जल प्रबंधन में सर्वोत्तम प्रणालियों का सार-संग्रह - 3.0 | 15 Sep 2023

प्रीलिम्स के लिये:

नीरू-चेट्टू कार्यक्रम, सुजलाम सुफलाम जल अभियान (गुजरात), जलयुक्त शिवार योजना, स्पंज सिटी पहल, सतत् शहरी जल प्रबंधन, सिहलानज़िमवेलो स्ट्रीम क्लीनिंग प्रोजेक्ट: (दक्षिण अफ्रीका), कोलकाता में बाढ़ पूर्वानुमान और पूर्व चेतावनी प्रणाली

मेंन्स के लिये:

जल प्रबंधन प्रणाली और जल संरक्षण।

हाल ही में नीति आयोग ने 'जल प्रबंधन में सर्वोत्तम प्रणालियों का सार-संग्रह - 3.0' जारी किया: सर्वोत्तम प्रथाओं का यह संग्रह राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लागू अद्वितीय और प्रभावी जल प्रबंधन रणनीतियों का भंडार है।

  • कुशल सिंचाई, झीलों तथा नदियों के कायाकल्प, अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग आदि के लिये स्मार्ट बुनियादी ढाँचे से संबंधित सफलता की कहानियाँ हितधारकों एवं चिकित्सकों और शोधकर्ताओं तक प्रसारित की जाती हैं।

जल संरक्षण में कुछ नीतिगत हस्तक्षेप:

नीरू-चेट्टू कार्यक्रम (आंध्र प्रदेश)

  • परिचय: 
    • नीरू-चेट्टू कार्यक्रम को वर्ष 2015 में आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा शुरू किया गया। इसे राज्य को सूखे के प्रभावों को कम करने हेतु, लोगों की भागीदारी के साथ राज्य में जल संरक्षण एवं प्रबंधन में सुधार के लिये लागू किया गया था।
  • हस्तक्षेप:  
    • लघु सिंचाई टैंकों और फीडर चैनलों से गाद निकालना।
    • मौजूदा जल संचयन संरचनाओं की मरम्मत और नवीनीकरण।
    • चेक डैम, रिसाव टैंक, खेत और तालाबों का निर्माण।
    • रिज़ से घाटी तक पहुँच विकसित कर मृदा के कटाव को रोकना। 
    • नवीनतम भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) और उपग्रह प्रौद्योगिकी का उपयोग करके पानी को अधिशेष बेसिन से न्यूनता वाले बेसिन की ओर मोड़ने के लिये कैस्केड यानी टैंकों की शृंखला का विकास।
    • अत्यधिक जल अभाव वाले क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर सूक्ष्म सिंचाई और पानी की मोबाइल सूक्ष्म सिंचाई पद्धतियों को प्रोत्साहित करना।
    • वन विभाग द्वारा व्यापक वनीकरण एवं मृदा की नमी संरक्षण कार्य और नर्सरी का विकास करना।
  • परिणाम: 
    • नीरू-चेट्टू के तहत किये गये कार्यों के कारण रायलसीमा क्षेत्र में भू-जल स्तर में सुधार हुआ
    • कुल 126,477 ढाँचों की मरम्मत की गई।
    • 86 लिफ्ट सिंचाई योजनाओं को पुनर्जीवित किया गया।

सुजलाम सुफलाम जल अभियान (गुजरात)  

Sujalam Sufalam Water Campaign (Gujarat)

  • परिचय
    • सुजलाम सुफलाम जल संचय अभियान वर्ष 2018 में गुजरात सरकार द्वारा शुरू की गई एक जल संरक्षण योजना है।
    • इस योजना का लक्ष्य राज्य में जल निकायों को गहरा करना, गाद निकालना, नदियों को साफ एवं पुनर्जीवित तथा नई जल संचयन संरचनाओं का निर्माण करना है।
  • परिणाम:  . 
    • लगभग 13,000 तालाबों तथा चेक-डैमों से गाद निकाली गई और 32 नदियों को पुनर्जीवित किया गया, जिससे वर्षा आने पर पानी जमा करने की क्षमता में 11,000 लाख क्यूबिक फीट की वृद्धि हुई।
    • 6,170 झीलों को साफ और गहरा किया गया।
    • तीन वर्षों (2018-2020) में गुजरात राज्य की जल संचयन क्षमता 42,064 लाख क्यूबिक फीट बढ़ गई।
    • खोदी गई मिट्टी जनता को निःशुल्क दी गई।
  •  हस्तक्षेप:  
    • तालाबों, टैंकों, चेक डैम तथा जलाशयों को गहरा करना। नदियों, नालों, नहरों, सिंचाई संरचनाओं और पेयजल स्रोतों की सफाई करना।
    • चेक डैम, नए तालाब, खेत तलावडी और वन तालाब का निर्माण करना । 

मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान (राजस्थान)  

  • पृष्ठभूमि: राजस्थान में कम तथा अनियमित वर्षा के कारण जल अभाव का सामना करना पड़ता है। यहाँ वर्षा पश्चिम में 100 मिमी. से लेकर दक्षिण-पूर्व में 900 मिमी. तक होती है तथा पाँच में से तीन वर्ष सूखा रहता है। वर्षा के अधिकांश जल का अपवाह हो जाने के कारण इसका लाभ नहीं हो पाता है तथा भूजल स्तर भी गिर रहा है। इस समस्या के निपटान हेतु जल-संभर क्षेत्र में जल संचयन संरचनाओं की आवश्यकता है।
  • परिचय:
    • मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान (MJSA) वर्ष 2016 में राजस्थान सरकार द्वारा शुरू की गई एक जल संरक्षण एवं प्रबंधन योजना है।
  • उद्देश्य:
    • गाँव को पेयजल के मामले में आत्मनिर्भर बनाना।
    • भूजल स्तर को बढ़ाना तथा जल-संभर (Watershed) को मज़बूत करना।
    • जल संचयन एवं संरक्षण के माध्यम से सिंचाई और खेती के क्षेत्र को बढ़ाना।
  • हस्तक्षेप:
    • इस योजना का उद्देश्य फोर वाटर्स कांसेप्ट (Four Waters Concept) का उपयोग करके ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध अपवाहित जल का संचयन एवं उपयोग करना है।
      • इस अवधारणा में संग्रहीत जल (Catchment Water) का उपचार, मौजूदा जल संचयन संरचनाओं का उचित उपयोग, गैर-कार्यात्मक जल संचयन संरचनाओं का नवीनीकरण तथा नई जल संचयन संरचनाओं का निर्माण करना शामिल है।
    • इस योजना के तहत ग्राम सभाओं में जल बजटिंग की अवधारणा को भी अपनाया जाता है, जहाँ विभिन्न उद्देश्यों के लिये जल के उपयोग तथा मांग को निर्धारित किया जाता है और तद्नुसार योजना बनाई जाती है।
  • परिणाम: 
    • इस योजना के परिणामस्वरूप भूजल स्तर में 4% की वृद्धि हुई जिससे कृषि एवं सिंचाई में सहायता प्राप्त हुई।
    • मृदा अपरदन तथा उर्वरता की समस्या में सुधार हुआ जिसके परिणामस्वरूप अधिक उत्पादन हुआ।
    • 4.1 मिलियन लोगों तथा 4.5 मिलियन जानवरों को जल की आपूर्ति की गई जिससे जल अभाव के कारण होने वाली मृत्यु में कमी आई।

