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पीआरएस कैप्सूल्स


विविध

मार्च 2024

  • 20 May 2024
  • 40 min read

PRS के प्रमुख हाइलाइट्स:

  • चुनाव
    • लोकसभा और चार राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव कार्यक्रम
    • एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश
  • कानून एवं न्याय
    • विधायिका के अंदर वोट या भाषण के लिये रिश्वत लेने पर विधायकों को मिली छूट को समाप्त किया
  • गृह मामले
    • नागरिकता नियमों में संशोधन अधिसूचित
  • कॉरपोरेट मामले
    • भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग ने प्रतिबद्धता और निपटान नियमों को अधिसूचित किया
  • वित्त
    • स्व-नियामक संगठनों हेतु रूपरेखा
    • बीमा उत्पादों के लिये विनियम अधिसूचित
    • सूचकांक प्रदाताओं के लिये नियम
    • लघु और मध्यम REIT के लिये रूपरेखा
  • उद्योग
    • इलेक्ट्रिक वाहनों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना
    • इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन योजना
  • पर्यावरण
    • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016
    • बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022
  • स्वास्थ्य
    • उन्नयन सहायता योजना
  • नवीन एवं अक्षय ऊर्जा
    • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन
  • वाणिज्य
    • उत्तर पूर्व परिवर्तनकारी औद्योगीकरण योजना
    • यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ के साथ व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर
  • कोयला
    • अंतर-मंत्रालयी समिति ने कोयला आयात प्रतिस्थापन पर रिपोर्ट जारी की

चुनाव

लोकसभा और चार राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव कार्यक्रम

  • भारत का निर्वाचन आयोग ने लोकसभा के आम चुनाव और चार राज्य विधानसभाओं के चुनावों के कार्यक्रमों की घोषणा की।
    • लोकसभा चुनाव 19 अप्रैल, 2024 से 1 जून, 2024 तक सात चरणों में होंगे।
    • वोटों की गिनती 4 जून, 2024 को होगी।
  • आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम की विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ ही होंगे।

एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश

  • केंद्र सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति ने एक साथ चुनाव पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • इसकी संदर्भ की शर्तों में व्यवहार्यता की जाँच करना और एक ही समय में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं तथा स्थानीय निकायों के चुनाव कराने के लिये एक रूपरेखा का सुझाव देना शामिल था।
  • समिति के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • एक साथ चुनाव का औचित्य
      • एक साथ चुनाव आदर्श आचार संहिता के लागू होने के कारण होने वाले व्यवधान और नीतिगत गतिहीनता को कम करके शासन में स्थिरता तथा पूर्वानुमान सुनिश्चित करेंगे।
      • एक साथ चुनाव से लागत कम करने और मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने में मदद मिलेगी।
      • एक साथ चुनाव से उच्च आर्थिक विकास, कम मुद्रास्फीति, निवेश में वृद्धि और सरकारी व्यय की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।
    • एक साथ चुनाव का कार्यान्वयन:
      • लोकसभा के अगले आम चुनाव के समय, एकमुश्त उपाय के रूप में शेष कार्यकाल की परवाह किये बिना, सभी राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों को भंग कर दिया जाना चाहिये। इससे सभी चुनाव एक साथ हो जाएंगे।
      • समिति ने लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक ही समय पर तथा इन चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकायों के चुनाव कराने की सिफारिश की।
      • मध्यावधि चुनाव की स्थिति में कम अवधि के लिये नए सिरे से चुनाव कराए जाने चाहिये। घटा हुआ कार्यकाल अगले एक साथ चुनाव तक पाँच साल के चक्र की शेष अवधि के बराबर होगा।

कानून एवं न्याय

विधायिका के अंदर वोट या भाषण के लिये रिश्वत लेने पर विधायकों को मिली छूट को समाप्त किया

  • संविधान संसद सदस्यों (सांसदों) और राज्य विधानमंडलों के सदस्यों (MLA/MLC) को विधायिका में उनके भाषणों तथा वोटों के लिये आपराधिक मुकदमा चलाने से छूट प्रदान करता है (अनुच्छेद 105 और 194 के तहत)।
  • वर्ष 1998 में सर्वोच्च न्यायालय ने संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर वोट के लिये सांसदों को रिश्वत देने के एक मामले की सुनवाई की। उन्हें अनुच्छेद 105(2) के तहत आपराधिक मुकदमा चलाने से छूट प्राप्त है।
    • तर्क यह था कि रिश्वत लेना और वोट देना एक-दूसरे से संबंधित हैं तथा इसलिये, वोट देने की छूट रिश्वत पर भी लागू होती है।
    • न्यायालय ने आगे कहा कि एक सांसद जिसने रिश्वत ली लेकिन सदन में मतदान से अनुपस्थित रहा, उसे ऐसी छूट प्राप्त नहीं है।
  • सर्वोच्च न्यायालय की सात-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि कोई विधायक विधायिका में वोट या भाषण के संबंध में रिश्वतखोरी के आरोप में अभियोजन से अनुच्छेद 105 और 194 के तहत छूट नहीं मांग सकता है।
    • रिश्वतखोरी का अपराध तब पूरा होता है जब विधायक रिश्वत स्वीकार कर लेता है।

