सभी राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों ने 2 अक्तूबर, 2019 को स्वयं को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया है।

ODF, ODF+, ODF++ (शहरों और कस्बों के लिये)

  • ODF: किसी क्षेत्र को ODF के रूप में अधिसूचित या घोषित किया जा सकता है यदि दिन के किसी भी समय, एक भी व्यक्ति खुले में शौच नहीं करता है।
  • ODF+: एक शहर को ODF+ घोषित किया जा सकता है, यदि किसी दिन किसी भी व्यक्ति को खुले में शौच और/या पेशाब करते हुए नहीं पाया जाता है और सभी सामुदायिक तथा सार्वजनिक शौचालय कार्यात्मक अवस्था में एवं सुव्यवस्थित हैं।
  • ODF++: एक शहर को ODF++ घोषित किया जा सकता है, यदि वह पहले से ही ODF+ स्थिति में है और वहाँ मल कीचड़/सेप्टेज (Faecal sludge/Septage) और नालियों का सुरक्षित रूप से प्रबंधन तथा उपचार किया जाता है एवं किसी प्रकार के अनुपचारित कीचड़/सेप्टेज (Sludge/Septage) और नालियों की निकासी जल निकायों या खुले क्षेत्रों के नालों में नहीं होती है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


सामाजिक न्याय

मानव तस्करी रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण नहीं

मेन्स के लिये:

मानव तस्करी से संबंधित मुद्दे और इससे निपटने हेतु भारत द्वारा उठाए गए कदम

चर्चा में क्यों?

अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा जारी मानव तस्करी रिपोर्ट, 2021 के अनुसार, कोविड-19 महामारी के परिणामस्वरूप मानव तस्करी के प्रति संवेदनशीलता में वृद्धि हुई है और मौजूदा तस्करी-रोधी प्रयासों में बाधा उत्पन्न हुई है।

  • मानव तस्करी जिसे व्यक्तियों की तस्करी भी कहा जाता है, आधुनिक समय की दासता का रूप है जिसमें श्रम, यौन शोषण के उद्देश्य से बल या धोखे से व्यक्तियों का अवैध परिवहन शामिल है तथा ऐसी गतिविधियों को अंजाम देने वालों को आर्थिक लाभ होता है।

प्रमुख बिंदु:

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • भारत तस्करी को खत्म करने के लिये न्यूनतम मानकों को पूरा नहीं कर पाया है, जबकि इसे खत्म करने के लिये सरकार लगातार आवश्यक प्रयास करती रही, साथ ही जब बंधुआ मजदूरी की बात आती है तो ये प्रयास अपर्याप्त प्रतीत होते हैं।
  • चीनी सरकार व्यापक रूप से जबरन श्रम करवाने में लगी हुई है, इसमें दस लाख से अधिक उइगर, कज़ाख, किर्गिज़ और अन्य मुसलमानों को निरंतर सामूहिक रूप से हिरासत रखना शामिल है।

तस्करी में वृद्धि के कारण:

  • तस्करी के जोखिम का सामना कर रहे व्यक्तियों की बढ़ती संख्या, अवैध तस्करीकर्त्ताओं की प्रतिस्पर्द्धी संकटों का लाभ उठाने की क्षमता और महामारी पर प्रतिक्रिया प्रयासों के लिये संसाधनों के विपथन/डायवर्जन आदि का सम्मिलन मानव तस्करी के फलने-फूलने एवं विकसित होने के लिये एक आदर्श वातावरण के रूप में परिणत हुआ है।

देशों का वर्गीकरण:

