बाइसन जनसंख्या को रिवाइव करने हेतु अध्ययन | 21 Jan 2025

चर्चा में क्यों?

हाल ही में झारखंड वन विभाग ने पलामू टाइगर रिज़र्व (PTR) में बाइसन (जिसे आमतौर पर गौर के नाम से जाना जाता है) की घटती संख्या को रिवाइव (पुनर्जीवित) करने के लिये एक अध्ययन शुरू किया।

मुख्य बिंदु

  • झारखंड में बाइसन जनसंख्या की स्थिति:
    • बाइसन, जो बड़ी बिल्लियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण भोजन स्रोत है, पलामू टाइगर रिज़र्व (PTR) को छोड़कर पूरे झारखंड में विलुप्त हो चुका है।
    • PTR में वर्तमान बाइसन की जनसंख्या 50 से 70 के बीच है, जो 1970 के दशक की तुलना में काफी कम है, जब यह लगभग 150 थी।
  • गिरावट के कारण:
    • प्रमुख कारकों में अवैध शिकार, संक्रमण और स्थानीय मवेशियों के कारण आवास में गड़बड़ी शामिल हैं।
    • 1.5 लाख से अधिक पालतू मवेशी बाइसन के निवास स्थान पर अधिकार कर लेते हैं, उनके आहार का सेवन करते हैं और मुँह और खुरपका रोग जैसे संक्रामक रोगों का प्रसार करते हैं।
  • वर्तमान संरक्षण प्रयास:
    • PTR प्राधिकरण ने बाइसन के अस्तित्व को प्रभावित करने वाले कारकों का आकलन करने के लिये एक अध्ययन शुरू किया है, जिसमें आवास सुधार और घास प्रजातियों की प्राथमिकताएँ शामिल हैं।
      • अध्ययन के बाद एक व्यापक पुनरुद्धार योजना बनाई जाएगी।
    • बीमारियों के प्रसार को रोकने के लिये, आसपास के 190 गांवों के 1.5 लाख घरेलू मवेशियों को टीका लगाने का टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है।
    • चरागाह सुधार और अवैध शिकार विरोधी उपायों को भी मजबूत किया जा रहा है।
  • कोर और बफर ज़ोन प्रबंधन:
    • PTR 1,129.93 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत है, जिसमें से 414.08 वर्ग किलोमीटर को कोर (महत्त्वपूर्ण बाघ आवास) और 715.85 वर्ग किलोमीटर को बफर ज़ोन घोषित किया गया है।
    • बेतला राष्ट्रीय उद्यान PTR के 226.32 वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत है, जिसमें से 53 वर्ग किमी. क्षेत्र बफर ज़ोन में पर्यटकों के लिये खुला है।
    • मुख्य पर्यावासों की सुरक्षा के लिये PTR सीमा के भीतर 34 गाँवों में से आठ को स्थानांतरित करने के प्रयास चल रहे हैं।

बाइसन

  • परिचय:
    • भारतीय बाइसन या गौर (बोस गौरस) भारत में पाई जाने वाली जंगली मवेशियों की सबसे लंबी प्रजाति है और सबसे बड़ा मौजूदा गोजातीय पशु है।
    • विश्व में गौर की संख्या लगभग 13,000 से 30,000 है, जिनमें से लगभग 85% जनसंख्या भारत में मौजूद है।
  • भूगोल:
    • इसका मूल स्थान दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया है।
    • भारत में, वे पश्चिमी घाटों में बहुत अधिक प्रचलित हैं।
    • यह बर्मा और थाईलैंड में भी पाया जाता है।
  • प्राकृतिक वास:
    • वे सदाबहार वनों और नम पर्णपाती वनों को पसंद करते हैं।
    • वे हिमालय में 6,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर नहीं पाए जाते हैं।
  • संरक्षण की स्थिति:


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