गृह मामले

नागरिकता नियमों में संशोधन अधिसूचित

  • गृह मंत्रालय ने नागरिकता (संशोधन) नियम, 2024 को अधिसूचित किया।
  • यह नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के अनुसार नागरिकता के लिये प्रक्रिया प्रदान करने हेतु नागरिकता नियम, 2009 में संशोधन करते हैं।
  • वर्ष 2019 का संशोधन अधिनियम अफगानिस्तान, पाकिस्तान या बांग्लादेश से आए हिंदू, पारसी, बौद्ध, जैन, ईसाई या सिख अवैध प्रवासियों को नागरिकता का पात्र बनाता है।
  • इसके लिये यह ज़रूरी है कि उन्होंने 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया हो।
  • वर्ष 2024 के नियमों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
  • आवश्यक दस्तावेज़:
    • आवेदक को अफगानिस्तान, पाकिस्तान या बांग्लादेश सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीयता के किसी एक प्रमाण की एक प्रति प्रदान करनी होगी। इनमें पासपोर्ट, जन्म प्रमाण-पत्र, किसी भी प्रकार के पहचान दस्तावेज़, लाइसेंस या भूमि रिकॉर्ड की प्रतिलिपि शामिल है।
    • आवेदक को निर्दिष्ट दस्तावेज़ों में से कोई भी एक प्रदान करना होगा जो साबित करता है कि उसने 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया था। इनमें भारत में आगमन पर वीज़ा और आव्रजन टिकट की प्रतिलिपि, भारत में जारी राशन कार्ड, भारत में पंजीकृत रेंटल एग्रीमेंट, भारत में जारी बीमा पॉलिसी, या सरकार या न्यायालय द्वारा आवेदक को आधिकारिक टिकट के साथ जारी किया गया कोई पत्र शामिल है।
    • आवेदक को अपने धर्म की घोषणा करते हुए एक पात्रता प्रमाण-पत्र भी प्रस्तुत करना होगा। इसे स्थानीय स्तर पर प्रतिष्ठित सामुदायिक संस्थान द्वारा प्रामाणित किया जाना चाहिये।
  • नागरिकता का सत्यापन और उसे प्रदान करना:
    • क्षेत्राधिकार के वरिष्ठ अधीक्षक या डाक अधीक्षक की अध्यक्षता में एक ज़िला-स्तरीय समिति, आवेदन का सत्यापन करेगी और निष्ठा की शपथ दिलाएगी।
    • यह प्रासंगिक दस्तावेज़ों को सत्यापन के लिये किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के जनगणना संचालन निदेशक की अध्यक्षता वाली एक अधिकार प्राप्त समिति को प्रस्तुत करेगा।
    • संतुष्ट होने पर अधिकार प्राप्त समिति आवेदक को नागरिकता प्रदान करेगी।
    • वर्ष 2009 के नियमों के तहत, आवेदन संबंधित कलेक्टर को प्रस्तुत किये जाते हैं। वह आवेदन का सत्यापन करता है और फिर इसे राज्य सरकार या केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासन को भेज देता है।
    • इसके बाद आवेदन केंद्र सरकार को भेजा जाता है, जो सभी जाँच पूरी करने के बाद नागरिकता प्रदान करती है।

कॉरपोरेट मामले

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग ने प्रतिबद्धता और निपटान नियमों को अधिसूचित किया

  • भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commission of India- CCI) ने भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (प्रतिबद्धता) विनियम, 2024 और भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (निपटान) विनियम, 2024 को अधिसूचित किया।
  • इन विनियमों को प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के तहत अधिसूचित किया गया है, जिसे प्रतिबद्धता और निपटान प्रतिबद्धता ढाँचे के लिये वर्ष 2023 में संशोधित किया गया था।
  • संशोधित अधिनियम उद्यमों को कुछ प्रतिबद्धताओं (जैसे- बाज़ार व्यवहार में परिवर्तन) या भुगतान निपटान की पेशकश करने की अनुमति देता है।

