नई औद्योगिक अवसंरचना परियोजनाएँ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (Cabinet Committee on Economic Affairs- CCEA) ने प्रमुख परिवहन गलियारों से जुड़े ग्रीनफील्ड औद्योगिक शहरों की स्थापना के लिये 7,725 करोड़ रुपए के तीन बुनियादी अवसंरचना प्रस्तावों को मंज़ूरी दी है।
- मंत्रिमंडल ने इथेनॉल उत्पादन के लिये इंटरेस्ट सबवेंशन हेतु एक संशोधित योजना को भी मंज़ूरी दी, योजना का विस्तार करते हुए इसमें अनाज आधारित भट्टियों को शामिल करने की बात कही गई, न कि केवल गुड़ आधारित।
- यह योजना जौ, मक्का और चावल जैसे अनाजों से इथेनॉल उत्पादन को प्रोत्साहित करेगी, साथ ही उत्पादन तथा आसवन क्षमता को बढ़ाकर 1,000 करोड़ लीटर करने में सहायक होगी।
- इसके अलावा वर्ष 2030 तक पेट्रोल के साथ 20% इथेनॉल के मिश्रण के लक्ष्य को पूरा करने में मदद करेगी।
प्रमुख बिंदु:
- ये परियोजनाएँ प्रमुख परिवहन गलियारों जैसे- पूर्वी और पश्चिमी समर्पित फ्रेट कॉरिडोर, एक्सप्रेसवे और राष्ट्रीय राजमार्ग, बंदरगाहों, हवाई अड्डों आदि से निकटता सुनिश्चित करने पर आधारित हैं।
- यह वैश्विक विनिर्माण शृंखला में भारत को विनिर्माण के क्षेत्र में मज़बूत स्थिति प्रदान करने हेतु निवेश को आकर्षित करेगा।
- ये परियोजनाएँ औद्योगिक गलियारों के विकास के माध्यम से रोज़गार के पर्याप्त अवसर सृजित करने में सहायक होंगी।
औद्योगिक गलियारे:
- अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्र एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं और औद्योगिक गलियारे इस परस्पर-निर्भरता के लिये उद्योग एवं बुनियादी ढाँचे के बीच प्रभावी एकीकरण सुनिश्चित करते हैं, ताकि समग्र आर्थिक और सामाजिक विकास हो सके।
आर्थिक लाभ:
- निर्यात में वृद्धि: औद्योगिक गलियारों के परिणामस्वरूप रसद (Logistics) की लागत कम होने की संभावना है जिससे औद्योगिक उत्पादन संरचना की दक्षता में वृद्धि होगी। उत्पादन लागत कम होने से यह भारतीय उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाएगी।
- रोज़गार के अवसर: औद्योगिक गलियारों का निर्माण उद्योगों के विकास के लिये निवेश को आकर्षित करेगा जिससे बाज़ार में रोज़गार के अधिक अवसर उत्पन्न होने की संभावना है।
- रसद (Logistics): ये गलियारे आकारिक मितव्ययिता (Economies of Scale) हेतु आवश्यक लॉजिस्टिक्स अवसंरचना प्रदान करेंगे, इस प्रकार व्यवसायों को अपने मुख्य क्षमता वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम बनाएंगे।
- निवेश के अवसर: औद्योगिक गलियारे निजी क्षेत्रों के लिये औद्योगिक अवसरों के दोहन से संबंधित विभिन्न बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के प्रावधान में निवेश के अवसर प्रदान करते हैं।
- कार्यान्वयन में सुधार: औद्योगिक गलियारे के दीर्घकालिक लाभों में बुनियादी अवसंरचना के विकास के अलावा व्यापार और उद्योग हेतु औद्योगिक उत्पादन इकाइयों की सुगम पहुँच, परिवहन तथा संचार लागत में कमी, डिलीवरी के समय में सुधार एवं इन्वेंट्री लागत में कमी आदि शामिल हैं।
पर्यावरणीय महत्त्व:
- औद्योगिक गलियारों के आस-पास विकीर्णित तरीके से औद्योगिक इकाइयों की स्थापना कर एक विशेष स्थान पर उद्योगों के संकेंद्रण को रोका जा सकेगा।
