पराली जलाने के बदलते पैटर्न | मध्य प्रदेश | 06 Nov 2024
चर्चा में क्यों?
मध्य प्रदेश में पराली जलाने की घटनाओं में तेज़ी से वृद्धि देखी गई है तथा यहाँ पर 10,000 से अधिक पराली जलाने की घटनाएँ दर्ज की गई हैं, जो पंजाब से भी अधिक है।
मुख्य बिंदु
- पराली जलाने के बदलते पैटर्न ने फसल-ऋतु की इस प्रक्रिया को और जटिल बना दिया है, जो उत्तर भारत के वायु प्रदूषण में भारी योगदान देता है।
- क्षेत्रीय रुझान:
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मध्य प्रदेश में खतरनाक वृद्धि: मध्य प्रदेश में पराली जलाने के 506 मामले दर्ज किये गए, जो कि पिछले उच्चतम स्तर 296 से अधिक है, जो कि महत्त्वपूर्ण वृद्धि दर्शाता है।
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पंजाब में सकारात्मक कमी: पंजाब में पराली जलाने की घटनाएँ 587 से घटकर 262 रह गईं, जो फसल अवशेष जलाने में आशाजनक कमी दर्शाती है।
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उत्तर प्रदेश और राजस्थान में वृद्धि: उत्तर प्रदेश में एक दिन में मामले 16 से बढ़कर 84 हो गए, जबकि राजस्थान में मामले 36 से बढ़कर 98 हो गए, जो इस मौसम की दूसरी सबसे बड़ी संख्या है।
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हरियाणा में प्रगति: हरियाणा में मामलों में कमी दर्ज की गई, जहाँ मामलों की संख्या 42 से घटकर 13 हो गई, जो पराली जलाने के प्रबंधन में प्रगति को दर्शाता है।
पराली जलाना
- परिचय:
- पराली जलाना धान की फसल के अवशेषों को खेत से हटाने की एक विधि है, जिसका उपयोग सितंबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर तक गेहूँ की बुवाई के लिये किया जाता है, जो दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी के साथ ही होता है।
- पराली जलाना धान, गेहूँ आदि जैसे अनाज की कटाई के बाद बचे पुआल के ठूंठ को आग लगाने की एक प्रक्रिया है। आमतौर पर इसकी आवश्यकता उन क्षेत्रों में होती है जहाँ संयुक्त कटाई पद्धति का उपयोग किया जाता है जिससे फसल अवशेष बच जाते हैं।
- यह उत्तर-पश्चिम भारत में अक्तूबर और नवंबर में एक सामान्य प्रथा है, लेकिन मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में।
- पराली जलाने के प्रभाव:
- प्रदूषण: यह वायुमंडल में बड़ी मात्रा में विषैले प्रदूषकों का उत्सर्जन करता है जिसमें मीथेन (CH4), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOC) और कैंसरकारी पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसी हानिकारक गैसें शामिल हैं।
- ये प्रदूषक आसपास के वातावरण में विस्तृत हो जाते हैं, भौतिक और रासायनिक परिवर्तन से गुजरते हैं और अंततः घने धुएँ की चादर का निर्माण करके मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
- मृदा उर्वरता: भूसा जलाने से मृदा के पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं, जिससे मृदा कम उपजाऊ हो जाती है।
- ताप प्रवेश: पराली जलाने से उत्पन्न ताप मृदा में प्रवेश कर जाता है, जिससे नमी और उपयोगी सूक्ष्मजीवों की हानि होती है।
- पराली जलाने के अन्य विकल्प:
- पराली का स्व-स्थाने (In-Situ) प्रबंधन: उदाहरण के लिये, ज़ीरो-टिलर मशीन द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन और जैव-अपघटकों का उपयोग।
- बाह्य-स्थाने (Ex-Situ) प्रबंधन: उदाहरण के लिये, पशुओं के चारे के रूप में चावल के भूसे का उपयोग।
- तकनीक का उपयोग: उदाहरण के लिये टर्बो हैप्पी सीडर (Turbo Happy Seeder-THS) मशीन एक ऐसी तकनीक है जो पराली को उसकी जड़ों सहित निकाल देती है और फिर उस साफ किये गए क्षेत्र में बीज बोने की क्षमता रखती है। इसके बाद, निकाली गई पराली को खेत में गीली घास के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
रायपुर में हाथियों की करंट लगने से मौत | छत्तीसगढ़ | 06 Nov 2024
चर्चा में क्यों?
