उत्तर प्रदेश में जातिगत अत्याचार की शिकायत | 09 Jan 2025
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) ने उत्तर प्रदेश ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड के एक सदस्य के विरुद्ध दर्ज अत्याचार की शिकायत को स्वीकार कर लिया है।
- दक्षिणी राज्यों के कार्यकर्त्ताओं से प्रेरित होकर, सरकारी नौकरियों और शिक्षा में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये क्षैतिज आरक्षण का आंदोलन उत्तर भारत में जोर पकड़ रहा है।
मुख्य बिंदु
- क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर आरक्षण:
- ऊर्ध्वाधर आरक्षण एक विशेष कोटा श्रेणी स्थापित करता है, जिसमें सभी ट्रांसजेंडर व्यक्ति शामिल होते हैं, भले ही उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति कोई भी हो।
- क्षैतिज आरक्षण प्रत्येक सामाजिक-आर्थिक श्रेणी में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये सीटों का एक प्रतिशत आवंटित करता है, जो हाशिये पर रहने वाली जाति के ट्रांस लोगों द्वारा सामना किये जाने वाले स्तरित भेदभाव को संबोधित करता है।
- देश भर में ट्रांस कार्यकर्त्ता क्षैतिज आरक्षण की रक्षा करते हैं तथा ट्रांसजेंडर समुदाय के भीतर जाति-आधारित भेदभाव को दूर करने में ऊर्ध्वाधर कोटा की विफलता पर प्रकाश डालते हैं।
- शिकायत पर NCSC की कार्रवाई:
- NCSC ने एक दलित ट्रांस महिला कार्यकर्त्ता की शिकायत के आधार पर सहारनपुर ज़िला प्रशासन और पुलिस को नोटिस जारी किया।
- उन्होंने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड के एक सदस्य ने क्षैतिज आरक्षण का समर्थन करने वाले कार्यकर्त्ताओं को परेशान किया।
- उन्होंने एक रिकॉर्डिंग प्रस्तुत की, जिसमें सदस्य ने कथित तौर पर जातिवादी और ट्रांसफोबिक गालियों का उपयोग किया, जिसमें जानबूझकर गलत लिंग निर्धारण भी शामिल था।
- सदस्य ने आरोपों से इनकार करते हुए दावा किया कि रिकॉर्डिंग में आवाज़ उनकी नहीं है तथा उन्होंने कॉल रिकॉर्डिंग की वैधता पर प्रश्न उठाया।
- उन्होंने शिकायतकर्त्ता पर संवैधानिक प्रावधानों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और NCSC में शिकायत दर्ज कराने की योजना बनाई।
- आरक्षण नीति पर बहस:
- वर्ष 2014 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये "सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (SEBC)" के रूप में आरक्षण का निर्देश दिया, जिससे अलग-अलग व्याख्याएँ हुईं।
- मध्य प्रदेश में, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अप्रैल 2023 में राज्य OBC सूची में जोड़ा गया।
- कर्नाटक, मद्रास और कलकत्ता सहित कई उच्च न्यायालयों ने क्षैतिज आरक्षण के पक्ष में निर्णय दिया है।
- वर्ष 2014 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये "सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (SEBC)" के रूप में आरक्षण का निर्देश दिया, जिससे अलग-अलग व्याख्याएँ हुईं।
- आरक्षण पर अलग-अलग राय:
- एक दृष्टिकोण ऊर्ध्वाधर आरक्षण का समर्थन करता है, जिसमें कहा गया है कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के विरुद्ध भेदभाव जाति से नहीं, बल्कि लिंग से उत्पन्न होता है।
- यह वर्ष 2014 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का संदर्भ देते हुए इस धारणा को चुनौती देता है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति धर्म परिवर्तन के पश्चात भी अपनी जातिगत पहचान को बनाए रखते हैं।
- विरोधी दृष्टिकोण इस व्याख्या की आलोचना करते हुए इसे ट्रांसजेंडर समुदाय के भीतर जातिगत विविधता की अनदेखी करने वाला मानता है तथा इस बात पर बल देता है कि क्षैतिज आरक्षण हाशिये पर रह रही जाति के ट्रांसजेंडर व्यक्तियों द्वारा सामना किये जाने वाले स्तरित भेदभाव को संबोधित करता है।
- एक दृष्टिकोण ऊर्ध्वाधर आरक्षण का समर्थन करता है, जिसमें कहा गया है कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के विरुद्ध भेदभाव जाति से नहीं, बल्कि लिंग से उत्पन्न होता है।
- व्यापक निहितार्थ:
- सर्वोच्च न्यायालय ने मार्च 2023 में 2014 के निर्णय में अस्पष्टता को स्पष्ट करने से इनकार कर दिया।
- यह बहस विभिन्न सामाजिक-आर्थिक श्रेणियों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिये सूक्ष्म नीतियों की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC)
- परिचय:
- NCSC एक संवैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना अनुसूचित जातियों के शोषण के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने तथा उनके सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और सांस्कृतिक हितों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के उद्देश्य से की गई है।
- संघटन:
- NCSC में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अतिरिक्त सदस्य होते हैं।
- ये पद राष्ट्रपति की नियुक्ति के माध्यम से भरे जाते हैं, जिसका उल्लेख उनके हस्ताक्षर और मुहर सहित वारंट द्वारा किया जाता है।
- उनकी सेवा की शर्तें और कार्यकाल भी राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित किया जाता है।