  • यह वर्गीकरण किसी देश की अवैध व्यापार समस्या की भयावहता पर आधारित नहीं है बल्कि मानव तस्करी के उन्मूलन के लिये न्यूनतम मानकों को पूरा करने के प्रयासों पर आधारित है।
  • देशों को त्रि-स्तरीय प्रणाली के आधार पर नामित किया गया है:
    • टियर 1 में वे देश शामिल हैं जिनकी सरकारें पूरी तरह से तस्करी पीड़ित संरक्षण अधिनियम (Trafficking Victims Protection Act- मानव तस्करी पर अमेरिका का कानून) के न्यूनतम मानकों का पालन करती हैं।
      • संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, बहरीन और दक्षिण कोरिया टियर 1 में शामिल कुछ देश हैं।
    • टियर 2 में वे देश आते हैं जिनकी सरकारें तस्करी पीड़ित संरक्षण अधिनियम के न्यूनतम मानकों का पूरी तरह से पालन नहीं करती हैं, लेकिन उन मानकों के अनुपालन के तहत खुद को लाने के लिये महत्त्वपूर्ण प्रयास कर रही हैं।
      • टियर 2 वॉचलिस्ट वाले वे देश हैं जहाँ तस्करी के पीड़ितों की संख्या महत्त्वपूर्ण स्तर पर है या अत्यधिक बढ़ रही है।
      • भारत को टियर 2 श्रेणी में रखा गया है।
    • टियर 3 में वे देश हैं जिनकी सरकारें न्यूनतम मानकों का पूरी तरह पालन नहीं करती हैं और ऐसा करने के लिये महत्त्वपूर्ण प्रयास नहीं कर रही हैं।
      • अफगानिस्तान, म्याँमार, चीन, क्यूबा, इरिट्रिया, उत्तर कोरिया, ईरान, रूस, दक्षिण सूडान, सीरिया और तुर्कमेनिस्तान इस श्रेणी में आते हैं।
    • यमन जैसे कुछ "विशेष मामले" भी हैं, जहाँ नागरिक संघर्ष और मानवीय संकट के कारण जानकारी प्राप्त करना कठिन हो जाता है।

भारत में प्रासंगिक कानून:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 और 24
    • अनुच्छेद 23: यह मानव तस्करी और बेगार (बिना भुगतान के जबरन श्रम) को प्रतिबंधित करता है।
    • अनुच्छेद 24: यह 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के कारखानों और खदानों जैसे खतरनाक स्थानों में रोज़गार पर रोक लगाता है।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) धारा:
    • IPC की धारा 370 और 370A मानव तस्करी के खतरे का मुकाबला करने हेतु व्यापक उपाय प्रदान करती हैं, जिसमें शारीरिक शोषण या किसी भी रूप में यौन शोषण, गुलामी, दासता या अंगों को जबरन हटाने सहित किसी भी रूप में शोषण के लिये बच्चों की तस्करी शामिल है।
    • धारा 372 और 373 वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से लड़कियों को बेचने और खरीदने से संबंधित है।
  • अन्य विधान:
    • अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 (ITPA) व्यावसायिक यौन शोषण  के लिये तस्करी की रोकथाम हेतु प्रमुख कानून है।
    • महिलाओं और बच्चों की तस्करी से संबंधित अन्य विशिष्ट कानून बनाए गए हैं जैसे- बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006, बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976, बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 और मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994।
    • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिये एक विशेष कानून है।
  • राज्य सरकारों ने इस मुद्दे से निपटने के लिये विशिष्ट कानून भी बनाए हैं (उदाहरण के लिये पंजाब मानव तस्करी रोकथाम अधिनियम, 2012)।

