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उत्तराखंड हिमालय में तेज़ी से बढ़ती हिमनदीय झील को लेकर चिंताएँ
चर्चा में क्यों?
देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (WIHG) के वैज्ञानिकों के अनुसार भागीरथी जलग्रहण क्षेत्र में स्थित भिलंगना हिमनद झील पिछले 47 वर्षों में लगभग 0.38 वर्ग किमी. तक विस्तारित हुई है जो निचले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये संभावित खतरा उत्पन्न कर सकती है।
प्रमुख बिंदु
- हिमनद झील का निर्माण तब होता है जब हिमनदों की विशाल चादर पिघलने लगती है और पिघला हुआ जल एकत्रित हो जाता है।
- वैश्विक तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन में तीव्रता के साथ ही कई हिमनद भी तेज़ी से पीछे हटने लगे हैं, जिससे कई ऐसी हिमनद झीलों का निर्माण शुरू हो गया है, इनकी अस्थिरता के कारण जल की तेज़ धार नीचे की ओर प्रवाहित हो सकती हैं जिससे विनाशकारी बाढ़ आ सकती है।
- अध्ययनों से पता चलता है कि उत्तराखंड हिमालय में एक हज़ार से अधिक ऐसी हिमनद झीलें बनी हैं, लेकिन पर्याप्त भूमि-आधारित अध्ययनों की कमी के कारण उनके संबंध में जानकारी सीमित है।
- उत्तराखंड में 13 ऐसी हिमनद झीलों की पहचान की गई है जो मोराइन डैम्ड लेक हैं और लगभग दस हिमनद हैं जिनकी निचले भाग में रहने वाले लोगों के लिये संभावित खतरे को देखते हुए निरंतर निगरानी की जा रही है।
- ऐसा ही अनुभव वर्ष 2013 में केदारनाथ में, वर्ष 2021 में ऋषिगंगा-धौलीगंगा हिमस्खलन में और हाल ही में सिक्किम की दक्षिण ल्होनक झील में किया गया था।
- भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के अनुसार, भारतीय हिमालय क्षेत्र में लगभग 9,575 हिमनद हैं, उनमें से केवल 980 उत्तर-पश्चिमी राज्य उत्तराखंड में हैं तथा सबसे संवेदनशील हिमनदों का विशेषज्ञ टीम द्वारा लगातार निगरानी की जा रही है। .
- उत्तराखंड हिमालय का सबसे बड़ा हिमनद, गंगोत्री हिमनद, जिसकी लंबाई लगभग 30 किलोमीटर है, प्रति वर्ष लगभग 15-20 मीटर की दर से पीछे हट रहा है।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (WIHG)
- वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग का एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान है।
- जून, 1968 में दिल्ली विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के दो कमरों में एक छोटे केंद्र के रूप में स्थापित इस संस्थान को अप्रैल, 1976 के दौरान देहरादून में स्थानांतरित कर दिया गया था।
ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF)
- यह एक प्रकार की विनाशकारी बाढ़ है, जो हिमनद झील वाले बाँध विफल होने की स्थिति में, जिससे बड़ी मात्रा में जल निष्काषित होता है, में घटित होती है।
- इस प्रकार की बाढ़ आम तौर पर हिमनदों के तेज़ी से पिघलने अथवा भारी वर्षा या पिघले जल के प्रवाह के कारण झील में जल के संचय के कारण होती है।
- फरवरी 2021 में, उत्तराखंड के चमोली ज़िले में अचानक बाढ़ आई, जिसके बारे में संभावना जताई जाती है कि यह ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड के कारण हुई थी।
- कारण:
- इस प्रकार के बाढ़ आने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें हिमनद के घनत्त्व में परिवर्तन, झील के जल स्तर में परिवर्तन तथा भूकंप शामिल हैं।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अनुसार, हिंदू कुश हिमालय के अधिकांश हिस्सों में होने वाले जलवायु परिवर्तन के कारण हिमनदों के पीछे हटने से कई नए हिमनद झीलों का निर्माण हुआ है, जो GLOF का प्रमुख कारण हैं।
मोराइन डैम्ड लेक
- मोराइन डैम्ड लेक का निर्माण तब होता है जब टर्मिनल मोराइन के कारण कुछ पिघले जल घाटी से बाहर नहीं निकल पाते हैं।
- जब कोई हिमनद पीछे की ओर हटता है, तब पीछे हटने वाले हिमनद तथा बचे हुए टुकड़े के बीच एक जगह बच जाती है, जिसमें बचा हुआ मलबा (मोराइन) बचता है।
