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डेली न्यूज़

  • 03 Feb, 2023
  • 29 min read
कृषि

शहरी कृषि

प्रिलिम्स के लिये:

शहरी कृषि, स्वस्थ भोजन, पर्यावरणीय स्थिरता, आर्थिक विकास, जैव प्रौद्योगिकी, वैज्ञानिक नवाचार और खोज।

मेन्स के लिये:

शहरी कृषि, संबंधित चुनौतियाँ और इसकी क्षमता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक गैर-लाभकारी अनुसंधान संगठन ने शहरी कृषि (Urban Farming) हेतु समग्र ढाँचे की सिफारिश करते हुए "दिल्ली में शहरी कृषि के लिये नागरिक नीति प्रारूप (Draft Citizen’s Policy for Urban Agriculture in Delhi)" तैयार किया है।

  • यह प्रारूप मौजूदा प्रथाओं पर निर्माण, छत और किचन गार्डन के माध्यम से आवासीय तथा सामुदायिक कृषि को बढ़ावा देने, कृषि उपयोग हेतु खाली भूमि आवंटित करने, बाज़ार स्थापित करने, पशु पालन के लिये नीतियाँ विकसित करने एवं जागरूकता बढ़ाने की सिफारिश करता है।

शहरी कृषि:

  • परिचय: 
    • शहरी कृषि से तात्पर्य शहरी क्षेत्रों के भीतर फसल उगाने, पशुधन बढ़ाने या अन्य प्रकार के खाद्यान्न के उत्पादन से है।
    • ताज़ा और स्वस्थ भोजन, पर्यावरणीय स्थिरता एवं आर्थिक विकास तक पहुँच में वृद्धि के संभावित लाभों के बावजूद शहरी कृषि को कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है जो इसके प्रभाव को सीमित करती है अर्थात् इसे व्यापक रूप से अपनाना कठिन है। 
  • चुनौतियाँ: 
    • सीमित भूमि उपलब्धता:  
      • शहरी कृषि के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक शहरी क्षेत्रों के भीतर उपयुक्त भूमि की सीमित उपलब्धता है।
      • शहरी भूमि अक्सर महँगी होती है और अन्य उपयोगों के लिये अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होती है, जिससे किसानों द्वारा खाद्यान्न उगाने के लिये आवश्यक स्थान सुरक्षित करना मुश्किल हो जाता है।  
    • मृदा प्रदूषण:  
      • शहरी मृदा अक्सर भारी धातुओं, प्रदूषकों और अन्य ज़हरीले पदार्थों से दूषित होती है, जिससे फसलों को सुरक्षित एवं टिकाऊ तरीके से उगाना मुश्किल हो जाता है।
    • जल की अनुपलब्धता:  
      • कई शहरी क्षेत्रों में जल एक दुर्लभ संसाधन है और किसान अक्सर अपनी फसलों एवं पशुओं की ज़रूरतों को पूरा करने हेतु पर्याप्त जल तक पहुँचने के लिये संघर्ष करते हैं। 
    • बुनियादी ढाँचे की कमी:  
      • शहरी कृषि के लिये अक्सर विशेष बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता होती है, जैसे कि ग्रीनहाउस, सिंचाई प्रणाली और शीतलन तथा भंडारण सुविधाएँ, ये सभी शहरी क्षेत्रों में महँगी होने के साथ ही सुलभ नहीं हैं।

समाधान: 

  • साझेदारी विकसित करना: 
    • शहरी कृषि स्थानीय सरकारों और अन्य संगठनों के साथ साझेदारी किये जाने से लाभान्वित हो सकती है जो कुछ चुनौतियों से निपटने में सहायता और संसाधन प्रदान कर सकते हैं।
  • निवेश: 
    • शहरी कृषि में किया जाने वाला शोध कुछ प्रमुख चुनौतियों का समाधान करने में मदद कर सकता है और शहरी क्षेत्रों में खाद्यान उत्पादन के लिये सर्वोत्तम प्रथाओं में नई अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है।
  • सामुदायिक जुड़ाव को प्रोत्साहित करना:  
    • शहरी कृषि की सफलता के लिये सामुदायिक जुड़ाव महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह समर्थन जुटाने, संसाधनों को एकजुट करने और स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
  • शहरी कृषि नीतियाँ:  
    • शहरी कृषि पहलों में वृद्धि कर और विकास में सहयोग देने वाली नीतियाँ बनाकर सरकारें तथा अन्य संगठन शहरी कृषि को बढ़ावा देने में भूमिका निभा सकते हैं। 