ड्रिंक फ्रॉम टैप मिशन (24x7 जल आपूर्ति) - ओडिशा

  • पृष्ठभूमि: तीव्र शहरीकरण के कारण ओडिशा में जल आपूर्ति संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
  • परिचय: शहरी निवासियों को सुरक्षित एवं निरंतर पेयजल उपलब्ध कराने के लिये ओडिशा सरकार द्वारा वर्ष 2020 में ड्रिंक फ्रॉम टैप मिशन शुरू किया गया है।
  • उद्देश्य:
    • नल के शुद्ध जल की आपूर्ति: जल आपूर्ति प्रणालियों को निरंतर (24x7) जल आपूर्ति प्रणालियों में परिवर्तित करना।
    • सामुदायिक भागीदारी (स्वयं सहायता समूह) के माध्यम से जल आपूर्ति प्रबंधन करना
    • अनुशंसित मानकों के अनुसार अच्छी गुणवत्ता वाले पाइप से पेयजल की 100% कवरेज।
    • पूरी लागत वसूली के लिये लीकेज और बर्बादी रोकने हेतु घरेलू कनेक्शनों की 100% मीटरिंग।
  • हस्तक्षेप: 
    • निर्माण एवं संचालन में उन्नत प्रौद्योगिकी और प्रबंधन तकनीकों का उपयोग किया गया।
    • तृतीय पक्ष गुणवत्ता निगरानी एवं सार्वजनिक निजी भागीदारी (Public Private Partnership- PPP) प्रयोगशालाओं के माध्यम से गुणवत्ता सुनिश्चित की गई।
    • नीतिगत हस्तक्षेप: जल के अधिकार, सरलीकृत कनेक्शन प्रक्रियाएँ, सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा।
    • गरीबों के लिये मानदंडों को लचीला बनाया गया, अमृत (AMRUT) के तहत मलिन बस्तियों (Slums) को कवर किया गया, पाइप जल की आपूर्ति को सुनिश्चित किया गया।
    • उपकरण, प्रशिक्षण एवं अवसंरचना के उन्नयन के माध्यम से गैर-राजस्व जल (NRW) को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • परिणाम: 
    • चौबीस घंटे नल के जल का 100% घरेलू कवरेज हासिल किया गया।
    • व्यक्तिगत जल भंडारण की आवश्यकता समाप्त हो गई।
    • छत पर टैंकों और घरेलू उपचार प्रणालियों की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया।
    • मीटरिंग और बिलिंग से जल का रिसाव और बर्बादी कम हुई।
    • त्वरित समस्या समाधान से वॉटको (WATCO) में जनता का विश्वास बढ़ा।

कपिलधारा योजना (मध्य प्रदेश)  

  • कार्यान्वयन का वर्ष: 2008
  • परिचय: कपिलधारा योजना, मनरेगा के माध्यम से लघु और सीमांत किसानों को सिंचाई सुविधा प्रदान करने से संबंधित मध्य प्रदेश सरकार की एक योजना है।
  • उद्देश्य:
    • सिंचाई सुविधाओं के अभाव वाले भूमिधारकों का समर्थन करना तथा हाशिये पर रहने वाले समुदायों को प्राथमिकता देना।
    • फसल उत्पादकता, गहनता और विविधता में सुधार करना तथा आजीविका स्रोत उत्पन्न करना।
  • संबंधित पहल:
    • लाभार्थियों की निजी भूमि पर कुएँ, तालाब, चेक डैम आदि का निर्माण।
    • मनरेगा के तहत बागवानी विकास, भूमि सुधार और अन्य गतिविधियाँ।
    • पाँच साल में 2.5 लाख कपिलधारा कूप निर्माण का लक्ष्य।
  • परिणाम:
    • गरीब किसानों की असिंचित भूमि पर 3.57 लाख से अधिक कपिलधारा कुओं का निर्माण किया गया।
    • लगभग 4.74 लाख हेक्टेयर क्षेत्र सिंचित क्षेत्र में बदल गया।
    • किसानों के लिये फसल की विविधता और आय में वृद्धि हुई। 

सिंचाई प्रणाली का स्वचालन: नारायणपुर लेफ्ट बैंक (बायीं तट) नहर प्रणाली (कर्नाटक)  

  • कर्नाटक सरकार ने वर्ष 2014 में नारायणपुर बायीं तट नहर प्रणाली को स्वचालित करने के लिये एक परियोजना शुरू की, जिसके तहत कृष्णा नदी पर नारायणपुर बांध द्वारा लगभग 4.5 लाख हेक्टेयर के विशाल क्षेत्र की सिंचाई शामिल है।
  • इस परियोजना में नहर नेटवर्क के साथ किसानों तक जल के वितरण का प्रबंधन करने के लिये 4,000 से अधिक स्वचालित नियंत्रण और विनियमन द्वार, परिष्कृत सॉफ्टवेयर एवं संचार बुनियादी ढाँचे तथा सौर ऊर्जा संचालित एकीकृत द्वार स्थापित करना शामिल था।
  • इस परियोजना के तहत एक डैशबोर्ड के माध्यम से किसानों को सिंचाई कार्यक्रम, जल की मांग और राजस्व सृजन की जानकारी भी प्राप्त हुई।
  • इस परियोजना के तहत कमांड क्षेत्र में मृदा के स्वास्थ्य, फसलों, जल की मांग एवं आवंटन और मौसम की निगरानी के लिये जीआईएस-आधारित जानकारी का उपयोग किया गया।
  • इस परियोजना से सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए जैसे कि अंतिम छोर तक जल पहुँचाना, जल उपयोग दक्षता को अनुकूलित करना तथा जल की हानि को कम करना, सिंचित क्षेत्र एवं कृषि उत्पादन में वृद्धि, परिचालन लागत तथा रखरखाव आवश्यकताओं को कम करना और ऑनलाइन जल प्रबंधन प्रणाली को बढ़ावा देना। 

जल संवर्द्धन योजना (कर्नाटक)

  • कर्नाटक के तुमकुरु ज़िले में कर्नाटक के सोसायटी अधिनियम के तहत पंजीकृत एक सोसायटी (जल संवर्धन योजना संघ -JSYS) वर्ष 2002 से जल संवर्द्धन योजना क्रियान्वित कर रही है।
    • पारंपरिक टैंक प्रणालियाँ (जिन्हें "केरे" के नाम से जाना जाता है) सदियों से कर्नाटक में जल संचयन परंपराओं का अभिन्न अंग रही हैं। इन टैंक प्रणालियों ने पारिस्थितिकी स्थिरता, पर्यावरण संरक्षण के साथ ग्रामीण आजीविका में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • उद्देश्य:
    • टिकाऊ और विकेन्द्रीकृत टैंक प्रबंधन प्रणालियों के लिये अनुकूल वातावरण बनाना, समुदाय-आधारित संस्थानों के विकास के माध्यम से गरीबी को कम करना तथा टैंकों का रखरखाव करना।
  • संबंधित पहल:
    • टैंक उपयोगकर्ता समूहों (TUG) की सक्रिय भागीदारी के साथ इसमें टैंक बाँधों एवं फीडर नहरों में सुधार, जल के रिसाव को रोकना तथा जल क्षमता को बहाल करने और भूजल स्तर को बढ़ाने के लिये टैंक की सतहों से गाद निकालना शामिल है।
  • परिणाम:
    • आसपास के क्षेत्र में खुले कुओं और बोरवेलों में भूमिगत जल के पुनर्भरण में सुधार हुआ।
    • टैंक के क्षेत्रों में लगभग 1,24,950 स्थानीय स्वदेशी पौधों की प्रजातियाँ जैसे नीम, बाँस, इमली, नील, जेट्रोफा, अकेसिया आदि को लगाया गया।

