मध्य प्रदेश Switch to English
स्वच्छता के प्रति जागरूकता
चर्चा में क्यों?
मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में एक स्वयं सहायता समूह की महिलाएँ घर-घर जाकर स्थानीय लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक कर रही हैं।
मुख्य बिंदु:
- नगर निगम ने क्षेत्र के घरों में स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिये स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को एक विशेष नौकरी की पेशकश की है, इस कार्य के लिये उन्हें ₹100 का भुगतान किया जाएगा।
- इस पहल के तहत वैभव लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएँ महाजनपेठ और शिकारपुरा जैसे इलाकों में घर-घर जाकर स्थानीय लोगों तक स्वच्छता से जुड़ी जानकारी पहुँचा रही हैं।
स्वयं सहायता समूह (SHG)
- ये उन लोगों के अनौपचारिक संगठन हैं जो अपनी जीवन स्थितियों को बेहतर बनाने के तरीके खोजने के लिये एकजुट होते हैं।
- इसे समान सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले और सामूहिक रूप से सामान्य उद्देश्य पूरा करने के इच्छुक लोगों के स्व-शासित, सहकर्मी नियंत्रित सूचना समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
- गाँवों को गरीबी, अशिक्षा, कौशल की कमी, औपचारिक ऋण की कमी आदि से संबंधित कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं से व्यक्तिगत स्तर पर नहीं निपटा जा सकता है और इसके लिये सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है।
- इस प्रकार SHG गरीबों और हाशिये पर रहने वाले लोगों के लिये बदलाव का माध्यम बन सकता है। स्व-रोज़गार और गरीबी उन्मूलन को प्रोत्साहित करने के लिये SHG "स्वयं सहायता" की धारणा पर निर्भर करता है।
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मध्य प्रदेश में मौसम विभाग ने जारी की चेतावनी
चर्चा में क्यों?
मध्य प्रदेश में मौसम विभाग ने 15 ज़िलों के लिये चेतावनी जारी की है। पिछले कुछ दिनों में राज्य के विभिन्न इलाकों में तूफान, बारिश और ओलावृष्टि हुई है।
मुख्य बिंदु:
- पश्चिमी विक्षोभ, चक्रवाती परिसंचरण और ट्रफ लाइन के कारण प्रदेश में एक मज़बूत सिस्टम सक्रिय है। आने वाले दिनों में दो पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता और बढ़ सकती है। इसके चलते बारिश और ओलावृष्टि की आशंका है।
- मौसम विभाग ने लोगों के लिये एडवाइज़री भी जारी की गई है।
पश्चिमी विक्षोभ
- ये चक्रवाती तूफानों की एक शृंखला है जो भूमध्यसागरीय क्षेत्र में उत्पन्न होते हैं और उत्तर पश्चिम भारत में सर्दियों के दौरान बारिश के लिये 9,000 किमी. से अधिक के क्षेत्र कवर करते हैं।
- पश्चिमी विक्षोभ भूमध्य सागर, काला सागर और कैस्पियन सागर से आर्द्रता एकत्र कर पश्चिमी हिमालय से टकराने से पूर्व ईरान तथा अफगानिस्तान से होकर गुज़रता है।
- पश्चिमी विक्षोभ हिमपात का प्राथमिक स्रोत है जो सर्दियों के दौरान हिमालय के ग्लेशियरों की पूर्ति करता है।
- ये ग्लेशियर गंगा, सिंधु और यमुना जैसी प्रमुख हिमालयी नदियों के साथ-साथ असंख्य पहाड़ी झरनों तथा नदों के जल के मुख्य स्रोत हैं।
मानसून गर्त/ट्रफ
- ट्रफ एक बड़े क्षेत्र तक विस्तृत निम्न दाब की पेटी है। यह ट्रफ मानसून काल के दौरान होती है, इसलिये इसे मानसून ट्रफ के नाम से जाना जाता है।
- मॉनसून ट्रफ इंटर ट्रॉपिकल कन्वर्जेंस ज़ोन (ITCZ) का एक हिस्सा है जहाँ उत्तरी गोलार्द्ध और दक्षिणी गोलार्द्ध की हवाएँ मिलती हैं।
- इसे आम तौर पर मानसून के कम दाब वाले क्षेत्रों के स्थान को जोड़ने वाली रेखा के रूप में दर्शाया जाता है। ये ट्रफ चरम मानसून अवधि के दौरान महाद्वीपों में चलते हैं।
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सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व में यूरेशियन ओटर रेडियो-टैग किया
चर्चा में क्यों?