भारत में कुछ संबंधित पहलें: 

  • वर्ष 2008 में पुणे के नागरिक प्रशासन ने आवंटित भूमि पर कृषि के लिये लोगों को प्रशिक्षित और प्रोत्साहित करने के लिये एक शहरी कृषि परियोजना शुरू की।
  • वर्ष 2012 में केरल सरकार ने घरों, विद्यालयों, सरकारी और निजी संस्थानों में बागवानी को प्रोत्साहित करने के लिये सब्जी विकास कार्यक्रम शुरू किया।
    • इसने पर्यावरण के अनुकूल इनपुट्स, सिंचाई, खाद और बायोगैस संयंत्रों के लिये सब्सिडी तथा सहयोग भी प्रदान किया।
  • वर्ष 2014 में तमिलनाडु सरकार ने अपनी शहरी बागवानी विकास योजना के तहत छतों, घरों और अपार्टमेंट में सब्जियाँ उगाने हेतु शहरवासियों के लिये "डू-इट-योरसेल्फ" किट पेश किया।
  • वर्ष 2021 से बिहार ने इनपुट लागत के लिये सब्सिडी के माध्यम से पाँच स्मार्ट शहरों में टैरेस गार्डनिंग को काफी प्रोत्साहित किया है।

आगे की राह 

  • शहरी कृषि को बढ़ावा देने के लिये सरकारों को अनौपचारिक प्रथाओं की पहचान कर उन्हें कृषि योजनाओं से जोड़ना चाहिये।
  • शहरी कृषि को व्यवहार्य बनाने की आवश्यकता है। जल की कमी तथा प्रदूषण से प्रभावित तंग शहरी क्षेत्रों में कृषि करना आसान नहीं है।  
    • हैदराबाद स्थित इंस्टीट्यूट फॉर रिसोर्स एनालिसिस एंड पॉलिसी द्वारा वर्ष 2016 में ‘फ्यूचर ऑफ अर्बन एग्रीकल्चर इन इंडिया’ नामक एक लेख में उल्लेख किया गया है कि दिल्ली, हैदराबाद, अहमदाबाद तथा चेन्नई में अपशिष्ट जल का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शहरी कृषि के लिये उपयोग किया जाता है।
  • अध्ययनों से पता चलता है कि शहरी कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से उपज एवं मिट्टी की गुणवत्ता कम हो सकती है। हालाँकि शहरी किसानों का मानना है कि ऐसी बाधाओं को नवीन तकनीकों के माध्यम से दूर किया जा सकता है।
  • शहरी कृषि में खाद्य सुरक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता और आर्थिक विकास संबंधी शहरों के समक्ष आने वाली कुछ सबसे बड़ी चुनौतियों का समाधान करने में प्रमुख भूमिका निभाने की क्षमता है। हालाँकि वास्तव में इसकी क्षमता का अनुभव करने के लिये चुनौतियों को दूर करना तथा शहरी कृषि की पहल का समर्थन एवं पोषण करने वाला वातावरण बनाना आवश्यक है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. कृषि उत्पादन को बनाए रखने में एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) कहाँ तक सहायक है? (मुख्य परीक्षा, 2019)

प्रश्न. एकीकृत कृषि प्रणाली क्या है? यह भारत में छोटे और सीमांत किसानों के लिये किस प्रकार सहायक है? (मुख्य परीक्षा, 2022)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय राजनीति

न्यायिक बहुसंख्यकवाद

प्रिलिम्स के लिये:

न्यायिक बहुसंख्यकवाद, सर्वोच्च न्यायालय, विमुद्रीकरण, अनुच्छेद 145(5), अनुच्छेद 145(3)।

मेन्स के लिये:

न्यायिक बहुसंख्यकवाद, संबंधित चिंताएँ और समाधान।

चर्चा में क्यों? 