जलयुक्त शिवार अभियान (महाराष्ट्र)  

  • जलयुक्त शिवार अभियान (JSA) महाराष्ट्र सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है जिसे वर्ष 2019 तक राज्य को सूखा मुक्त करने के लिये वर्ष 2015-16 में शुरू किया गया था।
  • JSA का लक्ष्य जल संचयन संरचनाओं का निर्माण और मरम्मत करना, भूजल पुनर्भरण को बढ़ावा देना और कृषि में कुशल जल उपयोग को बढ़ावा देकर हर साल 5000 गाँवों को जल की कमी से मुक्त करना है।
  • इस योजना की वेब-आधारित निगरानी के लिये जल निकायों की जियोटैगिंग के साथ एक मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग किया गया।
  • JSA द्वारा 11,000 गाँवों को सूखा-मुक्त घोषित करने, जल भंडारण क्षमता एवं कृषि उत्पादकता बढ़ाने तथा भूजल स्तर को रिचार्ज करने जैसे सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए। 

जलसंभर विकास की कुछ सर्वोत्तम पद्धतियाँ:

सौराष्ट्र में लवणता को कम करना: 

  • अंबुजा सीमेंट फाउंडेशन (ACF) ने सौराष्ट्र के तटीय क्षेत्र में भूजल के अत्यधिक दोहन और कम वर्षा के कारण होने वाली लवणता की समस्या के समाधान के लिये वर्ष 1998 में एक समग्र कार्यक्रम शुरू किया।
  • ACF ने जल संचयन और भूजल पुनर्भरण को बढ़ाने के लिये विभिन्न पहलों को लागू किया, जैसे चेक बाँध, तालाब, नहरें और वर्षा जल संचयन प्रणाली का निर्माण।
  • ACF ने पेयजल आपूर्ति बुनियादी ढाँचे, आधुनिक सिंचाई प्रौद्योगिकियों, लवणता प्रतिरोधी फसलों और जल संसाधन प्रबंधन में सामुदायिक भागीदारी को भी बढ़ावा दिया।
  • ACF के हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप अतिरिक्त जल उपलब्धता, कृषि उत्पादकता में वृद्धि, आजीविका में सुधार और लवणता के स्तर में कमी जैसे महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े।

वाटरशेड:

  • वाटरशेड (जिसे जल निकासी बेसिन/जलग्रहण क्षेत्र भी कहा जाता है) भूमि का एक क्षेत्र है जो एक विशिष्ट जलस्रोत से जल को निकालने या संग्रहीत करने पर केंद्रित है।
  • यह सतही जल अपवाह के लिये एक स्वतंत्र जल निकासी इकाई है।
  • एक जल विभाजक दूसरे जल विभाजक से एक प्राकृतिक सीमा द्वारा अलग होता है जिसे कटक रेखा कहते हैं।
  • वाटरशेड प्रबंधन एक वाटरशेड के भीतर जल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की गुणवत्ता की रक्षा और सुधार के लिये भूमि उपयोग प्रथाओं और जल प्रबंधन प्रथाओं को लागू करने की प्रक्रिया है।

ओडिशा में स्वच्छ एवं सुरक्षित पेयजल  

  • कार्यान्वयन का स्थान: ओडिशा का नुआपाड़ा ज़िला।
  • पृष्ठभूमि: पश्चिमी ओडिशा के नुआपाड़ा ज़िले में भूजल के अत्यधिक दोहन के परिणामस्वरूप भूजल में प्राकृतिक फ्लोराइड की सांद्रता बढ़ गई है (प्रति लीटर 4.95 मिलीग्राम तक)। इससे गाँव में स्वच्छ और सुरक्षित जल की अनुपलब्धता हो गई।
  • वर्ष 2019 में ओडिशा सरकार द्वारा कार्यान्वित जल जीवन मिशन का उद्देश्य भूजल में फ्लोराइड संदूषण की समस्या का समाधान करना था, जिसके कारण ग्रामीणों में फ्लोरोसिस और गुर्दे की विफलता जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा हुईं।
  • इस मिशन के तहत संभावित स्रोतों के रूप में लोअर इंदिरा बाँध और जोंक नदी बाँध का उपयोग करके, पीने के जल के स्रोत को भूजल से सतही जल में बदल दिया। बाँधों से जल एकत्र किया गया, उपचारित किया गया और ओवरहेड टैंकों एवं कार्यात्मक नलों के माध्यम से गाँवों में इसकी आपूर्ति की गई।
  • इस मिशन के तहत गाँवों में पीने योग्य जल की सुविधा के साथ गुर्दे की विफलता के मामलों में 30% की कमी आई एवं ग्राम जल और स्वच्छता समितियों (VWSC) का गठन करके ग्रामीणों के लिये क्षमता निर्माण कार्यक्रम जैसे सकारात्मक परिणाम हासिल किये गए।

नेकनामपुर झील का नवीनीकरण (तेलंगाना) 

  • कार्यान्वयन का स्थान: नेकनामपुर झील, हैदराबाद (तेलंगाना)
  • संस्था: ध्रुवाँश संस्था
  • कार्यान्वयन का वर्ष: 2016
  • पृष्ठभूमि: 25 एकड़ क्षेत्रफल वाली नेकनामपुर झील कचरा, सीवेज, जलकुंभी, गाद और मलबा डंपिंग से दूषित हो गई थी।  
    •  अतिक्रमण के मुद्दे और हैदराबाद में मणिकोंडा नगर पालिका में डंप किया गया कचरा चिंता का एक गंभीर कारण बन गया था।
  • उद्देश्य:  
    • झील और जैव विविधता की बहाली
    • झीलों में जल को शुद्ध करने के लिये फाइटोरिमेडिएशन और बायोरिमेडिएशन
    • झील से गाद निकालना
    • झील पर फ्लोटिंग ट्रीटमेंट वेटलैंड्स की स्थापना और उनका रखरखाव।
    • झील को ऊर्जा मुक्त बनाने के लिये झील पर सोलर फ्लोटिंग एरेटर का विकास।
    • शिकारियों से मॉनिटर छिपकलियों और कछुओं की सुरक्षा।
    • झील के जल में कैटफिश और रेड-ईयर टेरापिन जैसी आक्रामक प्रजातियों को रोकना।
    • झील पर एक लाख से अधिक वृक्षारोपण करना, जिनमें देशी प्रजातियाँ और औषधीय पौधे शामिल हैं।
  • परिणाम: 
    • उपचार प्रणाली के निरंतर रखरखाव के कारण झील की बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) में 90% की कमी आई है।
    • झील की गंध या बदबू कम हुई, हालाँकि सीवेज अभी भी झील में आ रहा है।
    •   झील का पुनरुद्धार और सामुदायिक पुनरुद्धार समानांतर रूप से चल रहा है।

