मियावाकी पद्धति | उत्तर प्रदेश | 18 Jan 2025
चर्चा में क्यों?
प्रयागराज नगर निगम ने शुद्ध वायु उपलब्ध कराने और स्वस्थ वातावरण को बढ़ावा देने के लिये प्रयागराज में कई स्थानों पर घने वन विकसित किये हैं।
- जापानी मियावाकी पद्धति का उपयोग करते हुए, निगम ने कई ऑक्सीजन बैंक स्थापित किये जो अब हरे-भरे वनों में बदल गए हैं।
मुख्य बिंदु
- परियोजना के लाभ:
- यह पहल औद्योगिक अपशिष्ट के प्रबंधन में सहायता करती है तथा धूल, गंदगी और दुर्गंध को कम करती है।
- इससे शहर की वायु गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार होगा तथा पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।
- मियावाकी वन वायु और जल प्रदूषण को कम करने, मृदा अपरदन को रोकने और जैव विविधता को बढ़ाने में सहायता करते हैं।
- पर्यावरणीय प्रभाव:
- ये वन गर्मियों के दौरान दिन और रात के तापमान के अंतर को कम करते हैं।
- वे जैव विविधता को बढ़ाते हैं, मृदा की उर्वरता में सुधार करते हैं और जानवरों और पक्षियों के लिये आवास बनाते हैं।
- इस पद्धति के माध्यम से विकसित बड़े वन तापमान को 4 से 7 डिग्री सेल्सियस तक कम कर देते हैं।
- मियावाकी जंगलों में प्रजातियों की विविधता:
- फल देने वाले वृक्ष: आम, महुआ, नीम, पीपल, इमली, आंवला और बेर।
- औषधीय और सजावटी पौधे: तुलसी, ब्राह्मी, हिबिस्कस, कदम्ब, बोगनवेलिया और जंगल जलेबी।
- अन्य प्रजातियाँ: अर्जुन, सागौन, शीशम, बाँस, कनेर (लाल और पीला), टेकोमा, कचनार, महोगनी, नींबू और सहजन (Drumstick )।
मियावाकी पद्धति
- परिचय:
- 1970 के दशक में जापानी वनस्पतिशास्त्री अकीरा मियावाकी द्वारा विकसित इस पद्धति से सीमित स्थानों में घने जंगल तैयार किये जाते हैं।
- इसे 'पॉट प्लांटेशन मेथड' के नाम से जाना जाता है, इसमें तेज़ी से विकास के लिये देशी प्रजातियों को एक दूसरे के निकट लगाया जाता है।
- मुख्य विशेषताएँ एवं लाभ:
- पौधे घने वृक्षारोपण वाले प्राकृतिक वनों की संरचना की अनुकरण करते हुए 10 गुना अधिक तेज़ी से विकसित होते हैं।
- मृदा की गुणवत्ता, जैव विविधता और कार्बन अवशोषण में सुधार होता है।
- शहरी क्षेत्रों में प्रदूषित और बंजर भूमि को हरित पारिस्थितिकी तंत्र में बदलने के लिये प्रभावी।
बिहार के पहले खेल विश्वविद्यालय को UGC से मान्यता प्राप्त हुई | बिहार | 18 Jan 2025
चर्चा में क्यों?
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने बिहार के पहले खेल विश्वविद्यालय को मान्यता दी है, जिसका उद्घाटन राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा राष्ट्रीय खेल दिवस 2024 पर नालंदा ज़िले के राजगीर में किया जाएगा।
मुख्य बिंदु
- UGC मान्यता:
- बिहार खेल विश्वविद्यालय, राजगीर को UGC अधिनियम, 1956 की धारा 2(f) के तहत UGC से मान्यता प्राप्त हुई है।
- यह मान्यता विश्वविद्यालय को शारीरिक शिक्षा और खेल विज्ञान में स्नातक और डिप्लोमा/पी.जी. डिप्लोमा कार्यक्रमों सहित शैक्षणिक पाठ्यक्रम प्रदान करने का अधिकार प्रदान करती है।
- शैक्षणिक कार्यक्रम और भविष्य की योजनाएँ:
- विश्वविद्यालय वर्ष 2025-2026 शैक्षणिक सत्र से विभिन्न शैक्षणिक कार्यक्रम शुरू करने की योजना बना रहा है।
- इन कार्यक्रमों में शामिल होंगे:
- खेल प्रशिक्षण में डिप्लोमा/पी.जी. डिप्लोमा (दो या तीन खेलों को कवर करना)।
- योग में डिप्लोमा/पी.जी. डिप्लोमा।
- चार वर्षीय शारीरिक शिक्षा स्नातक (राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद से मान्यता लंबित)।
- खेल परिसर और अतिरिक्त विकास:
- शिकायत निवारण तंत्र:
- UGC के दिशा-निर्देशों के अनुसार, UGC (छात्र शिकायत निवारण विनियमन, 2023) के अनुसार, विश्वविद्यालय द्वारा शैक्षणिक गतिविधियाँ शुरू करने के दो महीने के भीतर, छात्र शिकायतों के समाधान के लिये एक लोकपाल की नियुक्ति अनिवार्य है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) 28 दिसंबर, 1953 को अस्तित्व में आया और विश्वविद्यालय शिक्षा में शिक्षण, परीक्षा और अनुसंधान के मानकों के समन्वय, निर्धारण और रखरखाव के लिये 1956 में संसद के एक अधिनियम द्वारा भारत सरकार का एक वैधानिक संगठन बन गया।
- यह शिक्षा मंत्रालय के अधीन कार्य करता है, केंद्र सरकार UGC में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और दस अन्य सदस्यों की नियुक्ति करती है।
- यह नई दिल्ली के साथ-साथ अपने छह क्षेत्रीय कार्यालयों से कार्य करता है जो बेंगलुरु, भोपाल, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोलकाता और पुणे में स्थित हैं।
- यह फर्जी विश्वविद्यालयों, स्वायत्त कॉलेजों, डीम्ड विश्वविद्यालयों और दूरस्थ शिक्षा संस्थानों की मान्यता को भी नियंत्रित करता है।