भारत में पहली बार, मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम ज़िले में सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व (STR) में एक यूरेशियन ओटर/ऊदबिलाव को रेडियो-टैग किया गया।
मुख्य बिंदु:
- भारत में आमतौर पर ऊदबिलाव की तीन प्रजातियाँ पाई जाती हैं- स्मूद कोटेड ओटर, एशियन स्मॉल क्लॉड ओटर और यूरेशियन ओटर।
- स्मूद कोटेड ओटर के अलावा वर्ष 2016 तक मध्य भारत में शेष दो ऊदबिलाव प्रजातियों की उपस्थिति का कोई साक्ष्य नहीं था, जब यूरेशियन ओटर को पहली बार STR में कैमरे में कैद किया गया था, जो मध्य भारत में ऊदबिलाव प्रजातियों के निवास स्थान के विस्तार को दर्शाता है।
- इस कमी को पूरा करने के लिये मध्य प्रदेश वन विभाग द्वारा वन्यजीव संरक्षण ट्रस्ट (WCT) के साथ साझेदारी में वर्ष 2019 में सतपुड़ा में एक परियोजना शुरू की गई थी।
- इसका उद्देश्य एस्ट्रल फाउंडेशन और अल्काइल एमाइन्स फाउंडेशन के समर्थन से यूरेशियन ऊदबिलावों की पारिस्थितिकी का अन्वेषण करना तथा वन्य नदी पारिस्थितिकी तंत्र का पता लगाना है।
- वन्यजीव संरक्षण ट्रस्ट मुंबई स्थित एक भारतीय गैर-लाभकारी संगठन है जिसे वर्ष 2002 में पंजीकृत किया गया था।
स्मूद कोटेड ओटर
- यह ऊदबिलाव की एक प्रजाति है। इसका वैज्ञानिक नाम लुट्रोगेल पर्सपिसिलटा (Lutrogale perspicillata) है।
- स्थिति:
- ये भारत से लेकर पूर्व की ओर पूरे दक्षिणी एशिया में पाए जाते हैं।
- इराक के दलदलों में भी एक अलग आबादी/जीव संख्या पाई जाती है।
- आवास:
- वे ज़्यादातर तराई क्षेत्रों, तटीय मैंग्रोव वनों, पीट दलदली वनों, अलवण जलीय आर्द्रभूमियों, बड़ी वन्य नदियों, झीलों और धान के खेतों में पाए जाते हैं।
- कुछ ऊदबिलाव जल के निकट स्थायी बिल बनाते हैं जिसमें जल के अंदर प्रवेश द्वार और एक सुरंग होती है जो उच्च जल स्तर के ऊपर एक कोष्ठ तक जाती है।
- हालाँकि जल में अनुकूलित, चिकनी बाह्य आवरण वाले ऊदबिलाव अर्थात् स्मूद कोटेड ओटर ज़मीन पर भी समान रूप से विचरण करते हैं और उपयुक्त आवास की तलाश में ज़मीन पर लंबी दूरी की यात्रा करते हैं।
- संरक्षण की स्थिति:
- IUCN रेड लिस्ट: सुभेद्य
एशियन स्मॉल क्लॉड ओटर
- इसका वैज्ञानिक नाम एओनिक्स सिनेरियस (Aonyx cinereus) है।
- स्थिति:
- इसकी एक विस्तृत वितरण शृंखला है, जो दक्षिण एशिया में भारत से लेकर पूर्व की ओर दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिणी चीन तक फैली हुई है।
- भारत में ये ज़्यादातर पश्चिम बंगाल, असम और अरुणाचल प्रदेश के संरक्षित क्षेत्रों व कर्नाटक, तमिलनाडु एवं पश्चिमी घाट क्षेत्र में केरल के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं।