- बर्फ के पिघलने के पैटर्न के कारण दोनों हिमनदों से पिघला हुआ जल इस स्थान में रिसकर एक रिबन के आकार की झील का निर्माण करता है।
- इस बर्फ के पिघलने से हिमनद झील में बाढ़ आ सकती है, जिससे पर्यावरण और आस-पास रहने वालों को गंभीर नुकसान हो सकता है।
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उत्तराखंड में चीन से लगी सीमा पर भारत द्वारा सैनिकों की तैनाती पर विचार
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार ने चीन के साथ अपनी विवादित सीमा को मज़बूत करने के लिये 10,000 सैनिकों की एक टुकड़ी तैयार की है।
प्रमुख बिंदु:
- माना जा रहा है कि इन सैनिकों को उत्तरी राज्यों; उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भारत-चीन सीमा के सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण 532 किमी. (330.57 मील) हिस्से की सुरक्षा के लिये तैनात किया जाएगा।
- सैनिकों की इस प्रकार की तैनाती इस क्षेत्र के सामरिक महत्त्व एवं भारत के नेताओं की नज़र में इसकी बढ़ती संवेदनशीलता दोनों को उजागर करती है।
- पिछले दशक में इस क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे में भारी निवेश और विकास देखा गया है।
- वर्ष 2020 में एक गंभीर सीमा संघर्ष के बाद, जिसमें पूर्वी लद्दाख के गलवान क्षेत्र में कम-से-कम 20 भारतीय सैनिक मारे गए थे, वर्ष 2021 में, भारत ने चीन के साथ अपनी सीमा पर गश्त करने के लिये अतिरिक्त 50,000 सैनिकों को तैनात किया।
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उत्तराखंड सरकार द्वारा चारधाम यात्रा की तैयारी के लिये समिति का गठन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अधिकारियों को आगामी चारधाम यात्रा की तैयारी के लिये एक समिति गठित करने का निर्देश दिया।
प्रमुख बिंदु:
- मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निम्नलिखित निर्देश भी दिये:
- चारधाम मार्गों एवं संवेदनशील क्षेत्रों पर सीसीटीवी लगाया जाना।
- सरकार के स्तर से सभी चारधामों की लाइव मॉनिटरिंग की जानी चाहिये तथा आपदा कन्ट्रोल रूम को सुचारु रूप से संचालित किया जाना चाहिये।
- प्लास्टिक मुक्त चारधाम यात्रा सुनिश्चित करना।
- सभी धामों में 24 घंटे विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित किया जाना। रास्तों पर स्ट्रीट लाइटें भी लगाई जाए।
- चिकित्सा एवं अपेक्षित स्टाफ की तैनाती के साथ-साथ यात्रा रास्तों पर अस्थायी चिकित्सा केंद्रों में जीवन रक्षक औषधियाँ, उपकरण, पोर्टेबल ऑक्सीजन सिलेण्डर एवं एंबुलेंस/एयर एंबुलेंस की व्यवस्था।
- घोड़ों एवं खच्चरों में बीमारियों की रोकथाम के लिये रास्तों पर पशु चिकित्सकों की तैनाती।
- सुरक्षा बलों की तैनाती की व्यवस्था।
- तीर्थयात्रा अवधि के दौरान यातायात प्रबंधन के लिये अतिरिक्त अधीक्षक और उससे ऊपर के रैंक के पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति।
नोट:
- यमुनोत्री धाम:
- स्थान: उत्तरकाशी ज़िला
- को समर्पित: यमुना नदी देवी
- गंगा नदी के बाद यमुना नदी भारत की दूसरी सबसे पवित्र नदी है।
- गंगोत्री धाम:
- स्थान: उत्तरकाशी ज़िला
- को समर्पित: गंगा नदी देवी
- सभी भारतीय नदियों में सबसे पवित्र।
- केदारनाथ धाम:
- स्थान: रुद्रप्रयाग ज़िला
- को समर्पित: भगवान शिव
- यह मंदाकिनी नदी के तट पर अवस्थित है।
- भारत में 12 ज्योतिर्लिंगों (भगवान शिव के दिव्य प्रतिनिधित्व) में से एक।
- बद्रीनाथ धाम:
- स्थान: चमोली ज़िला
- पवित्र बद्रीनारायण मंदिर के लिये प्रसिद्द।
- को समर्पित: भगवान विष्णु।
- वैष्णवों के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक
मध्य प्रदेश Switch to English
दिल्ली ने मध्य प्रदेश की 'लाडली बहना' योजना के समान एक योजना की शुरुआत की
चर्चा में क्यों?