वर्ष 2024 विनियमों की मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं:

  • प्रतिबद्धता: जाँच शुरू करने के लिये CCI द्वारा पारित आदेश प्राप्त होने के 45 दिनों के भीतर CCI के पास एक प्रतिबद्धता आवेदन दाखिल किया जाना चाहिये।
  • पूरी प्रक्रिया प्रतिबद्धता आवेदन की प्राप्ति से 130 कार्य दिवसों में पूरी होनी चाहिये।
  • प्रस्तावित प्रतिबद्धताओं की प्रभावशीलता को निम्नलिखित कारकों के आधार पर मापा जाएगा:
    • कथित उल्लंघन की प्रकृति, अवधि और सीमा।
    • यदि प्रतिबद्धता की शर्तें प्रतिस्पर्धा संबंधी चिंताओं को दूर कर करती हैं।
    • अगर प्रतिबद्धता की शर्तें बाज़ारों को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाती हैं।
  • निपटान: कथित उल्लंघनों पर CCI के महानिदेशक की जाँच रिपोर्ट प्राप्त होने के 45 दिनों के भीतर निपटान आवेदन किया जाना चाहिये।
  • संपूर्ण प्रक्रिया निपटान आवेदन प्राप्त होने के 180 कार्य दिवसों के भीतर पूरी की जानी चाहिये। निपटान राशि का निर्धारण आधार राशि पर 15% की छूट लागू करके किया जाएगा।

वित्त

स्व-नियामक संगठनों हेतु रूपरेखा

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने विनियमित संस्थाओं के लिये स्व-नियामक संगठनों (Self-regulatory Organizations- SRO) की मान्यता हेतु एक रूपरेखा जारी की।
  • RBI की विनियमित संस्थाओं में बैंक, गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियाँ और भुगतान प्रणाली ऑपरेटर शामिल हैं।
  • SRO तकनीकी विशेषज्ञता और नियामक नीतियों को तैयार करने में मदद करके, नियमों का असर बढ़ा सकते हैं।

प्रमुख विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • मान्यता की प्रक्रिया: कोई इच्छुक SRO मान्यता के लिये RBI को आवेदन कर सकता है। इसके लिये उसे कुछ पात्रता मानदंडों को पूरा करना होगा। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
    • गैर-लाभकारी कंपनी के रूप में पंजीकृत होना।
    • क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करना और निर्दिष्ट सदस्यता होना।
    • इसके निदेशकों के पास पेशेवर क्षमता होनी चाहिये और निष्पक्षता तथा अखंडता की उनकी साख होनी चाहिये।
  • निर्दिष्ट सिद्धांतों का अनुपालन: एक SRO को:
    • नैतिक और शासन मानकों को निर्धारित करने के लिये सदस्यता समझौतों से अधिकार प्राप्त करना चाहिये।
    • अपने सदस्यों के आचरण के लिये नियम बनाने हेतु उद्देश्यपूर्ण और परामर्शी प्रक्रियाएँ स्थापित करनी चाहिये।
    • अनुपालन संस्कृति में सुधार के लिये मानक विकसित करना चाहिये।
    • क्षेत्र की प्रभावी निगरानी के लिये निगरानी विधियाँ होनी हैं।
  • सदस्यों के प्रति ज़िम्मेदारियाँ: अपने सदस्यों के प्रति SRO की प्राथमिक ज़िम्मेदारी सर्वोत्तम व्यावसायिक पद्धतियों को बढ़ावा देना होगा।

अन्य ज़िम्मेदारियों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • अपने सदस्यों के लिये आचार संहिता तैयार करना और उसके अनुपालन की निगरानी करना।
  • एक समान और गैर-भेदभावपूर्ण सदस्यता शुल्क संरचना विकसित करना।
  • अपने सदस्यों के लिये शिकायत निवारण और विवाद समाधान/मध्यस्थता ढाँचे की स्थापना करना।
  • वैधानिक/नियामक प्रावधानों की जानकारी को बढ़ावा देना।
  • सदस्यता के मानदंड: क्षेत्र का समग्र रूप से प्रतिनिधित्व करने के लिये SRO के पास सभी स्तरों पर सदस्यों का अच्छा मिश्रण होना चाहिये।
    • सदस्यता मानदंड RBI द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
    • SRO की सदस्यता स्वैच्छिक होगी। SRO को मान्यता प्रदान करने के दो वर्ष के भीतर न्यूनतम निर्धारित सदस्यता प्राप्त की जानी चाहिये।

