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साँची स्तूप से यूरोप की यात्रा

  • 14 Sep 2024
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के विदेश मंत्री ने जर्मनी के बर्लिन में हम्बोल्ट फोरम संग्रहालय के सामने स्थित साँची स्तूप के पूर्वी द्वार की प्रतिकृति का दौरा किया।

मुख्य बिंदु

  • साँची स्तूप का निर्माण: इसका निर्माण अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में करवाया था ।
    • इसके निर्माण की देख-रेख अशोक की पत्नी देवी ने की थी, जो पास के व्यापारिक शहर विदिशा से थीं 
    • साँची परिसर के विकास को विदिशा के व्यापारिक समुदाय के संरक्षण से समर्थन प्राप्त हुआ।
  • विस्तार: दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व (शुंग काल) के दौरान, स्तूप को बलुआ पत्थर की पट्टियों, एक परिक्रमा पथ और एक छत्र (छाता) के साथ एक हर्मिका के साथ विस्तारित किया गया था।
    • पहली शताब्दी ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी ईस्वी तक, चार पत्थर के प्रवेश द्वार या तोरण बनाए गए, जो बौद्ध प्रतिमा विज्ञान और कहानियों को दर्शाती विस्तृत नक्काशी से सुसज्जित थे।
  • साँची स्तूप की पुनः खोज: वर्ष 1818 में जब ब्रिटिश अधिकारी हेनरी टेलर ने इसकी खोज की थी तब यह पूरी तरह खंडहर अवस्था में था । 
    • अलेक्जेंडर कनिंघम ने वर्ष 1851 में साँची में प्रथम औपचारिक सर्वेक्षण और उत्खनन का नेतृत्व किया
  • संरक्षण के प्रयास: वर्ष 1853 में भोपाल की सिकंदर बेगम ने महारानी विक्टोरिया को साँची के प्रवेशद्वार भेजने की पेशकश की, लेकिन वर्ष 1857 के विद्रोह और परिवहन संबंधी समस्याओं के कारण प्रवेशद्वार हटाने की योजना में देरी हुई ।
    • वर्ष 1868 में बेगम ने फिर से प्रस्ताव दिया, लेकिन औपनिवेशिक अधिकारियों ने इसे अस्वीकार कर दिया और यथास्थान संरक्षण का विकल्प चुना। इसके बजाय पूर्वी प्रवेशद्वार का प्लास्टर कास्ट बनाया गया।
    • इस स्थल को इसकी वर्तमान स्थिति में 1910 के दशक में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) के महानिदेशक जॉन मार्शल द्वारा निकटवर्ती भोपाल की बेगमों से प्राप्त धनराशि से बहाल किया गया था।
      • मार्शल के प्रयासों से वर्ष 1919 में उस स्थान पर कलाकृतियों को संरक्षित करने और संरक्षण का प्रबंधन करने के लिये एक संग्रहालय का निर्माण किया गया ।

साँची स्तूप की वास्तुकला

  • अंडाकार: यह धरती पर बना एक अर्द्धगोलाकार टीला है।
  • हर्मिका: टीले के ऊपर चौकोर रेलिंग है। ऐसा माना जाता है कि यह भगवान का निवास स्थान है।
  • छत्र: यह गुंबद के शीर्ष पर बनी छतरी है।
  • यष्टि: यह केंद्रीय स्तंभ है जो छत्र नामक तिहरे छत्रनुमा संरचना को सहारा देता है।
  • रेलिंग: यह स्तूप के चारों ओर लगी होती है, पवित्र क्षेत्र को सीमांकित करती है तथा पवित्र स्थान और बाहरी वातावरण के बीच एक भौतिक सीमा प्रदान करती है।
  • प्रदक्षिणापथ (परिक्रमा पथ): यह स्तूप के चारों ओर एक पैदल मार्ग है जो भक्तों को पूजा के रूप में दक्षिणावर्त दिशा में चलने की अनुमति देता है।
  • तोरण: तोरण बौद्ध स्तूप वास्तुकला में एक स्मारकीय प्रवेश द्वार या प्रवेश संरचना है।
  • मेधी: यह उस आधार को संदर्भित करता है जो एक मंच बनाता है जिस पर स्तूप की मुख्य संरचना खड़ी होती है।
  • UNESCO मान्यता: साँची स्तूप को वर्ष 1989 में UNESCO विश्व धरोहर स्थल के रूप में अंकित किया गया था।

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