चीन के साथ व्यापार घाटे में कमी
प्रीलिम्स के लियेव्यापार घाटे और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का अर्थ मेन्स के लियेअर्थव्यवस्था पर व्यापार घाटे का प्रभाव, चीन के साथ भारत की व्यापार स्थिति |
चर्चा में क्यों?
हालिया सरकारी आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 में चीन के साथ भारत के व्यापार घाटा (Trade Deficit) में कमी देखने को मिली है और यह घटकर 48.66 बिलियन डॉलर पर पहुँच गया है।
प्रमुख बिंदु
- आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान भारत द्वारा चीन को लगभग 16.6 बिलियन डॉलर का निर्यात किया गया, जबकि भारत ने चीन से लगभग 65.26 बिलियन डॉलर का आयात किया, जिसके कारण चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 48.66 बिलियन रहा।
- गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 53.56 बिलियन डॉलर था, जबकि वित्तीय वर्ष 2017-18 में यह कुल 63 बिलियन डॉलर रहा था।
- भारत में चीन से आयातित मुख्य वस्तुओं में घड़ी, संगीत वाद्ययंत्र, खिलौने, खेल संबंधी उपकरण, फर्नीचर, गद्दे, प्लास्टिक, विद्युत उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, रसायन, लोहा एवं इस्पात वस्तुएँ, उर्वरक, खनिज ईंधन और धातु आदि शामिल हैं।
- हालाँकि चीन के साथ भारत के व्यापार घाटे में बीते कुछ वर्षों में कमी देखने को मिली है, इसके बावजूद चीन के साथ व्यापार घाटे की इतनी बड़ी मात्रा सरकार के लिये चिंता का कारण बनी हुई है।
- ज्ञातव्य है कि भारत में आयातित कुल वस्तुओं में से लगभग 14 प्रतिशत वस्तुएँ चीन से आती हैं और चीन मोबाइल फोन, दूरसंचार, बिजली, प्लास्टिक के खिलौने और दवाई सामग्री जैसे क्षेत्रों के लिये एक प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता है।
व्यापार घाटे में कमी हेतु सरकार के प्रयास
- भारत सरकार चीन के उत्पादों पर निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से कई उत्पादों हेतु तकनीकी नियमों और गुणवत्ता मानदंडों को तैयार करने की योजना बना रही है।
- इसके अलावा हाल ही में भारत द्वारा चीन समेत कुल 3 देशों से कुछ विशिष्ट प्रकार के इस्पात उत्पादों के आयात पर एंटी-डंपिंग शुल्क (Anti-Dumping Duty) लगाने की घोषणा की गई है।
- ध्यातव्य है कि व्यापार उपचार महानिदेशालय (Directorate General of Trade Remedies- DGTR) ने अपनी जाँच में यह निष्कर्ष निकाला था कि उक्त देशों (चीन, वियतनाम और कोरिया) द्वारा भारत में अपने उत्पादों का निर्यात सामान्य से भी से कम मूल्य पर किया गया, जिसके परिणामस्वरूप घरेलू उद्योगों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ा।
- चीन के लगभग 371 उत्पादों की पहचान तकनीकी नियमों (Technical Regulations) के लिये की गई है, जिसमें से 47 अरब डॉलर की कीमत पर आयातित 150 उत्पादों हेतु तकनीकी विनियम तैयार कर लिये गए हैं।
- सरकार के अनुसार, बीते एक वर्ष में 50 से अधिक उत्पादों के लिये गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (Quality Control Order-QCO) और अन्य तकनीकी नियम अधिसूचित किये गए हैं, जिनमें इलेक्ट्रॉनिक सामान, खिलौने, एयर कंडीशनर, साइकिल के हिस्से, रसायन, सुरक्षा काँच, प्रेशर कुकर और स्टील तथा इलेक्ट्रिकल उपकरण आदि शामिल हैं।
व्यापार घाटा
- सामान्य शब्दों में व्यापार घाटे (Trade Deficit) का अर्थ निर्यात की तुलना में आयात की अधिकता से होता है। जब किसी राष्ट्र का आयात उसके निर्यात से अधिक होता है, तो वह व्यापार घाटे की स्थिति में चला जाता है।
- उल्लेखनीय है कि व्यापार घाटे का स्पष्ट प्रभाव उस देश की मुद्रा पर देखने को मिलता है, जब आयात अधिक होगा तो विदेशी मुद्रा, विशेष रूप से डॉलर, में भुगतान होने के कारण देश की विदेशी मुद्रा (डॉलर) में कमी आती है। जब विदेशी मुद्रा में भुगतान होता है, तो उसकी मांग भी बढ़ती है और रुपया उसके मुकाबले कमज़ोर हो जाता है।
चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में कमी
- आँकड़ों के अनुसार, भारत में चीन से ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ (Foreign Direct Investment- FDI) वित्तीय वर्ष 2018-19 में 229 मिलियन डॉलर से वित्तीय वर्ष 2019-20 में 163.78 मिलियन डॉलर तक पहुँच गया है।
- भारत ने वित्तीय वर्ष 2017-18 में चीन से FDI के रूप में 350.22 मिलियन डॉलर और वित्तीय 2016-17 में 277.25 मिलियन डॉलर प्राप्त किये थे।
- आँकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल 2000 से मार्च 2020 तक की अवधि के दौरान, भारत ने चीन से लगभग 2.38 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित किया है।
- अप्रैल 2000 से मार्च 2020 की अवधि के दौरान चीन से अधिकतम FDI प्राप्त करने वाले क्षेत्र में ऑटोमोबाइल (987.35 मिलियन डॉलर), धातु-उद्योग (199.28 मिलियन डॉलर), विद्युत उपकरण (185.33 मिलियन डॉलर), सेवा क्षेत्र (170.18 मिलियन डॉलर) और इलेक्ट्रानिक्स (151.56 मिलियन डॉलर) आदि शामिल थे।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI)
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) किसी एक समूह अथवा व्यक्ति द्वारा किसी एक देश के व्यवसाय अथवा निगम में स्थायी हितों को स्थापित करने के उद्देश्य से किया गया निवेश होता है।
FDI संबंधित नियमों में सरकार की सख्ती
- गौरतलब है कि इसी वर्ष अप्रैल माह में भारत सरकार ने देश के साथ भूमि सीमा साझा करने वाले देशों से आने वाले FDI मानदंडों को और कड़ा कर दिया था।
- संशोधित FDI नियमों के अनुसार, भारत से भूमि साझा करने वाले देश की कंपनी अथवा किसी व्यक्ति को भारत में निवेश करने के लिये सर्वप्रथम सर्वप्रथम सरकार से अनुमोदन लेना होगा।
- भारत चीन समेत कुल 7 देशों (पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, चीन, भूटान, बांग्लादेश और म्याँमार) के साथ अपनी थल सीमाएँ साझा करता है।
- फरवरी 2020 में जारी एक रिपोर्ट में यह सामने आया था कि चीन की कई बड़ी कंपनियों जैसे अलीबाबा (Alibaba) और टेंसेंट (Tencent) ने लगभग 92 भारतीय स्टार्टअप (Startup) में निवेश किया हुआ। यह संख्या स्पष्ट रूप से भारतीय बाज़ारों में चीन की अत्यधिक पहुँच को दर्शाती हैं, जो कि भारतीय घरेलू उद्योगों और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये एक अच्छी खबर नहीं है।
स्रोत: द हिंदू
भारत का पहला प्लाज़्मा बैंक
प्रीलिम्स के लिये:प्लाज़्मा थेरेपी, प्लाज्मा बैंक, प्लाज्मा मेन्स के लिये:प्लाज्मा बैंक एवं कोरोना संक्रमण के उपचार में प्लाज़्मा थेरेपी की उपयोगिता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली स्थित ‘यकृत एवं पित्त विज्ञान संस्थान’ (The Institute of Liver and Biliary Sciences- ILBS) में भारत के प्रथम प्लाज़्मा बैंक (India’s first plasma bank) की शुरुआत की गई है।
प्रमुख बिंदु:
- कोरोना महामारी के इलाज़ में प्लाज़्मा थेरेपी की उपयोगिता को देखते हुए दिल्ली में इस प्लाज्मा बैंक की शुरुआत की गई है।
- COVID-19 के संक्रमण के बाद ठीक होने वाले मरीज़ 14 दिनों के बाद अपना प्लाज़्मा इस प्लाज़्मा बैंक में दान कर सकते हैं।
- प्लाज़्मा दनकर्त्ताओं को 1031 या व्हाट्सएप 8800007722 पर कॉल करना होगा जिसके बाद सरकार दानकर्त्ताओं से संपर्क करके यह सुनिश्चित करेगी कि क्या वे प्लाज़्मा दान करने के लिये पात्र हैं अथवा नहीं।
प्लाज़्मा दानकर्त्ता:
- 18 से 60 वर्ष तक की आयु के ऐसे लोग, जिनका वज़न 50 किलोग्राम से कम नहीं है कोविड-19 मरीजों के इलाज हेतु अपना प्लाज्मा दान कर सकते हैं।
- प्लाज़्मा दनकर्त्ता के कोरोना सक्रमण से ठीक होने के 14 दिन बाद ही प्लाज्मा दान कर सकते हैं।
कौन नहीं दे सकता प्लाज़्मा?
- मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कैंसर से ठीक हुए लोग, क्रॉनिक हार्ट डिजीज, लिवर, फेफड़े एवं किडनी की बीमारी तथा उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोग ठीक होने के 14 दिन बाद भी अपना प्लाज्मा दान नहीं कर सकते हैं।
- इसके अलावा वे महिलाएँ जो अपने संपूर्ण जीवनकाल में कभी भी गर्भवती हुई हो वो भी अपना प्लाज़्मा दान नहीं कर सकती है।
प्लाज्मा बैंक का महत्त्व:
- ऐसा माना जा रहा है कि प्लाज्मा थेरेपी से कोविड-19 संक्रमण के कारण मरने वालों की संख्या में कमी आ सकती है।
- ऐसे समय में जब विश्व स्तर पर इस महामारी की कोई एक दवा मौज़ूद नहीं है, प्लाज़्मा थेरेपी एक बेहतर विकल्प के रुप में प्रयोग की जा सकती है तथा प्लाज्मा बैंक इसमें एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
स्रोत: द हिंदू
अकार्बनिक-कार्बनिक यौगिक का संश्लेषण
प्रीलिम्स के लिये:इन विट्रो तकनीकी,अकार्बनिक-कार्बनिक यौगिक मेन्स के लिये:संश्लेषित अकार्बनिक-कार्बनिक यौगिकों का चिकित्सीय क्षेत्र में महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग’ (Department of Science and Technology ) के अधीन मोहाली स्थित स्वायत्त संस्थान, ‘नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान’ (Institute of Nano Science & Technology- INST) के वैज्ञानिकों द्वारा अकार्बनिक-कार्बनिक संकर यौगिक का संश्लेषण किया गया है जो स्तन, फेफड़े एवं यकृत में कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने में सहायक है।
प्रमुख बिंदु:
- फोस्फोमोलीबिक एसिड का यह अकार्बनिक लवण ‘फॉस्फोमोलीबडेट क्लस्टर’ (phosphomolybdate cluster) पर आधारित ठोस यौगिक पोलीओक्सोमेटलेट (Polyoxometalates- POMs) परिवार से संबंधित है।
- इस अकार्बनिक लवण में एंटीट्यूमर गुण की पहचान की गई है। इन यौगिकों की सहायता से कैंसर कोशिकाओं को नष्ट किया जा सकता है।
- पोलीओक्सोमेटलेट अकार्बनिक धातु ऑक्साइड का एक विकसित वर्ग है, जो कई प्रकार की जैविक गतिविधियों को संपन्न करता है तथा उनकी संरचनाओं और गुणों में अत्यधिक विविधता उत्पन्न करता है।
- यह शोध डाल्टन ट्रांजेक्शंस (Dalton Transactions) नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
शोध कार्य:
- वैज्ञानिकों द्वारा अपने शोध कार्य में हाइड्रोथर्मल विधि का प्रयोग करते हुए ‘पोलीओक्सोमेटलेट’ यौगिक का संश्लेषण किया गया तथा इस बात का पता लगाया गया कि यौगिक द्वारा कैंसर कोशिकाओं को किस प्रकार नष्ट किया जाता है।
- हाइड्रोथर्मल विधि जलीय माध्यम में एक निश्चित ताप और दाब पर अकार्बनिक पदार्थों के संश्लेषण की एक प्रक्रिया है।
- हाइड्रोथर्मल विधि का प्रयोग करते हुए सोडियम मोलिब्डेट, फॉस्फोरस एसिड तथा बाइपिरिडीन के जलीय मिश्रण को pH 4 के एसीटेट बफर घोल में 160 डिग्री सेल्सियस पर 72 घंटों के लिये गर्म किया गया।
- स्तन कैंसर (MCF-7), फेफड़े के कैंसर (A549) तथा यकृत कैंसर (HepG2) कोशिकाओं को नष्ट करने वाले तंत्र का मूल्यांकन किया गया।
- शोध के इन विट्रो (In Vitro) परिणामों से पता चला कि यह हाइब्रिड ठोस यौगिक सामान्य कोशिकाओं के प्रति कम विषाक्त गुण प्रदर्शित करता है।
शोध का महत्त्व:
- कैंसर चिकित्सा के क्षेत्र में इस शोध का विशेष महत्त्व है।
- यह शोध कैंसर के उपचार में प्रयोग की जाने वाली मेटलोड्रग्स (Metallodrugs) के लिये संभावनाओं के नए मार्ग खोलता है।
- इस यौगिक की एंटीट्यूमर गतिविधि नियमित इस्तेमाल किए जाने वाले कीमोथैरेप्यूटिक एजेंट, मैथोट्रेक्सेट (MTX) के समान ही महत्त्वपूर्ण है।
स्रोत: पी.आई.बी.
