‘वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’ (OSOWOG)
प्रिलिम्स के लिये:वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड, कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, विश्व बैंक मेन्स के लिये:‘वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’ परियोजना का महत्त्व और इससे संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
भारत और ब्रिटेन द्वारा आगामी ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़’ (COP26) में ‘वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’ (OSOWOG) को लेकर एक संयुक्त घोषणा की जा सकती है।
- संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन या COP26 का आयोजन 31 अक्तूबर से 12 नवंबर के बीच स्कॉटलैंड में होने वाला है।
- ‘वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’ की अवधारणा को ब्रिटेन ने ‘ग्रीन ग्रिड’ के रूप में प्रस्तुत किया है।
- इस अवधारणा का प्रमुख उद्देश्य दुनिया भर में सौर ऊर्जा की आपूर्ति करने वाला एक ‘ट्रांस-नेशनल बिजली ग्रिड’ विकसित करना है।
प्रमुख बिंदु
- ‘वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’ या ‘ग्रीन ग्रिड’:
- ‘वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’ की अवधारणा 'द सन नेवर सेट्स' यानी ‘सूरज कभी अस्त नहीं होता’ और यह किसी भी भौगोलिक स्थान पर, विश्व स्तर पर, किसी भी समय स्थिर रहता है, के विचार पर ज़ोर देती है।
- यह अब तक किसी भी देश द्वारा शुरू की गई सबसे महत्त्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है और आर्थिक लाभ साझा करने के मामले में इसका वैश्विक महत्त्व है।
- इसे विश्व बैंक के तकनीकी सहायता कार्यक्रम के तहत शुरू किया गया है।
- ‘वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’ योजना भारत द्वारा सह-स्थापित अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) का भी लाभ उठा सकती है, जिसमें वर्तमान में तकरीबन 80 देश शामिल हैं।
- वैश्विक स्तर पर सौर स्पेक्ट्रम को दो व्यापक क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है, जो हैं:
- सुदूर पूर्व, जिसमें म्याँमार, वियतनाम, थाईलैंड, लाओ, कंबोडिया जैसे देश शामिल हैं।
- सुदूर पश्चिम, जो कि मध्य पूर्व और अफ्रीका क्षेत्र को कवर करता है।
- योजना के तीन चरण:
- पहला चरण: यह एशियाई महाद्वीप के देशों के बीच परस्पर ग्रिड संपर्क स्थापित करेगा।
- दूसरा चरण: इसमें अफ्रीका को जोड़ा जाएगा।
- तीसरा चरण: यह वैश्विक इंटरकनेक्शन पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- परियोजना का महत्त्व:
- यह नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश को आकर्षित करने के साथ-साथ कौशल, प्रौद्योगिकी और वित्त का इष्टतम उपयोग करने में सभी संलग्न संस्थाओं की सहायता करेगी।
- इससे परियोजना लागत में कमी आएगी, दक्षता में सुधार होगा और संपत्ति उपयोगिता में बढ़ोतरी होगी।
- इसके परिणामस्वरूप प्राप्त होने वाले आर्थिक लाभों से गरीबी उन्मूलन और जल, स्वच्छता, भोजन एवं अन्य सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों को कम करने में सहायता मिलेगी।
- भारत में ‘राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा प्रबंधन केंद्रों’ को क्षेत्रीय और वैश्विक प्रबंधन केंद्रों के रूप में विकसित होने का अवसर मिलेगा।
- यह कदम कोविड-19 महामारी के समय में भारत को वैश्विक रणनीतियों को विकसित करने में अग्रणी होने का अवसर देता है।
- परियोजना से संबंधित मुद्दे:
- भू-राजनीति:
- इस परियोजना को विश्व नेतृत्व के लिये भारत के एक प्रयास के रूप में देखा जाता है, लेकिन कोविड-19 अनिश्चितताओं के तहत OSOWOG जैसी परियोजनाओं के भू-राजनीतिक निहितार्थों को समझ पाना मुश्किल है।
- भाग लेने वाले देशों की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था के आधार पर विभिन्न प्राथमिकताओं को देखते हुए लागत-साझाकरण का (Mechanism Of Cost-Sharing) तंत्र चुनौतीपूर्ण होगा।
- भूमंडलीकरण/ग्लोबलाइज़ेशन बनाम डीग्लोबलाइज़ेशन
- OSOWOG एक महंँगी, जटिल और बहुत धीमी प्रगति वाली परियोजना साबित होगी।