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने रायगढ़ ज़िले में तीन हाथियों की करंट लगने से हुई मौत के मामले में लापरवाही के लिये राज्य के ऊर्जा विभाग के अधिकारियों को चेतावनी दी है।
मुख्य बिंदु
- न्यायालय का निर्णय:
- खंडपीठ ने ऊर्जा विभाग को घटना के संबंध में विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करते हुए शपथ-पत्र प्रस्तुत करने का आदेश दिया। अधिकारियों को रायगढ़ के घरघोड़ा वन रेंज में हाथियों की मृत्यु से संबंधित परिस्थितियों का विवरण देने और भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिये निवारक उपायों की योजना बनाने के लिये निर्देशित किया गया।
- प्रारंभिक जाँचा द्वारा स्पष्ट होता है कि वन विभाग के कर्मचारियों ने स्थानीय विद्युत विभाग को खतरनाक रूप से कम ऊँचाई वाली 11 kV ट्रांसमिशन लाइन के बारे में बार-बार चेतावनी दी थी।
- हालाँकि, इस समस्या के समाधान के लिये कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिसके परिणामस्वरूप अंततः हाथियों की मौत हो गई।
- वन्यजीव सुरक्षा पर ज़ोर:
- छत्तीसगढ़ में हाथियों की मौत:
- राज्य वन विभाग के अनुसार, छत्तीसगढ़ में पिछले छह वर्षों में विभिन्न कारणों से 70 से अधिक हाथियों की मौत हुई है, जिनमें से वर्ष 2024 में 13 की मौत करंट लगने के कारण हुई है।
बिहार की स्वर कोकिला का निधन | बिहार | 06 Nov 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बिहार की लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन हो गया। उन्हें उनके भावपूर्ण छठ गीतों के लिये व्यापक रूप से जाना जाता था ।
मुख्य बिंदु
- परिचय:
- शारदा सिन्हा, जिन्हें प्यार से 'बिहार की कोकिला' के नाम से जाना जाता है, एक प्रसिद्ध भारतीय लोक गायिका थीं, जिन्होंने भोजपुरी, मैथिली और मगही संगीत में बहुत बड़ा योगदान दिया ।
- उन्होंने बिहार के पारंपरिक संगीत को लोकप्रिय बनाने और इसे पूरे भारत और उसके बाहर व्यापक दर्शकों तक पहुंचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
- पुरस्कार:
- भारतीय लोक संगीत में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान के सम्मान में उन्हें वर्ष 2018 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया ।
छठ पूजा
- छठ पर्व दिवाली के छह दिन बाद मनाया जाता है और यह मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है।
- यह सूर्य और षष्ठी देवी को समर्पित है, जिन्हें अक्सर छठी मैया के रूप में जाना जाता है , और इसमें धार्मिक अनुष्ठान शामिल होते हैं।
बाल विवाह को समाप्त करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश | राजस्थान | 06 Nov 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बाल विवाह के पूर्ण उन्मूलन के लिये जारी किये गए सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों से राजस्थान में नागरिक समाज समूहों को महत्त्वपूर्ण बढ़ावा मिला है।
मुख्य बिंदु
- राजस्थान में बाल विवाह का प्रचलन:
- 2030 तक बाल विवाह उन्मूलन के लिये सामूहिक प्रयास:
- सर्वोच्च न्यायालय के नए दिशा-निर्देशों से उत्साहित होकर, एक गैर-सरकारी संगठन, जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस (JRCA) ने ज़मीनी स्तर पर प्रयास तीव्र करने का संकल्प लिया है।
- उनका लक्ष्य गाँवों में जागरूकता बढ़ाने सहित सामूहिक कार्रवाई के माध्यम से वर्ष 2030 तक राजस्थान में बाल विवाह को समाप्त करना है।
- सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश:
- न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह गाँव के नेताओं को सूचित और संवेदनशील बनाए तथा इस बात पर ज़ोर दे कि यदि वे अपने समुदायों में बाल विवाह रोकने में विफल रहते हैं तो उनकी जवाबदेही होगी।
- सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश बाल विवाह रोकने के लिये ग्राम पंचायतों, स्कूल प्राधिकारियों और बाल संरक्षण अधिकारियों पर जवाबदेही डालते हैं।
- न्यायालय ने बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये “रोकथाम, संरक्षण और अभियोजन” मॉडल अपनाने की सलाह दी।
- वर्ष 2024 में, राजस्थान उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि राजस्थान पंचायती राज नियम, 1996 के तहत ग्राम सरपंच बाल विवाह रोकने के लिये ज़िम्मेदार होंगे।
बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006
