शासन व्यवस्था
प्रतिरक्षण रणनीति 2030
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र (United Nations) और अन्य एजेंसियों द्वारा विश्व प्रतिरक्षण सप्ताह (World Immunisation Week) के दौरान प्रतिरक्षण रणनीति- 2030 (Immunisation Agenda-IA 2030) को लॉन्च किया गया है।
- यह संयुक्त राष्ट्र के अनिवार्य सतत् विकास लक्ष्यों (विशेष रूप से SDG-3 जिसमे बेहतर स्वास्थ्य और कल्याण शामिल है) को प्राप्त करने में योगदान देगा।
- कोविड-19 महामारी ने वैश्विक स्तर पर नियमित टीकाकरण को प्रभावित किया है।
प्रमुख बिंदु:
प्रतिरक्षण रणनीति- 2030 (IA-2030) के विषय में:
- यह दशक 2021-2030 हेतु वैक्सीन और टीकाकरण के लिये एक महत्त्वाकांक्षी, अतिव्यापी वैश्विक दृष्टि और रणनीति निर्धारित करता है।
- IA-2030 ग्लोबल वैक्सीन एक्शन प्लान (Global Vaccine Action Plan- GVAP) पर आधारित है। इसका उद्देश्य GVAP के उन लक्ष्यों को संबोधित करना है जो ‘वैक्सीन दशक’ (2011-20) की वैश्विक टीकाकरण रणनीति के हिस्से के रूप में पूरे किये जाने थे।
- GVAP को ‘वैक्सीन दशक’ (Decade of Vaccines) के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करने हेतु विकसित किया गया था, जिससे सभी व्यक्ति और समुदाय वैक्सीन-निवारक बीमारियों से मुक्त हो सकें।
- यह सात रणनीतिक प्राथमिकताओं के एक वैचारिक ढांँचे पर आधारित है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि टीकाकरण, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को मज़बूत करने और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की प्राप्ति में पूर्णतः योगदान दे।
- इसे चार मुख्य सिद्धांतों द्वारा रेखांकित किया जाता है:
- यह आम लोगों को केंद्र में रखता है।
- इसका नेतृत्त्व देशों द्वारा किया जाता है।
- इसे व्यापक साझेदारी के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है।
- यह डेटा द्वारा संचालित होता है।
IA-2030 के लक्ष्य:
- इस नए टीकाकरण कार्यक्रम के तहत विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO), यूनिसेफ (UNICEF) जैसी अन्य वैश्विक एजेंसियों द्वारा मौजूदा दशक (2021-2030) में 50 मिलियन वैक्सीन-निवारक संक्रमणों (Million Vaccine-Preventable Infections) से बचने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- इस कार्यक्रम के तहत टीकाकरण से वंचित बच्चों अथवा शून्य-खुराक वाले बच्चों की संख्या को घटाकर 50% तक कम करने का लक्ष्य रखा गया है।
- शून्य खुराक वाले बच्चों में वे बच्चे शामिल हैं, जिन्हें टीकाकरण कार्यक्रमों के माध्यम से कोई टीका नहीं मिला है।
- बचपन और किशोरावस्था में दिये जाने वाले आवश्यक टीकों का 90% कवरेज लक्ष्य प्राप्त करना।
- राष्ट्रीय या राज्य स्तर पर कोविड-19, रोटावायरस या ह्यूमन पेपिलोमावायरस (Human Papillomavirus- HPV) जैसे नए या कम उपयोग किये गए 500 टीकों को प्रस्तुत करने के लक्ष्य को पूरा करना।
- संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियाँ IA-2030 के माध्यम से यह सुनिश्चित करना चाहती हैं कि टीकाकरण के लाभों को देशों में सभी के साथ समान रूप से साझा किया जाए।
जनसंख्या के अनुसार प्राथमिकता:.