- यहाँ विशेष स्थान का तात्पर्य ऐसे स्थान से है जहाँ आवश्यकता से अधिक पर्यावरण का दोहन किया गया हो और या पर्यावरणीय गिरावट के लिये उत्तरदायी हो।
सामजिक-आर्थिक महत्त्व:
- सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से औद्योगिक गलियारों के विभिन्न व्यापक प्रभाव हैं जैसे- औद्योगिक टाउनशिप, शैक्षणिक संस्थान, अस्पतालों की स्थापना आदि। ये मानव विकास के मानकों में और वृद्धि करने में सहायक होंगे।
- इसके अलावा लोगों को अपने घरों के नज़दीक रोज़गार के अवसर मिलेंगे और उन्हें दूरदराज़ के स्थानों की ओर नहीं जाना पड़ेगा (प्रवास को रोका जा सकेगा)।
राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम:
- लक्ष्य: भारत सरकार राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा कार्यक्रम के हिस्से के रूप में विभिन्न औद्योगिक गलियारा परियोजनाओं का विकास कर रही है, जिसका उद्देश्य भारत में ऐसे औद्योगिक शहरों का विकास करना है जो विश्व के सबसे अच्छे विनिर्माण और निवेश स्थलों के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकें।
- प्रबंधन:
- विकास और कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में मौजूद सभी औद्योगिक गलियारों के समन्वित और एकीकृत विकास के लिये राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास और कार्यान्वयन ट्रस्ट (NICDIT) द्वारा उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य किया जा रहा है।
- यह भारत का सबसे महत्त्वाकांक्षी बुनियादी ढाँचा कार्यक्रम है, जिसका लक्ष्य नए औद्योगिक शहरों को "स्मार्ट सिटीज़" के रूप में विकसित करना और अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों को बुनियादी ढाँचा क्षेत्रों में परिवर्तित करना है।
- इस कार्यक्रम के लिये कुल स्वीकृत राशि तकरीबन 20,084 करोड़ रुपए है। कार्यक्रम के तहत 11 औद्योगिक गलियारा परियोजनाओं को शुरू किया गया है और कार्यक्रम के तहत वर्ष 2024-25 तक चार चरणों में कुल 30 परियोजनाओं को विकसित किया जाएगा।
आगे की राह:
- गलियारों की स्थापना के उद्देश्य को सफल बनाने के लिये भारत को औद्योगिक क्रांति 4.0 का हिस्सा बनना होगा, जो स्मार्ट रोबोटिक्स, हल्के और सख्त पदार्थ, 3डी प्रिंटिंग तथा एनालिटिक्स से निर्मित विनिर्माण प्रक्रिया आदि क्षेत्रों में नवाचार के नए तरीकों का हिस्सा हो।
- औद्योगिक गलियारे, औद्योगिक क्रांति की चौथी लहर में विश्व का नेतृत्व करने के प्रयासों में भारत की मदद करेंगे। इस योजना के प्रभावी क्रियान्वयन से भारत विकास की दौड़ में एक बड़ी छलांग लगा सकता है।
स्रोत: द हिंदू
रक्षा निर्यात को बढ़ावा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सतह से हवा में मार करने वाली आकाश मिसाइल (Akash Missile) के निर्यात को ‘मित्र देशों’ (Friendly Countries) के लिये मंज़ूरी प्रदान कर दी है तथा निर्यात में तीव्रता लाने हेतु रक्षा मंत्री की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है।
- यह समिति बाद में विभिन्न देशों के लिये स्वदेशी प्लेटफाॅर्मों द्वारा निर्यात करने का अधिकार प्रदान करेगी।
प्रमुख बिंदु:
- आकाश मिसाइल का निर्यात संस्करण वर्तमान में भारतीय सशस्त्र बलों में शामिल आकाश मिसाइल से अलग होगा।
