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उत्तराखंड में देहरादून हवाई अड्डे का अंतर्राष्ट्रीय विस्तार शुरू
चर्चा में क्यों?
इनबाउंड पर्यटन को बढ़ावा देने के एक महत्त्वपूर्ण प्रयास में, उत्तराखंड सरकार देहरादून को एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे में बदलने पर कार्य कर रही है।
मुख्य बिंदु:
- राज्य सरकार ने देहरादून के जॉली ग्रांट हवाई अड्डे और काठमांडू के बीच सब्सिडी वाली नॉन-स्टॉप उड़ानों के लिये एयरलाइंस से प्रस्ताव मांगे हैं।
- रिपोर्टों से पता चलता है कि केंद्र सरकार भारत की वैश्विक पर्यटन स्थल बनने की क्षमता का लाभ उठाने की इस पहल का समर्थन करती है।
- वर्ष 2019 में विदेशी पर्यटक आगमन (Foreign Tourist Arrival-FTA) कुल लगभग 1.1 करोड़ था। वर्ष 2022 में यह संख्या घटकर 62 लाख हो गई लेकिन वर्ष 2023 में यह बढ़कर 92.4 लाख हो गई।
- उद्योग अंतर्राष्ट्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ाकर, नए पर्यटन मार्गों को शुरू करने और वीज़ा प्रक्रियाओं को सरल बनाकर वर्ष 2019 FTA स्तरों को पार करने की रणनीतियों पर चर्चा कर रहा है।
- इंडिगो और टाटा ग्रुप एयर इंडिया जैसी प्रमुख एयरलाइनों के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण केंद्रों के साथ भारत को एक प्रमुख वैश्विक विमानन केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिये महत्त्वाकांक्षी रणनीतियाँ चल रही हैं।
- नेपाल और उत्तराखंड की राजधानी शहरों को जोड़कर, यह प्रयास न केवल ऐतिहासिक संबंधों को मज़बूत करता है बल्कि पर्यटन, वाणिज्य तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान हेतु नए रास्ते भी खोलता है।
- भारत ने वर्ष 2014 के बाद से हवाई अड्डों की संख्या दोगुनी कर दी है और उनमें से कई को कम-से-कम नज़दीकी जलग्रहण देशों से सीधी उड़ानें प्राप्त करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त होगा।
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उत्तराखंड की मानसखंड कॉरिडोर यात्रा
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड पर्यटन विभाग भारतीय रेलवे के सहयोग से कुमाऊँ क्षेत्र के प्राचीन मंदिरों को लोकप्रिय बनाने के लिये 'मानसखंड कॉरिडोर यात्रा' शुरू करेगा।
मुख्य बिंदु:
- तीर्थयात्रा के लिये यात्रियों को पुणे से पिथौरागढ़ ज़िले के टनकपुर तक ले जाने के लिये एक समर्पित ट्रेन सेवा की व्यवस्था की गई है।
- ट्रेन दो बैचों में 600 से अधिक तीर्थयात्रियों को 'मानसखंड' के प्रसिद्ध मंदिरों तक ले जाएगी, जो प्राचीन हिंदू ग्रंथों में उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र को संदर्भित करने के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला वाक्यांश है।
- टूर पैकेज के तहत श्रद्धालुओं को टनकपुर, चंपावत, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा के मंदिरों एवं अन्य धार्मिक स्थानों पर ले जाया जाएगा तथा इन मंदिरों के पौराणिक महत्त्व के बारे में जानकारी दी जाएगी।
- चंपावत में बालेश्वर, मनेश्वर एवं मायावती मंदिरों के दर्शन, हाट कालिका, पिथौरागढ में पाताल भुवनेश्वर मंदिर, चितई में जागेश्वर तथा गोलू देवता मंदिर, नंदा देवी, कसार देवी, अल्मोडा में कटारमल, उधम सिंह नगर में नानकमत्ता साहिब गुरुद्वारा और नैना देवी मंदिर के दर्शन नैनीताल में तीर्थयात्रियों के लिये यात्रा कार्यक्रम का हिस्सा हैं।
कुमाऊँ क्षेत्र
- इसमें राज्य के छह ज़िले शामिल हैं: अल्मोडा, बागेश्वर, चंपावत, नैनीताल, पिथोरागढ़ और उधम सिंह नगर।
- ऐतिहासिक रूप से मानसखंड और फिर कुर्मांचल के रूप में जाना जाने वाला कुमाऊँ क्षेत्र इतिहास के दौरान कई हिंदू राजवंशों द्वारा शासित रहा है।
- कुमाऊँ मंडल की स्थापना वर्ष 1816 में हुई थी, जब अंग्रेज़ों ने गोरखाओं से इस क्षेत्र को पुनः प्राप्त किया था, जिन्होंने वर्ष 1790 में कुमाऊँ के तत्कालीन साम्राज्य पर कब्ज़ा कर लिया था।
- स्वतंत्र भारत में राज्य को उत्तर प्रदेश कहा जाता था। वर्ष 2000 में, कुमाऊँ सहित उत्तर प्रदेश से अलग होकर नया राज्य उत्तराखंड बनाया गया।
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राष्ट्रपति उत्तराखंड दौरे पर
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू दो दिवसीय उत्तराखंड की यात्रा पर रहेंगी।
मुख्य बिंदु:
- उनकी यात्रा के दौरान:
- राष्ट्रपति ऋषिकेश में गंगा आरती और एम्स के चौथे दीक्षांत समारोह में शामिल होंगी।
- वह इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी, देहरादून में भारतीय वन सेवा (2022 बैच) के अधिकारी प्रशिक्षुओं के दीक्षांत समारोह की शोभा बढ़ाएंगी।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS)
