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भूमिगत कोयला गैसीकरण हेतु भारत की पहली पायलट परियोजना
चर्चा में क्यों?
कोयला मंत्रालय, ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (ECL) झारखंड के जामताड़ा ज़िले में कास्ता कोयला ब्लॉक में भूमिगत कोयला गैसीकरण (UCG) के लिये एक पायलट परियोजना का संचालन कर रहा है।
मुख्य बिंदु:
- इसका उद्देश्य कोयला गैसीकरण का प्रयोग करके कोयला उद्योग में क्रांति लाना है, ताकि इसे मीथेन, हाइड्रोजन, कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइ-ऑक्साइड जैसी मूल्यवान गैसों में परिवर्तित किया जा सके।
- इन गैसों का उपयोग सिंथेटिक प्राकृतिक गैस, ईंधन, उर्वरक, विस्फोटक और अन्य औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिये रासायनिक फीडस्टॉक के उत्पादन में किया जा सकता है।
- कोयला मंत्रालय कोयला गैसीकरण परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिये पूरी तरह से प्रतिबद्ध है तथा कोयले को विभिन्न उच्च मूल्य वाले रासायनिक उत्पादों में परिवर्तित करने की उनकी क्षमता का अभिनिर्धारण करता है।
- पहले चरण में बोरहोल ड्रिलिंग और कोर परीक्षण के माध्यम से तकनीकी व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार करना शामिल है। अगले चरण में पायलट स्तर पर कोयला गैसीकरण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- इस पायलट परियोजना के सफल क्रियान्वयन से भारत के ऊर्जा क्षेत्र के लिये परिवर्तनकारी अवसर उत्पन्न होने की उम्मीद है। यह देश के कोयला संसाधनों के दीर्घकालिक और कुशल उपयोग को प्रदर्शित करेगा।
कोयला गैसीकरण
- प्रक्रिया: कोयला गैसीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कोयले को वायु, ऑक्सीजन, भाप या कार्बन डाइ-ऑक्साइड के साथ आंशिक रूप से ऑक्सीकृत करके ईंधन गैस बनाया जाता है।
- इस गैस का प्रयोग ऊर्जा प्राप्त करने के लिये पाइप्ड प्राकृतिक गैस, मीथेन और अन्य गैसों के स्थान पर किया जाता है।
- कोयले का इन-सीटू/स्व-स्थानीय गैसीकरण या भूमिगत कोयला गैसीकरण (UCG) वह तकनीक है जिसमें कोयले को भू-तल में रहते हुए ही गैस में परिवर्तित कर दिया जाता है और फिर कुओं के माध्यम से उसका निष्कर्षण किया जाता है।
- सिंथेटिक गैस का उत्पादन: यह सिंथेटिक गैस का उत्पादन करता है जो मुख्य रूप से मीथेन (CH4), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), हाइड्रोजन (H2), कार्बन डाइ-ऑक्साइड (CO2) और जल वाष्प (H2O) का मिश्रण है।
- सिंथेटिक गैस का प्रयोग विभिन्न प्रकार के उर्वरकों, ईंधनों, विलायकों और सिंथेटिक सामग्रियों के उत्पादन में किया जा सकता है।
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