- विभिन्न देशों द्वारा जारी RFI/RFP में भाग लेने के लिये मंत्रिमंडल की मंज़ूरी भारतीय निर्माताओं को सुविधा प्रदान करेगी।
- रिक्वेस्ट फॉर इन्फाॅर्मेशन (Request For Information- RFI) का उपयोग तब किया जाता है जब मालिक कई ठेकेदारों को संभावित समाधान प्रदान करना चाहता है, जबकि रिक्वेस्ट फॉर प्रपोज़ल (Request for Proposal-RFP) का उपयोग किसी परियोजना के लिये स्वीकृति देने हेतु बोली प्रक्रिया में किया जाता है।
- अब तक भारतीय रक्षा वस्तुओं का कुछ ही अंश या भाग का निर्यात किया जाता था। बड़े स्तर पर इनका निर्यात काफी कम था।
- मंत्रिमंडल की इस पहल से देश को अपने रक्षा उत्पादों को बेहतर बनाने और उन्हें विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाने में मदद मिलेगी।
- यह आत्मनिर्भर भारत (Atma Nirbhar Bharat) के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा।
- आकाश के अलावा सरकार की रुचि अन्य प्रमुख रक्षा सामग्रियों जैसे- तटीय निगरानी प्रणाली, रडार और वायु प्लेटफाॅर्मों के निर्यात में भी है।
आकाश मिसाइल
- आकाश भारत की पहली स्वदेश निर्मित मध्यम श्रेणी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल है जो कई दिशाओं, कई लक्ष्यों को निशाना बना सकती है।
- सभी प्रकार के मौसम में प्रयुक्त होने वाली यह मिसाइल ध्वनि की गति से 2.5 गुना तीव्र गति से लक्ष्य को भेद सकती है तथा निम्न, मध्यम और उच्च ऊँचाई पर लक्ष्यों का पता लगाकर उन्हें नष्ट कर सकती है।
- आकाश मिसाइल प्रणाली को भारत के 30 वर्षीय एकीकृत निर्देशित-मिसाइल विकास कार्यक्रम (Integrated Guided-Missile Development Programme - IGMDP) के हिस्से के रूप में डिज़ाइन और विकसित किया गया है, जिसमें नाग, अग्नि, त्रिशूल और पृथ्वी जैसी अन्य मिसाइलें भी शामिल हैं।
रेंज और क्षमता:
- नाभिकीय क्षमता युक्त आकाश मिसाइल 18 किमी. की अधिकतम ऊँचाई पर 2.5 मैक (लगभग 860 मीटर प्रति सेकंड) की गति से उड़ने में सक्षम है।
- यह दुश्मन के हवाई ठिकानों को लक्ष्य बना सकती है जैसे- लड़ाकू जेट, ड्रोन, क्रूज़, हवा से सतह में मार करने वाली मिसाइलों के साथ-साथ 30 किलोमीटर की दूरी से बैलिस्टिक मिसाइलों को भेदने में भी सक्षम है ।
आकाश मिसाइल की विशेषताएँ:
- इस मिसाइल को मोबाइल प्लेटफाॅर्मों के माध्यम से युद्धक टैंकों या ट्रकों से लॉन्च किया जा सकता है। इसमें लगभग 90% तक लक्ष्य को भेदने की सटीकता की संभावना है।
- इस मिसाइल का संचालन स्वदेशी रूप से विकसित रडार 'राजेंद्र' द्वारा किया जाता है यह रडार प्रणाली समूह या स्वायत्त मोड में कई दिशाओं से अत्यधिक लक्ष्यों को भेदने में सक्षम है।
- यह मिसाइल ठोस ईंधन तकनीक और उच्च तकनीकी रडार प्रणाली के कारण अमेरिकी पैट्रियट मिसाइलों (US’ Patriot Missiles) की तुलना में सस्ती और अधिक सटीक है।
विनिर्माण :
- मिसाइल प्रणाली को रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) द्वारा डिज़ाइन और विकसित किया गया है।
भारतीय रक्षा निर्यात:
- मार्च 2020 में स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) द्वारा प्रकाशित आंँकड़ों के अनुसार, हथियार निर्यातक देशों की सूची में भारत वर्ष 2015-2019 तक 19वें स्थान पर तथा वर्ष 2019 में 23वें स्थान पर रहा।
