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आम की प्रूनिंग का परमिट रद्द
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के किसानों को आम के वृक्षों की छँटाई/प्रूनिंग के लिये किसी भी सरकारी विभाग से अनुमति लेने की आवश्यकता से छूट देने का निर्णय लिया।
- आम उत्पादक अपनी उत्पादकता बढ़ाने के लिये पेड़ों की छँटाई कर सकते हैं और उनकी ऊँचाई कम कर सकते हैं।
मुख्य बिंदु:
- इस निर्णय से पुराने आम के बागों के लिये कैनोपी प्रबंधन आसान हो गया है। इससे पुराने आम के बागों का कायाकल्प हो जाएगा और वे नए बागों की तरह उत्पादक बन जाएंगे।
- पुराने बागों में नई पत्तियों और शाखाओं की वृद्धि में कमी आ गई है, जो फूल तथा फल के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- इसके बजाय, मोटी और उलझी हुई शाखाएँ अधिक हैं, जो पर्याप्त प्रकाश को अंदर तक पहुँचने से रोकती हैं।
- इन परिस्थितियों के परिणामस्वरूप कीटों और बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है तथा कीटनाशकों का प्रभावी प्रयोग जटिल हो जाता है।
- परिणामस्वरूप, छिड़काव किये गए कीटनाशक अक्सर पेड़ों के अंदरूनी हिस्सों तक पहुँचने में विफल हो जाते हैं, जिससे कीटनाशकों का उपयोग बढ़ जाता है और पर्यावरण प्रदूषण बढ़ जाता है।
- इन समस्याओं से निपटने के लिये केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (Central Institute of Subtropical Horticulture- CISH) ने आम के वृक्षों को पुनर्जीवित करने हेतु एक प्रभावी छँटाई तकनीक विकसित की है।
- इस विधि को तृतीयक शाखाओं की छँटाई या टेबल-टॉप प्रूनिंग कहा जाता है, जिससे वृक्ष की कैनोपी खुल जाती है, उसकी ऊँचाई कम हो जाती है तथा स्वस्थ वातावरण को बढ़ावा मिलता है।
- इस छँटाई तकनीक (Pruning Technique) से वृक्षों से 2-3 वर्षों में ही 100 किलोग्राम तक उपज प्राप्त की जा सकती है, साथ ही अत्यधिक कीटनाशकों के उपयोग की आवश्यकता भी कम हो जाती है।
केंद्रीय उपोष्णकटिबंधीय बागवानी संस्थान (CISH)
- इसे 4 सितंबर, 1972 को भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलूरु के तत्त्वावधान में केंद्रीय आम अनुसंधान केंद्र के रूप में शुरू किया गया था।
- संस्थान, जिसका नाम बाद में 14 जून, 1995 को केंद्रीय उपोष्णकटिबंधीय बागवानी संस्थान (Central Institute for Subtropical Horticulture- CISH) रखा गया, उपोष्णकटिबंधीय फलों पर अनुसंधान के सभी पहलुओं पर राष्ट्र की सेवा कर रहा है।
- CISH का मुख्यालय लखनऊ, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
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सारस क्रेन की संख्या में वृद्धि
चर्चा में क्यों?
राज्य वन विभाग द्वारा की गई गणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश में सारस क्रेन की संख्या बढ़ रही है।
मुख्य बिंदु:
- सर्वेक्षण से पता चला कि इटावा वन प्रभाग में सारस क्रेन की संख्या सबसे अधिक 3,289 दर्ज की गई, जो कि 500 अधिक है।
- जबकि मऊ वन प्रभाग ने एक दशक में पहली बार छह सारस क्रेन देखे।
- उत्तर प्रदेश में सारस क्रेन की संख्या पिछले कुछ वर्षों में निरंतर बढ़ी है और वर्ष 2021 में 17,329 से बढ़कर वर्ष 2022 में 19,188, वर्ष 2023 में 19,522 तथा वर्ष 2024 में 19,918 हो गई है।
सारस क्रेन
- सारस क्रेन का वैज्ञानिक नाम ग्रस एंटीगोन (Grus Antigone) है।
- यह विश्व का सबसे बड़ा उड़ने वाला पक्षी है, जिसकी लंबाई 152-156 सेंटीमीटर और पंखों का फैलाव 240 सेंटीमीटर है।
- सारस क्रेन मुख्य रूप से लाल सिर और इसकी ऊपरी गर्दन भूरे रंग की होती है, साथ ही हल्के लाल पैर होते हैं।
- यह आजीवन जोड़े में रहते हैं और इसना प्रजनन काल मानसून में भारी बारिश के दौरान होता है।
- ये मनुष्यों के साथ और अच्छी तरह से जल वाले मैदानों, दलदली भूमि, तालाबों तथा आर्द्रभूमि (जैसे उत्तर प्रदेश में धनौरी आर्द्रभूमि) में रहने के लिये जाने जाते हैं जो उनके निर्वहन तथा घोंसले के लिये उपयुक्त हैं।
- संरक्षण की स्थिति:
- IUCN रेड लिस्ट: सुभेद्य
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची IV
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