रसेल वाइपर साँप | 18 Oct 2024

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में बिहार में एक व्यक्ति ने सभी को चौंका दिया जब वह अस्पताल में उस खतरनाक साँप (रसेल वाइपर) के साथ आया, जिसने उसे काट लिया था।

मुख्य बिंदु 

  • रसेल वाइपर:
    • रसेल वाइपर (दबौया साँप) भारत के सबसे खतरनाक साँपों में से एक है। इसका ज़हर हेमोटॉक्सिक होता है, जिससे आंतरिक रक्तस्राव, मांसपेशियों को नुकसान और गुर्दे की विफलता हो सकती है।
    • यदि उपचार न किया जाए तो इस साँप के काटने से मृत्यु हो सकती है तथा इसके लक्षण गंभीर दर्द, सूजन और रक्तस्राव हो सकते हैं।
  • विष और प्रतिविष:
    • विष की संरचना: रसेल वाइपर का विष रक्त के थक्के को बाधित करता है, जिससे आंतरिक रक्तस्राव होता है।
    • एंटीवेनम उत्पादन: साँपों से विष निकाला जाता है, जानवरों (आमतौर पर घोड़ों) में इंजेक्ट किया जाता है, जो फिर एंटीबॉडी का उत्पादन करते हैं। इन एंटीबॉडी को एंटीवेनम बनाने के लिये निकाला जाता है।
  • WPA, 1972 के तहत कानूनी संरक्षण:
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA), 1972 रसेल वाइपर को अनुसूची II के अंतर्गत  संरक्षित वन्यजीव के रूप में वर्गीकृत करता है ।
    • बिना अनुमति के इन साँपों को संभालना, पकड़ना या नुकसान पहुँचाना अवैध है।

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 जंगली जानवरों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन, जंगली जानवरों, पौधों और उनसे बने उत्पादों के व्यापार के विनियमन एवं नियंत्रण के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
  • अधिनियम में उन पौधों और जानवरों की अनुसूचियाँ भी सूचीबद्ध की गई हैं जिन्हें सरकार द्वारा अलग-अलग स्तर पर संरक्षण और निगरानी प्रदान की जाती है।
  • वन्यजीव अधिनियम, 1972 द्वारा CITES (वन्य जीव और वनस्पति की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय) में भारत का प्रवेश आसान बना दिया गया।
  • इससे पहले, जम्मू-कश्मीर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अंतर्गत नहीं आता था। पुनर्गठन अधिनियम के परिणामस्वरूप अब भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 जम्मू-कश्मीर पर लागू होता है।