- रक्षा मंत्रालय की 2018-19 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, रक्षा निर्यात 10,745 करोड़ रुपए रहा जिसमें वर्ष 2017-18 (100682 करोड़ रुपए) की तुलना में अधिक (100%) की वृद्धि हुई और यह वर्ष 2016-17 (1,521 करोड़ रुपए) से 700% अधिक है।
- वैश्विक हथियारों के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी मात्र 0.17% है।
- वर्तमान सरकार भारत में रक्षा विनिर्माण पर ज़ोर दे रही है ताकि देश के विनिर्माण आधार का निर्माण किया जा सके तथा देश में ही युवाओं के लिये रोज़गार सुनिश्चित किया जा सके और भारत के हथियारों के आयात बिल को कम किया जा सके।
- भारत का लक्ष्य वर्ष 2025 तक 5 बिलियन अमेरिकी डाॅलर मूल्य के सैन्य हार्डवेयर का निर्यात करना है।
आगे की राह
- निजी उद्योग की अधिक-से-अधिक भागीदारी हेतु एक स्थिर मैक्रो-आर्थिक और राजनीतिक वातावरण निर्मित करने के साथ ही एक पारदर्शी कारोबारी माहौल निर्मित करने की आवश्यकता है जो निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करे।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
कोविड के कारण मृत्यु: विकसित बनाम विकासशील देश
चर्चा में क्यों?
एक अध्ययन के अनुसार, समृद्ध और विकसित देशों में बेहतर साफ-सफाई की स्थिति भी कोरोनोवायरस से संबंधित मौतों की उच्च दर के लिये उत्तरदायी हो सकती है।
प्रमुख बिंदु
अध्ययन:
- यह अध्ययन 29 जून, 2020 तक के उन आँकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है। उल्लेखनीय है कि इस समय तक विश्व भर में 5 लाख से अधिक मौतें दर्ज की गई थीं जिनमें से 70% से अधिक मौतें उच्च आय वाले देशों में हुई थीं।
- इस रिपोर्ट में सकल घरेलू उत्पाद, जनसंख्या घनत्व, मानव विकास सूचकांक रेटिंग, जनसांख्यिकी, साफ-सफाई और स्व-प्रतिरक्षित बीमारियों की व्यापकता जैसे संकेतकों के आधार पर विभिन्न देशों में कोरोनोवायरस के कारण हुई मौतों के बीच सह-संबद्धता व्यक्त की गई है।
परिणाम:
- विकसित देशों का मामला:
- प्रति मिलियन जनसंख्या की मृत्यु की उच्चतम दर वाले देशों में बेल्ज़ियम, इटली और स्पेन शामिल हैं, जहाँ प्रति मिलियन 1,200 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। अमेरिका और ब्रिटेन में प्रति मिलियन जनसंख्या पर 1,000 से अधिक मौतें हुई हैं।
- भारत विशिष्ट परिणाम:
- इसके विपरीत भारत में प्रति मिलियन लगभग 110 मौतें हुई हैं, जो कि विश्व भर में कोविड के कारण हुई मौतों के औसत 233 के आधे से भी कम है।
- विरोधाभास:
- यद्यपि निम्न-आय वाले देशों का जनसंख्या घनत्व अधिक तथा स्वच्छता मानक बहुत कम हैं फिर भी धनी एवं विकसित देशों की तुलना में यहाँ कोरोनावायरस के कारण होने वाली मौतों की संख्या कम रही है।
- अपवाद:
- जापान, फिनलैंड, नॉर्वे, मोनाको या ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी बहुत कम मृत्यु दर दर्ज की गई है।
- अन्य कारक शामिल:
- महामारी का चरण।
- कम विकसित देशों में कम रिपोर्टिंग/परीक्षण जो मृत्यु दर को भी प्रभावित कर सकता है।
- यह पाया गया कि 'स्वच्छता परिकल्पना' (Hygiene Hypothesis) इन्हीं कारणों में से एक हो सकती है।
स्वच्छता परिकल्पना