जल की कमी को दूर करने हेतु हैदराबाद में वाटरशेड विकास 

  • स्विट्जरलैंड स्थित एक वैश्विक स्वास्थ्य सेवा कंपनी नोवार्टिस और एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट नेशनल एग्रो फाउंडेशन ने हैदराबाद, तेलंगाना के पास पाँच गाँवों में जल की कमी को दूर करने के लिये वर्ष 2021 में एक वाटरशेड विकास कार्यक्रम शुरू किया।
    • हैदराबाद में जल के दो प्राथमिक स्रोत हैं - नागार्जुन सागर जलाशय (कृष्णा नदी) और येल्लमपल्ली जलाशय (गोदावरी नदी)।
    • वर्ष 2019 में इन दोनों जलाशयों में जल स्तर खतरनाक रूप से कम था, जिससे इसके 6.8 मिलियन निवासियों के लिये पीने के जल की आपूर्ति प्रभावित हुई।
  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य पेयजल उपलब्धता और गुणवत्ता, स्वच्छता सुविधाएँ, आजीविका सहायता और पारिस्थितिक बहाली में सुधार करना है।
  • इस कार्यक्रम के तहत किसानों के लिये वाटरशेड प्रबंधन, समावेशी विकास और क्षमता निर्माण का एक एकीकृत मॉडल लागू किया गया।
  • इस कार्यक्रम के तहत जल की उपलब्धता में 50%-60% की वृद्धि हुई, भूजल स्तर को 10 फीट तक बढ़ाया गया, लगभग 2000 परिवारों को लाभान्वित किया गया, अतिरिक्त जल भंडारण क्षमता का विकास हुआ, वर्षा जल का संचयन हुआ और किसानों की आय में वृद्धि जैसे महत्त्वपूर्ण परिणाम हासिल हुए।

जलसंभर विकास दृष्टिकोण के लाभ:   

  • मज़बूत और टिकाऊ संरचनाओं का निर्माण वर्ष भर जल की उपलब्धता पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
  • सूक्ष्म सिंचाई, मल्चिंग जैसी आधुनिक तकनीकों को अपनाने से सिंचाई दक्षता बढ़ती है।
  • जल की गुणवत्ता और मात्रा के बारे में सामुदायिक जागरूकता, जल तनाव के जोखिम को रोकने में सहायता कर सकती है।
  • बाँधों में गाद जमा होने से बचने के लिये सावधानियाँ बरतनी चाहिये क्योंकि इससे जल धारण क्षमता कम हो जाती है।
  • वर्षा पर निर्भर खेती से डायवर्जन-आधारित खेती के माध्यम से वर्षा जल के संचयन और भंडारण की ओर बदलाव की आवश्यकता है।
  • भूजल के अत्यधिक दोहन से फ्लोराइड संदूषण हो सकता है जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ पैदा हो सकती हैं।
  • भारी धातुओं से दूषित क्षेत्रों में जल के स्रोत को भूजल से सतही जल में स्थानांतरित करने की सिफारिश की गई है।
  • झीलों के जैविक कायाकल्प में फाइटोरेमेडिएशन और बायोरेमेडिएशन तकनीकों का कार्यान्वयन प्रभावी है।
  • झील की जैविक बहाली प्रक्रिया के तहत सौर ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा विकल्पों को एकीकृत किया जा सकता है।

स्मार्ट जल अवसंरचना की सर्वोत्तम प्रथाओं के उदाहरण:

कोरिया गणराज्य में स्मार्ट मीटरिंग के माध्यम से जल सेवाओं में सुधार 

  • परिचय: सियोसन शहर प्रशासन और के-वाटर (कोरिया जल संसाधन निगम) ने वर्ष 2016 में दक्षिण कोरिया के एक छोटे से गाँव चा-री में स्मार्ट वॉटर मीटर लगाए, जहाँ खराब पाइप और सूखे के कारण जल की कमी का सामना करना पड़ा था।
  • पृष्ठभूमि: चा-री नामक एक छोटे से गाँव में जल के पाइपों के खराब होने के कारण कई बार जल की समस्या का सामना करना पड़ा। सियोसन शहर में गैर-राजस्व पानी की दर अपेक्षाकृत कम है, इसके एक गाँव चा-री को छोड़कर, जहाँ वर्ष 2015 में गैर-राजस्व पानी की दर 32% थी।
    • वर्ष 2015 में सूखे के कारण व्यापक आपूर्ति क्षेत्र में जल के नुकसान की पहचान करना और उसे कम करना मुश्किल था। 
  • उद्देश्य: जल की हानि का पता लगाना और गैर-राजस्व जल की दर को कम करना, फटे पाइपों से रिसाव और चा-री गाँव में ग्राहकों की संतुष्टि में सुधार करना।
  • हस्तक्षेप: सियोसन शहर और के-वाटर ने इस क्षेत्र में स्मार्ट जल मीटर स्थापित किये। दो ज़िला मीटर वाले क्षेत्रों के भीतर नौ उप ज़िला मीटर क्षेत्र प्रणाली बनाई गईं।
    • रिसाव को समझने और उसका पता लगाने के लिये दैनिक आधार पर गैर-राजस्व जल विश्लेषण किया गया। जल निगरानी प्रणालियों का विस्तार 12 शाखाओं तक किया गया।
    • ग्राहकों की संतुष्टि का मूल्यांकन स्मार्टफोन द्वारा किया जाता है।
  • परिणाम: स्मार्ट वॉटर मीटरिंग सिस्टम ने गैर-राजस्व जल की दर को 32% से घटाकर 10% कर दिया, ग्राहकों के जल के उपयोग को 55% और लागत को 70% तक कम कर दिया और सेवा विफलताओं के प्रबंधन में लचीलापन बढ़ा दिया।

बेहतर सिंचाई हेतु उपग्रहों का उपयोग:

  • परिचय: IrriSAT एक मौसम-आधारित सिंचाई प्रबंधन ऐप है जिसके तहत ऑस्ट्रेलिया में बड़े पैमाने पर फसल में जल के उपयोग और जानकारी प्रदान करने के लिये रिमोट सेंसिंग का उपयोग किया जाता है।
    • इसे जॉन हॉर्नबकल, जेमी वेलेशौवर और डॉ. जेनेल मोंटगोमरी द्वारा वर्ष 2019 में गूगल अर्थ इंजन का उपयोग करके विकसित किया गया था।
  • पृष्ठभूमि: डेटा एकत्र करने के पारंपरिक तरीके जैसे मैन्युअल माप या ज़मीन-आधारित सर्वेक्षण समय लेने वाले और श्रम गहन हो सकते हैं।   
    • इसके अलावा, इन सिंचाई प्रणालियों से फसलों में अत्यधिक जल या कम जल की समस्या हो सकती है।
    • सूखे की स्थिति और सीमित जल उपलब्धता कृषि उत्पादकता के लिये अतिरिक्त चुनौतियाँ पैदा करती है।
    • मौसम-आधारित सिंचाई प्रबंधन प्रणालियाँ पूर्वानुमानित मौसम स्थितियों के आधार पर सिंचाई कार्यक्रम को समायोजित करके सूखे के प्रभाव को कम करने में सहायता कर सकती हैं। 
  • हस्तक्षेप: IrriSAT के तहत व्यापक स्थानिक पैमाने पर साइट विशिष्ट फसल जल प्रबंधन जानकारी प्रदान करने के लिये रिमोट सेंसिंग का उपयोग होता है।
    • गूगल अर्थ इंजन का उपयोग करके विकसित यह ऐप सिंचाई योजना और फसल उत्पादकता बेंचमार्किंग में सहायता के लिये फसल जल उपयोग और जानकारी प्रदान करता है।
  • परिणाम: IrriSAT उपयोगकर्ताओं ने सिंचाई के समय को संशोधित करके, जलवायु घटनाओं की भविष्यवाणी करके, खराब प्रदर्शन वाले क्षेत्रों की पहचान करके और सिंचित क्षेत्रों के प्रदर्शन को बेंचमार्क करके जल की बचत की।