- IA-2030 ‘बॉटम-अप’ (Bottoms-Up) दृष्टिकोण पर आधारित है, जबकि GVAP ‘टॉप-डाउन’ (Top-Down) दृष्टिकोण पर आधारित है।
- यह आबादी के उस हिस्से को प्राथमिकता देगा जिन तक वर्तमान में टीकाकरण की पहुंँच संभव नहीं है, विशेष रूप से समाज का वह वर्ग जो सर्वाधिक हाशिये पर है तथा जो अत्यधिक संवेदनशील और संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में रहता हैं।
टीकाकरण हेतु भारत की पहल:
- हाल ही में, कोविड -19 महामारी के दौरान नियमित टीकाकरण में शामिल नहीं हो पाने वाले बच्चों और गर्भवती महिलाओं को कवर करने के उद्देश्य से सघन मिशन इन्द्रधनुष-3.0 (IMI 3.0) योजना शुरू की गई है।
- वर्ष 1978 में भारत में टीकाकरण कार्यक्रम को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रतिरक्षण कार्यक्रम (Expanded Programme of Immunization- EPI) के रूप में शुरू किया गया था। वर्ष 1985 में, इस कार्यक्रम को, यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम (Universal Immunization Programme-UIP) के रूप में परिवर्तित किया गया।
- भारत कोवैक्स (COVAX) का प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता है, जो कि एक वैश्विक पहल है। इस पहल का उद्देश्य यूनिसेफ, ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन एंड इम्युनाइज़ेशन (GAVI), विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा महामारी की तैयारी में जुटे अन्य संगठनों तक कोविड-19 टीकों की समान पहुँच उपलब्ध करना है।
- भारत ने विभिन्न देशों में कोविड वैक्सीन की आपूर्ति करने हेतु 'वैक्सीन मैत्री' (Vaccine Maitri) पहल भी शुरू की है।
विश्व प्रतिरक्षण सप्ताह:
- प्रतिवर्ष अप्रैल के अंतिम सप्ताह में ‘विश्व प्रतिरक्षण सप्ताह’ मनाया जाता है।
- इसका उद्देश्य सभी उम्र के लोगों को बीमारी से बचाने हेतु टीकों के उपयोग को बढ़ावा देना है।
- टीकाकरण उस प्रक्रिया को वर्णित करता है, जिससे लोग सूक्ष्मजीवों (औपचारिक रूप से रोगजनकों) से होने वाले संक्रामक बीमारी से सुरक्षित रहते हैं। ‘टीका’ शब्द टीकाकरण में प्रयुक्त होने वाली सामग्री को संदर्भित करता है।
- टीकाकरण वैश्विक स्वास्थ्य और विकास की सफलता को प्रदर्शित करता है, जिससे प्रतिवर्ष लाखों लोगों की जान बचती है।
- वर्ष 2021 के लिये इस दिवस की थीम ‘वैक्सीन ब्रिंग अस क्लोज़र’ (Vaccines bring us closer) है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
चीन का स्थायी अंतरिक्ष स्टेशन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन ने अपने स्थायी अंतरिक्ष स्टेशन का एक मानवरहित मॉड्यूल लॉन्च किया, जिसे वर्ष 2022 के अंत तक पूरा करने की योजना है।
- ‘तियानहे’ या ‘हॉर्मनी ऑफ द हैवन्स’ नामक इस मॉड्यूल को चीन के सबसे बड़े मालवाहक रॉकेट लॉन्ग मार्च 5 बी से लॉन्च किया गया है।
- भारत भी आगामी 5 से 7 वर्षों में अंतरिक्ष में सूक्ष्म गुरुत्त्व संबंधी प्रयोगों का संचालन करने के लिये ‘लो अर्थ ऑर्बिट’ में अपने स्वयं के अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण की दिशा में कार्य कर रहा है।
प्रमुख बिंदु:
पृष्ठभूमि:
- वर्तमान में एकमात्र स्पेस स्टेशन- अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) मौजूद है, जहाँ चीन की पहुँच नही है।
- स्पेस स्टेशन एक अंतरिक्ष यान होता है जो चालक दल के सदस्यों को विस्तारित अवधि के लिये निवास संबंधी सुविधा देने में सक्षम होता है, साथ ही इसमें अन्य अंतरिक्ष यानों को भी डॉक किया जा सकता है।
- ISS संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, यूरोप, जापान और कनाडा द्वारा समर्थित है।
