भारतीय राजव्यवस्था
UAPA के तहत ज़मानत
- 19 Feb 2024
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प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम, राष्ट्रीय जाँच एजेंसी, साइबर आतंकवाद, न्यायिक समीक्षा मेन्स के लिये:UAPA के तहत ज़मानत प्रावधानों से संबंधित प्रमुख न्यायिक घोषणाएँ, UAPA से संबंधित चिंताएँ। |
स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कथित खालिस्तान मॉड्यूल में शामिल एक आरोपी को यह कहते हुए ज़मानत देने से इनकार कर दिया कि 'ज़मानत नियम है, जेल अपवाद है' (Bail is Rule, Jail is Exception) का सिद्धांत विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA) के तहत लागू नहीं है।
UAPA के अंतर्गत ज़मानत का प्रावधान कैसे विकसित हुआ?
- वर्ष 2008: UAPA संशोधन अधिनियम, 2008 में धारा 43 D(5) प्रस्तुत की गई, जिसके तहत न्यायालय को यह मानने के लिये उचित आधार होने पर ज़मानत देने से इनकार करना आवश्यक था कि आरोपी के खिलाफ मामला प्रथम दृष्टया सच था।
- इसके लिये अभियुक्त को न्यायालय को यह विश्वास दिलाना आवश्यक है कि आरोपों को प्रथम दृष्टया सत्य मानना अनुचित है।
- इस बोझ को आरोपी पर डालकर, आपराधिक कानून का मूल सिद्धांत जो दोषी साबित होने तक निर्दोष माना जाता है, UAPA के ढाँचे के भीतर बदल दिया गया है।
- वर्ष 2016: धारा 43D (5) के सख्त प्रावधानों के बावजूद न्यायपालिका ने एंजेला हरीश सोनटक्के बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में ज़मानत दे दी। यह लंबी हिरासत अवधि एवं त्वरित सुनवाई की संभावना को देखते हुए किया गया था, जो आरोपी के जेल में बिताए गए समय तथा कथित अपराध के बीच संतुलन बनाने के महत्त्व को रेखांकित करता है।
- वर्ष 2019: राष्ट्रीय जाँच एजेंसी बनाम जहूर अमहद शाह वताली फैसले ने धारा 43D (5) की एक संकीर्ण व्याख्या प्रदान की, जिसमें कहा गया कि न्यायालय को मामले की खूबियों पर ध्यान दिये बिना घटनाओं के NIA के संस्करण को स्वीकार करना चाहिये, इस प्रकार आरोपों के बाद ज़मानत को सुरक्षित करना कठिन हो जाता है। NIA द्वारा फंसाया गया है।
- वर्ष 2021: भारत संघ बनाम के.ए. नजीब के मामलें में सर्वोच्च न्यायालय ने लंबे समय तक कारावास (कैद या हिरासत में रहने) के कारण अनुच्छेद 21 के अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर ज़मानत देने की संभावना पर प्रकाश डाला।
- NCT दिल्ली राज्य बनाम देवांगना कलिता मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने साक्ष्यों को NIA के निष्कर्षों से अलग कर दिया, जिसके कारण प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करने में NIA की विफलता के आधार पर ज़मानत दे दी गई।
- वर्ष 2023: वर्नोन गोंसाल्वेस बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ज़मानत देने के लिये "प्रथम दृष्टया सत्य" परीक्षण पर पिछले वटाली फैसले से हटते हुए साक्ष्य विश्लेषण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
- हालाँकि हालिया मामले में दो-न्यायाधीशों की पीठ ने गोंसाल्वेस के फैसले को नज़रअंदाज़ करते हुए विशेष रूप से वटाली पूर्व उदाहरण का पालन करते हुए ज़मानत देने से इनकार कर दिया।
- विभिन्न पीठों की परस्पर विरोधी व्याख्याएँ UAPA के तहत जमानत प्रावधानों की स्थिरता और अनुप्रयोग पर सवाल उठाती हैं।
UAPA क्या है?