- वे मुख्य रूप से अलवण जलीय आवासों जैसे: नदियों, झरनों और आर्द्रभूमियों में पाए जाते हैं।
- ये मछली, क्रस्टेशियंस और मोलस्क पर भोजन के लिये आश्रित होते हैं।
- संरक्षण की स्थिति:
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972: अनुसूची-I
- IUCN स्थिति: सुभेद्य
यूरेशियन ओटर
- परिचय:
- यह एक अर्द्ध-जलीय मांसाहारी स्तनपायी है।
- इसका वैज्ञानिक नाम लूट्रा लूट्रा (Lutra lutra) है।
- स्थिति:
- यह सभी पुरापाषाण स्तनधारियों में सबसे व्यापक वितरणों में से एक है।
- इसकी सीमा तीन महाद्वीपों के हिस्सों को कवर करती है: यूरोप, एशिया और अफ्रीका।
- भारत में, यह उत्तरी, पूर्वोत्तर और दक्षिणी भारत में पाए जाते हैं।
- प्राकृतिक वास:
- यह विभिन्न प्रकार के जलीय आवासों में निवास करते हैं, जिनमें उच्चभूमि और तराई झीलें, नदियाँ, नद, दलदल, दलदली जंगल तथा तटीय क्षेत्र शामिल हैं।
- भारतीय उपमहाद्वीप में, यूरेशियन ओटर ठंडी पहाड़ी क्षेत्रों और पहाड़ी नदियों में पाए जाते हैं।
- संरक्षण की स्थिति:
- IUCN: संकटापन्न
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची-II
- CITES: परिशिष्ट
उत्तराखंड Switch to English
चारधाम यात्रा
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड पर्यटन विभाग के अनुसार, 'चारधाम यात्रा' के लिये पर्यटन विभाग के पोर्टल पर ऑनलाइन पंजीकरण शुरू हो गया है।
मुख्य बिंदु:
- उत्तराखंड में चारधाम यात्रा में चार मंदिरों, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के दर्शन शामिल हैं।
- चारधाम यात्रा हिंदू धर्म में गहरा आध्यात्मिक महत्त्व रखती है। यह यात्रा सामान्यतः अप्रैल/मई से अक्तूबर/नवंबर तक होती है।
चारधाम यात्रा
- यमुनोत्री धाम:
- स्थान: उत्तरकाशी ज़िला।
- समर्पित: देवी यमुना।
- गंगा नदी के बाद यमुना नदी भारत की दूसरी सबसे पवित्र नदी है।
- गंगोत्री धाम:
- स्थान: उत्तरकाशी ज़िला।
- समर्पित: देवी गंगा।
- सभी भारतीय नदियों में सबसे पवित्र मानी जाती है।
- केदारनाथ धाम:
- स्थान: रुद्रप्रयाग ज़िला।
- समर्पित: भगवान शिव।
- मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है।
- भारत में 12 ज्योतिर्लिंगों (भगवान शिव के दिव्य प्रतिनिधित्व) में से एक।
- बद्रीनाथ धाम:
- स्थान: चमोली ज़िला।
- पवित्र बद्रीनारायण मंदिर का स्थान।
- समर्पित: भगवान विष्णु।
- वैष्णवों के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक।
राजस्थान Switch to English
वित्त वर्ष 25 में राजस्व बढ़ाने हेतु योजना
चर्चा में क्यों?