- अंतरिक्ष अन्वेषण के मामले में चीन ने काफी देरी से कदम उठाए हैं। चीन ने वर्ष 2003 में अपने पहले अंतरिक्ष यात्री को पृथ्वी की कक्षा में भेजा था, जिससे सोवियत संघ और अमेरिका के बाद ऐसा करने वाला वह तीसरा देश बन गया था।
- अब तक चीन ने दो अंतरिक्ष स्टेशनों को कक्षा में भेजा है। ‘Tiangong-1’ और ‘Tiangong-2’ ट्रायल स्टेशन थे, जिनमें अंतरिक्ष यात्रियों को अपेक्षाकृत कम समय तक रखने की क्षमता थी।
चीन का अंतर्राष्ट्रीय स्टेशन:
- 66 टन का नया मल्टी-मॉड्यूल ‘तियांगोंग’ स्टेशन कम-से-कम 10 वर्षों तक कार्य करेगा।
- ‘तियानहे’ चीन के पहले स्व-विकसित अंतरिक्ष स्टेशन के तीन मुख्य घटकों में से एक है, जो कि ISS का एकमात्र प्रतिद्वंद्वी है।
- ‘तियानहे’ चीनी अंतरिक्ष स्टेशन में तीन चालक दल के सदस्यों के लिये निवास योग्य स्थान प्रदान करता है।
- अंतरिक्ष स्टेशन को पूरा करने के लिये आवश्यक 11 मिशनों में से पहला तियानहे लॉन्च किया गया है, जो 340 से 450 किलोमीटर की ऊँचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा करेगा।
- बाद के अभियानों में चीन दो अन्य मुख्य मॉड्यूल, चार मानवयुक्त अंतरिक्ष यान और चार कार्गो अंतरिक्ष यान लॉन्च करेगा।
चीन के लिये महत्त्व:
- अंतरिक्ष कार्यक्रम के संबंध में:
- चीन ने वर्ष 2030 तक एक प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति बनने का लक्ष्य रखा है। उसने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को चंद्रमा पर जाने, मंगल ग्रह के लिये एक मानवरहित प्रोब लॉन्च करने और अपने स्वयं के अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण के लिये तैयार किया है।
- ISS की वर्ष 2024 तक समाप्ति:
- इसके विपरीत दो दशकों से अधिक समय से कक्षा में स्थित ISS परियोजना वित्तपोषण के अभाव के कारण वर्ष 2024 में समाप्त होने वाली है। वहीं रूस ने हाल ही में वर्ष 2025 तक इस परियोजना से अलग होने की घोषणा कर दी है।
- चीन के साथ रूस का गहरा संबंध:
- अमेरिका से तनाव के कारण रूस अंतरिक्ष क्षेत्र में चीन के साथ संबंध बढ़ा रहा है। इसने अमेरिकी नेतृत्व वाले ‘आर्टेमिस मून एक्सप्लोरेशन प्रोग्राम’ की आलोचना की है और इसके बजाय आने वाले वर्षों में चीन के साथ ‘लूनर रिसर्च आउटपोस्ट’ स्थापित करने पर विचार कर रहा है।
चीन के अन्य मिशन:
स्रोत- द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) व्यय
चर्चा में क्यों?
विशेषज्ञों द्वारा सरकार से कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) नियमों को आसान बनाने की मांग की जा रही हैं, ताकि कोविड पीड़ित कर्मचारियों के इलाज और उनके टीकाकरण से संबंधित कॉरपोरेट व्यव को CSR व्यव के तहत कवर किया जा सके।
- वर्तमान CSR मानदंडों के तहत, कंपनियों को अपने अनिवार्य CSR व्यय के हिस्से के रूप में कर्मचारियों के कल्याण के लिये विशेष रूप से किये गए व्यय की गणना करने की अनुमति नहीं है।
प्रमुख बिंदु
कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी:
- अर्थ : कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) को एक प्रबंधन अवधारणा के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसके तहत कंपनियाँ अपने व्यापारिक भागीदारों के साथ सामाजिक और पर्यावरण संबंधी चिंताओं को उनके हितधारकों के साथ एकीकृत करती हैं।
- CSR परियोजनाओं के द्वारा लक्षित लाभार्थियों तथा उनके आस-पास के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष परिवर्तनों का मूल्यांकन ‘प्रभाव आकलन अध्ययन’ (Impact Assessment Studies) कहलाता है।
- शासन :
