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State PCS Current Affairs

उत्तर प्रदेश

NIA और बंदी प्रत्यक्षीकरण मामलों का पुनः निर्धारण

  • 03 Sep 2024
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में न्यायमूर्ति श्रीधरन के कई फैसलों के बाद जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में NIA (राष्ट्रीय जाँच एजेंसी) और बंदी प्रत्यक्षीकरण मामलों को श्रीनगर में एक नई पीठ को सौंप दिया गया।

मुख्य बिंदु

  • रोस्टर उच्च न्यायालय की कार्यकुशलता बढ़ाने के लिये उसके सदस्यों को कार्य सौंपने की एक व्यवस्थित योजना है।
    • रोस्टर में परिवर्तन: एक आदेश द्वारा NIA और बंदी प्रत्यक्षीकरण मामलों के लिये मौजूदा रोस्टर को संशोधित किया गया तथा उसे न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन की पीठ से न्यायमूर्ति राजेश ओसवाल एवं न्यायमूर्ति मोहम्मद अकरम चौधरी की नई विशेष खंडपीठ में स्थानांतरित कर दिया गया।
  • स्थानांतरण की दुर्लभता: किसी विशेष पीठ से मामलों को बीच में ही पूरी तरह से नई पीठ में स्थानांतरित करना एक दुर्लभ घटना है।
  • न्यायमूर्ति श्रीधरन के महत्त्वपूर्ण निर्णय:
    • सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, 1978 (PSA) मामला: जुलाई 2024 में न्यायमूर्ति श्रीधरन ने निवारक निरोध मामले में अस्पष्ट और भ्रामक तर्क के लिये ज़िला मजिस्ट्रेट पर ज़ुर्माना लगाया।
    • कट्टरपंथी विचारधारा: उन्होंने एक बंदी को "कट्टरपंथी" के रूप में लेबल करने को चुनौती दी और अगस्त, 2023 के मामले में इसके अर्थ को स्पष्ट किया।
    • पुलिसकर्मी ज़मानत मामला: हत्या के आरोपी पुलिसकर्मी को विलंबित सुनवाई के कारण अनुच्छेद 21 के उल्लंघन का हवाला देते हुए ज़मानत प्रदान की गई।
    • फहद शाह मामला: पत्रकार फहद शाह के खिलाफ UAPA (गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम) के आरोपों पर सवाल उठाया गया, जिसमें हिंसा भड़काने के अपर्याप्त सबूतों का उल्लेख किया गया।

बंदी प्रत्यक्षीकरण

  • यह एक लैटिन शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘शरीर को अपने पास रखना’। इसके तहत न्यायालय किसी व्यक्ति को आदेश जारी करता है कि वह किसी अन्य व्यक्ति को हिरासत में लेकर उसके शव को उसके समक्ष प्रस्तुत करे। इसके बाद न्यायालय हिरासत के कारण और वैधता की जाँच करता है।
  • यह रिट मनमाने ढंग से हिरासत में लिये जाने के विरुद्ध व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक कवच है।
  • बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका सार्वजनिक प्राधिकारियों के साथ-साथ निजी व्यक्तियों, दोनों के विरुद्ध जारी की जा सकती है।
  • दूसरी ओर, रिट तब जारी नहीं की जाती है जब:
    • हिरासत में रखना वैध है,
    • कार्यवाही किसी विधायिका या न्यायालय की अवमानना ​​के लिये है,
    • हिरासत एक सक्षम न्यायालय द्वारा की गई है और
    • हिरासत में लेना न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

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