विमुद्रीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के संबंध में बड़ी संख्या में लोगों ने न्यायिक बहुसंख्यकवाद पर चिंता व्यक्त की है और केंद्र सरकार को भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) की संस्थागत सहमति को चुनौती देने की अल्पसंख्यक फैसले की सराहना की गई है। 

न्यायिक बहुसंख्यकवाद: 

  • संख्यात्मक बहुमत उन मामलों के लिये विशेष महत्त्व रखता है जिनमें संवैधानिक प्रावधानों की पर्याप्त व्याख्या शामिल होती है।
  • संविधान के अनुच्छेद 145(5) के अनुसार, कुछ परिस्थितियों में बहुमत के समर्थन के बिना कोई निर्णय नहीं दिया जा सकता है और बहुमत की सहमति की आवश्यकता उत्पन्न होती है। यह न्यायाधीशों के लिये स्वतंत्र रूप से निर्णय या राय देने का भी प्रावधान करता है। 
  • संविधान के अनुच्छेद 145(3) के अनुसार, महत्त्वपूर्ण मामलों में पाँच या इससे अधिक न्यायाधीशों वाली संवैधानिक पीठों की स्थापना की जाती है। इस तरह की संविधान पीठ में न्यायाधीशों की संख्या आमतौर पर पाँच, सात, नौ, ग्यारह अथवा तेरह होती है।

चिंताएँ:

  • डिनायल ऑफ मेरिट:  
    • एक महत्त्वपूर्ण अल्पसंख्यक फैसला कितना भी तर्कपूर्ण क्यों न हो, उसके परिणामों पर अधिक विचार नहीं किया जाता है।
      • इस संदर्भ में एक उदाहरण खड़क सिंह बनाम यूपी राज्य मामला (1962) है जिसमें निजता के अधिकार को कायम रखने के संदर्भ में न्यायमूर्ति सुब्बा राव की राय महत्त्वपूर्ण है जिसके आधार पर के.एस. पुट्टास्वामी बनाम UOI (2017) मामले में अनुमोदन की न्यायिक मुहर लगाई गई।
      • ए.डी.एम. जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ल (1976) मामले में संवैधानिक विशिष्टता (Constitutional Exceptionalism) की स्थितियों के दौरान भी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को बनाए रखने वाली न्यायमूर्ति एच.आर. खन्ना की असहमतिपूर्ण राय इस संदर्भ में एक प्रमुख उदाहरण है। 
    • यह तर्क दिया जाता है कि हमारे संवैधानिक न्यायालयों द्वारा न्यायिक निर्णयों में संख्यात्मक बहुमत को दिया गया वेटेज़ योग्यता के विपरीत है।
  • अस्पष्ट स्थितियाँ:
    • एक विशेष खंडपीठ के सभी न्यायाधीश तथ्यों, कानूनों, तर्कों और लिखित प्रस्तुतियों के एक ही सेट पर अपना निर्णय सुनाते हैं। उसी के आलोक में न्यायिक निर्णयों में किसी भी अंतर के लिये या तो अपनाई गई कार्यप्रणाली या न्यायाधीशों द्वारा उनकी व्याख्या में दिये गए तर्क में भिन्नता को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
    • ऐसी परिस्थितियों में यह संभव है कि बहुमत का निर्णय पद्धतिगत भ्रम और त्रुटि के कारण प्रभावित हो सकता है या उनके 'न्यायिक श्रेष्ठता' द्वारा सीमित हो सकता है।
  • हेड काउंटिंग प्रक्रिया पर प्रश्न: 
    • एक अध्ययन में यह भी पाया गया कि जहाँ मुख्य न्यायाधीश पीठ का हिस्सा थे, वहाँ असहमति की दर उन मामलों की तुलना में कम थी जहाँ मुख्य न्यायाधीश खंडपीठ में शामिल नहीं थे।
    • ऐसी स्थितियाँ राष्ट्रीय और संवैधानिक महत्त्व के मामलों पर न्यायिक निर्धारण के लिये हेड काउंटिंग प्रक्रियाओं की दक्षता एवं वांछनीयता पर सवाल उठाती हैं।

संभावित समाधान:

  • एक ऐसी प्रणाली तैयार की जा सकती है जो वरिष्ठ न्यायाधीशों के मत को अधिक महत्त्व देती है, यह देखते हुए कि उनके पास अधिक अनुभव है या कनिष्ठ न्यायाधीशों को क्योंकि वे लोकप्रिय राय का बेहतर प्रतिनिधित्त्व कर सकते हैं। हालाँकि इस तरह के विकल्पों का पता केवल तभी लगाया जा सकता है जब हम न्यायिक निर्णय लेने में हेड-काउंटिंग के दायरे में आने वाले संदर्भों और तर्कों की पहचान करते हैं एवं उन पर सवाल उठाते हैं।
  • न्यायिक बहुसंख्यकवाद पर आलोचनात्मक विमर्श का अभाव सर्वोच्च न्यायालय के कामकाज़ के बारे में हमारी मौजूदा जानकारी में बुनियादी अंतराल का कारण हो सकता है।
  • चूँकि लंबित संवैधानिक बेंच के मामले सुनवाई के लिये सूचीबद्ध हैं और निर्णय सुरक्षित हैं, अर्थात् न्यायिक बहुसंख्यकवाद के तर्कों पर विचार करना आवश्यक है जिसके आधार पर इन मामलों का फैसला किया जाना है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. हमने ब्रिटिश मॉडल के आधार पर संसदीय लोकतंत्र को अपनाया लेकिन हमारा मॉडल उस मॉडल से किस प्रकार भिन्न है?(2021)