- भारत में CSR की अवधारणा को कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के तहत नियंत्रित किया जाता है।
- संभावित CSR गतिविधियों की पहचान करके एक रूपरेखा तैयार करने के साथ-साथ CSR को अनिवार्य करने वाला भारत दुनिया का पहला देश है।
- CSR का प्रावधान उन कंपनियों पर लागू होता है, जिनका निवल मूल्य (Net Worth) ₹ 500 करोड़ से अधिक हो या कुल कारोबार (Turnover) ₹1000 करोड़ से अधिक हो या शुद्ध लाभ (Net Profit) ₹5 करोड़ से अधिक हो।
- अधिनियम के अनुसार कंपनियों को एक CSR समिति स्थापित करने की आवश्यकता है, जो निदेशक मंडल को एक कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व नीति की सिफारिश करेगी और समय-समय पर उसी की निगरानी भी करेगी।
- अधिनियम कंपनियों को अपने पिछले तीन वर्षों के शुद्ध लाभों के औसत का 2% CSR गतिविधियों पर खर्च करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
- भारत में CSR की अवधारणा को कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के तहत नियंत्रित किया जाता है।
CSR गतिविधियाँ :
- अधिनियम में उन गतिविधियों की सूची दी गई है, जो CSR के दायरे में आती हैं। यह सूची अधिनियम की 7वीं अनुसूची में शामिल हैं। इन गतिविधियों में शामिल हैं:
- गरीबी व भूख का उन्मूलन।
- शिक्षा का प्रचार-प्रसार, लिंग समानता व नारी सशक्तीकरण।
- ह्यूमन इम्यूनो-डिफीसिएन्सी वायरस, एक्वायर्ड इम्यून डेफिसिएंसी सिंड्रोम और अन्य बीमारी से लड़ने की तैयारी।
- पर्यावरणीय संतुलन को सुनिश्चित करना।
- प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष या अनुसूचित जाति/जनजाति, महिला, अल्पसंख्यक तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के सामाजिक-आर्थिक विकास और राहत के लिये केंद्र या राज्य सरकार द्वारा गठित किसी कोष में योगदान आदि।
- इंजेती श्रीनिवास समिति:
- वर्ष 2018 में इंजेती श्रीनिवास की अध्यक्षता में CSR (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी) पर उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया था।
- समिति ने CSR की खर्च न की जा सकी राशि को अगले 3 से 5 वर्षों की अवधि के लिये आगे बढ़ाने (Carry Forward) की सिफारिश की है। समिति ने कंपनी अधिनियम के खंड-7 (SCHEDULE VII) को संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप बनाने की सिफारिश की है।
हालिया विकास :
- वर्ष 2020 में कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय ने कंपनियों को कोविड-19 से संबंधित राहत कार्यों के लिये CSR निधि खर्च करने की अनुमति दी थी, जिसमें निवारक स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छता तथा कोविड दवाओं, टीकों और चिकित्सा उपकरणों के अनुसंधान और विकास आदि शामिल हैं।
- इस वर्ष, कोविड-19 टीकाकरण संबंधी जागरूकता या सार्वजनिक आउटरीच अभियानों और अस्थायी अस्पतालों तथा अस्थायी कोविड देखभाल सुविधाओं की स्थापना को भी CSR के दायरे में शामिल कर दिया गया है।
CSR मानदंड को आसान बनाने के लाभ:
- टीकाकरण अभियान में भूमिका: सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा CSR गतिविधियों पर प्रतिवर्ष लगभग 10,000 करोड़ रुपए खर्च किये जाते हैं। यदि योग्य असूचीबद्ध कंपनियों को भी ध्यान में रखा जाता है, तो उपलब्ध राशि औ बड़ी हो सकती है। यह टीकाकरण पर केंद्र और राज्यों के खर्च के अनुपूरक हो सकता है।
- ग्रामीण जनसंख्या तक पहुँच: इनमें से कई कंपनियों की ग्रामीण क्षेत्रों में उपस्थिति है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि यह अभियान बड़े शहरों से लेकर ग्रामीण आबादी तक भी पहुँचे।
