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राजस्थान स्टेट पी.सी.एस.

  • 12 Dec 2024
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राजस्थान में खोजे गए अंधकार युग के सिक्के

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राजस्थान के पुरातात्विक स्थलों से 600 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व के पंच-मार्क सिक्कों का खज़ाना मिला है।

  • यह भारतीय इतिहास के "अंधकार युग (Dark Age)" के संबंध में जानकारी प्रदान करता है जो सिंधु घाटी सभ्यता के पतन से लेकर भगवान बुद्ध के युग तक फैला हुआ है। इतिहासकार 1900 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व तक के इस काल को अंधकार युग कहते हैं।

मुख्य बिंदु

  • परिचय:
    • राजस्थान की पुरातात्विक खोजें इस क्षेत्र की प्राचीन व्यापारिक गतिविधियों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में महत्त्वपूर्ण भूमिका को उजागर करती हैं।
    • ये निष्कर्ष भारत के लुप्त ऐतिहासिक काल को उजागर करने के लिये इन कलाकृतियों के संरक्षण और अध्ययन के महत्त्व को रेखांकित करते हैं।
  • राष्ट्रीय मुद्राशास्त्र सम्मेलन में प्रस्तुति:
    • राजस्थान पुरातत्व एवं संग्रहालय विज्ञान विभाग के एक सेवानिवृत्त मुद्राशास्त्री ने 5 दिसंबर, 2024 को मेरठ में राष्ट्रीय मुद्राशास्त्र सम्मेलन में पंच-मार्क सिक्कों पर अपना शोध प्रस्तुत किया।
      • संग्रहालय विज्ञान संग्रहालयों और उनमें की जाने वाली गतिविधियों का अध्ययन है। 
      • इसमें संग्रहालयों के इतिहास, समाज में उनकी भूमिका और उनके द्वारा की जाने वाली गतिविधियों, जैसे संरक्षण, शिक्षा और सार्वजनिक कार्यक्रम आदि का अध्ययन शामिल है।
      • मुद्राशास्त्री वह व्यक्ति होता है जो मुद्रा और धन के रूप में प्रयोग की जाने वाली अन्य वस्तुओं का अध्ययन, संग्रह और विश्लेषण करता है।
    • उन्होंने अहार (उदयपुर), कालीबंगा (हनुमानगढ़), विराटनगर (जयपुर), और जानकीपुरा (टोंक) जैसी साइटों की खोजों पर प्रकाश डाला, जिसमें एक संपन्न प्राचीन व्यापार नेटवर्क के साक्ष्य प्रदर्शित किये गए।
  • खोजें और महत्त्व:
  • व्यापक सिक्का अध्ययन:
    • सिक्कों पर सूर्य, षड्चक्र और पर्वत/मेरु जैसे प्रतीक अंकित थे।
    • चाँदी और ताँबे से बने इन सिक्कों का मानक वजन 3.3 ग्राम है तथा ये सिक्के पेशावर से कन्याकुमारी तक पूरे भारत में पाए जाने वाले सिक्कों से समानता दर्शाते हैं।
  • प्रमुख निष्कर्ष:
    • उल्लेखनीय खोजों में 1935 में टोंक में मिले 3,300 सिक्के और 1998 में सीकर में मिले 2,400 सिक्के शामिल हैं।
    • इन क्षेत्रों के धातुकर्म उपकरण महाराष्ट्र, तमिलनाडु और पेशावर में पाए जाने वाले औजारों से मिलते जुलते हैं, जो राजस्थान को एक व्यापक सांस्कृतिक और व्यापारिक नेटवर्क से जोड़ते हैं।
  • ऐतिहासिक संदर्भ और पुरातात्विक साक्ष्य:
  • चीनी यात्रियों द्वारा दस्तावेज़ीकरण:
    • चीनी यात्री फा-हियान (399-414 ई.), सुनयान (518 ई.) और ह्वेन-त्सांग (629 ई.) ने इन क्षेत्रों में खंडहरों का दस्तावेज़ीकरण किया, जो उनके ऐतिहासिक महत्त्व की ओर संकेत करते हैं।
    • उनके विवरण, पुरातात्विक साक्ष्यों के साथ मिलकर, राजस्थान की प्राचीन व्यापार और सांस्कृतिक विरासत की समझ को समृद्ध करते हैं।
  • व्यापक व्यापार संबंध:
    • राजस्थान का व्यापार इतिहास सिल्क रूट के समान ही महत्त्वपूर्ण है, जिसका समर्थन गुप्त वंश, मालव और जनपदों के सिक्कों की खोज से होता है।
    • ये निष्कर्ष प्राचीन भारत में राजस्थान की महत्त्वपूर्ण आर्थिक और सांस्कृतिक भूमिका पर ज़ोर देते हैं।
  • खजाना संग्रह:
    • राजस्थान पुरातत्व विभाग ने राजस्थान खज़ाना नियम, 1961 के तहत संग्रहित 2.21 लाख से अधिक प्राचीन सिक्के एकत्र किये हैं, जिनमें 7,180 पंच-मार्क नमूने भी शामिल हैं।
    • ये सिक्के राज्य की ऐतिहासिक और आर्थिक प्रमुखता के बारे में अमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं।

सिंधु घाटी सभ्यता

  • परिचय:
    • भारत का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) के जन्म से शुरू होता है, जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है।
    • यह लगभग 2,500 ईसा पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी क्षेत्र, वर्तमान पाकिस्तान और पश्चिमी भारत में विकसित हुआ।
    • सिंधु घाटी मिस्र, मेसोपोटामिया, भारत और चीन की चार प्राचीन शहरी सभ्यताओं में से सबसे बड़ी सभ्यता का घर थी।
    • 1920 के दशक में भारतीय पुरातत्व विभाग ने सिंधु घाटी में खुदाई की, जिसमें दो पुराने शहरों, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के खंडहरों का पता चला।
    • 1924 में, ASI के महानिदेशक जॉन मार्शल ने दुनिया के सामने सिंधु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की।
  • पतन:
    • सिंधु घाटी सभ्यता का पतन लगभग 1800 ई.पू. हुआ, जिसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन और प्रवास था।
    • इसके दो प्रमुख शहर, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा लुप्त हो गये, जिससे सभ्यता का अंत हो गया।
    • हड़प्पा को अक्सर इस सभ्यता के नाम के साथ जोड़ा जाता है क्योंकि यह आधुनिक पुरातत्वविदों द्वारा खोजा गया पहला शहर था।


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