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बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का सर्वेक्षण
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने राज्य के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा और भूस्खलन के मद्देनज़र अधिकारियों को तत्काल "संवेदनशील" गाँवों की पहचान करने और प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करने का निर्देश दिया।
मुख्य बिंदु
- अधिकारियों के मुताबिक, पौड़ी गढ़वाल के तोली, बोध केदार और टिहरी गढ़वाल के जखाना तथा तिनगढ़ में बादल फटने से भारी तबाही हुई।
- आपदा प्रभावित क्षेत्र में विद्युत एवं पेयजल व्यवस्था सुचारु करने के लिये कार्यवाही की जा रही है तथा पशु हानि के लिये पशुधन पालकों को 57,500 रुपए की धनराशि भी दी गई है।
बादल फटना
- परिचय:
- बादल फटना एक छोटे से क्षेत्र में अल्पकालिक, तीव्र वर्षा की घटनाएँ हैं
- यह एक मौसमी घटना है जिसमें लगभग 20-30 वर्ग किलोमीटर के भौगोलिक क्षेत्र में 100 मि.मी./घंटा से अधिक अप्रत्याशित वर्षा होती है
- भारतीय उपमहाद्वीप में यह आमतौर पर तब होता है जब मानसून का बादल बंगाल की खाड़ी या अरब सागर से उत्तर की ओर मैदानी इलाकों से होते हुए हिमालय की ओर बढ़ता है और कभी-कभी प्रति घंटे 75 मिलीमीटर वर्षा लाता है।
- घटना:
- सापेक्ष आर्द्रता और बादल आवरण अधिकतम स्तर पर होता है, तापमान कम होता है तथा हवाएँ धीमी होती हैं, जिसके कारण बहुत अधिक मात्रा में बादल बहुत तेज़ी से संघनित हो सकते हैं एवं बादल फटने का कारण बन सकते हैं
- जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, वातावरण में अधिक से अधिक नमी बनी रहती है और यह नमी बहुत कम समय के लिये बहुत तीव्र वर्षा के रूप में नीचे आती है, जो शायद आधे घंटे या एक घंटे की होती है, जिसके परिणामस्वरूप पहाड़ी क्षेत्रों एवं शहरों में बाढ़ आती है।
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घरेलू गौरैया पर अध्ययन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) द्वारा किये गए एक अध्ययन में भारतीय हिमालय के उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में घरेलू गौरैया और ग्रामीणों के बीच अनोखे बंधन पर ज़ोर दिया गया है।
मुख्य बिंदु
- अध्ययन में पाया गया कि उत्तराखंड में घरेलू गौरैया की आबादी स्थानीय लोगों के साथ प्रवास करती है, जब स्थानीय लोग शीतकालीन गाँवों में चले जाते हैं तो ये गौरैयाएँ अपने ग्रीष्म ऋतु के वीरान गाँवों को छोड़ देती हैं तथा जब ग्रामीण गर्मियों में वापस आते हैं तो ये गौरैयाएँ भी वापस लौट आती हैं।
- अध्ययन का उद्देश्य इन उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में घरेलू गौरैया की ऊँचाई संबंधी गतिविधियों और ठंडी जलवायु परिस्थितियों के प्रति उनके अनुकूलन को समझना है।
- उच्च ऊँचाई की स्थितियों के प्रति घरेलू गौरैया का अनुकूलन:
- उत्तराखंड में गौरैया की आबादी 3,500 मीटर की ऊँचाई पर पाई जाती है, जो कि एक अनोखी बात है।
- अध्ययन में पाया गया कि ऊँचाई वाले गाँवों की घरेलू गौरैया, कम ऊँचाई वाले गाँवों की गौरैयाओं की तुलना में ठंडी जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल होने के कारण शरीर के आकार में बड़ी होती हैं।
- संरक्षण प्रयास और जागरूकता:
- स्थानीय लोगों को गौरैया संरक्षण के बारे में जागरूक करने के लिये पुरोला, रुद्रपुर और हरिद्वार सहित कई स्थानों पर कृत्रिम घोंसले वितरित किये गए हैं।
- यह अध्ययन स्थानीय लोगों में घरेलू गौरैया संरक्षण के महत्त्व के बारे में व्यापक जागरूकता उत्पन्न कर रहा है और कई लोग सक्रिय रूप से इस प्रयास में लगे हुए हैं, कृत्रिम घोंसले की निगरानी कर रहे हैं तथा डेटा संग्रह में योगदान दे रहे हैं।
घरेलू गौरैया
- वैज्ञानिक नाम- पास्सर डोमेस्टिकस (Passer Domesticus)
- संरक्षण स्थिति- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature- IUCN) की रेड लिस्ट में सबसे कम चिंताजनक।
- आवास और वितरण:
- घरेलू गौरैया दुनिया भर में विस्तृत हुई है, अंटार्कटिका, चीन और जापान को छोड़कर हर महाद्वीप पर पाई जाती है। यह यूरेशिया एवं उत्तरी अफ्रीका का मूल निवासी है।
- यह बिहार और दिल्ली का राज्य पक्षी है।
- यह मानव बस्तियों के करीब रहने के लिये जाने जाते है और इसलिये यह शहरों में सबसे अधिक पाई जाने वाली पक्षी प्रजातियों में से एक है।
- गौरैया की आबादी में गिरावट के कुछ कारण इस प्रकार हैं:
- हमारे घरों की प्रतिकूल वास्तुकला।
- फसलों में रासायनिक खादों का प्रयोग।
- ध्वनि प्रदूषण।
- वाहनों से निकलने वाला धुआँ।
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