- स्वच्छता परिकल्पना के अनुसार, कम सफाई मानकों वाले देशों में लोग कम उम्र में ही संचारी रोगों के संपर्क में आ जाते हैं और मज़बूत प्रतिरक्षा विकसित करते हैं, जिससे उन्हें बाद के जीवन में बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है जिसे ‘प्रतिरक्षा प्रशिक्षण’ कहा जाता है।
- इसके विपरीत अमीर देशों में लोगों के पास स्वास्थ्य सेवा एवं टीके और स्वच्छ पेयजल जैसी सुविधाओं की बेहतर पहुँच है, जिसके कारण वे ऐसे संक्रामक रोगों से सुरक्षित रहते हैं। विरोधाभासी रूप से इसका अर्थ यह भी है कि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली इस तरह के खतरों के प्रति असंयमित रहती है।
- इस परिकल्पना का उपयोग कभी-कभी स्व-प्रतिरक्षित रोगों की व्यापकता को समझाने के लिये भी किया जाता है, जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली कभी-कभी 'अति प्रतिक्रियात्मक (Overreacts)' हो जाती है और शरीर की अपनी कोशिकाओं पर हमला करना शुरू कर देती है, जिससे टाइप -1 मधुमेह मेलिटस या मल्टीपल स्केलेरोसिस जैसे विकार हो जाते हैं।
- हालाँकि कुछ लोगों द्वारा यह सुझाव दिया जाता है कि इस परिकल्पना का नाम बदल देना ही बेहतर होगा। उदाहरण के लिये इसे 'माइक्रोबियल एक्सपोज़र' परिकल्पना, या 'माइक्रोबियल अवक्षेपण' जैसा नाम दिया जा सकता है। यदि 'स्वच्छता' जैसे शब्दों पर ध्यान न दिया जाए तो इससे रोगाणुओं के वास्तविक प्रभाव को निर्धारित करने पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सेंटिनली जनजाति
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय मानवविज्ञान सर्वेक्षण (Anthropological Survey of India- ANSI) द्वारा जारी नीति दस्तावेज़ में चेतावनी दी गई है कि वाणिज्यिक गतिविधियों के कारण सेंटिनली जनजाति (Sentinelese Tribe) के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
- ANSI द्वारा इस नीति दस्तावेज को सेंटिनल जनजातियों द्वारा उत्तरी सेंटिलन द्वीप पर एक अमेरिकी नागरिक को मार दिये जाने के लगभग दो वर्ष बाद जारी किया गया है।
प्रमुख बिंदु
ANSI के दिशा-निर्देश:
- अंडमान के उत्तरी सेंटिनल द्वीप (North Sentinel Island) का उपयोग वाणिज्यिक और सामरिक लाभ प्राप्त करने के कारण यह के मूल निवासियों और सेंटिनल जनजाति पर प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न हो रहा है।
- इस द्वीप पर लोगों का अधिकार अपरक्राम्य, अभेद्य और अविस्मरणीय है। राज्य का कर्त्तव्य है कि लोगों के इन अधिकारों को शाश्वत और पवित्र मानते हुए वह इनका संरक्षण करे।
- उनके द्वीप को किसी भी वाणिज्यिक या रणनीतिक लाभ के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये।
- इस दस्तावेज़ में सेंटिनल जनजाति पर एक ज्ञान बैंक के निर्माण की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है।
- चूँकि ‘ऑन-द-स्पॉट स्टडी’ आदिवासी समुदाय के लिये संभव नहीं है। मानवविज्ञानी ऐसी स्थिति में दूर से ही ‘एक संस्कृति के अध्ययन’ का सुझाव देते हैं।
सेंटिनली जनजाति के बारे में:
- ये लोग अंडमान के उत्तरी सेंटिनल द्वीप पर रहनी वाली निग्रिटो (अश्वेत तथा छोटे कद वाले) समुदाय के लोग हैं।
- वे बाहरी दुनिया से बिना किसी संपर्क के पूरी तरह से अलग-थलग हैं। लेकिन वर्ष 1991 में इस जनजातीय समुदाय द्वारा भारतीय मानव विज्ञानविदों और प्रशासकों की एक टीम से कुछ नारियल स्वीकार किये थे।