बीमा उत्पादों के लिये विनियम अधिसूचित

  • भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) ने इरडाई (बीमा उत्पाद) विनियम, 2024 को अधिसूचित किया।
  • इसमें कई नियमों को निरस्त करने का प्रयास किया गया है, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
    • इरडाई (सूक्ष्म बीमा) विनियम, 2015
    • इरडाई (स्वास्थ्य बीमा) विनियम, 2016
    • इरडाई (यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स) विनियम, 2019

मुख्य विशेषताओं में निम्न शामिल हैं:

  • डिज़ाइन और मूल्य निर्धारण:
    • बीमा उत्पादों के डिज़ाइन और मूल्य निर्धारण को कुछ मानदंडों का पालन करना चाहिये।
    • इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
      • ग्राहकों की बढ़ती जोखिम कवरेज ज़रूरतों को सुनिश्चित करना।
      • समझने में आसान उत्पाद।
      • प्रीमियम दरें अत्यधिक, अपर्याप्त या भेदभावपूर्ण नहीं होनी चाहिये।
      • उत्पादों का मूल्य निर्धारण करते समय सभी प्रासंगिक जोखिमों को ध्यान में रखना।
  • उत्पाद प्रबंधन समिति: प्रत्येक बीमाकर्त्ता के बोर्ड को एक उत्पाद प्रबंधन समिति का गठन करना होगा।
  • समिति की ज़िम्मेदारियों में निम्नलिखित सुनिश्चित करना शामिल है:
    • लक्ष्य बाज़ार के लिये उचित उत्पाद डिज़ाइन
    • विनियामक अनुपालन
    • उत्पाद प्रदर्शन की समय-समय पर समीक्षा
    • अगर आवश्यक हो, तो उत्पाद में संशोधन या वापसी।
  • उत्पादों की समीक्षा: सभी बीमा उत्पादों की वर्ष में कम-से-कम एक बार नियुक्त बीमांकिक द्वारा समीक्षा की जानी चाहिये।
  • समीक्षा में निम्नलिखित पर विचार किया जाना चाहिये:
    • सभी हितधारकों की उचित अपेक्षाएँ।
    • उत्पाद की वित्तीय व्यवहार्यता।
    • उत्पाद के तहत उभरता जोखिम और अनुभव।
    • कोई अन्य प्रासंगिक कारक।

सूचकांक प्रदाताओं के लिये नियम

  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI) ने सेबी (सूचकांक प्रदाता) विनियम, 2024 को अधिसूचित किया।
  • इसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
    • सूचकांक की गणना।
    • सूचकांक पद्धति का निर्धारण।
    • सूचकांक का प्रसार।
  • विनियम उन सूचकांक प्रदाताओं पर लागू होंगे जो भारतीय प्रतिभूति बाज़ार में उपयोग के लिये किसी मान्यता प्राप्त भारतीय स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध प्रतिभूतियों के महत्त्वपूर्ण सूचकांकों का प्रबंधन करते हैं।
  • प्रमुख विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • पंजीकरण:
      • सूचकांक प्रदाताओं को सेबी के साथ पंजीकृत होना होगा।
      • मौजूदा सूचकांक प्रदाताओं के पास पंजीकरण के आवेदन के लिये छह महीने का समय होगा।
      • आवेदकों को कुछ पात्रता मानदंडों को पूरा करना होगा:
        • कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत निगमित इकाई
        • न्यूनतम शुद्ध संपत्ति 25 करोड़ रुपए।
        • सूचकांक प्रदाता के तौर पर काम करने के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचा और मानव संसाधन।
    • निरीक्षण समिति:
      • सूचकांक प्रदाता को बेंचमार्क निर्धारण प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिये एक निरीक्षण समिति बनानी होगी। समिति में विषय से संबंधित अनुभव और ज्ञान रखने वाले व्यक्ति शामिल होंगे।
      • समिति के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
        • सूचकांक डिज़ाइन या गणना पद्धति में बदलाव की आवश्यकता की समीक्षा करना।
        • नए वित्तीय बेंचमार्क की शुरुआत की निगरानी करना।
        • किसी सूचकांक को बंद करने की प्रक्रियाओं की समीक्षा करना।
  • सूचकांक की गुणवत्ता:
    • सूचकांक डिज़ाइन को अंतर्निहित हित का प्रतिनिधित्व करना चाहिये जिसे सूचकांक मापने का प्रयास कर रहा है।
    • सूचकांक की गणना उस डेटा का उपयोग करके की जानी चाहिये जो अंतर्निहित ब्याज का प्रतिनिधित्व करने के लिये पर्याप्त है।
    • डेटा इनपुट और डेटा के उपयोग के तरीके से संबंधित दिशा-निर्देश सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध होने चाहिये।
  • विवाद निवारण: सूचकांक प्रदाता को सूचकांक प्रदाता और ग्राहकों के बीच विवादों के लिये एक विवाद समाधान तंत्र बनाना होगा।

