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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    तराइन एवं चंदावर की लड़ाइयों ने भारत में तुर्की शासन की नींव रखी थी, विस्तार पूर्वक स्पष्ट कीजिये। (250 शब्द )

    07 Aug, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भूमिका

    • कथन के पक्ष में तर्क

    • उदाहरण

    • निष्कर्ष

    तराइन एवं चंदावर की लड़ाइयों में भारतीय राजपूत शासकों की पराजय के परिणामस्वरूप भारत में तुर्की शासन की नीव पड़ी। इस पराजय से यह नहीं कहा जा सकता कि युद्ध कौशल की श्रेष्ठता सिर्फ तुर्कों का गुण था बल्कि भारतीय राजपूत शासकों की वीरता एंव साहस भी जगत प्रसिद्ध थी किंतु उन्होंने युद्ध में भी नैतिकता को महत्त्व दिया गया। साथ ही कुछ रणनीतिक गलतियाँ भी की जिसके चलते उन्हें पराजय का मुँह देखना पड़ा और भारत मे तुर्की शासन की नींव पड़ी।

    पंजाब को जीतने के पश्चात् जब मोहम्मद गोरी के राज्य की सीमाएँ दिल्ली एवं अजमेर के शासक पृथ्वीराज के राज्य की सीमाओं से मिलने लगी तब गोरी ने 1189 ई. में भटिंडा के किले पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। इसकी खबर जब पृथ्वीराज को मिली तो उसने भटिंडा को जीतने का निश्चय किया। भटिंडा के किले को लेकर पृथ्वीराज एवं मोहम्मद गोरी के बीच 1191 ई. में तराइन का प्रथम युद्ध हुआ जिसमें गोरी की पराजय हुई। तुर्की सेना के बड़े प्रतिरोध के बावजूद पृथ्वीराज ने 13 माह के पश्चात् भटिंडा के किले पर नियंत्रण स्थापित कर लिया।

    तराइन के प्रथम युद्ध मे पृथ्वीराज की विजय तो हुई किंतु इस दौरान उनसे कुछ गलतियाँ भी हुई जिसके परिणाम उसके लिये बाद मे हानिकारक रहे। इस युद्ध मे जब गोरी पराजित होकर भागा तो नैतिकता बस पृथ्वीराज ने भागते हुए शत्रु पर वार नहीं किया, न ही पीछा करके खदेड़ा। दूसरे सीमाओं की सुरक्षा का प्रबंध नहीं किया खासकर उत्तरी सीमा की सुरक्षा करना अति आवश्यक था क्योंकि इसी सीमा से भारत पर पहले से ही आक्रमण होते रहे थे।

    तराइन के प्रथम युद्ध की पराजय से अपमानित मोहम्मद गोरी एक वर्ष तक अपनी तैयारी करता रहा, फिर अपने साथ एक लाख बीस हज़ार की चुनी हुई घुड़सवार सेना लेकर गजनी से चला। लाहौर पहुँचकर उसने पृथ्वीराज के पास संदेश भेजा कि वह इस्लाम और उसका आधिपत्य स्वीकार कर ले। पृथ्वीराज ने उसे भारत से लौट जाने का परामर्श दिया। मोहम्मद गोरी का उद्देश्य तो युद्ध करना था तो वह पृथ्वीराज की बातों पर ध्यान क्यों देता, उसने भटिंडा पर आक्रमण कर दिया और उसे जीतकर तराइन के मैदान में पुनः पहुँच गया।

    1192 ई. में पृथ्वीराज ने एक बड़ी सेना लेकर तराइन के मैदान में मोहम्मद गोरी का प्रतिरोध किया जिसे तराइन का द्वितीय युद्ध कहा गया। तराइन के द्वितीय युद्ध में मोहम्मद गोरी ने सजगता के साथ युद्ध किया जिसमें पृथ्वीराज की हार हुई तथा उसे सुरसती नदी के किनारे पकड़ लिया गया और कुछ दिन बाद उसकी हत्या कर दी गई। तराइन का द्वितीय युद्ध भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण रहा। इसी के साथ चौहानों की साम्राज्यवादी शक्ति नष्ट कर दी गई।

    पृथ्वीराज की पराजय का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि वह विदेशी आक्रमण के विरूद्ध न तो गहड़वालों की सहायता ले सका और न ही गुजरात के चालुक्यों की, गहड़वालों की सहायता न मिलने का मुख्य कारण पृथ्वीराज द्वारा गहड़वाल शासक जयचंद की पुत्री का हरण था जिसके कारण उनकी आपसी शत्रुता हो गई थी। उस समय उतर भारत में गहड़वालों को शक्तिशाली शासक माना जाता था। दूसरे, गहड़वालों के साथ संघर्ष मे पृथ्वीराज के अनेक सेनानायक, सामंत एंव सैनिक मारे गए थे जिसके कारण पृथ्वीराज की शक्ति क्षीण हो गई थी।

    1194 ई. में मोहम्मद गोरी कन्नौज के शासक जयचंद गहड़वाल पर आक्रमण करने के लिये भारत आया। उस समय उत्तर भारत के कन्नौज का राज्य बहुत शक्तिशाली माना जाता था। इसी जयचंद ने आपसी शत्रुता के कारण पृथ्वीराज की तराइन के द्वितीय युद्ध में सहायता नहीं की थी। इस अवसर पर जयचंद को भी गोरी से अकेले ही युद्ध करना पड़ा। मोहम्मद गोरी एवं जयचंद के बीच युद्ध चंदावर नामक स्थान पर हुआ जो इटावा एंव कन्नौज में पड़ता है। चंदावर के युद्ध मे जयचंद मारा गया और राजपूतों की पराजय हुई ।

    चंदावर के युद्ध में जयचंद की पराजय के पश्चात् मोहम्मद गोरी ने आगे बढ़कर वाराणसी को लूटा तथा जयचंद के राज्य के सभी प्रमुख स्थानों पर नियंत्रण कर लिया। अब उत्तर भारत में मोहम्मद गोरी का मुकाबला करने के लिये अन्य कोई शक्तिशाली राजा नही बचा था इसके साथ ही बंगाल, बिहार पर विजय का मार्ग प्रशस्त हो गया। इस विजय के उपरांत मोहम्मद गोरी तो वापस चला गया किंतु उसके विजित प्रदेशों को उसके गुलामों द्वारा संगठित किया गया तथा तुर्की शासन व्यवस्था की स्थापना की गई।

    निष्कर्षतः कह सकते हैं कि भारत मे तुुर्की शासन की स्थापना के पीछे भारतीय राजाओं के आपसी मतभेद, प्रतिस्पर्द्धा एवं संघर्ष के साथ सामाजिक विभेद प्रमुख कारण रहे जिसने राजनीतिक एकता को नष्ट कर दिया था। दूसरे सामाजिक अव्यवस्था एवं असंतोष ने देशद्रोह की भावना को जन्म दिया। अनेक अवसरों पर तुर्कों की विजय भारतीय सहयोग के कारण ही हुई थी फलतः दूषित सामाजिक व्यवस्था भी राजपूतों की पराजय एवं तुर्कों की विजय का महत्त्वपूर्ण कारण बनी।

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