शिवालिक वन को टाइगर रिज़र्व घोषित करने का प्रस्ताव
प्रीलिम्स के लियेदेश के विभिन्न टाइगर रिज़र्व और उनकी अवस्थिति मेन्स के लियेभारत में बाघों की स्थिति और उनके संरक्षण संबंधी चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
सहारनपुर मंडल के आयुक्त ने उत्तर प्रदेश सरकार को सहारनपुर मंडल में आने वाले शिवालिक वन को टाइगर रिज़र्व (Tiger Reserve) घोषित करने का प्रस्ताव दिया है।
प्रमुख बिंदु
- यदि सरकार इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेती है तो यह उत्तर प्रदेश का चौथा टाइगर रिज़र्व (Tiger Reserve) होगा।
- वर्तमान में उत्तर प्रदेश में कुल तीन टाइगर रिज़र्व हैं जिसमें पीलीभीत टाइगर (Pilibhit Tiger Reserve), अमानगढ़ टाइगर रिज़र्व (Amangarh Tiger Reserve) और दुधवा टाइगर रिज़र्व (Dudhwa Tiger Reserve) शामिल हैं।
कारण
- इस क्षेत्र में बाघों की संख्या तेज़ी से बढ़ती जा रही है, जिसके कारण इस क्षेत्र में अपने आवास की रक्षा करने हेतु बाघों के बीच झड़पों की संख्या भी बढ़ रही है। कमज़ोर बाघ अक्सर छिपने के उद्देश्य से आस-पास के खेतों में चले जाते हैं, हालाँकि इससे इससे मानव-पशु संघर्ष की संभावना बढ़ जाती है।
- ऐसे में बाघों की सुगम आवाजाही सुनिश्चित करने के लिये इस क्षेत्र को टाइगर रिज़र्व घोषित करना काफी महत्त्वपूर्ण है।
महत्त्व
- इस कदम से न केवल बढ़ते मानव-पशु संघर्ष को कम किया जा सकेगा बल्कि इस क्षेत्र की समृद्ध जैव-विविधता के पोषण में भी मदद मिलेगी।
- इस क्षेत्र को टाइगर रिज़र्व घोषित करने से यहाँ बाघों के सुरक्षित आवागमन की सुविधा प्रदान प्रदान की जा सकेगी।
- विशेषज्ञ मानते हैं कि यह क्षेत्र जैव विविधता की दृष्टि से काफी समृद्ध है और इसे ईको-टूरिज़्म (Eco-Tourism) के केंद्र के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।
शिवालिक वन
- 33,220-हेक्टेयर क्षेत्रफल वाला शिवालिक वन उत्तर प्रदेश के उत्तरी सिरे में शिवालिक श्रेणी (Shivalik Range) की तलहटी में स्थित है, शिवालिक श्रेणी देश के चार राज्यों (हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और उत्तर प्रदेश) को जोड़ती है।
भारत में बाघों की स्थिति
- अखिल भारतीय बाघ अनुमान, 2018 के अनुसार, वर्ष 2018 में भारत में बाघों की संख्या बढ़कर 2,967 हो गई थी। यह भारत के लिये एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी, क्योंकि भारत ने बाघों की संख्या को दोगुना करने के लक्ष्य को चार वर्ष पूर्व ही प्राप्त कर लिया है।
- सर्वेक्षण के अनुसार, देश में मध्य प्रदेश और कर्नाटक में बाघों की संख्या सबसे अधिक है। हालाँकि, बाघों की संख्या में हुई वृद्धि उन सभी 18 राज्यों में एक समान नहीं हुई है जहाँ बाघ पाए जाते हैं।
- तीन टाइगर रिज़र्व बक्सा (पश्चिम बंगाल), डंपा (मिज़ोरम) और पलामू (झारखंड) में बाघों के अनुपस्थिति दर्ज की गई है।
बाघ संरक्षण की चुनौतियाँ
- अवैध बाज़ारों में बाघ के शरीर के प्रत्येक हिस्से का कारोबार होता है, जिसके कारण बाघों का अवैध रूप से शिकार किया जाता है, जो कि भारत में बाघ संरक्षण के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है।
- एक अनुमान के अनुसार, विश्व भर के बाघों ने अपने प्राकृतिक वास स्थान का लगभग 93 प्रतिशत हिस्सा खो दिया है, जो कि मौजूदा दौर में बाघों के लिये सबसे मुख्य खतरा है।
- बाघों के प्राकृतिक निवास स्थान और शिकार स्थान छोटे होने के कारण अधिकांश बाघ पशुधन को मारने के लिये मज़बूर है और जब वे ऐसा करते हैं तो किसान अक्सर जवाबी कार्रवाई करते हैं और बाघों को मार देते हैं।
स्रोत: द हिंदू
ड्रग डिस्कवरी हैकेथोन 2020
प्रीलिम्स के लिये:ड्रग डिस्कवरी हैकथॉन 2020 के प्रमुख बिंदु मेन्स के लिये:ड्रग डिस्कवरी हैकथॉन 2020 का महत्त्व एवं कार्यप्रणाली |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय’ (Ministry of Human Resource Development- MHRD) द्वारा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से ड्रग डिस्कवरी हैकथॉन 2020 (Drug Discovery Hackathon) की शुरुआत की गई है।
प्रमुख बिंदु:
- यह ड्रग डिस्कवरी हैकथॉन MHRD, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (All India Council for Technical Education- AICTE) तथा वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR) की एक संयुक्त पहल है।
- यह हैकथॉन COVID-19 की दवा की खोज प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने के लिये अपनी तरह की पहली राष्ट्रीय पहल है।
- इस पहल के माध्यम से विश्व स्तर पर जो भी कंपनी कोरोना वैक्सीन को निर्मित करेगी उसे पुरस्कृत किया जायेगा।
- यह हैकथॉन अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिये दुनिया भर के कंप्यूटर विज्ञान, रसायन विज्ञान, फार्मेसी, चिकित्सा विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी जैसे विभिन्न क्षेत्रों के पेशेवरों, प्राध्यापकों, शोधकर्त्ताओं एवं छात्रों के लिये खुला रहेगा।
हैकथॉन की कार्यप्रणाली:
- हैकथॉन के माध्यम से MHRD तथा AICTE, सार्स–सीओवी-2 (SARS-CoV-2) की संभावित दवा के अणुओं की पहचान करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जबकि CSIR इन पहचाने गए अणुओं के प्रभाव, विषाक्तता, संवेदनशीलता एवं उनके संश्लेषण तथा प्रयोगशाला में परीक्षण का कार्य करेगा।
- हैकथॉन के माध्यम से ‘इन-सिलिको ड्रग खोज’ (In-Silico Drug Discovery) द्वारा सार्स–सीओवी-2 (SARS-CoV-2) के लिये दवा का परीक्षण करने वालों की पहचान करना एवं रासायनिक संश्लेषण एवं जैविक परीक्षण करना भी इसमें शामिल है।
- दवा की खोज में कम्प्यूटेशनल (सिलिको में) विधियों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
- इस विधि में उपयुक्त दवा की पहचान करना सबसे पहला एवं महत्वपूर्ण कार्य है।
- यह हैकथॉन मुख्य रूप से दवा की खोज के कम्प्यूटेशनल पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करेगा जिसमे तीन ट्रैक्स शामिल है-
- ट्रैक -1 ड्रग डिज़ाइन के लिये कम्प्यूटेशनल मॉडलिंग या मौजूदा डेटाबेस से प्रमुख यौगिकों की पहचान करने से संबंधित होगा,जिसमें (SARS-CoV-2) को रोकने की क्षमता हो ।
- ट्रैक -2 प्रतिभागियों को न्यूनतम विषाक्तता और अधिकतम विशिष्टता एवं चयनात्मकता के साथ दवा जैसे यौगिकों की भविष्यवाणी के लिये डेटा एनालिटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता/ मशीन लर्निंग का उपयोग करके नए टूल और एल्गोरिदम विकसित करने के लिये प्रोत्साहित करेगा।
- ट्रैक- 3 जिसे "मून शॉट" कहा जाता है। यह उन समस्याओं पर काम करने की अनुमति देता है जो 'आउट ऑफ द बॉक्स' की प्रवृत्ति के होंगे।
- प्रत्येक चरण के अंत में सफल टीमों को पुरस्कृत किया जाएगा। चरण 3 के अंत में पहचाने गए प्रथम 3 प्रमुख यौगिकों को CSIR एवं अन्य इच्छुक संगठनों में प्रायोगिक स्तर के लिये आगे ले जाया जाएगा।
महत्त्व:
- यह हैकथॉन दवा की खोज प्रक्रिया में तेजी लाने के लिये भारत को नए मॉडल स्थापित करने में मदद करेगा।
- इसके माध्यम से (SARS-CoV-2) की दवा को विकसित करने में तेज़ी आएगी।
स्रोत: पीआईबी
रक्षा खरीद प्रस्तावों को मंज़ूरी
प्रीलिम्स के लिये:पिनाका, अस्त्र मिसाइल, मिग 29, SU-30 MKI, LRLACM मेन्स के लिये:रक्षा खरीद प्रस्ताव का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
भारत-चीन के बीच जारी सीमा गतिरोध के मद्देनज़र भारत सरकार की 'रक्षा अधिग्रहण परिषद' (Defence Acquisition Council- DAC) ने हाल ही में लगभग 39,000 करोड़ रुपए के रक्षा खरीद प्रस्तावों को मंज़ूरी दी है।
प्रमुख बिंदु:
- DAC, रक्षा अधिग्रहण संबंधी मामलों पर निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था है, जिसकी अध्यक्षता रक्षा मंत्री द्वारा की जाती है।
- रक्षा खरीद प्रस्ताव भारत की तीनों सेवाओं (सेना, नौसेना और वायु सेना) की लड़ाकू क्षमताओं में वृद्धि करेगा।
- इन रक्षा प्रस्तावों में मुख्यत: तीनों रक्षा सेवाओं के लिये मिसाइल प्रणाली, और वायु सेना के लिये अतिरिक्त लड़ाकू जेट शामिल हैं।
रक्षा खरीद प्रस्ताव:
- DAC द्वारा द्वारा स्वीकृत रक्षा खरीद प्रस्ताव में 21 मिग-29 फाइटर जेट विमानों की खरीद, 59 मिग जेट विमानों को अपग्रेड करना और 12 Su-30 MKI विमानों का अधिग्रहण भी शामिल है।