  1. कानून के संबंध में ब्रिटिश संसद सर्वोच्च या संप्रभु है लेकिन भारत में संसद की कानून बनाने की शक्ति सीमित है। 
  2. भारत में संसद के किसी अधिनियम के संशोधन की संवैधानिकता से संबंधित मामलों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संवैधानिक पीठ को भेजा जाता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1                    
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों   
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: c

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

अंतरिक्ष कचरा

प्रिलिम्स के लिये:

अंतरिक्ष कचरा, केसलर सिंड्रोम, NETRA परियोजना, यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA), इंटर-एजेंसी स्पेस डेब्रिस कोऑर्डिनेशन कमेटी (IADC), बाहरी अंतरिक्ष का शांतिपूर्ण उपयोग।

मेन्स के लिये:

अंतरिक्ष कचरे से संबंधित संभावित खतरे, अंतरिक्ष कचरे पर अंकुश लगाने की पहल।

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में भारत सरकार ने घोषणा की है कि 111 पेलोड और 105 अंतरिक्ष मलबे को पृथ्वी की परिक्रमा करने वाली भारतीय वस्तुओं के रूप में पहचाना गया है। 

  • सभी परिक्रमा कर रहे मलबे बाहरी अंतरिक्ष और भविष्य के मिशनों को प्रभावित करेंगेभारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organization- ISRO) भी अंतरिक्ष पर्यावरण पर बढ़ते अंतरिक्ष मलबे के प्रभाव को लेकर कई अध्ययन कर रहा है। 

Space-Junk

अंतरिक्ष मलबा:    

  • परिचय:  
    • अंतरिक्ष मलबा पृथ्वी की कक्षा में मानव निर्मित वस्तुओं को संदर्भित करता है जो अब किसी उपयोगी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता है। 
    • अंतरिक्ष मलबे में प्रयोग किये गए रॉकेट, निष्क्रिय उपग्रह, अंतरिक्ष निकायों के टुकड़े और एंटी-सैटेलाइट सिस्टम (ASAT) से उत्पन्न मलबा शामिल होता है। 
  • संभावित खतरे:  
    • परिचालन उपग्रहों हेतु खतरा:  
      • तैरता हुआ अंतरिक्ष मलबा परिचालन उपग्रहों हेतु संभावित खतरा है क्योंकि इन  मलबों से टकराने से उपग्रह नष्ट हो सकते हैं।
        • केसलर सिंड्रोम अंतरिक्ष में वस्तुओं और मलबे की अत्यधिक मात्रा को संदर्भित करता है।
    • कक्षीय स्लॉट की कमी:  
      • विशिष्ट कक्षीय क्षेत्रों में अंतरिक्ष मलबे का संचय भविष्य के मिशनों हेतु वांछित कक्षीय स्लॉट की उपलब्धता को सीमित कर सकता है।
    • अंतरिक्ष स्थिति के प्रति जागरूकता:  
      • अंतरिक्ष कचरे की बढ़ती मात्रा उपग्रह संचालकों एवं अंतरिक्ष एजेंसियों के लिये अंतरिक्ष में वस्तुओं की कक्षाओं को सटीक रूप से ट्रैक करने तथा भविष्यवाणी करने के संदर्भ में और अधिक चुनौतीपूर्ण बना देती है।
  • अंतरिक्ष कचरे पर अंकुश लगाने से संबंधित पहल:  
    • भारत:  
      • वर्ष 2022 में ISRO ने टकराव के खतरों वाली वस्तुओं की लगातार निगरानी करने, अंतरिक्ष मलबे के विकास की संभावनाओं का आकलन करने और अंतरिक्ष कचरे से उत्पन्न जोखिम को कम करने के लिये सिस्टम फॉर सेफ एंड सस्टेनेबल ऑपरेशंस मैनेजमेंट (IS 4 OM) की स्थापना की।
        • ISRO ने अन्य अंतरिक्ष वस्तुओं के साथ टकराव से बचने के लिये वर्ष 2022 में भारतीय परिचालन अंतरिक्ष संपत्तियों की सहायता से 21 टकराव परिहार अभ्यास भी किये।  
      • 'नेत्रा परियोजना' भारतीय उपग्रहों को कचरे और अन्य खतरों का पता लगाने के लिये अंतरिक्ष में स्थापित एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली है।
    • वैश्विक: 
      • अंतर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबा समन्वय समिति (Inter-Agency Space Debris Coordination Committee- IADC) एक अंतर्राष्ट्रीय सरकारी मंच है जिसकी स्थापना वर्ष 1993 में की गई थी ताकि अंतरिक्ष मलबे के मुद्दे को प्रस्तुत करने के लिये अंतरिक्ष अन्वेषण करने वाले देशों के बीच प्रयासों को समन्वित किया जा सके। 
      • संयुक्त राष्ट्र ने अंतरिक्ष मलबे को कम करने के साथ ही बाह्य अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता के लिये दिशा-निर्देश विकसित करने हेतु बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर समिति (Committee on the Peaceful Uses of Outer Space- COPUOS) की स्थापना की है।
      • यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (European Space Agency -ESA) ने अंतरिक्ष मलबे की मात्रा को कम करने और सतत् अंतरिक्ष गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्वच्छ अंतरिक्ष (Clean Space) पहल शुरू की है।