- कर्मचारियों के लिये CSR के तहत टीकाकरण पर कॉर्पोरेट व्यय की अनुमति का लाभ: इससे विनिर्माण क्षेत्र में असंगठित श्रमिकों के लिये टीकाकरण को बढ़ावा मिलेगा और साथ ही इससे पहले से ही चुनौतियों का सामना कर रही स्वास्थ्य को भी सहायता मिलेगी।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
वैश्विक वन लक्ष्य रिपोर्ट 2021: संयुक्त राष्ट्र
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र (United Nation) द्वारा जारी ‘वैश्विक वन लक्ष्य रिपोर्ट’ (Global Forest Goals Report) 2021 के अनुसार कोविड-19 महामारी ने वनों के प्रबंधन में विभिन्न देशों के समक्ष आने वाली चुनौतियों को बढ़ा दिया है।
- इस रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग (Department of Economic and Social Affairs) द्वारा तैयार किया गया है। यह रिपोर्ट ‘यूनाइटेड नेशन स्ट्रेटेजिक प्लान फॉर फॉरेस्ट’ (United Nations Strategic Plan for Forests), 2030 में शामिल उद्देश्यों और लक्ष्यों की प्रगति पर समग्र अवलोकन प्रदान करती है।
प्रमुख बिंदु
रिपोर्ट के निष्कर्ष:
- कोविड-19 से प्रणालीगत भेद्यता और असमानता में बढ़ोतरी:
- कोविड-19 सिर्फ एक स्वास्थ्य संकट से कहीं अधिक हमारे जीवन और आजीविका, गरीबी, असमानता और खाद्य सुरक्षा आदि विषयों को प्रभावित कर हमारे भविष्य पर खतरा उत्पन्न कर रहा है।
- वैश्विक उत्पादन पर कोविड-19 का प्रभाव:
- यह अनुमान है कि विश्व सकल उत्पाद वर्ष 2020 में लगभग 4.3% तक गिर गया है। यह महामंदी के बाद से वैश्विक उत्पादन में सबसे बड़ी गिरावट है।
- कोविड-19 वनों द्वारा प्रदान लाइफलाइन को नुकसान पहुँचा रहा है:
- लगभग 1.6 बिलियन या वैश्विक आबादी का 25% हिस्सा अपनी जीवन निर्वाह संबंधी आवश्यकताओं, आजीविका, रोज़गार और आय के लिये वनों पर निर्भर है।
- ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों में से लगभग 40% वनों और सवाना क्षेत्रों में रहते हैं और वैश्विक आबादी का लगभग 20% हिस्सा, विशेष रूप से महिलाएँ, बच्चे, भूमिहीन किसान तथा समाज के अन्य कमज़ोर वर्ग अपने भोजन एवं आय की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये वनों पर निर्भर हैं।
- वन आश्रित जनसंख्या पर कोविड-19 का प्रभाव:
- आर्थिक परिपेक्ष में देखें तो वनों पर आश्रित आबादी की आय में कमी हुई है, इन्हें अपनी नौकरी खोनी पड़ी है और मौसमी रोज़गार में संकुचन आदि चुनौतियों का भी का सामना करना पड़ा है।
- सामाजिक रूप से इनमें से कई आबादी पहले से ही हाशिये पर हैं, जिनमें से अधिकांश सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा का लाभ नहीं उठा पाते हैं।
- कई वन आश्रित लोगों को विशेष रूप से दूरदराज़ और दुर्गम स्थानों पर निवास करने वाले लोगों को स्वास्थ्य सेवा तक पहुँचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
- वनों पर अतिरिक्त दबाव:
- महामारी संचालित स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक परिणामों से वनों पर दबाव बढ़ा है।
- कोविड-19 के जोखिमों से अनेक स्वदेशी और स्थानीय समुदायों के वापस लौटने से भोजन, ईंधन, आश्रय एवं सुरक्षा के लिये वनों निर्भरता में बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
- जैव विविधता संकट:
- ‘जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये अंतर-सरकारी विज्ञान नीति मंच’ (Intergovernmental Science-Policy Platform On Biodiversity and Ecosystem Services- IPBES) की ‘जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्ट’ (Global Assessment Report on Biodiversity and Ecosystem Services) के अनुसार वर्ष 1980 से वर्ष 2000 के बीच लगभग एक मिलियन प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा था और लगभग 100 मिलियन हेक्टेयर उष्णकटिबंधीय वन खत्म हो गए।