- एकल ग्रिड का यदि रणनीतिक लाभ मिलता है तो वह किसी भू-राजनीतिक समस्या के कारण समाप्त हो जाएगा।
- भारत में अक्षय ऊर्जा डेवलपर्स का प्रमुख मुद्दा विभिन्न राज्य सरकारों के साथ अलग-अलग कानूनों और विनियमों से सुलझाया जाता है।
- इसके अलावा परियोजना प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत दृष्टिकोण का भी खंडन करती है, क्योंकि परियोजना ग्रिड अन्य देशों पर एक प्रमुख रणनीतिक इकाई, ऊर्जा आपूर्ति की निर्भरता को बढ़ाती है।
- केंद्रीकृत बनाम वितरित पीढ़ी:
- अधिकांश क्षेत्रों में ग्रिड के वोल्टेज, आवृत्ति और विशिष्टताओं में अंतर होता है।
- केवल नवीकरणीय उत्पादन के साथ ग्रिड स्थिरता को बनाए रखना तकनीकी रूप से कठिन होगा।
- भू-राजनीति:
आगे की राह
- यह कदम वैश्विक स्तर पर भविष्य के अक्षय-आधारित ऊर्जा प्रणालियों की कुंजी है क्योंकि क्षेत्रीय और इंटरनेशनल इंटरकनेक्टेड ग्रीन ग्रिड (International Interconnected Green Grids) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पार अक्षय ऊर्जा का साझाकरण और संतुलन को सक्षम बनाया जा सकता है।
- यह वैश्विक विकास के त्वरित लाभ तथा वैश्विक कार्बन पदचिह्न को कम करने और महामारी से समाज को बचाने हेतु अक्षय ऊर्जा संसाधनों को साझा करने के अवसरों की अनुमति प्रदान करता है।
- बहु-देशीय ग्रिड परियोजना (Multi-Country Grid Project) की महत्त्वाकांक्षा को पूरा करने हेतु संस्थागत निर्माण महत्त्वपूर्ण होते हैं। इस संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance-ISA) एक स्वतंत्र सुपरनेशनल संस्था के रूप में कार्य कर सकता है ताकि यह निर्णय लिया जा सके कि ग्रिड को कैसे चलाया जाना चाहिये और संघर्षों का निपटारा कैसे किया जाना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
डिजी सक्षम कार्यक्रम
प्रिलिम्स के लिये:डिजी सक्षम कार्यक्रम, नेशनल कॅरियर सर्विस,आगा खान रूरल सपोर्ट प्रोग्राम इंडिया मेन्स के लिये:डिजी सक्षम कार्यक्रम : युवाओं में रोज़गार कौशल का विकास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय श्रम मंत्रालय और माइक्रोसॉफ्ट इंडिया ने संयुक्त रूप से युवाओं की रोज़गार क्षमता बढ़ाने के लिये एक डिजिटल कौशल मंच 'डिजी सक्षम' (DigiSaksham) का शुभारंभ किया है।
- यह संयुक्त पहल ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों के युवाओं को प्रोत्साहन देने के लिये सरकार द्वारा संचालित कार्यक्रमों का विस्तार है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- डिजी सक्षम पहल के माध्यम से पहले वर्ष में 3 लाख से अधिक युवाओं को बुनियादी कौशल के साथ-साथ उन्नत कंप्यूटिंग (Advanced Computing) सहित डिजिटल कौशल में मुफ्त प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।
- इस पहल में वंचित समुदायों से संबंधित अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों के रोज़गार चाहने वाले लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी, इनमें वे लोग भी शामिल होंगे जिन्होंने कोविड-19 महामारी के कारण अपनी नौकरी गँवा दी है।
- देश भर में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिये मॉडल कॅरियर केंद्रों (MCC) और राष्ट्रीय कॅरियर सेवा केंद्रों (NCSC) में प्रशिक्षण का आयोजन किया जाएगा।
- कार्यान्वयन: डिजी सक्षम को आगा खान रूरल सपोर्ट प्रोग्राम इंडिया (AKRSP-I) द्वारा क्षेत्र में लागू किया जाएगा।
- AKJRSP-I एक गैर-सांप्रदायिक, गैर-सरकारी विकास संगठन है। यह स्थानीय समुदायों को प्रत्यक्ष सहायता प्रदान कर ग्रामीण समुदायों की बेहतरी के लिये एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है।
- पोर्टल की भूमिका: नौकरी की तलाश करने वाले लोग नेशनल कॅरियर सर्विस (NCS) पोर्टल के माध्यम से प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं।
- NCS पोर्टल एक वन-स्टॉप समाधान है जो भारत के नागरिकों को रोज़गार और कॅरियर से संबंधित सेवाओं की एक विस्तृत शृंखला प्रदान करता है। इसका कार्यान्वयन श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
- आवश्यकता:
- यह भारत के डिजिटल अंतर को पाटने, देश को समावेशी आर्थिक सुधार के मार्ग पर लाने और न केवल घरेलू अर्थव्यवस्था की ज़रूरतों को पूरा करने बल्कि विदेशों में भी रोज़गार के अवसर प्रदान करने के लिये आवश्यक है।
- युवाओं को रोज़गार प्रदान करने हेतु अन्य योजनाएँ:
स्रोत: पीआईबी
ज़िला अस्पतालों की प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट : नीति आयोग
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक, भारतीय गुणवत्ता परिषद, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन मेन्स के लिये:भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा का डिजिटलीकरण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नीति आयोग ने 'ज़िला अस्पतालों के प्रदर्शन में सर्वोत्तम अभ्यास' शीर्षक से भारत में ज़िला अस्पतालों की एक प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट जारी की है।
- इस रिपोर्ट का आशय जिला अस्पतालों के कामकाज में अपनाई जा रही विधियों से है।
प्रमुख बिंदु
- रिपोर्ट के बारे में:
- सहयोग: यह रिपोर्ट स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भारत का एक सहयोगी प्रयास है।
- डेटा सत्यापन: भारतीय गुणवत्ता परिषद के एक घटक, नेशनल एक्रीडिटेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स ने ऑन-ग्राउंड डेटा का सत्यापन किया है।
- वर्ष 2017-18 की स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (HMIS) के आँकड़ों को इस कार्य के लिये आधार रेखा के रूप में इस्तेमाल किया गया है।
- वर्गीकरण: इस प्रदर्शन मूल्यांकन के लिये ज़िला अस्पतालों को छोटे (200 बिस्तरों तक), मध्यम (201-300 बिस्तरों वाले) और बड़े अस्पतालों (300 बिस्तरों से अधिक) में वर्गीकृत किया गया था।
- कुल अस्पतालों में से 62 प्रतिशत छोटे अस्पताल थे।
- प्रमुख प्रदर्शन संकेतक (KPIs): मूल्यांकन में 2017-18 के आँकड़ों के आधार पर 10 प्रमुख प्रदर्शन संकेतक शामिल किये गए जिसके आधार पर 707 ज़िला अस्पतालों का मूल्यांकन किया गया। 10 प्रमुख प्रदर्शन संकेतक इस प्रकार है-
- प्रति 1,00,000 जनसंख्या पर कार्यात्मक अस्पताल बिस्तरों की संख्या
- भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक (IPHS) मानदंडों की स्थिति में डॉक्टरों, नर्सिंग स्टाफ और पैरामेडिकल स्टाफ का अनुपात।
- उपलब्ध सहायता सेवाओं का अनुपात।
- उपलब्ध मुख्य स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का अनुपात।
- उपलब्ध नैदानिक सेवाओं का अनुपात।
- बिस्तर अधिभोग दर।
- सी-सेक्शन दर।
- सर्जिकल उत्पादकता सूचकांक।
- प्रति डॉक्टर ओपीडी।
- ब्लड बैंक रिप्लेसमेंट रेट।
- मुख्य निष्कर्ष:
- प्रति व्यक्ति बिस्तर की उपलब्धता: औसतन एक ज़िला अस्पताल में 1,00,000 लोगों के लिये 24 बिस्तर उपलब्ध थे।
- मूल्यांकन के लिये, यह निर्धारित किया गया था कि एक अस्पताल में इतने लोगों के लिये 22 बिस्तर होने चाहिये (IPHS 2012 दिशा-निर्देश)।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) प्रत्येक 1,000 लोगों पर अस्पताल में पाँच बिस्तर/बेड की सिफारिश करता है।
- डॉक्टर-टू-बेड अनुपात: कुल 707 ज़िलों में से केवल 27% ने एक अस्पताल में प्रति 100 बेड पर 29 डॉक्टरों के डॉक्टर-टू-बेड अनुपात को पूरा किया।
- 707 में से 88 अस्पतालों में स्टाफ नर्सों का आपेक्षिक अनुपात था।
- पैरामेडिकल स्टाफ का अनुपात: केवल 399 अस्पतालों में पैरामेडिकल स्टाफ (Paramedical Staff) का अनुपात IPHS मानदंडों (500 बिस्तरों वाले अस्पताल के लिये 100 पैरामेडिकल स्टाफ) के अनुरूप पाया गया।
- सपोर्ट सर्विसेज़: भारत के प्रत्येक ज़िला अस्पताल में औसतन 11 सपोर्ट सर्विसेज़ विद्यमान हैं, जबकि आवश्यक 14 थीं।
- नैदानिक परीक्षण सेवाएँ: केवल 21 अस्पतालों ने सभी नैदानिक परीक्षण सेवाएंँ उपलब्ध कराने के मानदंड को पूरा किया।
- बेड ऑक्यूपेंसी: 707 में से 182 अस्पतालों में 90% या उससे अधिक बेड उपयोग में थे।
- 80-85% बेड ऑक्यूपेंसी आदर्श मानी जाती है।
- ओपीडी के मरीज़: ज़िला अस्पताल में औसतन एक डॉक्टर 27 ओपीडी मरीज़ों को देखता है।
- प्रति व्यक्ति बिस्तर की उपलब्धता: औसतन एक ज़िला अस्पताल में 1,00,000 लोगों के लिये 24 बिस्तर उपलब्ध थे।
- सुझाव:
- संसाधनों को बढ़ाना: ज़िला अस्पतालों को डिजिटलीकरण हेतु पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