- इसके अलावा रक्षा खरीद में पिनाका रॉकेट लॉन्चर तथा अस्त्र मिसाइलों से संबंधित प्रस्तावों को भी मंज़ूरी दी गई है।
सेना के लिये पिनाका मिसाइल प्रणाली:
- प्रस्ताव:
- सेना क लिये ‘पिनाका निर्देशित रॉकेट प्रणाली’ (Pinaka Guided Rocket System) में आवश्यक आयुध-संभार (Ammunition) किया जाएगा।
- पिनाका (Pinaka):
- यह रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) द्वारा विकसित सभी मौसम में कार्य करने वाली मुक्त उड़ान पर आधारित आर्टिलरी रॉकेट प्रणाली है।
- पिनाका हथियार प्रणाली में रॉकेट, मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर, बैटरी कमांड पोस्ट, लोडर कम रिप्लेसमेंट व्हीकल, रिप्लेसमेंट व्हीकल और राडार प्रणाली शामिल हैं।
नौसेना और वायु सेना के लिये अस्त्र मिसाइल:
- प्रस्ताव:
- नौसेना और वायु सेना के लिये ‘बियॉन्ड विज़ुअल रेंज एयर-टू-एयर मिसाइलों’ (BVRAAM) की घरेलू रूप से खरीद की जाएगी।
- अस्त्र मिसाइल:
- अस्त्र दृश्य सीमा के परे हवा-से-हवा में मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र है।
- अस्त्र मिसाइल प्रणाली को लड़ाकू विमान पर तैनात किये जाने के अनुसार डिज़ाइन किया गया है।
- यह मिसाइल प्रणाली सुपरसोनिक विमान को नष्ट करने में सक्षम है।
- अस्त्र Mk-I (ASTRA Mk-I) हथियार प्रणाली को SU-30 Mk-I विमान के साथ एकीकृत करके 'भारतीय वायु सेना (Indian Air Force- IAF) में शामिल किया जा रहा है।
- इसे लॉक-ऑन-बिफोर लॉन्च (LOBL) और लॉक-ऑन आफ्टर लॉन्च (LOAL) के फीचर्स के साथ स्वायत तथा अनुकूल मोड में लॉन्च किया जा सकता है।
वायु सेना के लिये मिग 29 (MIG 29):
- प्रस्ताव:
- DAC ने रूस से 21 MIG-29 की खरीद को मंज़ूरी दी है।
- रूस द्वारा भारत के मौजूदा 59 मिग-29 विमानों को भी अपग्रेड किया जाएगा।
- इस सौदे की कुल लागत 7,418 करोड़ रुपए है।
- मिग 29 (MIG 29):
- सोवियत संघ द्वारा विकसित दो-इंजन आधारित, मल्टीरोल फाइटर जेट का अद्यतन/अपग्रेडेड संस्करण है।
वायु सेना के लिये SU-30 MKI फाइटर जेट:
- प्रस्ताव:
- सरकार द्वारा 12,000 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत के साथ हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड से 12 सुखोई Su-30 MKI जेट विमान खरीदे जाएंगे।
- SU-30 MKI:
- यह रूस के सुखोई और भारत के हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के सहयोग से निर्मित लंबी दूरी का फॉइटर जेट है।
- एक उड़ान में यह 3000 किमी. तक की दूरी तय कर सकता है तथा इसमें हवा में ही ईधन भरा जा सकता है।
लंबी-दूरी की भूमि आक्रमण आधारित क्रूज़ मिसाइल प्रणाली
(Long-Range Land Attack Cruise Missile Systems- LRLACM):
- प्रस्ताव:
- ब्रह्मोस मिसाइल की फायरिंग रेंज क्षमता को 1000 किमी. तक की वृद्धि करना।
- पूर्णतया स्वदेश निर्मित लंबी दूरी की क्रूज मिसाइल प्रणाली का विकास करना।
- LRLACM:
- LRLACM निर्भय क्रूज मिसाइल का उन्नत संस्करण होगा, जिसमें आवश्यकतानुसार बदलाव किये जाएँगे।
रक्षा सौदे का महत्त्व:
- प्रस्तावों के अनुसार, विभिन्न रक्षा सामग्रियों का विनिर्माण प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से किया जाएगा, जो भारत की मेक इन इंडिया पहल के अनुकूल है।
- भारत-चीन सीमा तनाव के बीच यह रक्षा प्रस्ताव भारत की रक्षा आवश्यकताओं के अनुकूल है।
- रक्षा खरीद मुख्यत: रूस के साथ की जाएगी, जिसका भारत-चीन-रूस त्रिकोणीय संबंधों की दृष्टि से रणनीतिक महत्त्व है।
स्रोत: द हिंदू
रेलवे में निजी ट्रेनों का परिचालन
प्रीलिम्स के लिये:स्वर्णिम चतुर्भुज, स्वर्ण विकर्ण मेन्स के लिये:रेलवे का निजीकरण और इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों:
हाल ही में रेल मंत्रालय ने यात्री ट्रेन सेवाओं के संचालन के लिये निजी क्षेत्र हेतु 'अर्हता के लिये अनुरोधों' (Request for Qualifications- RFQ) को आमंत्रित कर रेलवे परिचालन के निजीकरण की दिशा में पहला कदम उठाया है।
प्रमुख बिंदु:
- RFQ के तहत कम-से-कम 151 आधुनिक ट्रेनों की शुरुआत की जाएगी और 109 दोहरी रेल लाइनों/रेल मार्गों को निजी ट्रेनों के परिचालन हेतु तैयार किया जाएगा।