राजस्थान खान और भूविज्ञान विभाग ने चालू वित्तीय वर्ष (FY25) के दौरान राजस्व बढ़ाने के लिये एक रणनीति विकसित की है।
मुख्य बिंदु:
- राजस्थान खनिजों की उपलब्धता और विविधता के मामले में सबसे समृद्ध राज्यों में से एक है, जो 57 से अधिक प्रकार के खनिजों का उत्पादन करता है।
- वित्त वर्ष 2024 के दौरान खान विभाग ने 7,490 करोड़ रुपए से अधिक का राजस्व अर्जित किया।
- अन्वेषण, ड्रिलिंग, नीलामी के लिये ब्लॉक एवं भूखंड तैयार करने, नीलामी कैलेंडर बनाने और राजस्व संग्रहण के लिये रोड मैप तैयार कर दैनिक निगरानी सुनिश्चित करने की योजना बनाई गई है।
- योजना के अनुसार अवैध खनन गतिविधियों को रोकने के लिये वन, ज़िला प्रशासन और पुलिस प्रशासन सहित संबंधित विभागों के साथ बेहतर समन्वय मज़बूत किया जाएगा।
- सरकार को देय राजस्व वसूली की नियमित व्यवस्था होनी चाहिये ताकि अंतिम समय में वसूली के लिये अधिक प्रयास न करना पड़े।
अवैध खनन
- अवैध खनन भूमि या जल निकायों से आवश्यक परमिट, लाइसेंस या सरकारी प्राधिकरणों से नियामक अनुमोदन के बिना खनिजों, अयस्कों या अन्य मूल्यवान संसाधनों का निष्कर्षण है
- इसमें पर्यावरण, श्रम और सुरक्षा मानकों का उल्लंघन भी शामिल हो सकता है।
- खनन से संबंधित सरकारी पहल
- राष्ट्रीय खनिज नीति 2019: इसका उद्देश्य खनिज अन्वेषण और उत्पादन को बढ़ाना, धारणीय खनन विधियों को बढ़ावा देना एवं नियामक प्रक्रियाओं को कारगर बनाना है।
- प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना (PMKKKY): यह खनन प्रभावित क्षेत्रों और सागरमाला परियोजना हेतु एक कल्याणकारी योजना है, जिसका उद्देश्य खनन क्षेत्र के विकास का समर्थन करने हेतु बंदरगाह के बुनियादी ढाँचे का विकास करना है।
झारखंड Switch to English
पहाड़िया जनजाति
चर्चा में क्यों?
झारखंड की पहाड़िया जनजाति का लक्ष्य समुदाय के नेतृत्व वाले बैंकों में देशी किस्मों को जमा करके बीज स्वतंत्रता हासिल करना है।
मुख्य बिंदु:
- वर्ष 2019 में, पाकुड़ और गोड्डा के पहाड़ी ज़िलों में चार समुदाय-आधारित बीज बैंक स्थापित किये गए थे। बैंक 90 गाँवों में 1,350 से अधिक परिवारों को सेवाएँ प्रदान करते हैं।
- वे चार पंचायतों के अंतर्गत संचालित होते हैं: बारा पकतरी, बारा सिंदरी, कुंजबोना और कर्मा तरन तथा महिला नेतृत्व वाली समितियों द्वारा प्रबंधित किये जाते हैं।
- बीज बैंकों में पंजीकरण कराने के लिये सदस्यों को 2.5 किलोग्राम देशी बीज जमा करना होगा। राज्य सरकार के कार्यक्रमों के माध्यम से भी बीज उपलब्ध कराये जाते हैं।
- बुआई के मौसम के दौरान, समितियाँ मामले-दर-मामले के आधार पर वितरण का निर्णय लेती हैं। अब तक वे 3,679 किलोग्राम बीज वितरित कर चुके हैं।
- सदस्य वर्तमान में स्टॉक को फिर से भरने के लिये प्रत्येक फसल के बाद 0.5 किलोग्राम बीज प्रदान करते हैं।
- तत्काल मांगें पूरी होने के साथ निवासी अब फसल की पैदावार में सुधार और भोजन में आत्मनिर्भर बनने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
पहाड़िया जनजाति
- वे मुख्य रूप से झारखंड और पश्चिम बंगाल राज्यों में रहते हैं। वे राजमहल पहाड़ियों के मूल निवासी हैं, जिन्हें आज झारखंड के संताल परगना डिवीज़न के रूप में जाना जाता है।
- उन्हें पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड की सरकारों द्वारा अनुसूचित जनजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- वे माल्टो बोलते हैं, जो एक द्रविड़ भाषा है।
- वे झूम कृषि करते हैं जिसमें कुछ वर्षों तक कृषि के लिये वनस्पति जलाकर भूमि साफ करना शामिल है।
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