मध्य प्रदेश Switch to English
मध्य प्रदेश में पराली दहन की बढ़ती घटनाएँ
चर्चा में क्यों?
हालिया आँकड़ों से पता चलता है कि मध्य प्रदेश में पराली दहन की घटनाओं में वृद्धि हुई है, जो पारंपरिक हॉटस्पॉट पंजाब और हरियाणा से आगे निकल गई है, जिससे दिल्ली में प्रदूषण बढ़ गया है।
मुख्य बिंदु
- डेटा अवलोकन :
- मध्य प्रदेश में हाल ही में पराली दहन के 536 मामले दर्ज किये गए, जो पंजाब (410 मामले) और हरियाणा (192 मामले) से अधिक है।
- उत्तर प्रदेश और राजस्थान में पराली दहन की बढ़ती घटनाएँ भी वायु गुणवत्ता संबंधी समस्याओं में योगदान देती हैं, जिससे प्रदूषण स्रोतों के बारे में पूर्व की धारणाओं को चुनौती मिलती है।
- दिल्ली पर प्रभाव :
- पराली दहन से दिल्ली की खराब वायु गुणवत्ता में महत्त्वपूर्ण योगदान हुआ है, अनुमान है कि 31 अक्तूबर, 2024 तक वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 400 तक बढ़ जाएगा।
- किसानों को प्रोत्साहन या वैकल्पिक उपयोग के माध्यम से, फसल अवशेष जलाने के प्रबंधन के लिये राज्यों में तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता है।
पराली दहन
- परिचय:
- पराली दहन धान की फसल के अवशेषों को खेत से हटाने की एक विधि है, जिसका उपयोग सितंबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर तक गेहूँ की बुवाई के लिये किया जाता है, जो दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी के साथ ही होता है।
- पराली दहन धान, गेहूँ आदि जैसे अनाज की कटाई के बाद बचे पुआल के ठूँठ को आग लगाने की प्रक्रिया है। प्रायः इसकी आवश्यकता उन क्षेत्रों में होती है जहाँ संयुक्त कटाई पद्धति का उपयोग किया जाता है, जिससे फसल अवशेष बच जाते हैं।
- यह अक्तूबर और नवंबर में पूरे उत्तर पश्चिम भारत में, लेकिन मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में एक सामान्य प्रथा है।
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