उत्तराखंड में जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता लागू | उत्तराखंड | 21 Dec 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मुख्यमंत्री ने देहरादून में एक बैठक में घोषणा की कि जनवरी 2025 से पूरे उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू की जाएगी।
मुख्य बिंदु
- समान नागरिक संहिता:
- परिचय:
- समान नागरिक संहिता को संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के भाग के रूप में रेखांकित किया गया है, जिसमें कहा गया है कि सरकार को पूरे भारत में सभी नागरिकों के लिये समान नागरिक संहिता स्थापित करने का प्रयास करना चाहिये।
- हालाँकि, इसका कार्यान्वयन सरकार के विवेक पर छोड़ दिया गया है।
- ऐतिहासिक संदर्भ:
- अंग्रेज़ों ने भारत में एक समान आपराधिक कानून स्थापित किये, लेकिन उन्होंने पारिवारिक कानूनों को उनकी संवेदनशील प्रकृति के कारण मानकीकृत करने से परहेज़ किया।
- बहस के दौरान संविधान सभा ने समान नागरिक संहिता पर चर्चा की और मुस्लिम सदस्यों ने सामुदायिक व्यक्तिगत कानूनों पर इसके प्रभाव के संबंध में चिंता व्यक्त की तथा धार्मिक प्रथाओं के लिये सुरक्षा उपायों का प्रस्ताव रखा।
- दूसरी ओर के.एम. मुंशी, अल्लादी कृष्णस्वामी और बी.आर. अंबेडकर जैसे समर्थकों ने समानता को बढ़ावा देने के लिये समान नागरिक संहिता की वकालत की।
- मील का पत्थर उपलब्धि:
- उत्तराखंड स्वतंत्रता के बाद समान नागरिक संहिता लागू करने वाला भारत का पहला राज्य बन जाएगा।
- गोवा भारत का एकमात्र राज्य था जहाँ 1867 के पुर्तगाली नागरिक संहिता के अनुरूप समान नागरिक संहिता लागू थी।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय का UCC के प्रति दृष्टिकोण:
- मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम केस, 1985: न्यायालय ने खेद के साथ कहा कि “अनुच्छेद 44 एक मृत पत्र बन कर रह गया है” और इसके कार्यान्वयन की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
- सरला मुद्गल बनाम भारत संघ, 1995 और जॉन वल्लमट्टम बनाम भारत संघ, 2003: न्यायालय ने UCC को लागू करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
- शायरा बानो बनाम भारत संघ, 2017: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि तीन तलाक की प्रथा असंवैधानिक है और मुस्लिम महिलाओं की गरिमा और समानता का उल्लंघन करती है।
- इसमें यह भी सुझाव दिया गया कि संसद को मुस्लिम विवाह और तलाक को विनियमित करने के लिये कानून पारित करना चाहिये।
- जोस पाउलो कॉउटिन्हो बनाम मारिया लुइज़ा वेलेंटिना परेरा केस, 2019: न्यायालय ने गोवा की प्रशंसा एक “उज्ज्वल उदाहरण” के रूप में की, जहाँ “समान नागरिक संहिता सभी पर लागू होती है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, सिवाय कुछ सीमित अधिकारों की रक्षा के” और पूरे भारत में इसके कार्यान्वयन का आह्वान किया।