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हरियाणा ने त्रिभाषा फार्मूला अपनाया
चर्चा में क्यों?
हरियाणा सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के अनुसार, भिवानी विद्यालय शिक्षा बोर्ड के अंतर्गत आने वाले स्कूलों में त्रिभाषा फार्मूला लागू किया है।
मुख्य बिंदु:
- कक्षा 9वीं और 10वीं के विद्यार्थियों को अंग्रेज़ी और हिंदी भाषाएँ अनिवार्य रूप से पढ़नी होंगी, जबकि तीसरी भाषा के लिये उन्हें तीन भाषाओं में से एक अर्थात संस्कृत, पंजाबी या उर्दू चुनने का विकल्प होगा।
- अन्य अनिवार्य विषयों में गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान शामिल हैं।
- इन विद्यार्थियों को व्यावसायिक विषयों, शारीरिक शिक्षा, चित्रकला, संगीत आदि में से एक विषय चुनने का विकल्प होगा।
- आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया है कि नया विषय संयोजन शैक्षणिक सत्र 2025-26 से कक्षा IX में लागू होगा और तत्पश्चात शैक्षणिक सत्र 2026-27 से कक्षा IX और X दोनों के लिये लागू होगा।
- पंजाबी शिक्षकों और भाषा संवर्द्धन सोसायटी ने इस निर्णय का स्वागत किया।
- हरियाणा NEP 2020 के तहत त्रिभाषा फार्मूला लागू करने वाला पहला राज्य है।
- अतिरिक्त सुधारों की मांग
- पंजाबी अध्यापक लंबे समय से पदोन्नति का इंतजार कर रहे हैं और उन्होंने आग्रह किया कि उन्हें योग्यता के आधार पर पदोन्नति दी जाए।
- उन्होंने सरकार से हरियाणा बोर्ड के स्कूलों में कक्षा 9 से 12 तक CBSE पंजाबी पाठ्यक्रम लागू करने का आग्रह किया।
- पंजाबी भाषी ज़िलों (पंचकूला, अंबाला, कुरुक्षेत्र, यमुनानगर, फतेहाबाद, सिरसा, करनाल, कैथल) में पंजाबी शिक्षकों की नियुक्ति।
- इन ज़िलों के लिये शिक्षक स्थानांतरण अभियान में प्राथमिकता।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 के अनुरूप इन ज़िलों में कक्षा III से पंजाबी को एक विषय के रूप में शुरू किया जाएगा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020
- परिचय:
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 का उद्देश्य भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए 21वीं सदी के लक्ष्यों और सतत विकास लक्ष्य 4 (SDG 4) को पूरा करने के लिये शिक्षा प्रणाली में सुधार करके भारत की उभरती विकास आवश्यकताओं को पूरा करना है।
- इसने राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 का स्थान लिया, जिसे वर्ष 1992 में संशोधित किया गया था।
- मुख्य विशेषताएँ:
- सार्वभौमिक पहुँच: इसका उद्देश्य पूर्वस्कूल से लेकर माध्यमिक स्तर तक शिक्षा तक पहुँच प्रदान करना है।
- प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा: 10+2 से 5+3+3+4 प्रणाली में परिवर्तन, जिसमें प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा पर ज़ोर देते हुए 3-6 वर्ष की आयु के बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा।
- बहुभाषावाद: कक्षा 5 तक शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा, जिसमें संस्कृत और अन्य भाषाओं के लिये विकल्प भी शामिल होंगे। भारतीय सांकेतिक भाषा को मानकीकृत किया जाएगा।
- समावेशी शिक्षा: सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों, विकलांग बच्चों और "बाल भवनों" की स्थापना के लिये समर्थन पर ज़ोर दिया जाता है।
- सकल नामांकन अनुपात वृद्धि: वर्ष 2035 तक सकल नामांकन अनुपात को 26.3% से बढ़ाकर 50% करने का लक्ष्य, 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ना।