लघु और मध्यम REIT के लिये रूपरेखा

  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI) ने सेबी (रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट) विनियम, 2014 में संशोधनों को अधिसूचित किया है।
  • रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट (REIT) रियल एस्टेट परिसंपत्तियों में निवेश करने के लिये निवेशकों से धन एकत्र करते हैं।
  • वर्ष 2024 के संशोधनों के तहत प्रमुख परिवर्तनों में निम्नलिखित शामिल हैं:
  • REIT की परिभाषा:
    • वर्ष 2014 के विनियम REIT को विनियमों के तहत पंजीकृत ट्रस्ट के रूप में परिभाषित करते हैं।
    • वर्ष 2024 का संशोधन निर्दिष्ट करता है कि REIT एक ऐसे व्यक्ति को कहा जाता है जो रियल एस्टेट परिसंपत्तियों या संपत्तियों को हासिल और प्रबंधित करने के लिये कम-से-कम 200 निवेशकों से कम-से-कम 50 करोड़ रुपए एकत्र करता है। इससे निवेशकों को प्रबंधन नियंत्रण दिये बिना ऐसी परिसंपत्तियों से उत्पन्न आय प्राप्त करने का अधिकार मिल जाएगा।
  • लघु और मध्यम REIT:
    • लघु और मध्यम REIT योजना के तहत हासिल की जा सकने वाली संपत्ति का मूल्य 50 करोड़ रुपए से 500 करोड़ रुपए के बीच होगा।
    • REIT के निवेश प्रबंधक, उसके संबंधित पक्षों और सहयोगियों को छोड़कर, इसमें कम-से-कम 200 यूनिटधारक होने चाहिये।
  • पात्रता:
    • पंजीकरण के लिये लघु और मध्यम REIT को कुछ मानदंडों को पूरा करना होगा, जैसे:
      • ट्रस्ट की ओर से निवेश प्रबंधक द्वारा किया जा रहा पंजीकरण आवेदन
      • निवेश प्रबंधक के पास कम-से-कम 20 करोड़ रुपए की शुद्ध संपत्ति और रियल एस्टेट उद्योग या रियल एस्टेट फंड प्रबंधन में कम-से-कम दो वर्ष का अनुभव
      • निवेश प्रबंधक के कम-से-कम आधे निदेशक स्वतंत्र।

उद्योग

इलेक्ट्रिक वाहनों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना

  • भारी उद्योग मंत्रालय ने भारत में इलेक्ट्रिक यात्री कारों की विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना को अधिसूचित किया है।
  • यह योजना वैश्विक निर्माताओं को इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) पर कम आयात शुल्क की पेशकश करेगी, बशर्ते कि निर्माता घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग के लिये प्रतिबद्ध हों।
  • योजना की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
  • पात्रता:
    • यह योजना न्यूनतम 10,000 करोड़ रुपए के वार्षिक राजस्व वाले वैश्विक ऑटोमोटिव निर्माताओं के लिये खुली है।
    • निर्माता को भारत में EV के निर्माण के लिये तीन वर्ष की अवधि में कम-से-कम 4,150 करोड़ रुपए (500 मिलियन USD) का निवेश करने के लिये प्रतिबद्ध होना चाहिये।
    • निर्माता को अनुमोदन के तीन वर्षों के भीतर 25% घरेलू मूल्यवर्धन और पाँच वर्षों के भीतर 50% हासिल करना होगा।
  • प्रोत्साहन:
    • यह योजना निर्माताओं को अनुमोदन की तारीख से पाँच वर्ष के लिये पूरी तरह से आयातित EV पर 15% के कम आयात शुल्क की पेशकश करती है।
    • आयातित EV का न्यूनतम लागत, बीमा और माल ढुलाई (CIF) मूल्य 35,000 USD होना चाहिये।
  • बैंक गारंटी:
    • निर्माता को 4,150 करोड़ रुपए की बैंक गारंटी या छोड़े गए शुल्क की मात्रा, जो भी अधिक हो, जमा करने की आवश्यकता होगी।

इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन योजना

  • भारी उद्योग मंत्रालय ने इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन योजना, 2024 को अधिसूचित किया है।
  • इस योजना का उद्देश्य इलेक्ट्रिक दो और तीन-पहिया वाहनों (ई-रिक्शा सहित) को तेज़ी से अपनाने को बढ़ावा देना है।
  • इसका परिव्यय 500 करोड़ रुपए होगा। इसे अप्रैल और जुलाई 2024 के बीच चार महीनों में लागू किया जाएगा।
  • प्रमुख विशेषताओं में शामिल हैं:
    • उपभोक्ताओं को प्रोत्साहन:
      • दोपहिया और तिपहिया के लिये 5,000 रुपए प्रति kWh का प्रोत्साहन दिया जाएगा।
      • यह योजना मुख्य रूप से वाणिज्यिक वाहनों और सार्वजनिक परिवहन के लिये उपयोग किये जाने वाले वाहनों को कवर करेगी।
      • हालाँकि निजी या कॉर्पोरेट स्वामित्व वाले दोपहिया EV को भी प्रोत्साहन दिया जाएगा।
  • प्रोत्साहनों का दावा:
    • सरकार से प्रोत्साहन का दावा करने के लिये निर्माताओं को कुछ मानदंडों को पूरा करना होगा।
    • इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
      • भारी उद्योग मंत्रालय के साथ पंजीकरण और उनके प्रत्येक इलेक्ट्रिक वाहन मॉडल के लिये अनुमोदन।
      • प्रत्येक वाहन मॉडल प्रदर्शन और दक्षता के लिये न्यूनतम तकनीकी पात्रता मानदंडों को पूरा करता है।
      • वाहन का निर्माण भारत में किया जाना चाहिये।

पर्यावरण

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016

  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 में संशोधन अधिसूचित किया है। संशोधन बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के निर्माताओं के लिये दायित्व निर्धारित करते हैं।
  • संशोधनों की मुख्य विशेषताओं में निम्न शामिल हैं:
  • बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के निर्माता:
    • ऐसे प्लास्टिक पर भारतीय मानक ब्यूरो और भारतीय खाद्य सुरक्षा तथा मानक प्राधिकरण द्वारा जारी अलग-अलग चिह्न एवं लेबल होने चाहिये।
    • कंपोस्टेबल/बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक उत्पादों के निर्माताओं को विपणन या बिक्री से पहले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) से प्रमाण-पत्र प्राप्त करना होगा।
  • EPR पूरा करने हेतु बाध्य संस्थाएँ:
    • प्लास्टिक उत्पादों के विक्रेताओं और निर्माताओं को विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी (EPR) दायित्वों को पूरा करना आवश्यक है।
    • वर्ष 2016 के नियमों के तहत, बाध्य संस्थाओं में प्लास्टिक पैकेजिंग के निर्माता शामिल थे।
    • संशोधनों से MSME उत्पादकों को छूट मिलती है। MSME के कुछ दायित्वों को उनके कच्चे माल के आपूर्तिकर्त्ताओं द्वारा पूरा किया जाएगा।
    • हालाँकि MSME को पुनर्नवीनीकृत प्लास्टिक के उपयोग से संबंधित लक्ष्यों को पूरा करना होगा।
  • EPR प्रमाण-पत्रों का व्यापार:
    • नियम EPR प्रमाण-पत्रों के व्यापार की अनुमति देते हैं।
    • संशोधन निर्दिष्ट करते हैं कि प्रमाण-पत्र की कीमत कुछ सीमाओं के अधीन CPCB द्वारा निर्धारित की जाएगी।
    • न्यूनतम कीमत गैर-अनुपालन संस्थाओं द्वारा देय मुआवज़े का 30% होगी और अधिकतम कीमत मुआवज़े का 100% होगी।
  • एकल उपयोग प्लास्टिक हेतु कच्चा माल:
    • संशोधन प्लास्टिक के कच्चे माल के निर्माताओं और आयातकों को उन संस्थाओं को आपूर्ति करने से रोकते हैं जो एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं का निर्माण करती हैं जो कानून द्वारा निषिद्ध हैं।

बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022

  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022 में संशोधन को अधिसूचित किया।
  • नियमों के अनुसार बैटरी उत्पादकों को बैटरी अपशिष्ट के पुनर्चक्रण और नवीनीकरण से संबंधित विस्तारित निर्माता ज़िम्मेदारी (EPR) दायित्वों को पूरा करने की आवश्यकता होती है।
  • EPR दायित्वों को पूरा करने के लिये EPR प्रमाण-पत्रों का व्यापार किया जा सकता है।
  • संशोधनों की मुख्य विशेषताएँ हैं:
    • EPR प्रमाण-पत्रों का मूल्य:
      • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को EPR प्रमाण-पत्रों के लिये न्यूनतम मूल्य और अधिकतम मूल्य निर्दिष्ट करना होगा।
      • मूल्य को संग्रह की लागत, पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति और अपशिष्ट बैटरियों के अच्छे प्रबंधन में शामिल किया जाना चाहिये।
      • संशोधनों के अनुसार, EPR प्रमाण-पत्र की न्यूनतम कीमत मुआवज़े का 30% होगी और अधिकतम कीमत मुआवज़े का 100% होगी।
    • मुआवज़े पर दिशा-निर्देश:
      • वर्ष 2022 के नियमों के तहत CPCB को EPR दायित्वों का अनुपालन न करने की स्थिति में मुआवज़ा वसूलने का अधिकार है।
      • वर्ष 2024 के संशोधनों के अनुसार, CPCB दिशा-निर्देश तैयार करेगा और सुझाव देगा। प्रक्रिया के दौरान CPCB कार्यान्वयन समिति से परामर्श कर सकता है।

स्वास्थ्य

उन्नयन सहायता योजना

रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने संशोधित फार्मास्यूटिकल्स टेक्नोलॉजी प्रौद्योगिकी उन्नयन सहायता योजना को मंज़ूरी दे दी है। संशोधित योजना की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • एप्लिकेबिलिटी बढ़ाई गई:
    • मूल योजना के तहत, MSME को नियामक मानकों को पूरा करने के लिये ब्याज छूट प्रदान की गई थी।
    • संशोधित योजना में फार्मास्यूटिकल मैन्यूफैक्चरिंग इकाइयों को शामिल करने के लिये पात्रता का विस्तार किया गया है, जिसमें वे इकाइयाँ भी शामिल हैं जिनका औसत तीन साल का कारोबार 500 करोड़ रुपए से कम है।
  • नए मानकों के अनुपालन के लिये समर्थन:
    • मूल योजना के तहत हीटिंग, वेंटिलेशन और एयर कंडीशनिंग (HVAC) सिस्टम, स्थिरता परीक्षण कक्ष तथा स्टेराइल एरियाज़ के लिये स्वचालित पार्टिकल काउंटर जैसे अपग्रेडेशन के लिये सहायता प्रदान की गई थी।
    • इन उन्नयनों के लिये सपोर्ट के अलावा, संशोधित योजना में स्वच्छ कमरे की सुविधाएँ, अपशिष्ट उपचार और पानी तथा भाप उपयोगिताएँ शामिल होंगी।
  • टर्नओवर आधारित प्रोत्साहन संरचना:
    • प्रोत्साहन की गणना वास्तविक निवेश के प्रतिशत के रूप में की जाएगी।
    • इसे पिछले तीन वर्षों के औसत टर्नओवर से भी जोड़ा जाएगा।

नवीन एवं अक्षय ऊर्जा

राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन

  • नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत विभिन्न योजनाओं के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
  • मिशन के अंतर्गत योजनाओं में शामिल हैं:
    • अनुसंधान एवं विकास (R&D)।
    • इलेक्ट्रोलाइज़र विनिर्माण के लिये प्रोत्साहन (पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में परिवर्तित करने वाला एक उपकरण)।
    • कौशल विकास।
    • हाइड्रोजन हब की स्थापना।
  • अनुसंधान एवं विकास योजना:
    • हाइड्रोजन उत्पादन, स्टोरेज, परीक्षण और परिवहन जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास के लिये वित्तीय सहायता (परियोजना की लागत के लिये) प्रदान की जाएगी।
    • मौजूदा क्षमताओं के आधार पर परियोजनाओं को अल्पावधि (पाँच वर्ष तक), मध्यावधि (आठ वर्ष तक) और दीर्घावधिक (15 वर्ष तक) में विभाजित किया जाएगा।
  • इलेक्ट्रोलाइज़र निर्माण:
    • यह योजना इलेक्ट्रोलाइज़र के घरेलू विनिर्माण को समर्थन देने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है।
    • पात्र होने के लिये कंपनियों की प्रति मेगावाट विनिर्माण क्षमता का शुद्ध मूल्य एक करोड़ रुपए होना चाहिये।
    • छोटे निर्माता (30 लाख रुपए प्रति मेगावाट या उससे अधिक की कुल संपत्ति वाले) भी योजना की एक अलग किश्त के तहत पात्र हैं।
  • हाइड्रोजन हब की स्थापना:
    • ऐसे क्षेत्र जो हाइड्रोजन के बड़े पैमाने पर उत्पादन/उपयोग का समर्थन कर सकते हैं, उनकी पहचान की जाएगी और उन्हें हाइड्रोजन हब के रूप में विकसित किया जाएगा।
    • भंडारण और परिवहन तथा जल उपचार सुविधाओं जैसे मुख्य बुनियादी ढाँचे के लिये सहायता प्रदान की जाएगी।
  • कौशल विकास:
    • इस योजना का उद्देश्य स्कूलों और उच्च शिक्षण संस्थानों के लिये कौशल विकास तथा पाठ्यक्रम डिज़ाइन करना है।
    • 18-45 वर्ष की आयु के व्यक्ति, जो आवश्यक नौकरी मानदंडों को पूरा करते हैं, प्रशिक्षण के लिये पात्र होंगे।

