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उत्तराखंड स्टेट पी.सी.एस.

  • 28 Feb 2024
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उत्तराखंड ने 89,000 करोड़ रुपए का बजट पेश किया

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तराखंड सरकार ने विधानसभा में वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिये अपना बजट पेश किया।

  • वर्ष 2022-23 में उत्तराखंड की आर्थिक विकास दर राष्ट्रीय औसत को पार करते हुए 7.63% रही।

मुख्य बिंदु:

  • गरीबी को दूर करने, आपदा प्रबंधन, बुनियादी ढाँचे के विकास और हवाई कनेक्टिविटी में सुधार पर ज़ोर देने वाली कई पहलों के लिये 89,000 करोड़ रुपए का आवंटन।
  • बजट में विकसित भारत के "चार स्तंभों" के प्रति समर्पण पर ज़ोर दिया गया- गरीबों का कल्याण, युवा सशक्तीकरण, कृषि पहलऔर महिला सशक्तीकरण।
  • प्रत्येक स्तंभ के लिये किये गए प्रावधान हैं:
    • गरीबों के कल्याण के लिये 5,658 करोड़ रुपए रखे गए हैं, जिसमें आवास पहल, खाद्यान्न वितरण और मुफ्त गैस रिफिल योजनाएँ शामिल हैं।
    • बजट में युवा कल्याण, तकनीकी एवं उच्च शिक्षा और राष्ट्रीय खेलों के आयोजन के लिये 1,679 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं।
      • अल्पसंख्यक लड़कियों की योग्यता को बढ़ावा देने और रोज़गार के अवसरों को बढ़ावा देने वाली योजनाओं के लिये भी प्रावधान किये गए हैं।
    • सहकारी पहल, सेब की खेती, किसान पेंशन और मत्स्यन विकास सहित विभिन्न किसान-केंद्रित योजनाओं के लिये 2,415 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं।
    • लिंग-विशिष्ट पहलों के लिये बजट में लगभग 14,538 करोड़ रुपए अलग रखे गए हैं।

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लैंगिक समानता की कानूनी जीत

चर्चा में क्यों?

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि गर्भावस्था के आधार पर महिलाओं को रोज़गार देने से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसने गर्भवती महिलाओं को सरकारी पदों के लिये पात्र होने से रोकने वाले नियम को पलट दिया।

मुख्य बिंदु:

  • यह ऐतिहासिक फैसला मिशा उपाध्याय के मामले से प्रेरित था, जिन्हें गर्भावस्था के कारण नर्सिंग अधिकारी का पद देने से इंकार कर दिया गया था।
  • उच्च न्यायालय ने 12 सप्ताह या उससे अधिक की गर्भवती महिलाओं को रोज़गार के लिये "अस्थायी रूप से अयोग्य" बताने वाले राज्य सरकार के विनियमन को अमान्य कर दिया।
    • इसमें फिटनेस प्रमाण-पत्र की आवश्यकता के साथ-साथ प्रसव के छह सप्ताह बाद एक पंजीकृत चिकित्सक द्वारा मेडिकल जाँच को भी अनिवार्य किया गया है।
  • न्यायालय ने राज्य की कार्रवाई को "महिलाओं के खिलाफ अत्यधिक भेदभावपूर्ण" माना तथा संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 के उल्लंघन पर ज़ोर दिया।
    • अनुच्छेद 14 में कहा गया है कि भारत के क्षेत्र के भीतर, राज्य किसी भी व्यक्ति को धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर कानून के समक्ष समानता या कानूनों के तहत समान सुरक्षा से वंचित नहीं कर सकता है।
    • अनुच्छेद 16 में कहा गया है कि राज्य के तहत रोज़गार के मामलों में सभी नागरिकों के लिये अवसर की समानता होगी।
    • अनुच्छेद 21 कहता है कि किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।
  • यह ऐसे कार्यस्थलों को बढ़ावा देने के महत्त्व को रेखांकित करता है जो महिलाओं के प्रजनन विकल्पों का सम्मान करते हैं और उन्हें समायोजित करते हैं, जो सतत् विकास लक्ष्य 5 सहित लैंगिक समानता की दिशा में व्यापक वैश्विक प्रयासों के साथ संरेखित होते हैं।


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