आगे की राह

  • बेहतर ट्रैकिंग और निगरानी: अंतरिक्ष मलबे को ट्रैक करने और निगरानी की क्षमता में सुधार से परिचालन उपग्रहों और मानव अंतरिक्ष मिशनों के जोखिमों को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • पुन: प्रयोज्य लॉन्च वाहन: एकल-उपयोग रॉकेट के बजाय पुन: प्रयोज्य लॉन्च वाहनों का उपयोग करने से उत्पन्न नए अपशिष्ट की मात्रा को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • सामग्री और डिज़ाइन में सुधार: अधिक टिकाऊ सामग्रियों का उपयोग करना और अंततः डी-ऑर्बिटिंग के लिये उपग्रहों को डिज़ाइन करना, लंबी अवधि में उत्पन्न अपशिष्ट की मात्रा को कम कर सकता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न.1 अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के संदर्भ में हाल ही में खबरों में रहा "भुवन" (Bhuvan) क्या है?  (2010)

 (A) भारत में दूरस्थ शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये इसरो द्वारा लॉन्च किया गया एक छोटा उपग्रह
 (B) चंद्रयान-द्वितीय के लिये अगले चंद्रमा प्रभाव जाँच को दिया गया नाम
 (C) भारत की 3डी इमेजिंग क्षमताओं के साथ इसरो का एक जियोपोर्टल (Geoportal)
 (D) भारत द्वारा विकसित एक अंतरिक्ष दूरबीन

 उत्तर: (C)


प्रश्न. भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की क्या योजना है और इससे हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को क्या लाभ होगा?  (मुख्य परीक्षा- 2019)

प्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये।  इस तकनीक के अनुप्रयोग ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायता की?  (मुख्य परीक्षा- 2016)

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

नई कर व्यवस्था

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय बजट 2023-24

मेन्स के लिये:

बजट 2023-24 से जुड़े मुख्य बिंदु, कर व्यवस्था में बदलाव, वित्त विधेयक, 2023

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय बजट 2023-24 के भाषण में केंद्रीय वित्त मंत्री ने नई आयकर व्यवस्था के तहत आयकर स्लैब और छूट की सीमा में बदलाव की घोषणा की।  

  • प्रस्तावित 2023 वित्त विधेयक के अनुसार, "एंजेल टैक्स", जो कभी केवल भारतीय निवासियों द्वारा जुटाए गए निवेशों पर लागू होता था, अब विदेशी निवेशकों को शेयर बेचने वाले व्यवसायों पर भी लगाया जा सकता है।

प्रस्तावित बदलाव:

