मानव तस्करी से निपटने पर राष्ट्रीय सम्मेलन | 13 Feb 2025

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के अध्यक्ष ने 'डिजिटल युग में मानव तस्करी का सामना ' विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया।

मुख्य बिंदु 

  • सम्मेलन के बारे में:
    • सम्मेलन में मानव तस्करी में डिजिटल प्रौद्योगिकियों के बढ़ते दोहन की जाँच की गई। 
    • चर्चा में तस्करी अपराधों को बढ़ावा देने में इंटरनेट, सोशल मीडिया, क्रिप्टोकरेंसी और अन्य ऑनलाइन उपकरणों की भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया गया। 
    • विशेषज्ञों ने प्रौद्योगिकी, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और सामुदायिक भागीदारी से जुड़े निवारक उपायों पर विचार-विमर्श किया।
  • अध्यक्ष का मुख्य भाषण:
    • अध्यक्ष ने यौन शोषण, श्रम शोषण, अंग तस्करी और जबरन विवाह सहित डिजिटल तस्करी के विभिन्न रूपों पर प्रकाश डाला।
    • उन्होंने रिक्रूटमेंट रणनीतियों पर विस्तार से चर्चा की जैसे:
    • उन्होंने डिजिटल शोषण का सामना करने के लिये जन जागरुकता, मज़बूत नियामक ढाँचे और तकनीकी समाधान की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
  • मुख्य सिफारिशें:
    • अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम (ITPA) में संशोधन करके बाल एवं वयस्क तस्करी के बीच स्पष्ट अंतर किया जाए तथा साइबर तस्करी को भी इसमें शामिल किया जाए।
    • डिजिटल तस्करी से संबंधित कानूनी कमियों को दूर करने के लिये ITPA और IT अधिनियम के बीच औपचारिक संबंध स्थापित करना। 
    • बेहतर सार्वजनिक भागीदारी के लिये महिलाओं और बच्चों के केंद्रीकृत शिकायत एवं रोकथाम (CCPWC) जैसे स्व-रिपोर्टिंग पोर्टलों पर सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाएँ। 
    • डिजिटल युग में मानव तस्करी से निपटने के लिये मानव तस्करी विरोधी इकाइयों (AHTU) के प्रशिक्षण और संसाधनों को बढ़ाना। 
    • नीति निर्माण के लिये विभिन्न श्रेणियों में मानव तस्करी के मामलों को व्यवस्थित रूप से ट्रैक करने के लिये डाटा संग्रह तंत्र में सुधार करना।
    • स्थानीय समुदायों को तस्करी अपराधों की रोकथाम और रिपोर्ट करने में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु सामुदायिक सहभागिता को मज़बूत करना।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)

  • परिचय
    • यह व्यक्तियों के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और गरिमा से संबंधित अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
    • भारतीय संविधान और अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदाओं द्वारा गारंटीकृत अधिकार, जिन्हें भारतीय न्यायालयों द्वारा लागू किया जा सकता है।
  • स्थापना:
    • 12 अक्टूबर 1993 को मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत स्थापित।
    • मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2006 और मानव अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019 द्वारा संशोधित। 
    • मानव अधिकारों को बढ़ावा देने और संरक्षण देने के लिये अपनाए गए पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप इसकी स्थापना की गई है।