- रेल मंत्रालय के अनुसार, फरवरी-मार्च 2021 तक परियोजना के लिये वित्तीय बोली की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी तथा अप्रैल 2021 तक उन्हें अंतिम रूप दिया जाएगा। अप्रैल 2023 तक निजी ट्रेनों का परिचालन शुरू होने की उम्मीद है।
- परियोजना में 30,000 करोड़ रुपए तक का निजी निवेश होने की संभावना है।
चिंता के विषय:
- ऐसी आशंका है कि निजी ट्रेनों के परिचालन से रेल यात्रा की कीमतों में वृद्धि होगी।
- इससे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग जिन्हें सरकारी नौकरियों के तहत आरक्षण मिल हुआ है, उनके हित प्रभावित हो सकते हैं।
निजी ट्रेनों के पक्ष में तर्क:
- मांग तथा आपूर्ति में अंतर:
- आज़ादी के 70 से अधिक वर्षों के बाद भी सभी यात्रियों को यात्रा सेवाएँ प्रदान करने के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे का विकास नहीं हो पाया है।
- प्रतीक्षा-सूची में टिकट कराने वाले अनेक यात्रियों के (व्यस्त मौसम के दौरान लगभग 13.3% यात्रियों) के टिकट की कंफर्म बुकिंग नहीं हो पाती है।
- निजी ट्रेनों के परिचालन द्वारा यात्रियों द्वारा की जा रही ट्रेन सेवाओं की मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी।
- किराए में वृद्धि नहीं:
- निजी ट्रेन संचालकों द्वारा यात्रा किराया तय करते समय बस तथा हवाई यात्रा किराये के साथ प्रतिस्पर्द्धा करनी होगी। अत: निजी ऑपरेटरों के लिये बहुत अधिक किराया वसूलना व्यवहार्य नहीं होगा।
- चूँकि निजी ट्रेनों के संचालन के बाद भी रेलवे द्वारा 95% ट्रेनों का परिचालन किया जाएगा इसलिये इन ट्रेनों के किराए में वृद्धि नहीं की जाएगी, साथ ही इन ट्रेनों में बेहतर सुविधाएँ प्रदान करने की दिशा में कार्य किये जाएँगे। इससे आम जन को कम कीमत पर बेहतर सुविधाएँ मिल सकेंगी।
- नौकरियों को कोई खतरा नहीं:
- रेलवे द्वारा वर्तमान में उपलब्ध ट्रेनों के अलावा नवीन निजी ट्रेनें चलाई जाएँगी। रेलवे को वर्ष 2030 तक अनुमानित 13 बिलियन यात्रियों के लिये और अधिक ट्रेनों के संचालन की आवश्यकता होगी।
- निजी ट्रेनों के परिचालन से नौकरी खोने का तर्क आधारहीन है।
- तकनीकी महत्त्व:
- वर्तमान समय 4000 किमी. दूरी तय करने के बाद ट्रेनों के कोचों के रख-रखाव की आवश्यकता होती है, लेकिन आधुनिक कोचों को हर 40,000 किमी के बाद या 30 दिनों में एक या दो बार ही रख-रखाव की आवश्यकता होगी।
- इसके अलावा ये कोच गति, सुरक्षा और सुविधा के दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है।
- रेलवे को राजस्व की प्राप्ति:
- निजी संस्था रेलवे को तय ढुलाई शुल्क, ऊर्जा शुल्क और बोली प्रक्रिया के माध्यम से निर्धारित सकल राजस्व में हिस्सेदारी का भुगतान रेलवे को करेगी। अत: वर्तमान में यात्री ट्रेनों को जहाँ नुकसान का सामना करना पड़ रहा है भविष्य में उसे राजस्व की प्राप्ति होगी।
- मेक इन इंडिया के अनुकूल:
- RFQ ‘मेक इन इंडिया’ नीति के तहत जारी किया गया है। इसलिये कोचों का निर्माण भारत में किया जाएगा तथा इसके लिये स्थानीय घटकों का उपयोग किया जाएगा।
- ट्रेनों की गति में वृद्धि:
- पूरे रेल नेटवर्क में ट्रेनों की गति बढ़ाने पर बल दिया जाएगा तथा अगले 5-10 वर्षों के भीतर अधिकांश रेल-मार्ग 160 किमी./घंटे की गति से चलने वाली ट्रेनों के लिये अनुकूल होंगे।
- वित्तीय वर्ष 2020-21 के अंत तक ‘स्वर्णिम चतुर्भुज’ (Golden quadrilateral) विकर्ण (Diagonal) मार्गों पर 130 किमी./घंटे की गति से ट्रेनें चल सकेगी।
निष्कर्ष:
- रेलवे का आधुनिकीकरण करना आवश्यक है, इसलिये इस प्रक्रिया के दौरान सामाजिक लागतों की प्रतिपूर्ति के भी उपाय किये जाने चाहिये ताकि रेलवे के संसाधनों का बेहतर प्रबंधन किया जा सके।
स्रोत: द हिंदू
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 03 जुलाई, 2020
‘ड्रीम केरल’ प्रोजेक्ट