- यह कानून कुछ कार्यों को दंडनीय बनाकर तथा बाल विवाह की रोकथाम और निषेध के लिये ज़िम्मेदार कुछ प्राधिकारियों की नियुक्ति करके बाल विवाह को रोकने का प्रयास करता है।
- अधिनियम के अंतर्गत परिभाषाएँ:
- "बालक" का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जो, यदि पुरुष है, तो इक्कीस वर्ष की आयु पूरी नहीं की है, और यदि महिला है, तो अठारह वर्ष की आयु पूरी नहीं की है।
- "बाल विवाह" से तात्पर्य ऐसे विवाह से है जिसमें अनुबंध करने वाले पक्षों में से कोई एक बच्चा हो।
- "नाबालिग" का अर्थ है वह व्यक्ति जो वयस्कता अधिनियम, 1875 के प्रावधानों के तहत वयस्कता प्राप्त नहीं किया है। वयस्कता अधिनियम, 1875 के अनुसार, भारत में निवास करने वाला प्रत्येक व्यक्ति अठारह वर्ष की आयु पूरी करने पर वयस्कता प्राप्त करता है।
- बाल विवाह एक ऐसा अपराध है जिसके लिये कठोर कारावास की सज़ा दी जा सकती है, जो 2 वर्ष तक हो सकती है या 1 लाख रुपए तक का ज़ुर्माना या दोनों हो सकते हैं। अधिनियम के तहत अपराध संज्ञेय और गैर-ज़मानती हैं।
- इस कानून के तहत जिन व्यक्तियों को दंडित किया जा सकता है उनमें शामिल हैं:
- जो कोई भी बाल विवाह संपन्न कराता है, उसका संचालन करता है, निर्देश देता है या उसे बढ़ावा देता है।
- 18 वर्ष से अधिक आयु का कोई वयस्क पुरुष किसी बालिका से विवाह करता है (धारा 9)।
- बच्चे की देखभाल करने वाला कोई भी व्यक्ति, जिसमें माता-पिता या अभिभावक, किसी संगठन या एसोसिएशन का सदस्य शामिल है, जो बाल विवाह को बढ़ावा देता है, अनुमति देता है या उसमें भाग लेता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को मान्यता प्रदान की | उत्तर प्रदेश | 06 Nov 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 की संवैधानिक वैधता को आंशिक रूप से मान्यता प्रदान की तथा पुष्टि की कि उत्कृष्टता के मानकों को बनाए रखने के लिये राज्य को मदरसा शिक्षा को विनियमित करने का अधिकार है।
मुख्य बिंदु
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- न्यायालय ने घोषणा की कि उच्च शिक्षा से संबंधित प्रावधान, विशेष रूप से फाज़िल (स्नातक) और कामिल (स्नातकोत्तर) स्तर पर, असंवैधानिक थे।
- निर्णय में स्पष्ट किया गया कि यह अधिनियम राज्य के कर्त्तव्य के अनुरूप है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मान्यता प्राप्त मदरसों में पढ़ने वाले छात्र न्यूनतम स्तर की योग्यता प्राप्त कर करें। इससे यह सुनिश्चित होता है कि वे समाज में प्रभावी रूप से भाग ले सकें और जीविकोपार्जन कर सकें।
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यद्यपि अल्पसंख्यकों को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रबंधन करने का अधिकार है, परंतु यह अधिकार पूर्ण नहीं है।
- अल्पसंख्यक संस्थानों में शैक्षिक मानकों को बनाए रखने में राज्य का वैध हित है और वह सहायता और मान्यता के लिये नियामक शर्तें लगा सकता है।
- न्यायालय ने समवर्ती सूची की प्रविष्टि 25 में 'शिक्षा' की व्यापक व्याख्या की तथा कहा कि यद्यपि मदरसे धार्मिक शिक्षा प्रदान करते हैं, उनका प्राथमिक उद्देश्य शैक्षिक है, इसलिये वे इस प्रविष्टि के दायरे में आते हैं।
- मदरसा बोर्ड परीक्षा आयोजित करता है और छात्रों को प्रमाण पत्र जारी करता है, जो शैक्षिक ढाँचे के साथ संरेखित होता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि 2004 का अधिनियम अनुच्छेद 21A (शिक्षा का अधिकार) और संविधान के धर्मनिरपेक्षता सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 21A की व्याख्या धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने के अधिकारों के साथ की जानी चाहिये।
- संविधान के अनुच्छेद 28(3) का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक संस्थान में पढ़ने वाले छात्रों को धार्मिक शिक्षा या पूजा में भाग लेने के लिये बाध्य नहीं किया जाना चाहिये, जिससे उनके धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को सुनिश्चित किया जा सके।
उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004
- इस अधिनियम का उद्देश्य उत्तर प्रदेश राज्य में मदरसों (इस्लामी शैक्षणिक संस्थानों) के कामकाज को विनियमित और संचालित करना था।
- इसने उत्तर प्रदेश में मदरसों की स्थापना, मान्यता, पाठ्यक्रम और प्रशासन के लिये एक रूपरेखा प्रदान की।
- इस अधिनियम के तहत राज्य में मदरसों की गतिविधियों की देख-रेख और पर्यवेक्षण के लिये उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड की स्थापना की गई।