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हरियाणा

राज्य के निवासियों को अतिरिक्त अंक देने का आदेश बरकरार

  • 25 Jun 2024
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने "सामाजिक-आर्थिक" कारकों के आधार पर विशिष्ट नौकरी की भर्तियों के लिये राज्य के निवासियों को 5% अतिरिक्त अंक देने के हरियाणा सरकार के निर्णय को रद्द करने के उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा और इसे एक अनुचित कार्रवाई माना।

मुख्य बिंदु:

  • हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग की याचिका को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के उस निर्णय को चुनौती देने के लिये खारिज कर दिया गया है, जिसमें वर्ष 2023 के कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (CET 2023) के दौरान हरियाणा के निवासियों को अतिरिक्त अंक प्रदान करने वाली राज्य अधिसूचना को रद्द कर दिया गया था। न्यायालय ने नई परीक्षा आयोजित करने का आदेश दिया।
  • इस "सामाजिक-आर्थिक" मानदंड के तहत हरियाणा सरकार ने कुछ शर्तों को पूरा करने पर हरियाणा के निवासियों को अतिरिक्त महत्त्व प्रदान किया।
  • इन शर्तों में परिवार का कोई भी सदस्य स्थायी सरकारी कर्मचारी न होना तथा सभी स्रोतों से कुल वार्षिक पारिवारिक आय 1.8 लाख रुपए से कम होना शामिल है।

अधिवास आरक्षण

  • एक ओर संविधान की धारा 16(2) में कहा गया है कि राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के संबंध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा।”
  • दूसरी ओर, इसी अनुच्छेद का खंड 4 कहता है कि “इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में जिसका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिये उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।”
  • लेकिन ये प्रावधान सरकारी नौकरियों के मामले में लागू हैं।
  • अनुच्छेद 19(1)(g) सभी नागरिकों को कोई भी वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने का अधिकार प्रदान करता है।
  • इस प्रकार राज्य सरकारों द्वारा ऐसी सीमाएँ लगाना किसी व्यक्ति के अपनी पसंद की वृत्ति, व्यापार या कारोबार में शामिल होने के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता है, जैसा कि अनुच्छेद 19(1)(g) में कहा गया है।
  • इसके अलावा, उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि ‘‘हरियाणा राज्य से असंबद्ध नागरिकों के समूह को द्वितीयक दर्जा देने (secondary status) और आजीविका कमाने के उनके मौलिक अधिकारों में कटौती करके संवैधानिक नैतिकता (constitutional morality) की अवधारणा का खुले तौर पर उल्लंघन किया गया है
  • आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी माना है कि वर्ष 2019 में पारित आंध्र प्रदेश का अधिवास के आधार पर आरक्षण प्रदान करने वाला विधेयक “असंवैधानिक हो सकता है”, हालाँकि अभी मेरिट या योग्यता के आधार पर इस पर सुनवाई किया जाना शेष है।

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