बिहार में सतत् विकास | 13 Jun 2024
चर्चा में क्यों?
कॉर्नेल विश्वविद्यालय में टाटा-कॉर्नेल इंस्टीट्यूट फॉर एग्रीकल्चर एंड न्यूट्रिशन (TCI) के अनुसार, बिहार कृषि क्षेत्र में तीन परिवर्तनकारी तकनीकों को लागू करके सतत् विकास की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति कर सकता है।
मुख्य बिंदु:
- नीति संक्षिप्त में इस बात पर बल दिया गया है कि बिहार चावल उत्पादन और पशु-पालन से जुड़े ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम कर सकता है, उत्पादकता को बनाए रखते हुए यहाँ तक कि सुधार भी कर सकता है।
- नीति संक्षिप्त में TCI की शून्य-भूख, शून्य-कार्बन खाद्य प्रणाली परियोजना के भीतर किये गए एक अध्ययन पर चर्चा की गई है, जिसका उद्देश्य उत्पादकता के स्तर को बनाए रखते हुए बिहार में कृषि उत्सर्जन को कम करने की रणनीति विकसित करना है।
- भारत के GHG उत्सर्जन में राष्ट्रीय स्तर पर कृषि का योगदान 20% है, जिसमें बिहार कुपोषण से प्रभावित राज्यों में से एक है, खासकर छोटे बच्चों में।
- TCI शोध के अनुसार, बिहार धान की कृषि के लिये वैकल्पिक नमी और शुष्कता, मवेशियों के प्रजनन के लिये उन्नत कृत्रिम गर्भाधान तथा अपने पशुधन क्षेत्र में एंटी-मीथेनोजेनिक फीड सप्लीमेंट्स को अपनाकर प्रत्येक वर्ष 9.4-11.2 मीट्रिक टन उत्सर्जन कम कर सकता है।
- शोध से पता चलता है कि वैकल्पिक नमी और शुष्कता, उन्नत प्रजनन तकनीक तथा एंटी-मीथेनोजेनिक फीड बिहार को उत्पादकता को नुकसान पहुँचाए बिना अपने कृषि उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकते हैं।
- नीति में बिहार के चार कृषि जलवायु क्षेत्रों में से प्रत्येक के लिये उत्सर्जन में कमी का विवरण प्रस्तुत किया गया। वैकल्पिक नमी और शुष्कता के लिये बिहार के दक्षिण-पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम क्षेत्रों में सबसे अधिक संभावित शमन स्तर हैं।
- बिहार के चार कृषि जलवायु क्षेत्र: ज़ोन-I, उत्तरी जलोढ़ मैदान, ज़ोन-II, उत्तर पूर्व जलोढ़ मैदान, ज़ोन-III A दक्षिण पूर्व जलोढ़ मैदान और ज़ोन-III B, दक्षिण पश्चिम जलोढ़ मैदान।
नोट: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने एंटी-मीथेनोजेनिक फ़ीड सप्लीमेंट ‘हरित धारा’ (HD) विकसित किया है, जो मवेशियों के मीथेन उत्सर्जन को 17-20% तक कम कर सकता है और इसके परिणामस्वरूप दुग्ध उत्पादन भी बढ़ सकता है