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मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में शावक की मौत
चर्चा में क्यों?
मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में अफ्रीकी चीता गामिनी के पाँच महीने के बच्चे की मौत हो गई।
- कुनो राष्ट्रीय उद्यान में अब 13 वयस्क चीते और 12 शावक शेष हैं।
मुख्य बिंदु:
- पाँच महीने के चीते के बच्चे की अचानक तबीयत खराब हो गई थी और रीढ़ की हड्डी टूटने के कारण वह अपने पिछले हिस्से को घसीटता हुआ पाया गया था, उसकी मौत हो गई है; मौत के कारण की पुष्टि पोस्टमार्टम के बाद होगी।
- कुनो राष्ट्रीय उद्यान:
- मध्य प्रदेश के श्योपुर ज़िले में स्थित कुनो राष्ट्रीय उद्यान नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से स्थानांतरित किये गए विभिन्न चीतों का आवास है।
- इसका नाम कुनो नदी के नाम पर रखा गया है, जो चंबल नदी की एक मुख्य सहायक नदी है, जो इस क्षेत्र से होकर प्रवाहित होती है।
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मध्य प्रदेश में 43 बाघों की मौत
चर्चा में क्यों
वर्ष 2021 से वर्ष 2023 के बीच 43 बाघों की मौत की जाँच की गई, जिसमें बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व में 34 और शहडोल वन सर्किल में 9 बाघों की मौत हुई।
मुख्य बिंदु:
- विशेष जाँच दल (Special Investigation Team- SIT) की रिपोर्ट: स्टेट टाइगर स्ट्राइक फोर्स के प्रभारी की अध्यक्षता में गठित SIT ने 15 जुलाई को कार्यवाहक प्रधान मुख्य वन संरक्षक (Principal Chief Conservator of Forests- PCCF) और प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख (Principal Chief Conservator of Forest & Head of the Forest Force- PCCF-HoFF) को अपनी रिपोर्ट सौंप दी।
- जाँच का अभाव: रिपोर्ट में बाघों की मौत के कम-से-कम 10 मामलों में अपर्याप्त जाँच, उच्च अधिकारियों और वन रेंज अधिकारियों की उदासीनता तथा 34 में से 10 मामलों में शरीर के अंगों के गायब होने की बात कही गई है।
- SIT का गठन: राज्य के मुख्य वन्यजीव वार्डन के आदेश पर बाघों की बड़ी संख्या में हुई मौतों की जाँच के लिये SIT का गठन किया गया था।
बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व (BTR)
- यह मध्य प्रदेश के उमरिया ज़िले में स्थित है और विंध्य पहाड़ियों पर फैला हुआ है।
- वर्ष 1968 में इसे राष्ट्रीय उद्यान के रूप में अधिसूचित किया गया तथा वर्ष 1993 में पड़ोसी पनपथा अभयारण्य में प्रोजेक्ट टाइगर नेटवर्क के तहत इसे बाघ अभयारण्य घोषित किया गया।
- यह रॉयल बंगाल टाइगर्स के लिये जाना जाता है। बांधवगढ़ में बाघों की आबादी का घनत्व भारत के साथ-साथ विश्व में भी सबसे ज़्यादा है।
- ये धाराएँ फिर सोन नदी (गंगा नदी की एक महत्त्वपूर्ण दक्षिणी सहायक नदी) में विलीन हो जाती हैं।
- महत्त्वपूर्ण शिकार प्रजातियों में चीतल, सांभर, बार्किंग डियर, नीलगाय, चिंकारा, जंगली सुअर, चौसिंघा, लंगूर और रीसस मकाक शामिल हैं।
- बाघ, तेंदुआ, जंगली कुत्ता, भेड़िया और सियार जैसे प्रमुख शिकारी इन पर निर्भर हैं।
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