- पृष्ठभूमि:17 जून, 1966 को राष्ट्रपति ने "व्यक्तियों और संघों की गैरकानूनी गतिविधियों की अधिक प्रभावी रोकथाम प्रदान करने हेतु" विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अध्यादेश लागू किया था।
- कड़े कदम की शुरुआत से संसद में हंगामा मच गया, जिसके परिणामस्वरूप सरकार को इसे वापस लेना पड़ा।
- इसके बाद, विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम 1967, जो अध्यादेश से भिन्न था, अधिनियमित किया गया था।
- परिचय: UAPA एक कानून है जिसका उद्देश्य अवैध गतिविधियों को रोकना और आतंकवाद से निपटना है। इसे "आतंकवाद विरोधी कानून" के नाम से भी जाना जाता है।
- गैरकानूनी गतिविधियों को भारत के किसी भी हिस्से के विलय या अलगाव का समर्थन करने या उकसाने वाली कार्रवाइयों या इसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर सवाल उठाने या अनादर (Disrespecting) करने वाली कार्रवाइयों के रूप में परिभाषित किया गया है।
- राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) को देशभर में मामलों की जाँच करने और मुकदमा चलाने का अधिकार UAPA द्वारा दिया गया है।
- संशोधन:
- इसमें वर्ष 2004, 2008, 2012 और हाल ही में वर्ष 2019 में कई संशोधन हुए, जिसमें आतंकवादी वित्तपोषण, साइबर-आतंकवाद, व्यक्तिगत पदनाम तथा संपत्ति ज़ब्ती से संबंधित प्रावधानों का विस्तार किया गया।
- संबंधित चिंता:
- कम दोषसिद्धि दर: UAPA के तहत वर्ष 2018 और 2020 के बीच 4,690 लोगों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन केवल 3% को दोषी ठहराया गया।
- व्यक्तिपरक व्याख्या: अवैध गतिविधियों की व्यापक परिभाषा व्यक्तिपरक व्याख्याओं की अनुमति देती है, जिससे यह विशिष्ट समूहों या व्यक्तियों के खिलाफ उनकी पहचान या विचारधारा के आधार पर संभावित दुरुपयोग के प्रति संवेदनशील हो जाती है।
- सीमित न्यायिक समीक्षा: वर्ष 2019 का संशोधन सरकार को बिना किसी न्यायिक समीक्षा के व्यक्तियों को आतंकवादी के रूप में नामित करने का अधिकार देता है, जिससे कानून की उचित प्रक्रिया और मनमाने ढंग से पदनाम की संभावना के बारे में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
आगे की राह
- उन्नत निरीक्षण: UAPA के दुरुपयोग को रोकने के लिये मज़बूत निरीक्षण तंत्र को लागू करना, जिसमें इसके कार्यान्वयन की नियमित समीक्षा और संवैधानिक सिद्धांतों तथा मानवाधिकार मानकों का पालन सुनिश्चित करने के लिये न्यायिक जाँच को मज़बूत करना शामिल है।
- स्पष्ट परिभाषाएँ: व्यक्तिपरकता और दुरुपयोग की संभावना को कम करने के लिये गैरकानूनी गतिविधियों की परिभाषा को परिष्कृत तथा सीमित करने की आवश्यकता है।
- समयबद्ध जाँच और परीक्षण: लंबी हिरासत को रोकने और कुशल न्यायिक प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करने के लिये जाँच तथा परीक्षणों हेतु स्पष्ट समय-सीमा स्थापित करें।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. भारत सरकार ने हाल ही में विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, (यू. ए.पी. ए.), 1967 और एन. आई. ए. अधिनियम के संशोधन के द्वारा आतंकवाद-रोधी कानूनों को मज़बूत कर दिया है। मानवाधिकार संगठनों द्वारा विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम का विरोध करने के विस्तार और कारणों पर चर्चा करते समय वर्तमान सुरक्षा परिवेश के संदर्भ में परिवर्तनों का विश्लेषण कीजिये। (2019) |