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हरियाणा

हरियाणा के किसानों को उर्वरक की कमी का सामना करना पड़ रहा है

  • 27 Nov 2024
  • 5 min read

चर्चा में क्यों? 

भारत की कृषि अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण राज्य हरियाणा, उर्वरक की कमी और पराली जलाने पर ज़ुर्माने के बढ़ते संकट का सामना कर रहा है।

  • इसमें शासन की चुनौतियों, ग्रामीण संकट तथा नीति कार्यान्वयन और किसानों के कल्याण के बीच नाजुक संतुलन पर प्रकाश डाला गया है। 

मुख्य बिंदु

  • उर्वरक की कमी: 
    • राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर सरकार के इनकार के बावजूद, हरियाणा में रबी सीजन के लिये महत्त्वपूर्ण उर्वरक, डायमोनियम फॉस्फेट (DAP) की भारी कमी देखी गई है।     
  • आपूर्ति में कमी: 
    • अक्तूबर 2024 में अनुमानित आवश्यकताओं और उपलब्धता के बीच 38% का अंतर, स्थिर वैश्विक DAP कीमतों के बावजूद कम आयात के कारण और भी अधिक बढ़ गया है
  • आयात पर निर्भरता: 
    • आयातित उर्वरकों और फॉस्फोरिक एसिड जैसे कच्चे माल पर भारत की भारी निर्भरता ने इस क्षेत्र को वैश्विक मूल्य अस्थिरता और एकाधिकार के प्रति संवेदनशील बना दिया है।
  • नीतिगत अंतराल: 
    • उर्वरक वितरण को विनियमित करने के लिये प्वाइंट ऑफ सेल मशीनों की शुरूआत ने अनजाने में पहुँच को प्रतिबंधित कर दिया है, जिससे कई किसानों को काला बाज़ारी का सहारा लेने के लिये विवश होना पड़ रहा है।
  • पराली जलाना: 
    • रबी की बुवाई के लिये खेतों को साफ करने के लिये किसानों द्वारा की जाने वाली मौसमी प्रथा पराली जलाने की, विशेष रूप से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में वायु प्रदूषण बढ़ाने के लिये इसकी कड़ी आलोचना की गई है। 
      • हरियाणा सरकार ने केंद्रीय निर्देशों का पालन करते हुए भारी ज़ुर्माना लगाया है तथा उल्लंघनकर्त्ताओं को दंडित करने के लिये कृषि अभिलेखों में "लाल प्रविष्टियाँ" शुरू की हैं।
  • संबंधित चुनौतियाँ: 
    • किसान प्रतिरोध: किसानों का तर्क है कि व्यवहार्य विकल्पों के अभाव में पराली जलाना एक आवश्यकता है। 
      • ज़ुर्माने, FIR और खरीद के लिये फसलों को काली सूची में डालने से आक्रोश बढ़ गया है।
    • असंगत दोष: हालाँकि पराली जलाना वायु प्रदूषण में योगदान देता है, लेकिन किसानों को लगता है कि निर्माण और औद्योगिक उत्सर्जन जैसे अन्य स्रोतों की तुलना में उन्हें अनुचित रूप से निशाना बनाया जाता है।
    • नीतिगत विरोधाभास: कोई आपराधिक दायित्व न होने के पूर्व आश्वासनों के बावजूद, सरकार ने दंडात्मक उपायों को तीव्र कर दिया है, जिससे कृषक समुदाय में अविश्वास उत्पन्न हो रहा है।
    • व्यापक कृषि संकट: उर्वरक की कमी और पराली जलाने पर दंड का दोहरा संकट हरियाणा के कृषि प्रशासन में गहरे प्रणालीगत मुद्दों को दर्शाता है।
      • किसानों को उर्वरकों की कालाबाज़ारी, मंडी खरीद प्रक्रियाओं में अनियमितताएं तथा बटाईदार किसानों को अपर्याप्त सहायता जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है।

 आगे की राह:

  • इस मुद्दे पर व्यापक रणनीति की आवश्यकता है, जैसे कि पराली प्रबंधन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना और केवल दंडात्मक उपायों के बजाय वैकल्पिक उपायों को प्रोत्साहित करना।   
  • पर्यावरणीय उद्देश्यों और कृषि वास्तविकताओं के मध्य बेहतर समन्वय की आवश्यकता है।
  • सुदृढ़ खरीद, भंडारण और वितरण तंत्र के माध्यम से उर्वरकों जैसे आवश्यक इनपुट की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित करना।
  • पराली जलाने के लिये किसान-अनुकूल विकल्प विकसित करना और तकनीकी हस्तक्षेप के लिये पर्याप्त सब्सिडी प्रदान करना।
  • उर्वरकों और कच्चे माल के घरेलू उत्पादन में निवेश के माध्यम से आयात पर निर्भरता कम करना।

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