स्पंज सिटी पहल: सतत् शहरी जल प्रबंधन 

  • परिचय: चीन ने बाढ़ के लिये प्रकृति-आधारित समाधान अपनाने तथा शहरी जल प्रबंधन में सुधार के लिये वर्ष 2014 में एक स्पंज सिटी कार्यक्रम (Sponge city Program) लागू किया।
  • पृष्ठभूमि: पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (People’s Republic of China- PRC) के तीव्र शहरीकरण के परिणामस्वरूप बाढ़ आई जिससे महत्त्वपूर्ण मानवीय एवं आर्थिक क्षति हुई। इस संदर्भ में जल प्रबंधन के लिये स्पंज सिटी (Sponge City) जैसे टिकाऊ दृष्टिकोण का समर्थन किया गया।
  • उद्देश्य:
    • ऐसी विकास की अवधारणा को अपनाना जिससे शहरी अपवाह के प्रभावी नियंत्रण में सुधार हो तथा जल का भंडारण, पुनर्चक्रण एवं शुद्धिकरण हो।
    • ब्लू-ग्रीन-ग्रे अवसंरचना (Blue-Green-Grey Infrastructure) की प्रणालियों को एकीकृत करना।
    • यह भूमिगत जल भंडारण टैंकों तथा सुरंगों का निर्माण और प्राकृतिक जल निकायों को एकीकृत करके पारंपरिक जल निकासी प्रणालियों को उन्नत करने पर भी ध्यान केंद्रित करता है।
  • हस्तक्षेप:  
    • चीन ने एक व्यापक समाधान लागू किया है। उन्होंने कम प्रभाव वाली विकास विधियों को बड़े पैमाने पर बाढ़ नियंत्रण परियोजनाओं एवं पुनर्वास के साथ जोड़ा है।
    • बाढ़ नियंत्रण, जलीय पर्यावरण, जल संसाधन, जल सुरक्षा तथा अन्य पहलुओं पर प्रदर्शन मूल्यांकन की पहचान करने के लिये वार्षिक अपवाह मात्रा नियंत्रण दर (Control Rate of Annual Runoff Volume- CRARV), अपशिष्ट जल पुन: उपयोग दर, वर्षा जल पुन: उपयोग दर, भू-जल तालिका, जलीय बाढ़ नियंत्रण और रोकथाम क्षमता जैसे संकेतकों का उपयोग किया गया था। 
    • तूफानी जल अपवाह (Stormwater Runoff) की मात्रा को नियंत्रित करने के लिये ग्रीनवेज़ का विकास किया गया।
    • पुराने फुटपाथ और पाइपलाइनों का पुनर्निर्माण किया गया।
    • कृत्रिम आर्द्रभूमि, कृत्रिम तालाब और कृत्रिम मृदा अंतःस्पदंन (Artificial Soil Infiltration) सभी का उपयोग जलग्रहण क्षेत्र के अंत में वर्षा जल के प्रवाह को शुद्ध करने तथा बनाए रखने के लिये किया जाता है।
    • बाढ़ के खतरे को कम करने के लिये नदी के किनारे आर्द्रभूमि तथा नदी के किनारे हल्की हरी ढलानों को पुन: स्थापित किया गया।
    • स्पंज सिटी की अवसंरचना जैसे रेन गार्डन (Rain Gardens) और बायोसवेल्स (Bioswales) को जल निकासी पाइप नेटवर्क में सुधार के साथ एकीकृत किया गया।
  • परिणाम:  
    • स्पंज सिटी कार्यक्रम को लागू करने के बाद शेन्ज़ेन में अब एक उच्च-घनत्व वाला ग्रीनवे नेटवर्क है, जिसकी कुल लंबाई 2,300 किलोमीटर से अधिक है, जिसमें हरित परिवहन गलियारे, वन और पार्क शामिल हैं, जिनकी चौड़ाई 3 मीटर से लेकर 100 मीटर से अधिक है।
    • स्पंज सिटी कार्यक्रम के तहत छह क्षेत्रों में बाढ़ को समाप्त किया गया, सात नदी शाखाओं में प्रदूषण को समाप्त किया गया तथा शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव (Urban Heat Island Effect) को कम किया गया।

कम्युनिटी-बेस्ड स्टॉर्मवाटर स्मार्टग्रिड्स: बाढ़ और सूखे की अनुकूलता के लिये वितरित AI/IoT वर्षा संचयन/नेटवर्क

  • परिचय: वर्ष 2015 में रेनग्रिड ने तूफानी जल प्रबंधन चुनौतियों का समाधान करने के लिये कनाडा में स्टॉर्मवॉटर स्मार्टग्रिड प्रणाली लागू की।
  • पृष्ठभूमि: कनाडा, टिकाऊ तूफानी जल प्रबंधन के लिये प्रतिबद्ध है क्योंकि बायोसवेल्स, रेन गार्डन तथा पारगम्य तट/पर्मिएबल पेविंग (Permeable Paving) जैसे जल के प्रति संवेदनशील शहरी डिज़ाइन के माध्यम से पारगम्य सतहों को बढ़ाने पर बल दिया गया है। वर्षा जल के प्रवाह को एकत्र करने तथा मापने के लिये वर्षा टैंकों को बढ़ावा दिया जाता है।
    • लेकिन संपत्ति-आधारित वर्षा संचयन और भूमि-आधारित अंतःस्पदंन (Land-Based Infiltration) प्रणालियों में विभिन्न समस्याएँ हैं, जहाँ भंडारण क्षमता को मापना मुश्किल है, यदि सिस्टम पहले से ही पिछले तूफान के जल का भंडारण कर रहा है।
    • इस समस्या के समाधान के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और IoT सिस्टम का उपयोग करके रेनग्रिड स्टॉर्मवॉटर स्मार्ट ग्रिड विकसित किया गया था।
  • उद्देश्य:  
    • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तथा इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) के माध्यम से बाढ़ की रोकथाम और मौसम की भविष्यवाणी।
    • पाइप्ड स्टॉर्मवाटर मैनेजमेंट इंटरवेंशन की आवश्यकता को कम करना:
      • रेनग्रिड्स रेजिडेंशियल स्टॉर्मवॉटर स्मार्टग्रिड यूटिलिटी टेक्नोलॉजी (RainGrid’s Residential Stormwater Smartgrid Utility Technology- RSSUT) एक स्मार्ट जल प्रबंधन तकनीक है जिसे छतों से होने वाले वर्षा के जल के बहाव को कम करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
      • रेनग्रिड प्रणाली में शामिल हैं: इंडिविज़ुअल प्रॉपर्टी सिस्टर्न (Individual Property Cisterns), एन आर्टिफिशियल इंटेलीजेंट क्लाउडबेस्ड वेदर एल्गोरिदम, स्थानीय सेंसर तथा इमारत के आवरण के भीतर या बाहर एकत्रित जल के पुन: उपयोग के लिये विद्युत सक्रिय जल निकासी व्यवस्था।
      • एक बुनियादी रेनग्रिड सिस्टम जमीन के ऊपर या नीचे के कुंडों (Cisterns) में दो चरण का प्राथमिक निस्पंदन और भंडारण प्रदान करता है।
      • स्टॉर्म सीवर सिस्टम का प्राथमिक लक्ष्य भू-जल पुनर्भरण के साथ पीने योग्य या गैर-पीने योग्य उपयोगों के लिये जल संग्रहीत करना है।
      • IoT प्रणाली में तापमान, बैरोमीटर का दबाव तथा टंकी के स्तर के लिये सेंसर एवं जल निकासी के लिये एक विद्युत सक्रिय वाल्व होता है।
  • परिणाम:  
    • स्टॉर्मवॉटर स्मार्ट ग्रिड प्रणाली से वर्षा जल के अपवाह में कमी और संग्रहण को बढ़ावा मिला।
    • स्टॉर्मवॉटर स्मार्टग्रिड प्रणाली से शहरी क्षेत्र के अपवाह की दक्षता में वृद्धि हुई।
    • स्मार्ट ग्रिड इनोवेशन के कारण, रेनग्रिड को वर्ष 2015 में बेहतर प्रदर्शन एवं कार्यान्वयन हेतु वाटर रिसर्च फाउंडेशन (WRF) लीडर्स इनोवेशन फोरम फॉर टेक्नोलॉजी (LIFT) द्वारा एक इंटेलिजेंट वॉटर सिस्टम के रूप में नामित किया गया था।