दिल्ली सरकार ने मुख्यमंत्री सम्मान योजना के तहत राष्ट्रीय राजधानी में 18 वर्ष से अधिक उम्र की सभी महिलाओं को 1,000 रुपए प्रति माह देने की घोषणा की है।
मुख्य बिंदु:
- नई पहल मध्य प्रदेश की लाडली बहना योजना के समान है।
- इसे मार्च 2023 में तत्कालीन शिवराज सिंह चौहान सरकार द्वारा लॉन्च किया गया था, जिसके तहत निम्न और मध्यम वर्ग के घरों की महिलाओं को उनके खातों में 1,000 रुपए का मासिक हस्तांतरण किया जाता है।
लाडली बहना योजना
- यह योजना मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 8 मार्च 2023 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में शुरू की गई थी।
- योजना को शुरू करने का मुख्य उद्देश्य राज्य की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना है।
- राज्य की सभी महिलाएँ, जाति और धर्म की परवाह किये बिना, इस योजना का लाभ उठाने के लिये पात्र होंगी।
- पात्र महिलाओं को प्रति माह 1,000/- रुपए की वित्तीय सहायता दी जाएगी।
उत्तर प्रदेश Switch to English
सोनभद्र में 177 विकास परियोजनाओं का उद्घाटन किया गया
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आवास और शहरी मामलों तथा पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री ने उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में 177 विकास परियोजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास किया।
प्रमुख बिंदु:
- 10 करोड़ 41 लाख रुपए की परियोजनाएँ श्री पुरी के सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना निधि से वित्त पोषित हैं
- जनवरी 2018 से मार्च 2024 तक लगातार आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम के समग्र प्रदर्शन में सोनभद्र 112 ज़िलों में से शीर्ष पाँच ज़िलों में शामिल है।
- मंत्री ने वर्ष 2018 में नीति आयोग के आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम के तहत सोनभद्र की विकास पहल की देखरेख की ज़िम्मेदारी संभाली।
MPLAD स्कीम
- यह एक केंद्रीय क्षेत्र योजना है जिसकी घोषणा दिसंबर 1993 में की गई थी।
- उद्देश्य:
- सांसदों को मुख्य रूप से अपने निर्वाचन क्षेत्रों में पेयजल, प्राथमिक शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और सड़कों आदि के क्षेत्रों में धारणीय सामुदायिक संपत्तियों के निर्माण पर ज़ोर देने के साथ विकासात्मक प्रकृति के कार्यों की सिफारिश करने में सक्षम बनाना।
- जून 2016 से, MPLAD फंड का उपयोग स्वच्छ भारत अभियान, सुगम्य भारत अभियान (सुगम्य भारत अभियान), वर्षा जल संचयन के माध्यम से जल संरक्षण और सांसद आदर्श ग्राम योजना आदि योजनाओं के कार्यान्वयन के लिये भी किया जा सकता है।
आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम
- इसे वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य उन ज़िलों में परिवर्तन लाना है, जिन्होंने प्रमुख सामाजिक क्षेत्रों में अपेक्षाकृत कम प्रगति दर्शाई है।
- आकांक्षी जिले भारत के वे ज़िले हैं, जो कम प्रदर्शन करने वाले सामाजिक-आर्थिक संकेतकों से प्रभावित हैं।
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