यूरिया-कुशल गेहूँ की किस्में | 19 Dec 2024
चर्चा में क्यों?
भारतीय और जापानी संस्थान जैविक नाइट्रीकरण अवरोध (BNI) प्रौद्योगिकी का उपयोग करके भारत की पहली गेहूँ किस्म विकसित करने के लिये सहयोग कर रहे हैं, जो सतत् कृषि की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- इस परियोजना में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)- केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान (CSSRI), करनाल शामिल है।
मुख्य बिंदु
- उद्देश्य:
- इन किस्मों का उद्देश्य यूरिया पर निर्भरता को कम करना, पर्यावरणीय स्थिरता, कृषि उत्पादकता और यूरिया सब्सिडी के वित्तीय बोझ जैसी चुनौतियों का समाधान करना है।
- सहयोगात्मक प्रयास:
- यह परियोजना भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान (IIWBR), भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) और बोरलॉग दक्षिण एशिया संस्थान (BISA) की संयुक्त पहल है।
- यह जापान अंतर्राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अनुसंधान केंद्र (JIRCAS) के सहयोग से किया जाता है तथा जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (JICA) द्वारा वित्त पोषित होता है।
- BNI की परिवर्तनकारी क्षमता:
- CSSRI के वैज्ञानिकों के अनुसार, BNI प्रौद्योगिकी उपज या गुणवत्ता से समझौता किये बिना नाइट्रोजन उर्वरक की मांग को कम कर सकती है।
- उन्होंने कहा कि BNI भूजल में नाइट्रोजन रिसाव को न्यूनतम करके सतत् कृषि का समर्थन करता है, जिससे मृदा की उर्वरता और जल संसाधनों का संरक्षण होता है।
- आशाजनक परिणाम:
- IIWBR के वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि प्रारंभिक प्रयोगों में यूरिया के उपयोग में 15-20% की कमी आई, लेकिन इससे उपज या गुणवत्ता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
- BNI-सक्षम गेहूँ किस्मों के विकास के लिये प्रजनन रणनीति अच्छी तरह से आगे बढ़ रही है।
- भविष्य के निहितार्थ:
- भारत और जापान के बीच यह महत्त्वपूर्ण सहयोग गेहूँ की खेती में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा, यूरिया पर निर्भरता कम करेगा और वैश्विक कृषि चुनौतियों का समाधान करेगा।
जैविक नाइट्रीकरण अवरोध (BNI)
- यह एक प्राकृतिक पादप प्रक्रिया है जो कृषि प्रणालियों में नाइट्रीकरण को विनियमित करने और नाइट्रोजन-उपयोग दक्षता में सुधार करने में मदद कर सकती है।
- इससे सतत् कृषि प्रणालियों को विकसित करने में सहायता मिल सकती है जो उत्पादक तो होंगी लेकिन पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुँचाएंगी।
- नाइट्रीकरण के उच्च स्तर से नाइट्रोजन निक्षालन, विनाइट्रीफिकेशन और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन हो सकता है।
यूरिया पर सब्सिडी
- भारत में यूरिया सबसे ज़्यादा उत्पादित, आयातित, उपभोग किया जाने वाला और शारीरिक रूप से विनियमित उर्वरक है। इसमें केवल कृषि उपयोग के लिये सब्सिडी दी जाती है।
- केंद्र सरकार प्रत्येक संयंत्र में उत्पादन लागत के आधार पर उर्वरक निर्माताओं को यूरिया पर सब्सिडी का भुगतान करती है और इकाइयों को सरकार द्वारा निर्धारित अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर उर्वरक बेचना होता है।