अपशिष्ट जल उपचार तथा पुनः उपयोग के उदाहरण:

हाइड्रोपोनिक्स में ऊर्ध्वाधर खेती का उपयोग करके बिना मिट्टी के टमाटर उगाना  

  • कार्यान्वयन का स्थान: पोर्ट ऑगस्टा, दक्षिण ऑस्ट्रेलिया संगठन: सनड्रॉप फार्म
  • क्रियान्वयन का वर्ष: 2016
  • पृष्ठभूमि: संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन का अनुमान है कि 9.7 अरब की अनुमानित विश्व आबादी को भोजन कराने के लिये वर्ष 2050 तक खाद्य उत्पादन स्तर को वर्ष 2007 के स्तर से 70% तक बढ़ाने की आवश्यकता है।
    • कृषि के लिये भूमि की उपलब्धता कम होने के कारण कुशल कृषि पद्धतियाँ एक आवश्यकता बन गई हैं।
  • उद्देश्य: 
    • शुष्क क्षेत्रों में मृदा के बिना, समुद्री जल की सहायता से फसलों का उत्पादन करना।
    • खेतों में जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के साथ अधिक मात्रा में जल संरक्षण करना।
    • खाद्य सुरक्षा हस्तक्षेप प्राप्त करने के लिये ऊर्ध्वाधर खेती का उपयोग करना।
    •  बिना मृदा के टमाटर उगाने के लिये ऊर्ध्वाधर खेती हाइड्रोपोनिक्स सुविधा स्थापित की गई है।
    • अलवणीकरण इकाई फसलों की सिंचाई के लिये शुद्ध जल का उत्पादन करती है। गर्मी और कार्बन डाइऑक्साइड वर्ष भर प्रकाश संश्लेषण की सुविधा के लिये टमाटरों को इष्टतम वातावरण में रखते हैं।
  • परिणाम:  
    • यह फार्म 3 किलोमीटर दूर से खींचे गए समुद्री जल को अलवणीकृत करके प्रतिदिन 10 लाख लीटर ताज़ा पानी का उत्पादन करता है।
    • प्रति वर्ष 7,000 टन टमाटर यानी ऑस्ट्रेलिया की कुल फसल का 15% शुष्क भूमि में उगाया जाता था।
    • 1,80,000 टमाटर बिना मृदा के ढेर में हाइड्रोपोनिक विधि से उगाए गए।
    • पारंपरिक खेतों की तुलना में 2 मिलियन लीटर डीजल तथा 15,000 टन CO2 की बचत हुई। 

कपड़ा प्रसंस्करण में जल रहित रंगाई प्रौद्योगिकी

  • जल रहित रंगाई तकनीक जल तथा रसायनों के अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करके सिंथेटिक कपड़े को रंगने का एक नया तरीका है।
  • यह तकनीक DELFT यूनिवर्सिटी, डाईकू और टोंग सियांग कंपनी द्वारा विकसित की गई, साथ ही वर्ष 2012 में ताइवान में लागू की गई थी।
  • पृष्ठभूमि:  
    • पारंपरिक कपड़ा रंगाई में जल की अत्यधिक खपत होती है। यह ताज़े जल का उपयोग करता है क्योंकि विलायक अत्यधिक प्रदूषित जल उत्पन्न करता है जिसे नदियों में प्रवाहित करने से पहले बड़े पैमाने पर उपचारित किया जाना चाहिये।
  • परिणाम:  
    • प्रौद्योगिकी के कई पर्यावरणीय लाभ हैं, जैसे रासायनिक सॉल्वैंट्स को समाप्त करना, ऊर्जा के उपयोग को 49% तक कम करना, प्रति वर्ष 8256000 m3 की जल निकासी को बचाना साथ ही शून्य अपशिष्ट निर्वहन प्राप्त करना।

तमिलनाडु का नमक्कल ज़िला जल सुरक्षित बना

  • तमिलनाडु के नमक्कल ज़िले ने जल की कमी को दूर करने और साथ ही इसे जल सुरक्षित बनाने के लिये वर्ष 2022 में विभिन्न जल संरक्षण और प्रबंधन पहलें लागू की।
  • ज़िले ने वर्षा जल को संग्रहित करने तथा भूजल स्तर को पुनः भरने के लिये छत संग्रह प्रणाली, रिसाव टैंक, चेक बाँध, खेत तालाब, पुनर्भरण शाफ्ट और कृत्रिम पुनर्भरण संरचनाओं का निर्माण किया।
  • ज़िले ने जलाशयों के किनारे से अतिक्रमण भी हटा दिया, 49 टैंकों और 1400 किलोमीटर लंबी छोटी नदियों तथा बड़ी नदियों का कायाकल्प किया गया, साथ ही निकास प्रणाली नेटवर्क बनाया और  निकास प्रणाली लाइनों को साफ किया गया।
  • ज़िले ने जल आपूर्ति नेटवर्क की निगरानी और नियंत्रण, लीक का पता लगाने,  प्रणाली के हानि को कम करने तथा जल वितरण को अनुकूलित करने के लिये डेटा अधिग्रहण प्रणालियों का उपयोग किया। 
  • इन हस्तक्षेपों के परिणामस्वरूप, नमक्कल भू-जल उपलब्धता के मामले में भारत का दूसरा सबसे अच्छा ज़िला बन गया, साथ ही वर्ष 2022 में जल संरक्षण और प्रबंधन के लिये केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की वार्षिक रैंकिंग में दूसरा स्थान प्राप्त किया।

