झारखंड
आदिवासियों के भूमि अधिकार और SC/ST अधिनियम
- 13 Jun 2024
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में झारखंड के मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को आदेश दिया कि वे आदिवासी लोगों के भूमि अधिकारों की रक्षा करने तथा उन संपत्तियों पर उनका स्वामित्व सुनिश्चित करने के लिये त्वरित कार्रवाई करने का निर्देश दिया जहाँ विवादों के बाद न्यायालय के निर्णय उनके पक्ष में आए हैं।
- इस बात पर ज़ोर देते हुए कि अनुसूचित जनजातियाँ सबसे अधिक हाशिये पर और वंचित जनसंख्या रही हैं, अधिकारियों को यह भी निर्देश दिया गया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत पंजीकृत सभी मामलों का प्राथमिकता के आधार पर निपटारा किया जाए।
मुख्य बिंदु:
- भारतीय संविधान 'जनजाति' शब्द को परिभाषित करने का प्रयास नहीं करता है, तथापि, 'अनुसूचित जनजाति' शब्द को संविधान में अनुच्छेद 342 (i) के माध्यम से शामिल किया गया था।
- 'राष्ट्रपति किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में उसके राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चात, लोक अधिसूचना द्वारा उन जातियों, मूलवंशों या जनजातियों अथवा जातियों के भागों या उनके समूहों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिये यथा स्थिति, उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में "अनुसूचित जातियाँ" समझा जाएगा।
- संविधान की पाँचवीं अनुसूची में अनुसूचित क्षेत्र वाले प्रत्येक राज्य में एक जनजाति सलाहकार परिषद स्थापित करने का प्रावधान है।
- आदिवासी समुदायों के सामने सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों में से एक है सुरक्षित भूमि अधिकारों की कमी। कई जनजातियाँ वन क्षेत्रों या दूर-दराज़ के क्षेत्रों में रहती हैं जहाँ भूमि और संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को अक्सर मान्यता नहीं दी जाती है, जिसके कारण विस्थापन तथा भूमि का अलगाव होता है।
- SC/ST अधिनियम 1989 संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है, जो SC और ST समुदायों के सदस्यों के विरुद्ध भेदभाव पर रोक लगाने तथा उनके विरुद्ध अत्याचार को रोकने के लिये बनाया गया है।
- यह अधिनियम 11 सितंबर 1989 को भारतीय संसद में पारित किया गया तथा 30 जनवरी 1990 को अधिसूचित किया गया।