वाणिज्य

उत्तर पूर्व परिवर्तनकारी औद्योगीकरण योजना

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने उत्तर पूर्व परिवर्तनकारी औद्योगीकरण योजना (उन्नति), 2024 को मंज़ूरी दी है।
  • केंद्रीय क्षेत्र की योजना 10 वर्ष की अवधि में 10,037 करोड़ रुपए की कुल लागत के साथ लागू की जाएगी।
  • इस योजना का उद्देश्य उत्तर-पूर्वी राज्यों में उद्योगों का विकास करना और रोज़गार पैदा करना है।
  • योजना के तहत प्रदान किये जाने वाले प्रोत्साहनों में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • नई और विस्तारित इकाइयों के लिये पूंजी निवेश प्रोत्साहन।
    • नई और विस्तारित इकाइयों के लिये ब्याज छूट।
    • नई इकाइयों के लिये मैन्यूफैक्चरिंग से जुड़े प्रोत्साहन।

यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ के साथ व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर

  • भारत ने यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (European Free Trade Association- EFTA) के साथ एक व्यापार और आर्थिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किये।
  • EFTA में स्विट्ज़रलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे और लिकटेंस्टीन शामिल हैं।
  • समझौते के तहत, EFTA का लक्ष्य अगले 15 वर्षों में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को 100 बिलियन USD तक बढ़ाना होगा।
  • EFTA में भारत को सभी गैर-कृषि उत्पादों को कवर करने वाली बाज़ार पहुँच और प्रसंस्कृत कृषि उत्पादों पर टैरिफ रियायत मिलेगी।
  • भारत लोहे और इस्पात की कुछ वस्तुओं, कपड़ों तथा भवन निर्माण मशीनरी जैसे सामानों पर टैरिफ रियायतें प्रदान करेगा।

कोयला

अंतर-मंत्रालयी समिति ने कोयला आयात प्रतिस्थापन पर रिपोर्ट जारी की

  • कोयला मंत्रालय द्वारा गठित एक अंतर-मंत्रालयी समिति ने कोयला आयात प्रतिस्थापन पर एक रिपोर्ट जारी की।
  • कोयले का उपयोग बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन (64%), इस्पात उत्पादन (8%) और सीमेंट उत्पादन (5%) के लिये किया जाता है।
  • वर्ष 2030 तक कोयले की मांग 1.6 बिलियन टन होने का अनुमान है।
  • प्रमुख टिप्पणियों और अनुशंसाओं में शामिल हैं:
  • कोकिंग कोल के आयात में कमी:
    • कोकिंग कोल का उपयोग मुख्य रूप से इस्पात के उत्पादन में किया जाता है। इस्पात उद्योग अपने कोकिंग कोल की 90% आवश्यकताओं को आयात के माध्यम से पूरा करता है।
    • इस प्रकार, समिति ने सिफारिश की कि इस्पात क्षेत्र को अधिक कोकिंग कोयले की आपूर्ति की जानी चाहिये।
    • समिति ने यह भी सिफारिश की कि धुलाई क्षमता बढ़ाई जाए।
  • गैर-कोकिंग कोल आयात में कमी:
    • नॉन-कोकिंग कोल का उपयोग बिजली उत्पादन में किया जाता है।
    • समिति ने सुझाव दिया कि बॉयलर घरेलू कोयले का उपयोग करें और उन्हें घरेलू कोयले के अनुकूल बनाने के लिये रेट्रोफिट किया जाए।
  • कोयले पर GST क्षतिपूर्ति उपकर:
    • 400 रुपए प्रति टन की दर से उपकर लगाया जाता है। यह मूल (घरेलू या आयातित), गुणवत्ता या स्रोत की परवाह किये बिना है।
    • इससे ऊर्जा की प्रति यूनिट घरेलू कोयले की लागत अधिक हो जाती है, क्योंकि आयातित कोयले की तुलना में घरेलू कोयला आमतौर पर ऊर्जा सामग्री में कम होता है।
    • समिति ने कोयले पर GST क्षतिपूर्ति उपकर को तर्कसंगत बनाने की सिफारिश की।
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