- जलवायु परिवर्तन पूरे विश्व की वन पारिस्थितिकी प्रणालियों और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की क्षमताओं को खतरे में डाल रहा है।
- यद्यपि वन इन वैश्विक चुनौतियों के प्रकृति समाधान प्रदान करते रहे हैं, लेकिन वे स्वयं कभी भी इतने जोखिम में नहीं रहे हैं।
सुझाव:
- जलवायु और जैव विविधता संकट के साथ-साथ कोविड-19 महामारी से उबरने की राह स्वयं विश्व के जंगलों से जुड़ी हुई है।
- वन और वन-आश्रित लोग इस समाधान का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं।
- सतत् रूप से विकसित और प्रबंधित वन रोज़गार, आपदा जोखिम में कमी करने के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा को बढ़ा सकते हैं।
- वन जैव विविधता की रक्षा कर सकते हैं और जलवायु शमन तथा अनुकूलन दोनों को आगे बढ़ा सकते हैं।
- जंगलों की सुरक्षा और पुनर्स्थापना पर्यावरणीय कार्यों में से एक है ,जो भविष्य में होने वाली बीमारी के प्रकोप के जोखिम को कम कर सकता है।
- इस रिपोर्ट में भविष्य में कोविड-19 महामारी, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता संकट के खतरे से निपटने हेतु स्थिर, वन प्रधान और समावेशी अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिये आवश्यक कार्यवाही पर ज़ोर दिया गया है।
विश्व वन की स्थिति
- कुल वन क्षेत्र: वैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन 2020 (FRA 2020) रिपोर्ट के अनुसार विश्व का कुल वन क्षेत्र 4.06 बिलियन हेक्टेयर है, जो कि कुल भूमि क्षेत्र का तकरीबन 31 प्रतिशत है। ध्यातव्य है कि यह क्षेत्र प्रति व्यक्ति 0.52 हेक्टेयर के समान है।
- फॉरेस्ट कवर में शीर्ष देश- विश्व के 54 प्रतिशत से अधिक वन केवल पाँच देशों (रूस, ब्राज़ील, कनाडा, अमेरिका और चीन) में ही मौजूद हैं।
भारत में वन
- भारत वन स्थिति रिपोर्ट, 2019 के अनुसार देश के भौगोलिक क्षेत्र का कुल वन और वृक्ष कवर 24.56% है।
- भारत में सर्वाधिक वन क्षेत्रफल वाले राज्य: मध्य प्रदेश> अरुणाचल प्रदेश> छत्तीसगढ़> ओडिशा> महाराष्ट्र।
- भारत की राष्ट्रीय वन नीति, 1988 में देश के 33% भौगोलिक क्षेत्र को वन और वृक्ष आच्छादित क्षेत्र के अंतर्गत रखने के लक्ष्य की परिकल्पना की गई है।
वनों के लिये संयुक्त राष्ट्र रणनीतिक योजना, 2017-2030
- इस योजना को स्थायी वन प्रबंधन को बढ़ावा देने और सतत् विकास के लिये एजेंडा-2030 (2030 Agenda for Sustainable Development) में वनों और वृक्षों के योगदान को बढ़ाने हेतु बनाया गया था।
- संयुक्त राष्ट्र फोरम फॉर फॉरेस्ट (UN Forum on Forest) के जनवरी 2017 में आयोजित एक विशेष सत्र में वनों के लिये पहली संयुक्त राष्ट्र रणनीतिक योजना पर समझौता किया गया था, जो वर्ष 2030 तक वैश्विक वनों पर एक महत्त्वाकांक्षी दृष्टिकोण प्रदान करती है।
- उद्देश्य और लक्ष्य: इसमें वर्ष 2030 तक प्राप्त होने वाले छः वैश्विक वन लक्ष्यों और 26 संबद्ध लक्ष्यों का एक सेट शामिल है, जो स्वैच्छिक और सार्वभौमिक हैं।
- इसमें वर्ष 2030 तक विश्व भर में वन क्षेत्र को 3% तक बढ़ाने का लक्ष्य शामिल है, अभी तक जिसमें 120 मिलियन हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। यह क्षेत्र फ्राँस के आकार से दोगुना है।
- यह एजेंडा-2030 के लक्ष्य को आगे बढ़ाता है, जिसमें यह माना गया है कि वास्तविक परिवर्तन के लिये संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर और बाहर निर्णायक तथा सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