केरल सरकार कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण अपना रोज़गार खोने के बाद विदेश और अन्य राज्यों से लौटने वाले लोगों की क्षमता और अनुभव का लाभ प्राप्त करने तथा उनके पुनर्वास की व्यवस्था करने के लिये 'ड्रीम केरल’ (Dream Kerala) प्रोजेक्ट शुरू करने की योजना बना रही है। यह निर्णय हाल ही में राज्य के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की अध्यक्षता में आयोजित कैबिनेट की बैठक में लिया गया। एक अनुमान के अनुसार, केरल में लौटने वाले लगभग 52 प्रतिशत प्रवासी भारतीयों ने अपना रोज़गार खो दिया है। राज्य सरकार द्वारा प्रदान किये गए आँकड़ों के मुताबिक लगभग 143,000 लोग मई माह से अब तक निकासी मिशन में विदेश से केरल वापस लाए गए हैं। गौरतलब है कि इस परियोजना का समन्वय केरल सरकार के विभिन्न विभागों के माध्यम से किया जाएगा, साथ ही राज्य के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने आगामी 100 दिन के भीतर परियोजना के सफल क्रियान्वयन का लक्ष्य निर्धारित किया है। विशेषज्ञों के अनुसार, राज्य में विदेशों और देश के अन्य हिस्सों से लौटने वाले लोगों लोगों में अधिकांश संख्या पेशेवरों की है, जो कि विभिन्न क्षेत्रों में अपनी विशेषज्ञता और अनुभव के लिये प्रसिद्ध हैं। इस परियोजना का उद्देश्य उनके पुनर्वास की व्यवस्था करने के साथ-साथ भविष्य के लिये उनकी क्षमता का दोहन करना भी है। ध्यातव्य है कि वर्ष 2018 में प्रवासी भारतीयों द्वारा लगभग 85,000 करोड़ रुपए केरल में भेजे गए थे।
श्रीकांत माधव वैद्य
हाल ही में श्रीकांत माधव वैद्य ने देश की सबसे बड़ी पेट्रोलियम कंपनी इंडियन आयल कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (Indian Oil Corporation Limited-IOCL) के चेयरमैन (Chairman) का कार्यभार संभाल लिया है। श्रीकांत माधव वैद्य ने इस पद पर 30 जून, 2020 को सेवानिवृत्त हुए संजीव सिंह का स्थान लिया है। गौरतलब है कि श्रीकांत माधव वैद्य इंडियन आयल कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (IOCL) के चेयरमैन होने के साथ ही चेन्नई पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड (CPCL) और इंडियन आयलटैंकिंग लिमिटेड (IOT) के भी चेयरमैन होंगे। चेन्नई पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड (CPCL) इंडियन आयल (IOCL) की अनुषंगी (Subsidiary) कंपनी है जबकि इंडियन आयलटैंकिंग लिमिटेड (IOT) एक संयुक्त उद्यम कंपनी है। इंडियन आयल (IOCL) का चेयरमैन नियुक्त होने से पूर्व श्रीकांत माधव वैद्य इंडियन आयल (IOCL) कंपनी के निदेशक मंडल में निदेशक (रिफाइनरी) के तौर पर कार्य कर रहे थे, जहाँ उनकी नियुक्ति अक्तूबर 2019 में की गई थी। राउरकेला (ओडिशा) के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टैक्नालाजी (National Institute of Technology, Rourkela) से कैमिकल इंजीनियर की डिग्री प्राप्त करने वाले श्रीकांत माधव वैद्य को रिफाइनिंग और पेट्रोरसायन परिचालन के क्षेत्र में लगभग 34 वर्ष का व्यापक अनुभव है।
‘ग्रेट इमिग्रेंट्स’ सम्मान
COVID-19 स्वास्थ्य संकट को कम करने के प्रयासों में योगदान देने हेतु पुलित्ज़र पुरस्कार (Pulitzer Prize) विजेता सिद्धार्थ मुखर्जी और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राज चेट्टी समेत कुल 38 प्रवासी अमेरिकी नागरिकों को कार्नेगी कॉरपोरेशन ऑफ न्यूयॉर्क (Carnegie Corporation of New York) द्वारा वर्ष 2020 के लिये ‘ग्रेट इमिग्रेंट्स’ (Great Immigrants) के रूप में सम्मानित किया है। चिकित्सक और लेखक सिद्धार्थ मुखर्जी का जन्म दिल्ली में हुआ था और वे प्रसिद्ध कैंसर विज्ञानी (Oncologist), जीवविज्ञानी और कई प्रख्यात पुस्तकों के लेखक हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2011 में उनकी किताब के लिये उन्हें पुलित्ज़र पुरस्कार (Pulitzer Prize) से भी सम्मानित किया गया था, वर्तमान में वे कोलंबिया विश्वविद्यालय (Columbia University) में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। इसके अलावा प्रोफेसर राज चेट्टी का जन्म भी दिल्ली में हुआ था वर्तमान में वे हार्वर्ड विश्वविद्यालय (Harvard University) में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत हैं। ध्यातव्य है कि प्रत्येक वर्ष 04 जुलाई को अमेरिका के कार्नेगी कॉरपोरेशन ऑफ न्यूयॉर्क (Carnegie Corporation of New York) द्वारा ऐसे प्रवासी अमेरिकी नागरिकों को सम्मानित किया जाता है, जो अमेरिकी समाज की प्रगति में उल्लेखनीय योगदान देते हैं।