भारत द्वारा उठाए गए अन्य कदम

  • मानव तस्करी के अपराध से निपटने के लिये राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न निर्णयों को संप्रेषित करने और कार्रवाई पर अनुवर्ती कार्रवाई करने हेतु गृह मंत्रालय (MHA) में वर्ष 2006 में एंटी-ट्रैफिकिंग नोडल सेल की स्थापना की गई थी।
  • मानव तस्करी रोधी इकाई (AHTU): गृह मंत्रालय ने एक व्यापक योजना 'स्ट्रेंथनिंग लॉ एनफोर्समेंट रिस्पांस इन इंडिया अगेंस्ट ट्रैफिकिंग इन पर्सन्स' (2010) के तहत देश के कई ज़िलों में AHTU की स्थापना के लिये फंड जारी किया है।
    • AHTU की प्राथमिक भूमिका पीड़ितों की देखभाल और पुनर्वास के लिये कानून प्रवर्तन और अन्य संबंधित एजेंसियों के साथ संपर्क करना है।
  • संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन: भारत ने (वर्ष 2011 में) अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTOC) की पुष्टि की है, जिसमें अन्य लोगों के बीच विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने और दंडित करने के लिये एक प्रोटोकॉल है।
  • सार्क कन्वेंशन: भारत ने वेश्यावृत्ति के लिये महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने और इसका मुकाबला करने हेतु सार्क कन्वेंशन की पुष्टि की है।
  • द्विपक्षीय तंत्र: महिलाओं और बच्चों में मानव तस्करी की रोकथाम, बचाव, पुनर्प्राप्ति, प्रत्यावर्तन और तस्करी के पीड़ितों के पुन: एकीकरण के लिये भारत व बांग्लादेश के बीच एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर जून 2015 में हस्ताक्षर किये गए थे।
  • न्यायिक संगोष्ठी: यह उच्च न्यायालय स्तर पर आयोजित की जाती हैं।
    • इसका उद्देश्य मानव तस्करी से संबंधित विभिन्न मुद्दों के बारे में न्यायिक अधिकारियों को संवेदनशील बनाना और त्वरित अदालती प्रक्रिया सुनिश्चित करना है।
  • क्षमता निर्माण: सरकार द्वारा पूरे देश में क्षेत्रीय स्तर, राज्य स्तर और ज़िला स्तर पर पुलिस अधिकारियों तथा अभियोजकों के लिये 'मानव तस्करी का मुकाबला' करने हेतु विभिन्न प्रशिक्षण (TOT) कार्यशालाएँ आयोजित की गई हैं।

आगे की राह 

  • पीड़ितों की रक्षा करने और अपराधियों को न्याय दिलाने हेतु सभी देशों का समर्थन करने के लिये तकनीकी सहायता बढ़ाने और सहयोग को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
  • मानव तस्करी के खतरे से निपटने के लिये गैर-सरकारी संगठनों के साथ-साथ पुलिस का क्षमता निर्माण आवश्यक है।
  • आंतरिक रूप से प्रशासन में या पुलिस या गैर-सरकारी संगठनों जैसी एजेंसियों के बीच या विभिन्न देशों के बीच भी उचित डेटा साझाकरण सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
  • सरकार को कुछ निवारक कदम उठाने की ज़रूरत है, जैसे
    • तस्करी के अपराध के बारे में बच्चों को शिक्षित करने हेतु उनके स्कूली पाठ्यक्रम में  इन विषयों को शामिल करना।
    • लोगों को एक समाज के रूप में जागरूक करना अर्थात् यदि कोई व्यक्ति किसी भी संदिग्ध गतिविधि के साथ सामने आता है, तो संबंधित अधिकारियों को इसकी सूचना देनी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

आंध्र प्रदेश-तेलंगाना जल विवाद

प्रीलिम्स के लिये:

श्रीशैलम परियोजना,  कृष्णा और गोदावरी नदियाँ,  

मेन्स के लिये:

आंध्र प्रदेश-तेलंगाना जल विवाद का मुख्य कारण  

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के सीमावर्ती ज़िलों में बढ़ते तनाव के चलते विभिन्न जलविद्युत परियोजनाओं (Hydel Power Projects ) पर पुलिस बलों को तैनात किया गया।

  • आंध्र प्रदेश ने कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड ( Krishna River Management Board- KRMB) में शिकायत की है कि तेलंगाना द्वारा बिजली उत्पादन हेतु श्रीशैलम परियोजना (Srisailam project) के जल का प्रयोग किया जा रहा है।
  • KRMB ने अपने हालिया आदेशों में तेलंगाना से बिजली उत्पादन बंद करने को कहा था। तेलंगाना सरकार द्वारा KRBM के आदेशों की अवहेलना के कारण तनाव पैदा हो गया है।

प्रमुख बिंदु: 

विवाद के बारे में:

  • तेलंगाना और आंध्र प्रदेश कृष्णा और गोदावरी (Krishna and the Godavari) एवं उनकी सहायक नदियों के जल को साझा करते हैं।
  • दोनों राज्यों ने आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के तहत नदी बोर्ड, केंद्रीय जल आयोग और शीर्ष परिषद से मंज़ूरी लिये बिना कई नई परियोजनाओं का प्रस्ताव दिया है।
    • आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 गोदावरी नदी प्रबंधन बोर्ड और कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड के कामकाज की निगरानी हेतु केंद्र सरकार द्वारा एक शीर्ष परिषद के गठन को अनिवार्य बनाता है।
    • शीर्ष परिषद में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री और तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री शामिल हैं।
  • आंध्र प्रदेश सरकार के श्रीशैलम जलाशय (Srisailam Reservoir) के ऊपरी हिस्से से कृष्णा नदी के जल के उपयोग को बढ़ाने के प्रस्ताव के कारण तेलंगाना सरकार ने आंध्र प्रदेश के खिलाफ शिकायत दर्ज की।
    • श्रीशैलम जलाशय आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी पर बनाया गया है। यह नल्लामाला पहाड़ियों में स्थित है।
  • आंध्र प्रदेश सरकार ने  शिकायतों का जवाब देते हुए कहा कि कृष्णा नदी पर  पलामुरू रंगारेड्डी,  डिंडी लिफ्ट सिंचाई परियोजना और गोदावरी नदी पर कालेश्वरम, तुपाकुलगुडेम परियोजनाएंँ तथा प्रस्तावित कुछ बैराज सभी नई परियोजनाओं के अंतर्गत आती हैं।

अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद:

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-262 अंतर्राज्यीय जल विवादों के अधिनिर्णयन का प्रावधान करता है।
    • इसके तहत संसद किसी भी अंतर्राज्यीय नदी और नदी घाटी के पानी के उपयोग, वितरण और नियंत्रण के संबंध में किसी भी विवाद या शिकायत के निपटान के लिये कानून द्वारा प्रावधान कर सकती है।
    • संसद यह भी प्रावधान कर सकती है कि इस तरह के किसी भी विवाद या शिकायत के संबंध में न तो सर्वोच्च न्यायालय और न ही कोई अन्य न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करेंगे।
  • इस संबंध में संसद ने दो कानून- नदी बोर्ड अधिनियम (1956) और अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम (1956) अधिनियमित किये हैं।
  • नदी बोर्ड अधिनियम अंतर-राज्यीय नदी और नदी घाटियों के नियमन और विकास हेतु केंद्र सरकार द्वारा नदी बोर्डों की स्थापना का प्रावधान करता है।
    • संबंधित राज्य सरकारों के अनुरोध पर उन्हें सलाह देने हेतु एक नदी बोर्ड की स्थापना की गई है।
  • अंतर-राज्यीय जल विवाद अधिनियम केंद्र सरकार को एक अंतर-राज्यीय नदी या नदी घाटी के पानी के संबंध में दो या दो से अधिक राज्यों के बीच विवाद के निर्णय के लिये एक तदर्थ न्यायाधिकरण स्थापित करने का अधिकार देता है।
    • न्यायाधिकरण का निर्णय अंतिम होता है और विवाद के पक्षकारों पर बाध्यकारी होता है।
    • किसी भी जल विवाद के संबंध में न तो सर्वोच्च न्यायालय और न ही कोई अन्य न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर सकते हैं, जिसे इस अधिनियम के तहत किसी न्यायाधिकरण को संदर्भित किया जा सकता है।

गोदावरी नदी

  • उद्भव: गोदावरी नदी महाराष्ट्र में नासिक के पास त्र्यंबकेश्वर से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले लगभग 1465 किलोमीटर की दूरी तय करती है।
  • अपवाह तंत्र: गोदावरी बेसिन महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों के अलावा मध्य प्रदेश, कर्नाटक तथा पुद्दुचेरी के मध्य क्षेत्र के छोटे हिस्सों में फैला हुआ है।
  • सहायक नदियाँ: प्रवरा, पूर्णा, मंजरा, पेनगंगा, वर्धा, वेनगंगा, प्राणहिता (वेनगंगा, पेनगंगा, वर्धा का संयुक्त प्रवाह), इंद्रावती, मनेर और सबरी।