  • कर छूट की सीमा बढ़ाई गई:  
    • इस सीमा को 5 लाख रुपए से बढ़ाकर 7 लाख रुपए करने का अर्थ है कि जिस व्यक्ति की आय 7 लाख रुपए से कम है, उसे छूट का दावा करने के लिये कुछ भी निवेश करने की आवश्यकता नहीं होगी और ऐसे व्यक्ति द्वारा किये गए निवेश की मात्रा के बावजूद पूरी आय कर-मुक्त होगी।
      • नतीजतन, मध्यम आय वर्ग के पास अधिक क्रय शक्ति होगी क्योंकि वे छूट का लाभ लेने के लिये निवेश योजनाओं के बारे में बहुत अधिक चिंता किये बिना आय की पूरी राशि खर्च करने में सक्षम होंगे।
  • इनकम टैक्स स्लैब में बदलाव: 
    • नई व्यवस्था के तहत आय श्रेणियों की संख्या छह से घटाकर पाँच करने और कर छूट की सीमा बढ़ाकर तीन लाख रुपए करने की योजना बनाई गई थी।
    • कर निर्धारक अभी भी पूर्व व्यवस्था से चयन करने में सक्षम होंगे।
      • वेतनभोगी और पेंशनभोगी: नई प्रणाली में 15.5 लाख रुपए से अधिक कर योग्य आय के लिये मानक कटौती  52,500 रुपए है। 

Tax-Regime

  • पेंशनभोगी के लिये: 
    • वित्त मंत्री ने नई कर व्यवस्था में मानक कटौती का लाभ देने की घोषणा की।
      • 15.5 लाख रुपए या उससे अधिक आय वाले प्रत्येक वेतनभोगी व्यक्ति को 52,500 रुपए का लाभ होगा।
  • अधिभार के साथ अधिकतम कर:
    • नई कर व्यवस्था में उच्चतम अधिभार दर को 37% से घटाकर 25% करने का प्रस्ताव किया गया है। इससे अधिकतम कर की दर घटकर 39% हो जाएगी। 
      • भारत में उच्चतम कर दर 42.74% है। यह विश्व में सबसे अधिक है।
    • नई कर व्यवस्था के तहत कर की दरें कम कर दी गई हैं तथा अधिकतम सीमांत दर 42.74% से घटकर 39% हो गई है।
  • वित्त विधेयक, 2023:
    • वित्त विधेयक, 2023 भी पेश किया गया जिसमें आयकर अधिनियम की धारा 56(2)VIIB में संशोधन करने का प्रस्ताव है।  
      • प्रावधान में कहा गया है कि जब कोई गैर-सूचीबद्ध कंपनी, जैसे कि स्टार्टअप अपने निर्धारित मूल्य से अधिक शेयर जारी करने के लिये इक्विटी निवेश प्राप्त करती है, तो इसे स्टार्टअप के लिये आय माना जाएगा तथा "अन्य स्रोतों से आय" शीर्षक के तहत आयकर के अधीन होगा। 
      • आयकर अधिनियम की धारा 56(2)VIIB जिसे आम बोलचाल की भाषा में 'एंजेल टैक्स' के रूप में जाना जाता है, पहली बार वर्ष 2012 में पेश किया गया था ताकि किसी कंपनी के शेयर धारकों के माध्यम से बेहिसाब धन के उत्पादन और उपयोग को रोका जा सके। 
    • इसमें विदेशी निवेशकों को भी शामिल करने का प्रस्ताव किया गया था, जिसका मतलब है कि जब कोई स्टार्टअप किसी विदेशी निवेशक से धन प्राप्त करता है, तो उसे अब आय और कर योग्य माना जाएगा।

स्टार्टअप के समक्ष चुनौतियाँ: 

  • विदेशी निवेशक स्टार्टअप के लिये वित्तपोषण का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं, जो उनकी बढ़ी हुई कीमत में योगदान करते हैं, अतः प्रस्तावित संशोधनों का निवेश की मात्रा पर प्रभाव पड़ सकता है।
    • PwC इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत के स्टार्टअप हेतु वित्तपोषण 33% घटकर 24 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
  • भारत में एंजेल निवेशकों पर कर की पुन: शुरुआत से स्टार्टअप विदेश में स्थानांतरित हो सकते हैं, क्योंकि विदेशी निवेशक स्टार्टअप में अपने निवेश से जुड़े अतिरिक्त करों का भुगतान नहीं करना चाहते हैं।  

अंकित मूल्य: 

  • अंकित मूल्य की परिभाषा के अनुसार, जारी करने के समय यह किसी भी स्टॉक (या किसी वित्तीय साधन) का डॉलर मूल्य है। इसे नाममात्र मूल्य या डॉलर मूल्य भी कहा जाता है।
  • अंकित मूल्य = इक्विटी शेयर पूंजी/बकाया शेयरों की संख्या।

स्रोत: मिंट


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