उत्तराखंड हिमालय में तेज़ी से बढ़ती हिमनदीय झील को लेकर चिंताएँ | 09 Mar 2024
चर्चा में क्यों?
देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (WIHG) के वैज्ञानिकों के अनुसार भागीरथी जलग्रहण क्षेत्र में स्थित भिलंगना हिमनद झील पिछले 47 वर्षों में लगभग 0.38 वर्ग किमी. तक विस्तारित हुई है जो निचले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये संभावित खतरा उत्पन्न कर सकती है।
प्रमुख बिंदु
- हिमनद झील का निर्माण तब होता है जब हिमनदों की विशाल चादर पिघलने लगती है और पिघला हुआ जल एकत्रित हो जाता है।
- वैश्विक तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन में तीव्रता के साथ ही कई हिमनद भी तेज़ी से पीछे हटने लगे हैं, जिससे कई ऐसी हिमनद झीलों का निर्माण शुरू हो गया है, इनकी अस्थिरता के कारण जल की तेज़ धार नीचे की ओर प्रवाहित हो सकती हैं जिससे विनाशकारी बाढ़ आ सकती है।
- अध्ययनों से पता चलता है कि उत्तराखंड हिमालय में एक हज़ार से अधिक ऐसी हिमनद झीलें बनी हैं, लेकिन पर्याप्त भूमि-आधारित अध्ययनों की कमी के कारण उनके संबंध में जानकारी सीमित है।
- उत्तराखंड में 13 ऐसी हिमनद झीलों की पहचान की गई है जो मोराइन डैम्ड लेक हैं और लगभग दस हिमनद हैं जिनकी निचले भाग में रहने वाले लोगों के लिये संभावित खतरे को देखते हुए निरंतर निगरानी की जा रही है।
- ऐसा ही अनुभव वर्ष 2013 में केदारनाथ में, वर्ष 2021 में ऋषिगंगा-धौलीगंगा हिमस्खलन में और हाल ही में सिक्किम की दक्षिण ल्होनक झील में किया गया था।
- भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के अनुसार, भारतीय हिमालय क्षेत्र में लगभग 9,575 हिमनद हैं, उनमें से केवल 980 उत्तर-पश्चिमी राज्य उत्तराखंड में हैं तथा सबसे संवेदनशील हिमनदों का विशेषज्ञ टीम द्वारा लगातार निगरानी की जा रही है। .
- उत्तराखंड हिमालय का सबसे बड़ा हिमनद, गंगोत्री हिमनद, जिसकी लंबाई लगभग 30 किलोमीटर है, प्रति वर्ष लगभग 15-20 मीटर की दर से पीछे हट रहा है।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (WIHG)
- वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग का एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान है।
- जून, 1968 में दिल्ली विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के दो कमरों में एक छोटे केंद्र के रूप में स्थापित इस संस्थान को अप्रैल, 1976 के दौरान देहरादून में स्थानांतरित कर दिया गया था।
ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF)
- यह एक प्रकार की विनाशकारी बाढ़ है, जो हिमनद झील वाले बाँध विफल होने की स्थिति में, जिससे बड़ी मात्रा में जल निष्काषित होता है, में घटित होती है।
- इस प्रकार की बाढ़ आम तौर पर हिमनदों के तेज़ी से पिघलने अथवा भारी वर्षा या पिघले जल के प्रवाह के कारण झील में जल के संचय के कारण होती है।
- फरवरी 2021 में, उत्तराखंड के चमोली ज़िले में अचानक बाढ़ आई, जिसके बारे में संभावना जताई जाती है कि यह ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड के कारण हुई थी।
- कारण:
- इस प्रकार के बाढ़ आने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें हिमनद के घनत्त्व में परिवर्तन, झील के जल स्तर में परिवर्तन तथा भूकंप शामिल हैं।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अनुसार, हिंदू कुश हिमालय के अधिकांश हिस्सों में होने वाले जलवायु परिवर्तन के कारण हिमनदों के पीछे हटने से कई नए हिमनद झीलों का निर्माण हुआ है, जो GLOF का प्रमुख कारण हैं।
मोराइन डैम्ड लेक
- मोराइन डैम्ड लेक का निर्माण तब होता है जब टर्मिनल मोराइन के कारण कुछ पिघले जल घाटी से बाहर नहीं निकल पाते हैं।
- जब कोई हिमनद पीछे की ओर हटता है, तब पीछे हटने वाले हिमनद तथा बचे हुए टुकड़े के बीच एक जगह बच जाती है, जिसमें बचा हुआ मलबा (मोराइन) बचता है।
- बर्फ के पिघलने के पैटर्न के कारण दोनों हिमनदों से पिघला हुआ जल इस स्थान में रिसकर एक रिबन के आकार की झील का निर्माण करता है।
- इस बर्फ के पिघलने से हिमनद झील में बाढ़ आ सकती है, जिससे पर्यावरण और आस-पास रहने वालों को गंभीर नुकसान हो सकता है।