- अस्पतालों में उच्च स्तरीय सेवाओं को उपलब्ध कराने के साथ-साथ उनका प्रसार करने के लिये राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर के प्रशिक्षण, कार्यशालाओं आदि का आयोजन किया जा सकता है।
- मेडिकल कॉलेजों के साथ लिंकिंग: ज़िला अस्पतालों को हब और स्पोक वितरण मॉडल के साथ नियोजित करके निकटतम मेडिकल कॉलेज से जोड़ा जा सकता है, जो कि एक लागत प्रभावी और समय बचाने वाला परिवहन एवं सेवा वितरण तंत्र है।
- संसाधनों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करना: सहायक सेवाओं, नैदानिक परीक्षण सुविधाओं, फार्मेसी, चिकित्सा और पैरामेडिकल स्टाफ की सुनियोजित शिफ्ट की (24×7) उपलब्धता सुनिश्चित करना अस्पतालों में बिस्तरों के इष्टतम अधिभोग एवं संसाधनों के उपयोग में योगदान को बढ़ावा दे सकता है।
- टेली-मेडिसिन सेवाएंँ: अस्पतालों के विस्तार द्वारा समुदाय के बीच देखभाल की मांग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, साथ ही देखभाल के तरीकों को सुलभ बनाकर अधिक बेहतर परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं। टेली- मेडिसिन सेवाएंँ मरीज़ों को सुविधा प्रदान करने के साथ ही ओपीडी की संख्या बढ़ाने में मदद कर सकती हैं।
- सहायक नर्स मिडवाइफ (Auxiliary Nurse Midwife- ANM), आशा-आंँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता नेटवर्क का लाभ उठाते हुए होम डिलीवरी द्वारा संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहित और सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- संसाधनों को बढ़ाना: ज़िला अस्पतालों को डिजिटलीकरण हेतु पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा
- संवैधानिक प्रावधान:
- देश के स्वास्थ्य क्षेत्र को नीति निर्माण इसकी संघीय संरचना और जिम्मेदारियों तथा वित्तपोषण के केंद्रीय-राज्य विभाजन द्वारा आकार दिया गया है।
- राज्य सूची: सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता, अस्पताल तथा औषधालय राज्य के विषय हैं, जिसका अर्थ है कि उनके प्रबंधन एवं सेवा वितरण की प्राथमिक ज़िम्मेदारी राज्यों के पास है।
- संघ सूची: केंद्र, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) और आयुष्मान भारत जैसी केंद्र प्रायोजित योजनाओं के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं में भी निवेश करता है।
- समवर्ती सूची: केंद्र जीवन संबंधी आँकड़े (Vital Statistics), चिकित्सा शिक्षा और औषधि प्रशासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो कि समवर्ती सूची के विषय हैं, साथ ही ये राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये योजना बनाने, नीति निर्माण व वित्तपोषण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- देश के स्वास्थ्य क्षेत्र को नीति निर्माण इसकी संघीय संरचना और जिम्मेदारियों तथा वित्तपोषण के केंद्रीय-राज्य विभाजन द्वारा आकार दिया गया है।
- स्वास्थ्य सेवा का डिजिटलीकरण:
- राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM): NDHM एक पूर्ण डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र है। इस डिजिटल मंच को चार प्रमुख पहलों: हेल्थ आईडी, व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड, डिजी डॉक्टर और स्वास्थ्य सुविधा रजिस्ट्री से साथ लॉन्च किया जाएगा।
- आरोग्य सेतु एप: इसका उद्देश्य ब्लूटूथ पर आधारित किसी से संपर्क साधने, संभावित हॉटस्पॉट का पता लगाने और कोविड-19 के बारे में प्रासंगिक जानकारी का प्रसार करना है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017:
- नीति का उद्देश्य किसी को भी वित्तीय कठिनाई का सामना किये बिना अच्छी गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच प्राप्त करना है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को वर्ष 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद के 2.5% तक बढ़ाना प्रस्तावित करती है।
- यह आयुष प्रणालियों के त्रि-आयामी एकीकरण की भी परिकल्पना करती है जिसमें औषधि प्रणालियों में क्रॉस रेफरल, सह-स्थान और एकीकृत प्रथाओं को शामिल किया गया है।