- इसकी स्थापना वर्ष 1956 में संसद के एक अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महत्त्व के एक संस्थान के रूप में की गई थी, जिसका उद्देश्य इसकी सभी शाखाओं में स्नातक और स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा में शिक्षण के पैटर्न विकसित करना था ताकि भारत में चिकित्सा शिक्षा के उच्च मानक को प्रदर्शित किया जा सके।
- इसका उद्देश्य स्वास्थ्य गतिविधि की सभी महत्त्वपूर्ण शाखाओं में कर्मियों के प्रशिक्षण के लिये उच्चतम क्रम की शैक्षिक सुविधाओं को एक स्थान पर लाना और स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी
- यह भारत के पर्यावरण और वन मंत्रालय के तहत एक वन सेवा प्रशिक्षण संस्थान है, जो मूल रूप से भारतीय वन कॉलेज के रूप में था, जिसे वरिष्ठ वन अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिये वर्ष 1938 में स्थापित किया गया था।
- यह वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून के नये वन परिसर में स्थित है।
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चिपको आंदोलन के 50 वर्ष
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वर्ष 1973 की शुरुआत में उत्तराखंड में शुरू हुआ चिपको आंदोलन अपनी 50वीं वर्षगाँठ मना रहा है।
मुख्य बिंदु:
- यह एक अहिंसक आंदोलन था जो वर्ष 1973 में उत्तर प्रदेश के चमोली ज़िले (अब उत्तराखंड) में शुरू हुआ था।
- आंदोलन का नाम 'चिपको' 'आलिंगन' शब्द से आया है, क्योंकि ग्रामीणों ने पेड़ों को गले लगाया और उन्हें काटने से बचाने के लिये घेर लिया
- इस आंदोलन का नाम 'चिपको' 'वृक्षों के आलिंगन' के कारण पड़ा, क्योंकि आंदोलन के दौरान ग्रामीणों द्वारा पेड़ों को गले लगाया गया तथा वृक्षों को कटने से बचाने के लिये उनके चारों और मानवीय घेरा बनाया गया।
- जंगलों को संरक्षित करने हेतु महिलाओं के सामूहिक एकत्रीकरण के लिये इस आंदोलन को सबसे ज़्यादा याद किया जाता है। इसके अलावा इससे समाज में अपनी स्थिति के बारे में उनके दृष्टिकोण में भी बदलाव आया।
- इसकी सबसे बड़ी जीत लोगों को जंगलों पर उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना था और कैसे ज़मीनी स्तर की सक्रियता पारिस्थितिकी तथा साझा प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकती है।
- इसकी सबसे बड़ी जीत लोगों के वनों पर अधिकारों के बारे में जागरूक करना तथा यह समझाना था कैसे ज़मीनी स्तर पर सक्रियता पारिस्थितिकी और साझा प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकती है।
- इसने वर्ष 1981 में 30 डिग्री ढलान से ऊपर और 1,000 msl (माध्य समुद्र तल-msl) से ऊपर के वृक्षों की व्यावसायिक कटाई पर प्रतिबंध को प्रोत्साहित किया।
भारत में प्रमुख पर्यावरण आंदोलन
नाम |
वर्ष |
स्थान |
प्रमुख |
विवरण |
बिशनोई आंदोलन |
1700 |
राजस्थान का खेजड़ी, मारवाड़ क्षेत्र |
अमृता देवी |
|
चिपको आंदोलन |
1973 |
उत्तराखंड |
सुंदरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट |
खेजड़ी (जोधपुर) राजस्थान में वर्ष 1730 के आस-पास अमृता देवी विश्नोई के नेतृत्व में लोगों ने राजा के आदेश के विपरीत पेड़ों से चिपककर उनको बचाने के लिये आंदोलन चलाया था। इसी आंदोलन ने आज़ादी के बाद हुए चिपको आंदोलन को प्रेरित किया, जिसमें चमोली, उत्तराखंड में गौरा देवी सहित कई महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर उन्हें कटने से बचाया था। |
साईलेंट वैली प्रोजेक्ट |
1978 |
केरल में कुंतीपुझा नदी |
केरल शास्त्र साहित्य परिषद सुगाथाकुमारी |
केरल में साइलेंट वैली मूवमेंट कुद्रेमुख परियोजना के तहत कुंतीपुझा नदी पर एक पनबिजली बांँध के निर्माण के विरुद्ध था। |
जंगल बचाओ आंदोलन |
1982 |
बिहार का सिंहभूम ज़िला |
सिंहभूम की जनजातियाँ |
यह आंदोलन प्राकृतिक साल वन को सागौन से बदलने के सरकार के फैसले के खिलाफ था। |
अप्पिको आंदोलन |
1983 |
कर्नाटक |
लक्ष्मी नरसिम्हा |
प्राकृतिक पेड़ों की कटाई को रोकने के लिये। सागौन और नीलगिरि के पेड़ों के व्यावसायिक वानिकी के खिलाफ। |
टिहरी बाँध |
1980-90 |
उत्तराखंड में टिहरी पर भागीरथी और भिलंगना नदी |
टिहरी बाँध विरोधी संघर्ष समिति, सुंदरलाल बहुगुणा और वीरा दत्त सकलानी |
|
नर्मदा बचाओ आंदोलन |
1980 से वर्तमान तक |
गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र |
मेधा पाटकर, अरुंधती राय, सुंदरलाल बहुगुणा, बाबा आम्टे |
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