कृष्णा नदी

  • स्रोत: इसका उद्गम महाराष्ट्र में महाबलेश्वर (सतारा) के निकट है। यह गोदावरी नदी के बाद प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी सबसे बड़ी नदी है।
  • अपवाह तंत्र: यह नदी बंगाल की खड़ी में मिलने से पहले चार राज्यों यथा- महाराष्ट्र (303 किमी.), उत्तरी कर्नाटक (480 किमी.) और शेष 1300 किमी. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में प्रवाहित होती है।
  • सहायक नदियाँ: तुंगभद्रा, कोयना, भीमा, घाटप्रभा, वर्ना, डिंडी, मुसी, दूधगंगा आदि प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

गिद्धों का संरक्षण

प्रिलिम्स के लिये:

वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व, गिद्ध

मेन्स के लिये:

गिद्ध कार्ययोजना, 2020​-25

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व (Valmiki Tiger Reserve- VTR), बिहार में 150 गिद्ध देखे गए, जिसने वीटीआर के संरक्षित क्षेत्र में गिद्ध संरक्षण योजना को प्रेरित किया है।

प्रमुख बिंदु 

गिद्ध के विषय में:

  • यह मरा हुआ जानवर खाने वाले पक्षियों की 22 प्रजातियों में से एक है जो मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में रहते हैं।
  • ये प्रकृति के कचरा संग्रहकर्त्ता के रूप में एक महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं और पर्यावरण से कचरा हटाकर उसे साफ रखने में मदद करते हैं।
    • गिद्ध वन्यजीवों की बीमारियों को नियंत्रण में रखने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • भारत गिद्धों की 9 प्रजातियों यथा- ओरिएंटल व्हाइट बैकड (Oriental White Backed), लॉन्ग बिल्ड (Long Billed), स्लेंडर-बिल्ड (Slender Billed), हिमालयन (Himalayan), रेड हेडेड (Red Headed), मिस्र देशीय (Egyptian), बियरडेड (Bearded), सिनेरियस (Cinereous) और यूरेशियन ग्रिफॉन (Eurasian Griffon) का घर है।
    • इन 9 प्रजातियों में से अधिकांश के विलुप्त होने का खतरा है।
    • बियरडेड, लॉन्ग बिल्ड और ओरिएंटल व्हाइट बैकड वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (Wildlife Protection Act), 1972 की अनुसूची-1 में संरक्षित हैं। बाकी 'अनुसूची IV' के अंतर्गत संरक्षित हैं।

IUCN स्थिति : 

IUCN-Status

खतरे :

  • डाइक्लोफेनाक (Diclofenac) जैसे विषाक्त जो पशुओं के लिये दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • मानवजनित गतिविधियों के कारण प्राकृतिक आवासों का नुकसान।
  • भोजन की कमी और दूषित भोजन।
  • बिजली लाइनों से करंट।

संरक्षण के प्रयास :

  • हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री ने देश में गिद्धों के संरक्षण के लिये एक 'गिद्ध कार्ययोजना 2020​-25' (Vulture Action Plan 2020-25) शुरू की।
    • यह डिक्लोफेनाक का न्यूनतम उपयोग सुनिश्चित करेगा और गिद्धों हेतु मवेशियों के शवों के प्रमुख भोजन की विषाक्तता को रोकेगा।
    • ‘गिद्ध सुरक्षित क्षेत्र कार्यक्रम’ को देश के उन आठ अलग-अलग स्थानों पर लागू किया जा रहा है जहाँ गिद्धों की आबादी विद्यमान है। इनमें से दो स्थान उत्तर प्रदेश में हैं।
    • उत्तर भारत में पिंजौर (हरियाणा), मध्य भारत में भोपाल, पूर्वोत्तर में गुवाहाटी और दक्षिण भारत में हैदराबाद जैसे विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लिये चार बचाव केंद्र प्रस्तावित हैं।
    • MoEFCC ने अब रेड-हेडेड एवं इजिप्टियन गिद्धों दोनों के लिये प्रजनन कार्यक्रमों के साथ-साथ संरक्षण योजनाएँ भी शुरू की हैं।
  •  भारत में गिद्धों की मौत के कारणों पर अध्ययन करने के लिये वर्ष 2001 में हरियाणा के पिंजौर में एक गिद्ध देखभाल केंद्र (Vulture Care Centre-VCC) स्थापित किया गया। 
  • कुछ समय बाद वर्ष 2004 में गिद्ध देखभाल केंद्र को उन्नत (Upgrade) करते हुए भारत के पहले ‘गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र’  (VCBC) की स्थापना की गई।
    • वर्तमान में भारत में नौ गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र हैं, जिनमें से तीन बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (Bombay Natural History Society-BNHS) द्वारा प्रत्यक्ष रूप से प्रशासित किये जा रहे हैं।

वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व

अवस्थिति:

  • बिहार के पश्चिमी चंपारण ज़िले में भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है।
  • यह भारत में हिमालयी तराई वनों की सबसे पूर्वी सीमा बनाती है।
  • देश के गंगा के मैदानों के जैव-भौगोलिक क्षेत्र में स्थित जंगल में भाबर और तराई क्षेत्रों का संयोजन है।

अवस्थापना:

  • इसकी स्थापना मार्च 1994 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत की गई थी।

जैव विविधता:

  • राष्ट्रीय उद्यान के जंगल में पाए जाने वाले वन्यजीव बंगाल टाइगर, भारतीय गैंडा, काला भालू, ऊदबिलाव, भारतीय तेंदुआ, जंगली कुत्ता, भैंस और सूअर हैं।
  • साथ ही यहाँ भारतीय उड़ने वाली लोमड़ियों को भी देखा जा सकता है।
  • रिज़र्व में समृद्ध विविधता है। यहाँ पक्षियों की 250 से अधिक प्रजातियों की सूचना मिली है।
  • ‘थारू' एक अनुसूचित जनजाति है जो वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान के परिदृश्य में प्रमुख समुदाय है।

Bihar

बिहार में अन्य संरक्षित क्षेत्र:

  • भीमबाँध अभयारण्य।
  • राजगीर अभयारण्य।
  • कैमूर अभयारण्य।
  • कँवर झील पक्षी विहार।
  • विक्रमशिला गंगेटिक डॉल्फिन।

स्रोत- डाउन टू अर्थ


भारतीय अर्थव्यवस्था

विदेशी मुद्रा भंडार

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, विदेशी मुद्रा भंडार

मेन्स के लिये:

विदेशी मुद्रा भंडार का महत्त्व और आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक के हालिया आँकड़ों के मुताबिक 25 जून, 2021 को समाप्त हुए सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 5 बिलियन डॉलर बढ़कर 609 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया है।

  • विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों (FCA) में वृद्धि समग्र भंडार का प्रमुख घटक है।

प्रमुख बिंदु

विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी:

  • विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति (FCA) 4.7 अरब डॉलर बढ़कर 566 अरब डॉलर पर पहुँच गई है।
  • सोने का भंडार 365 मिलियन डॉलर बढ़कर 36.296 बिलियन डॉलर पर पहुँच गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ विशेष आहरण अधिकार (SDRs) 1.498 अरब डॉलर पर अपरिवर्तित है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ देश का रिज़र्व ट्रेंच सप्ताह में मामूली 10 लाख डॉलर बढ़कर 4.965 अरब डॉलर हो गया है।

विदेशी मुद्रा भंडार:

  • विदेशी मुद्रा भंडार का आशय केंद्रीय बैंक द्वारा विदेशी मुद्रा में आरक्षित संपत्ति से होता है, जिसमें बाॅण्ड, ट्रेज़री बिल और अन्य सरकारी प्रतिभूतियाँ शामिल होती हैं।
    • गौरतलब है कि अधिकांश विदेशी मुद्रा भंडार अमेरिकी डॉलर में आरक्षित किये जाते हैं।
  • भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में शामिल हैं:
    • विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ
    • स्वर्ण भंडार
    • विशेष आहरण अधिकार (SDR)
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ रिज़र्व ट्रेंच