शासन व्यवस्था
कोविड-19 टीकों के लिये विभेदक मूल्य निर्धारण
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह कोविड-19 टीकों और अन्य आवश्यक वस्तुओं के मूल्य निर्धारण के पीछे आधार और औचित्य की व्याख्या करें।
- न्यायालय ने यह इंगित किया कि “विभिन्न निर्माता अलग-अलग मूल्य उद्धृत कर रहे हैं”, जबकि ड्रग्स नियंत्रण अधिनियम और पेटेंट अधिनियम के तहत केंद्र सरकार को इस संबंध में अधिकार प्राप्त हैं और यह समय उन्हीं शक्तियों को प्रयोग करने का है।
प्रमुख बिंदु:
भारत में दवाओं के लिये मूल्य निर्धारण संबंधी नियम:
- आवश्यक दवाओं के मूल्य निर्धारण को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के माध्यम से केंद्रीय स्तर पर नियंत्रित किया जाता है।
- आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 की धारा 3 के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा ड्रग्स मूल्य नियंत्रण आदेश (Drug Price Control Order-DPCO) लागू किया गया है।
- ड्रग्स मूल्य नियंत्रण आदेश ने 800 से अधिक आवश्यक दवाओं को सूचीबद्ध करते हुए उनके मूल्य पर नियंत्रण स्थापित किया।
- राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) एक स्वायत्त निकाय है, जो देश में स्वास्थ्य संबंधी आवश्यक दवाओं (NLEM) एवं उत्पादों की कीमतों को नियंत्रित करता है। इसकी स्थापना वर्ष 1997 में की गई थी।
- हालाँकि, DPCO के माध्यम से कोई भी नियमन पेटेंट दवाओं या निश्चित खुराक संयोजन (FDC) दवाओं पर लागू नहीं होता है।
- यही कारण है कि एंटीवायरल ड्रग रेमेडीविर (remdesivir), जो वर्तमान में कोविड-19 के गंभीर मामलों के उपचार के लिये काफी प्रचलित है, की कीमत सरकार द्वारा विनियमित नहीं की जा रही है।
- कोविड -19 के उपचार में उपयोग किये जाने वाले कोविड-19 के टीके या दवाओं के लिये संशोधन करना आवश्यक है जैसे-DPCO के तहत रेमेडिसविर को शामिल करना।
टीकों के मूल्य निर्धारण के लिये उपलब्ध अन्य कानूनी रास्ते:
- पेटेंट अधिनियम, 1970:
- इस कानून में ऐसे दो प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख सर्वोच्च न्यायालय ने किया है, जिसका उपयोग वैक्सीन के मूल्य निर्धारण को विनियमित करने के लिये संभावित रूप से किया जा सकता है।
- इस अधिनियम की धारा 100 केंद्रीय सरकार को सरकार के प्रयोजनों के लिये आविष्कारों का उपयोग करने की शक्ति प्रदान करती है।
- यह प्रावधान सरकार को विनिर्माण में तेज़ी लाने और समान मूल्य निर्धारण सुनिश्चित करने के लिये विशिष्ट कंपनियों को वैक्सीन के पेटेंट का लाइसेंस देने में सक्षम बनाता है।
- अधिनियम की धारा 92 केंद्र सरकार को राष्ट्रीय आपातकाल या सार्वजनिक तात्कालिकता के मामले में अनिवार्य लाइसेंस देने का अधिकार देता है।
- महामारी रोग अधिनियम, 1897:
- सरकार ने महामारी के प्रकोप से लड़ने के लिये इसे मुख्य हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है।
- इस अधिनियम की धारा 2 सरकार को विशेष उपाय करने और महामारी के दौरान विशेष नियम निर्धारित करने का अधिकार देती है।
- अधिनियम के अंतर्गत अपरिभाषित शक्तियों का व्यापक उपयोग मूल्य निर्धारण को नियंत्रित करने के लिये किया जा सकता है।
आगे की राह
- इन कानूनी उपायों के अतिरिक्त विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि केंद्र सरकार समान मूल्य निर्धारण सुनिश्चित करने के लिये निर्माताओं से प्रत्यक्ष खरीद के मार्ग पर विचार का सकती है, क्योंकि एक खरीदार के रूप सरकार के पास सौदेबाज़ी (bargaining) या मोल-भाव करने की शक्ति अधिक होगी।