नागपुर में ताप विद्युत संयंत्र में उपचारित जल का पुन: उपयोग

  • वर्ष 2015 में महाजेनको तथा नागपुर नगर निगम (NMC) ने नागपुर में पानी की कमी के कारण अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग परियोजना लागू की, क्योंकि शहर में केवल 100 मिलियन लीटर की क्षमता के साथ प्रतिदिन 425 मिलियन लीटर अपशिष्ट जल उत्पन्न होता था।
  • परियोजना का उद्देश्य इस मुद्दे का समाधान करना तथा जल स्रोतों में विविधता लाते हुए थर्मल पावर प्लांट के लिये पानी की आपूर्ति बढ़ाना है।
  • इसमें एक कच्चा अपशिष्ट जल सेवन सुविधा, माध्यमिक और तृतीयक उपचार के साथ एक अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र, बिजली संयंत्र के लिये 16.2 किमी लंबी पाइपलाइन और बिजली संयंत्र में एक दिवसीय जलाशय शामिल था।
  • महाजेनको ने कच्चे अपशिष्ट जल के लिये NMC को प्रति घन मीटर 2.03 रुपए का भुगतान किया।
  • परिणामस्वरूप, नागपुर अपने 90% से अधिक अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग करने वाला पहला भारतीय शहर बन गया, जिससे जल परिवहन लागत में कमी और बिजली संयंत्र के लिये सुसंगत, लागत प्रभावी, उच्च गुणवत्ता वाले उपचारित अपशिष्ट जल का लाभ प्राप्त हुआ।

  अपशिष्ट जल उपचार तथा पुन: उपयोग दृष्टिकोण के लाभ:

  • अलवणीकरण के साथ संयोजन में हाइड्रोपोनिक्स ताज़े जल की कम खपत के साथ फसल उगाने का कुशल तरीका है।
  • कपड़ा उद्योगों में जल के तार्किक उपयोग के परिणामस्वरूप भारी मात्रा में जल एवं ऊर्जा की बचत होती है।
  • अपशिष्ट जल का तृतीयक उपचार एवं खनन कार्यों में इसका पुन: उपयोग वित्तीय और पर्यावरण की दृष्टि से लाभकारी मॉडल प्रस्तुत करता है।
  •  थर्मल पावर प्लांट में भाप उत्पन्न करने के लिये तृतीयक उपचारित जल के पुन: उपयोग का नागपुर मॉडल इस बात का उत्कृष्ट प्रदर्शन है कि कैसे चक्रीय अर्थव्यवस्था के परिणामस्वरूप मीठे जल की निकासी की मात्रा कम हो सकती है। इस मॉडल को दूसरे शहर भी अपना सकते हैं.
  • समुदाय-संचालित पहलों को बेहतर ढंग से बनाए रखा जाता है साथ ही संसाधन प्रबंधन के मामले में दीर्घकालिकता प्रदर्शित की जाती है।
  • बड़े शहरों की जल आपूर्ति प्रणालियों में, व्यापक निगरानी और वास्तविक समय डेटा खरीद जल संसाधनों के नियंत्रण, निर्णय समर्थन और टिकाऊ उपयोग को सुनिश्चित किया जाता है।

जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन की कुछ सर्वोत्तम पद्धतियाँ: 

जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन (CRWM ): 

  • CRWM एक दृष्टिकोण है जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन और अन्य अनिश्चितताओं के प्रभावों के प्रति जल प्रणालियों की लचीलापन बढ़ाना है।
  • CRWM में जल संसाधनों की मांग और आपूर्ति का प्रबंधन करने के साथ-साथ जल उपयोगकर्ताओं और प्रबंधकों की अनुकूली क्षमता को बढ़ाना शामिल है। CRWM जल प्रबंधन को सतत् विकास के अन्य पहलुओं, जैसे आपदा जोखिम में कमी, जैव विविधता संरक्षण और सामाजिक समानता के साथ भी एकीकृत करता है।

कोलकाता में बाढ़ पूर्वानुमान और पूर्व चेतावनी प्रणाली  

  • परिचय: कोलकाता नगर निगम (KMC) ने शहर के बाढ़ अनुकूलन में सुधार के लिये एशियाई विकास बैंक (ADB) की सहायता से वर्ष 2018 में बाढ़ पूर्वानुमान और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (FFEWS) लागू की।
  • पृष्ठभूमि: कोलकाता में बार-बार बाढ़ आने का अत्यधिक खतरा है:
    • शहरीकरण की चुनौतियाँ जैसे जल निकायों का अतिक्रमण, अपर्याप्त जल निकासी प्रणालियाँ, अपर्याप्त ठोस अपशिष्ट प्रबंधन ज्वारीय चैनलों को अवरुद्ध करते हैं।
    • डेल्टाई स्थलाकृति और अत्यधिक वर्षा
    • बाढ़ संबंधी तैयारियों का अभाव
    •   बाढ़ पूर्वानुमान और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (FFEWS) भारत में ADB की सहायता से KMC द्वारा कार्यान्वित पहली व्यापक शहर स्तरीय प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली है।
  • उद्देश्य:  
    • शहर की बाढ़ प्रतिरोधक क्षमता में सुधार करना
    • बाढ़ जोखिम डेटा की निगरानी तथा प्रसार करना
  •  संबंधित पहल: 
    • FFEWS के तहत GIS प्लेटफॉर्म पर तापमान, वायु गुणवत्ता, जल की स्थिरता एवं अन्य जलवायु संबंधी डेटा की वास्तविक समय पर निगरानी हेतु 400 सेंसर नोड्स का उपयोग किया गया।
    • FFEWS के तहत संवेदनशील हॉटस्पॉट एवं वाणिज्यिक क्षेत्रों में बाढ़ तथा वायु गुणवत्ता के संबंध में वास्तविक समय पर जानकारी प्राप्त करने हेतु अल्ट्रासोनिक सेंसर और शॉपफ्रंट सेंसर का भी उपयोग किया गया।
    • FFEWS के द्वारा मोबाइल, रेडियो और टेलीविजन प्रसारणों के माध्यम से लोगों के बीच विभिन्न चेतावनियों को प्रसारित किया गया। 
  • परिणाम: FFEWS के द्वारा शहर के लगभग 4,800 हेक्टेयर क्षेत्र में बाढ़ की गहनता में कमी आने, भीड़ में कमीं आने, शहरी नियोजन में सुधार होने, आर्थिक नुकसान में कमी आने के साथ सामुदायिक स्तर पर बाढ़ संबंधी जागरूकता में सुधार हुआ है। 