विदेशी मुद्रा भंडार को बनाए रखने का उद्देश्य:

  • मौद्रिक और विनिमय दर प्रबंधन के लिये नीतियों का समर्थन तथा उनमें विश्वास बनाए रखना।
  • राष्ट्रीय मुद्रा के समर्थन में हस्तक्षेप करने की क्षमता प्रदान करता है।
  • यह संकट के समय या जब ऋण तक पहुँच में कटौती की स्थिति में नुकसान को कम करने के लिये विदेशी मुद्रा तरलता को बनाए रखते हुए बाह्य  भेद्यता को सीमित करता है।

बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार का महत्त्व:

  • सरकार के लिये आरामदायक स्थिति: बढ़ता विदेशी मुद्रा भंडार भारत के बाहरी और  आंतरिक वित्तीय मुद्दों के प्रबंधन में सरकार तथा भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को सुविधा प्रदान करता है।
  • संकट का प्रबंधन: यह आर्थिक मोर्चे पर भुगतान संतुलन (Balance of Payment) को लेकर संकट की स्थिति में मदद करता है।
  • रुपए के मूल्य में अभिवृद्धि (Appreciation): भारत के विदेशी मुद्रा के बढ़ते भंडार ने डॉलर के मुकाबले रुपए को मज़बूती प्रदान करने में मदद की है।
  • बाज़ार में विश्वास: यह भंडार बाज़ारों और निवेशकों को विश्वास का स्तर प्रदान करेगा जिससे एक देश अपने बाहरी दायित्वों को पूरा कर सकता है।

विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ (FCA):     

  • FCA ऐसी संपत्तियाँ हैं जिनका मूल्यांकन देश की स्वयं की मुद्रा के अलावा किसी अन्य मुद्रा के आधार पर किया जाता है।
  • FCA  विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा घटक है। इसे डॉलर के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  • FCA  में विदेशी मुद्रा भंडार में रखे गए यूरो, पाउंड और येन जैसी गैर-अमेरिकी मुद्रा की कीमतों में उतार-चढ़ाव या मूल्यह्रास का प्रभाव शामिल है।

विशेष आहरण अधिकार (SDRs)

  • विशेष आहरण अधिकार को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) द्वारा 1969 में अपने सदस्य देशों के लिये अंतर्राष्ट्रीय आरक्षित संपत्ति के रूप में बनाया गया था।
  • SDR न तो एक मुद्रा है और न ही IMF पर इसका दावा किया जा सकता है। बल्कि यह IMF के सदस्यों का स्वतंत्र रूप से प्रयोग करने योग्य मुद्राओं पर एक संभावित दावा है। इन मुद्राओं के लिये SDR का आदान-प्रदान किया जा सकता है।
  • SDR के मूल्य की गणना ‘बास्केट ऑफ करेंसी’ में शामिल मुद्राओं के औसत भार के आधार पर की जाती है। इस बास्केट में पाँच देशों की मुद्राएँ शामिल हैं- अमेरिकी डॉलर, यूरोप का यूरो, चीन की मुद्रा रॅन्मिन्बी, जापानी येन और ब्रिटेन का पाउंड
  • विशेष आहरण अधिकार ब्याज (SDRi) सदस्य देशों को उनके द्वारा धारण किये जाने वाले SDR पर मिलने वाला ब्याज है।

IMF के पास रिज़र्व ट्रेंच

  • रिज़र्व ट्रेंच वह मुद्रा होती है जिसे प्रत्येक सदस्य देश द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) को प्रदान किया जाता है और जिसका उपयोग वे देश अपने स्वयं के प्रयोजनों के लिये कर सकते हैं। 
  • रिज़र्व ट्रेंच मूलतः एक आपातकालीन कोष होता है जिसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के सदस्य देशों द्वारा बिना किसी शर्त पर सहमत हुए अथवा सेवा शुल्क का भुगतान किये किसी भी समय प्राप्त किया जा सकता है। 

स्रोत : बिज़नेस स्टैंडर्ड


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