- सेंटिनली से किसी प्रकार का संपर्क नहीं होने के कारण दूर से ही इनकी तस्वीर लेकर जनगणना की जाती है।
- इनकी आबादी उत्तरी सेंटिनल द्वीप पर लगभग 50 से 100 के बीच है।
- उत्तरी सेंटिनल द्वीप के सर्वेक्षणों में कृषि करने का कोई प्रमाण नहीं मिला है। इसके अलावा यह समुदाय समूहों में शिकार करने वाला, मछली पकड़कर भोजन प्राप्त करने वाला और द्वीप पर रहने वाले जंगली पौधों को इकट्ठा करने वाला प्रतीत होता है।
- सेंटिनली को भारत सरकार द्वारा विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (Particularly Vulnerable Tribal Groups- PVTGs) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह की ग्रेट अंडमानी, ओंग, जारवा और शोम्पेन PVTG के रूप में सूचीबद्ध अन्य चार जनजातियाँ हैं।
- इन सभी को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (आदिवासी जनजातियों का संरक्षण) विनियमन, 1956 द्वारा संरक्षण प्राप्त है।
- यह विनियमन जनजातियों के कब्ज़े वाले पारंपरिक क्षेत्रों को संरक्षित क्षेत्र घोषित करता है और अधिकारियों के अलावा अन्य सभी व्यक्तियों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाता है।
- जनजाति सदस्यों की फोटो लेना या उन पर किसी भी प्रकार के फिल्मांकन का कार्य करना एक अपराध है।
भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण
- भारतीय मानवविज्ञान सर्वेक्षण (Anthropological Survey of India) भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Culture) के अधीन एक अग्रणी अनुसंधान संगठन है जो भौतिक मानवशास्त्र तथा सांस्कृतिक मानवशास्त्र के क्षेत्र में कार्यरत है।
- इस संगठन को वर्ष 1945 में स्थापित किया गया था। इसका मुख्यालय कोलकाता में स्थित है। इसके अलावा जगदलपुर और रांची में दो क्षेत्रीय स्टेशन तथा पोर्ट ब्लेयर, शिलांग, देहरादून, उदयपुर, नागपुर और मैसूर में शाखाएँ अवस्थित हैं।
- इसे मानव विज्ञान और इससे संबद्ध विषयों में अनुसंधान तथा प्रशिक्षण के लिये सबसे उन्नत केंद्रों के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- उद्देश्य:
- भारत की जनसंख्या में जैविक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण जनजातियों और अन्य समुदायों का अध्ययन करना।
- आधुनिक और पुरातात्त्विक तरीकों से मानव कंकाल अवशेषों का अध्ययन तथा संरक्षण करना।
- भारतीय जनजातियों के कला और शिल्प के नमूने एकत्रित करना।
- जनजातीय मेघावी छात्रों के लिये मानव विज्ञान और इसके प्रशासन हेतु एक प्रशिक्षण केंद्र के रूप में कार्य करना।
- शोध परिणामों को प्रकाशित करना।
आगे की राह
- शिक्षाविदों के अनुसार, इन समुदायों के लिये "शून्य संपर्क" के स्थान पर "नियंत्रित संपर्क" की नीति को स्वीकार किया जाना चाहिये।
- इनके मध्य किसी बीमारी के संचरण को रोकने हेतु प्रबंधित संपर्क और यदि आवश्यक हो तो सहायता तथा चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराकर जनजातीय समुदायों के मध्य विश्वास प्राप्त किया जा सकता है।
- यदि ये बाहरी दुनिया के साथ संपर्क स्थापित करते हैं तो इससे सरकार को इनके जीवन के तरीके को उन्नत करने, इनके संस्कृति तथा समग्र विकास को संरक्षित करने में मदद मिल सकती है।