मध्य टिस्ज़ा नदी बेसिन के कृषि क्षेत्रों में अस्थायी बाढ़ के जल का भंडारण

  • परिचय: हंगरी सरकार ने वर्ष 2009 में अस्थायी जलाशयों का उपयोग कर मध्य टिस्ज़ा नदी बेसिन के लिये बाढ़ सुरक्षा रणनीति लागू की।
  • पृष्ठभूमि: नदी मार्ग को सीधा करना तथा अन्य कारकों (कुछ नदी खंडों में तलछट संचय, वनों की कटाई, भूमि उपयोग परिवर्तन) की वजह से बाढ़ के जल स्तर में लगातार चरम स्तर की वृद्धि हुई।
    • वर्ष 1998-2001 की अवधि के दौरान टिस्ज़ा नदी पर चरम जल स्तर के साथ बाढ़ की चार गंभीर घटनाएँ हुई क्योंकि न तो बाँधों की ऊँचाई और न ही उनकी क्षमता पर्याप्त थी। एक बाढ़ की घटना में बाँध टूट गए तथा संरक्षित क्षेत्रों में बाढ़ आ गई।
  • हस्तक्षेप/मध्यवर्तन :  
    • छह अस्थायी जलाशयों का उपयोग सामान्य अवधि में कृषि उद्देश्यों के लिये किया जाता था तथा बाढ़ के दौरान इनका उपयोग अस्थायी जल प्रतिधारण के लिये किया जाता था।
    • वर्ष 2022 में टिस्ज़ा नदी के किनारे एक अतिरिक्त जल प्रतिधारण क्षेत्र बनाया गया था। जल प्रतिधारण क्षेत्रों का जीवनकाल 100 वर्ष से अधिक करने की योजना बनाई गई थी।
    • बाढ़ की घटनाओं के दौरान कृषि मृदा की क्षति तथा उपज के नुकसान के मामले में किसानों को पारिश्रमिक देने के लिये सरकार द्वारा आर्थिक मुआवज़े की एक व्यवस्था लागू की गई है।
    • चयनित रणनीति का लागत-लाभ विश्लेषण किया गया।
  • परिणाम: 
    • सामान्य परिस्थितियों में कृषि प्रयोजनों के लिये उपयोग किया जाने वाला क्षेत्र अंततः बाढ़ग्रस्त किया जाता है (जानबूझकर और नियंत्रित परिस्थितियों में) तथा इसका उपयोग आपातकालीन स्थिति में बाढ़ के पानी के प्रतिधारण के लिये किया जाता है।
    • इस प्रणाली ने 100 वर्ष अथवा उससे अधिक की वापसी समय वाली बाढ़ से निपटने के लिये बाँधों को पूरक बनाया।
    • अत्यधिक वर्षा की घटनाओं के दौरान बफरिंग की अनुमति दी गई तथा बाढ़ के जोखिम को कम करने के लिये लगातार लाभकारी प्रभाव के साथ बाढ़ की लहर के प्रसार को कम किया गया।
    • लागत लाभ विश्लेषण ने जोखिम कम करने की दक्षता और अपेक्षाकृत कम प्रारंभिक निवेश लागत के मध्य एक समझौता प्रस्तुत किया।

सिहलानज़िमवेलो स्ट्रीम क्लीनिंग प्रोजेक्ट (दक्षिण अफ्रीका)

  • सिहलानज़िमवेलो स्ट्रीम क्लीनिंग प्रोजेक्ट वर्ष 2011 में दक्षिण अफ्रीका के डरबन में इथेक्विनी (eThekwini) नगर पालिका द्वारा उम्हलांगाने नदी जलग्रहण क्षेत्र में बाढ़ तथा तूफानी जल अवरोधों का प्रबंधन करने के लिये एक पहल है।
    • परियोजना का उद्देश्य समुदायों को बाढ़ प्रबंधन तथा पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में शिक्षित करना भी है।
  • पृष्ठभूमि: ईथेक्विनी से जुड़ा समुद्र तट बाढ़ और कटाव के प्रति संवेदनशील है क्योंकि पहले के समय में बनाई गई पुलियों में तूफान की घटनाओं के दौरान नदियों द्वारा लाए जाने वाले मलबे को ध्यान में नहीं रखा गया था।
    • ये धाराएँ उच्च घनत्व, कम आय वाली बस्तियों में स्थित हैं जहाँ पानी की गुणवत्ता निम्न है। इससे मानव स्वास्थ्य जोखिम तथा बाढ़ संबंधी प्रभाव उत्पन्न होते हैं।
    • विदेशी और प्रवेशी वनस्पति प्रजातियोँ तथा ठोस अपशिष्ट के संचय से नदियों में गाद की मात्रा बढ़ गई, जिससे तूफान के जल में रुकावटें पैदा हुई।
  • परिणाम:  
    • मनोरंजन के लिये स्वच्छ सार्वजनिक स्थानों का निर्माण करते हुए, सिहलानज़िमवेलो ने अपना दायरा पहुँच कि.मी से बढ़ाकर 525 कि.मी तक कर लिया।
    • शहर में सड़क पुलियों तथा बुनियादी ढाँचे को होने वाले नुकसान को रोककर लाखों रैंड की बचत करते हुए लगभग 800 नौकरियाँ सृजित की गईं।
    • रखरखाव योजना ने सिहलानज़िमवेलो स्ट्रीम क्लीनिंग प्रोजेक्ट के तहत क्वामाशू (KwaMashu) में ठोस अपशिष्ट तथा विदेशी वनस्पति को हटा दिया।

मेट्रोपोलिटन क्षेत्र बाहरी भूमिगत डिस्चार्ज चैनल (MAOUDC)  

  • परिचय: जापान ने मानसून के दौरान टोक्यो में गंभीर बाढ़ को रोकने के लिये वर्ष 2005 में मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र बाहरी भूमिगत डिस्चार्ज चैनल (Metropolitan Area Outer Underground Discharge Channel- MAOUDC) नामक एक भूमिगत बाढ़ रक्षा प्रणाली की शुरुआत की। यह प्रणाली बाढ़ के खतरे और शहर पर इसके प्रभाव को कम करने पर केंद्रित है।
  • संबंधित पहल:
    • भूमिगत सुरंगें बनाना, जो बाढ़ के जल को मोड़ने और प्रबंधित करने का कार्य करती हैं।
    • इस प्रणाली में भूमिगत सुरंगें, पंप और टैंक शामिल हैं जो नदियों से अतिरिक्त जल को इकट्ठा तथा संग्रहीत कर टोक्यो खाड़ी की ओर ले जाते हैं।
  • परिणाम:
    • अत्यधिक वर्षा के दौरान बाढ़ के जल को सफलतापूर्वक संग्रहीत किया जाता है जिससे शहर के चारों ओर जल जमाव का खतरा कम हो जाता है।
    • यह प्रणाली स्थापित करने से पहले होने वाले नुकसान की तुलना में बाढ़ से होने वाली क्षति को कम (आधा) किया गया है।
    • निष्क्रियता के दौरान आपदा प्रबंधन के महत्त्व के बारे में जागरूकता के प्रसार के लिये यह सुरंगें, पर्यटकों और आगंतुकों के लिये खुली रहती हैं। 

जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन दृष्टिकोण के लाभ 

  • संपूर्ण भारत में बढ़ती बाढ़ की घटनाओं को देखते हुए स्थायी बाढ़ सुरक्षा पहल की आवश्यकता है।
  • हंगरी ने बाढ़ सुरक्षा के लिये एक लागत प्रभावी अभ्यास प्रारंभ किया जिसमें कृषि भूमि का उपयोग बाढ़ के दौरान जल हेतु अस्थायी जलाशय के रूप में किया जाता है।
  • जापान में प्रचलित भूमिगत सुरंगों का निर्माण बाढ़ के जल को मोड़ने और प्रबंधित करने का एक अभिनव उपाय है।
  • भंडारण में संग्रहीत जल का उपयोग घरेलू आपूर्ति के लिये किया जा सकता है अथवा नदी का जल कम होने पर वापस नदी में प्रवाहित किया जा सकता है।
  • कोलकाता में लागू बाढ़ पूर्वानुमान और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (FFEWS) मॉडल को अन्य शहरों में लागू किया जा सकता है।
  • स्मार्ट तकनीक के माध्यम से वास्तविक समय की निगरानी शहर की बाढ़ प्रतिरोधक क्षमता के निर्माण में भी प्रभावी है।