प्रधानमंत्री ने अजमेर शरीफ दरगाह में भेंट दी | राजस्थान | 03 Jan 2025
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, प्रधान मंत्री ने 'उर्स' के अवसर पर सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की अजमेर शरीफ दरगाह पर चढ़ाने के लिये अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरण रिजिजू को 'चादर' भेंट की।
- उर्स उत्सव राजस्थान के अजमेर में आयोजित होने वाला एक वार्षिक उत्सव है जो सूफी संत मोईनुद्दीन चिश्ती की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
![](http://drishtiias.com/hindi/images/uploads/1735902542_Sufi Saint Khwaja Moinuddin Chishti.png)
मुख्य बिंदु
- ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती:
- मोईनुद्दीन हसन चिश्ती का जन्म 1141-42 ई. में ईरान के सिजिस्तान (आज के समय में सिस्तान) में हुआ था।
- मुइज़ुद्दीन मुहम्मद बिन साम गौर ने तराइन के दूसरे युद्ध (1192) में पृथ्वीराज चौहान को पराजित कर दिया था और दिल्ली में अपना शासन स्थापित कर लिया था, उसके पश्चात ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ने अजमेर में रहना और उपदेश देना शुरू कर दिया था।
- आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण उनके शिक्षाप्रद प्रवचनों ने जल्द ही स्थानीय जनता के साथ-साथ दूर-दूर से राजाओं, कुलीनों, किसानों और गरीबों को भी अपनी ओर आकर्षित किया।
- अजमेर स्थित उनकी दरगाह पर मुहम्मद बिन तुगलक, शेरशाह सूरी, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ, दारा शिकोह और औरंगजेब जैसे शासकों द्वारा दौरा किया गया।
- चिश्ती सिलसिला (चिश्तिया):
- चिश्तिया सिलसिले (Order) की स्थापना भारत में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ने की थी।
- इसमें ईश्वर के साथ एकता (वहदत अल-वुजूद) के सिद्धांत पर ज़ोर दिया गया तथा इस सिलसिले के सदस्य शांतिवादी भी थे।
- उन्होंने सभी भौतिक वस्तुओं को ईश्वर के चिंतन में बाधा मानकर अस्वीकार कर दिया।
- वे धर्मनिरपेक्ष राज्य से संबंध रखने से दूर रहे।
- ईश्वर के नामों का उच्चारण, ज़ोर से और मन ही मन (धिक्र-जहरी, धिक्र-खफी) करना, चिश्ती प्रथा की आधारशिला थी।
- चिश्ती शिक्षाओं को ख्वाजा मोइन-उद्दीन चिश्ती के शिष्यों जैसे ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी, फरीदुद्दीन गंज-ए-शकर, निज़ाम उद्दीन औलिया और नसीरुद्दीन चराग द्वारा आगे बढ़ाया और लोकप्रिय बनाया गया।
सूफीवाद
- सूफीवाद इस्लाम का एक रहस्यवादी रूप है, एक अभ्यास विद्यालय जो ईश्वर की आध्यात्मिक खोज पर केंद्रित है और भौतिकवाद से दूर रहता है।
- यह इस्लामी रहस्यवाद का एक रूप है जो तप पर ज़ोर देता है। इसमें ईश्वर के प्रति समर्पण पर बहुत ज़ोर दिया जाता है।
- सूफीवाद में, ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करने के लिये आत्म अनुशासन को एक आवश्यक शर्त माना जाता है।
- रूढ़िवादी मुसलमानों के विपरीत, जो बाह्य आचरण पर ज़ोर देते हैं, सूफी आंतरिक पवित्रता पर ज़ोर देते हैं।
- सूफियों का मानना है कि मानवता की सेवा ईश्वर की सेवा के समान है।