नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 16 जनवरी से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

छत्तीसगढ स्टेट पी.सी.एस.

  • 14 Feb 2025
  • 0 min read
  • Switch Date:  
छत्तीसगढ़ Switch to English

डोकरा कलाकृति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, भारतीय प्रधानमंत्री ने फ्राँस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को संगीतकारों द्वारा जड़ी-बूटियों से सजी एक डोकरा कलाकृति उपहार में दी, जिसमें भारत की समृद्ध जनजातीय कलात्मकता को दर्शाया गया है। 

  • उन्होंने फ्राँस की प्रथम महिला को पुष्प और मोर की आकृति वाला एक अति सुंदर चाँदी का हाथ से उत्कीर्ण टेबल दर्पण भी भेंट किया।

मुख्य बिंदु 

  • डोकरा के बारे में:
    • छत्तीसगढ़ की सदियों पुरानी धातु-ढलाई शिल्प कला डोकरा में जटिल पीतल और ताँबे की मूर्तियाँ बनाने के लिये लुप्त-मोम तकनीक का उपयोग किया जाता है।
    • उपहार में दी गई इस कृति में पारंपरिक संगीतकारों को गतिशील मुद्राओं में चित्रित किया गया है, जो आदिवासी जीवन में संगीत के गहन सांस्कृतिक महत्त्व को उजागर करता है। 
    • लापीस लाजुली और मूंगा की सजावट कलाकृति के दृश्य आकर्षण को बढ़ाती है तथा भारत की समृद्ध स्वदेशी शिल्पकला को प्रदर्शित करती है।
  • सिल्वर टेबल दर्पण: 
    • चाँदी के टेबल दर्पण पर विस्तृत पुष्प और मोर की नक्काशी है, जो भारत की उत्कृष्ट धातुकला की विरासत को दर्शाती है।
    • इसका जटिल डिज़ाइन कलात्मक सुंदरता को सांस्कृतिक प्रतीकवाद के साथ जोड़ता है, जिससे यह एक बहुमूल्य स्मृतिचिह्न बन जाता है।

डोकरा

  • डोकरा प्राचीन बेल मेटल शिल्प का एक रूप है जिसका उपयोग झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना जैसे राज्यों में रहने वाले ओझा धातु कारीगरों द्वारा किया जाता है।
  • हालाँकि, इस कारीगर समुदाय की शैली और कारीगरी अलग-अलग राज्यों में भिन्न होती है।
  • ढोकरा या डोकरा को बेल मेटल शिल्प के नाम से भी जाना जाता है।
  • 'ढोकरा' नाम ढोकरा दामर जनजाति से आया है, जो पश्चिम बंगाल के पारंपरिक धातुकार हैं।
    • उनकी लुप्त मोम ढलाई की तकनीक का नाम उनकी जनजाति के नाम पर रखा गया है, इसलिये इसे ढोकरा धातु ढलाई कहा जाता है।
    • डोकरा कलाकृतियाँ पीतल से बनी हैं और यह इस मायने में अनोखी हैं कि इनके टुकड़ों में कोई जोड़ नहीं है। 
      • इस विधि में धातुकर्म कौशल को मोम तकनीक के साथ संयोजित किया जाता है, जिसमें लुप्त मोम तकनीक का उपयोग किया जाता है, जो एक अनूठी कला है, जिसमें साँचे का उपयोग केवल एक बार किया जाता है और उसे तोड़ा जाता है, जिससे यह कला विश्व में अपनी तरह की एकमात्र कला बन जाती है।
    • यह जनजाति झारखंड से उड़ीसा, छत्तीसगढ़, राजस्थान और केरल तक फैली हुई है।
  • प्रत्येक मूर्ति को बनाने में लगभग एक माह का समय लगता है।
  • मोहनजोदड़ो (हड़प्पा सभ्यता) की नर्तकी अब तक ज्ञात सबसे प्राचीन ढोकरा कलाकृतियों में से एक है।
  • डोकरा कला का उपयोग अभी भी कलाकृतियाँ, सहायक उपकरण, बर्तन और आभूषण बनाने के लिये किया जाता है।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2