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राजस्थान

वैश्विक चुनौतियों के लिये जनजातीय समुदाय समाधान

  • 22 Jul 2024
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में सतत् विकास पर आयोजित उच्च स्तरीय राजनीतिक फोरम (High-Level Political Forum- HLPF) में वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये राजस्थान के स्थानिक जनजातीय समुदायों के समाधान और नीतिगत भागीदारी पर प्रकाश डाला गया।

  • राज्य के एक प्रतिनिधि ने चर्चा की कि कैसे जनजातीय समुदायों की पारंपरिक प्रथाओं ने उनकी समृद्ध प्राकृतिक विरासत के संरक्षण में योगदान दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • यह फोरम संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (Economic and Social Council- ECOSOC) के तत्त्वावधान में आयोजित किया गया था।
    • इसकी थीम थी ‘Reinforcing the 2030 agenda and eradicating poverty in times of multiple crises: The effective delivery of sustainable, resilient and innovative solutions’ है जिसका अर्थ ‘2030 के एजेंडे को सुदृढ़ करना और विभिन्न संकटों के समय गरीबी उन्मूलन: सतत्, लचीले और नवीन समाधानों का प्रभावी वितरण’।
  • मंच पर अपनाए गए मंत्रिस्तरीय घोषणा-पत्र में सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) को प्राप्त करने के लिये नए सिरे से प्रोत्साहन देने का आह्वान किया गया।
  • मंच पर विशेषज्ञों ने जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान के लिये स्वदेशी समुदायों को मान्यता देने के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
    • उन्होंने रणनीति निर्माण में इन समुदायों की वैश्विक भागीदारी की वकालत की तथा इस बात पर प्रकाश डाला कि उनकी पारंपरिक प्रथाएँ सतत् विकास के लिये आवश्यक अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं।
  • प्राकृतिक और समुदाय-केंद्रित दृष्टिकोणों के प्रति विश्वास पर आधारित स्थानिक प्रथाएँ स्थिरता तथा लचीलेपन को बढ़ावा दे सकती हैं, जो संकट के बीच वर्ष 2030 के एजेंडे को सुदृढ़ करने के लिये आवश्यक हैं।
  • स्वराज के सिद्धांतों (संप्रभुता) से प्रेरित होकर, जनजातीय समुदायों की जीवनशैली और सांस्कृतिक मूल्यों ने आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया है, बाहरी स्रोतों पर निर्भरता कम की है तथा कृषि पद्धतियों में सुधार किया है, जिससे उनके परिवारों के लिये भोजन, पोषण और आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित हुई है।
    • फोरम में जिन जनजातियों की सर्वोत्तम प्रथाओं पर प्रकाश डाला गया, उनमें स्थानीय बीजों का उत्पादन, स्रोत पर जल संरक्षण, कृषि में पशुओं का उपयोग, मिश्रित फसलों के माध्यम से मृदा अपरदन को रोकना तथा पोषण सुरक्षा के लिये बिना कृषि वाले खाद्यान्न का उपयोग शामिल थे।
    • इन प्रथाओं ने जनजातीय समुदायों को बाज़ार पर अपनी निर्भरता कम करने और वर्ष 2020-21 में कोविड-19 महामारी सहित कठिन दौर के दौरान जीवित रहने में मदद की है।
  • जनजातीय समुदायों की पारंपरिक प्रथाएँ न केवल उनकी आकांक्षाओं को पूरा करेंगी, उन्हें सतत् और लचीले समाधान प्रदान करेंगी, बल्कि गरीबी, असमानता और सुभेद्यता के मुद्दों को हल करने में भी मदद करेंगी, ताकि सतत् विकास लक्ष्य (SDG) के लिये वर्ष 2030 के एजेंडे को आगे बढ़ाया जा सके।

संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (Economic and Social Council- ECOSOC)

  • वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा स्थापित यह निकाय आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर समन्वय, नीति समीक्षा, नीति संवाद तथा सिफारिशों के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहमत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन के लिये प्रमुख निकाय है।
  • इसके 54 सदस्य हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा तीन वर्ष के कार्यकाल के लिये निर्वाचित किया जाता है।
  • यह सतत् विकास पर विचार करने, संवाद और रचनात्मक सोच के लिये संयुक्त राष्ट्र का केंद्रीय मंच है।
    • प्रतिवर्ष ECOSOC सतत् विकास के लिये वैश्विक महत्त्व की वार्षिक थीम के इर्द-गिर्द अपनी कार्य संरचना बनाता है।
  • यह संयुक्त राष्ट्र की 14 विशिष्ट एजेंसियों, दस कार्यात्मक आयोगों और पाँच क्षेत्रीय आयोगों के कार्यों का समन्वय करता है, नौ संयुक्त राष्ट्र निधियों तथा कार्यक्रमों से रिपोर्ट प्राप्त करता है एवं संयुक्त राष्ट्र प्रणाली व सदस्य राज्यों के लिये नीतिगत सिफारिशें जारी करता है।
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